हम सबने महात्मा गाँधी की आत्मकथा पढ़ी होगी। हम सब उनके बारे में बहुत कुछ जानते भी होंगे, लेकिन गाँधीजी के बचपन के बारे में, इन घटनाओं के बारे में, बहुत कम लोग जानते होंगे।
कथाकार और अनुवादक सूरज प्रकाश ने महात्मा गाँधी की आत्मकथा का गुजराती से हिंदी अनुवाद किया है। सूरज प्रकाश की मातृभाषा पंजाबी है, लेकिन राजकमल प्रकाशन के अनुरोध पर उन्होंने इस विश्व प्रसिद्ध आत्मकथा का गुजराती से अनुवाद किया था।
आज वे हमारे साथ गाँधीजी की आत्मकथा में से उनके बपचन के कुछ कम ज्ञात प्रसंग शेयर कर रहे हैं। बचपन की इन घटनाओं ने गाँधीजी के बाद के जीवन की आधारशिला रखी थी। -हरि भटनागर
महात्मा गांधी के जीवन – प्रसंग :
• बहुत पहले की बात है आठ नौ बरस का एक मासूम सा बच्चा दोस्तों की बुरी संगत में बिगड़ने लगा।
गलत काम की शुरुआत मांस खाने से हुई।
तय कार्यक्रम के हिसाब से दोनों नदी की तरफ सुनसान जगह की खोज में चले।
वहां पर उसने पहली बार मांस देखा।
साथ में डबल रोटी थी। दोनों ही चीज़ें उसे अच्छी नहीं लगती थीं।
मांस चमड़े जैसा लगा और उससे खाया ही न गया। मितली आ गयी और खाना छोड़ देना पड़ा।
उसकी वह रात बहुत बुरी बीती। नींद आंखों से कोसों दूर थी।
सपने में ऐसा भास होता था मानो मरा हुआ बकरा उसके शरीर के अंदर जीवित हो और रुदन कर रहा हो।
वह चौंक कर जाग उठता, पछताता और फिर सोचता कि मुझे तो मांस खाना ही है, हिम्मत नहीं हारनी है।
मित्र भी हार मानने वाले नहीं थे। अब उन्होंने मांस को अलग-अलग तरीके से पकाने, सजाने और ढंकने का प्रबंध किया।
अब की बार उसके मित्र ने छुपते-छुपाते एक सरकारी डाक बंगले में इंतजाम किया और कुर्सी मेज पर बैठ कर मांस खाया गया।
इसका असर पड़ा।
डबल रोटी के प्रति नफरत कम हुई, बकरे पर अब तक जो दया आ रही थी, वह कम हुई और मांस खाने में आनंद आने लगा।
ये सिलसिला साल भर तक चलता रहा।
सारे इंतजाम और खर्च दोस्त ही करता था। दोस्त का इरादा उसे मांस खाने का चस्का लगाने का था।
बच्चे को जल्दी ही समझ में आ गया कि मां-बाप को धोखा देना और झूठ बोलना तो बुरा है।
तब से जो मांस छूटा, हमेशा के लिए छूट गया।
• अगली बार उसका दोस्त उसे वेश्याओं की बस्ती में ले गया।
वहां पर वह बेचारा उस औरत के पास खटिया पर जा बैठा लेकिन कुछ बोल ही न पाया।
औरत ने गुस्से में उसे दो-चार खरी-खोटी सुनायी और बाहर का रास्ता दिखा दिया।
इस तरह से बच के निकल आने के लिए उसने ईश्वर का आभार माना।
• कुछ समय बीतने के बाद उसे एक रिश्तेदार के साथ बीड़ी-सिगरेट पीने का चस्का लगा।
पास पैसे तो होते नहीं थे। दोनों में से किसी को यह पता नहीं था कि सिगरेट पीने से कोई फायदा होता है या उसकी गंध में कोई आनंद होता है।
लेकिन दोनों को लगा कि सिगरेट का धुंआ उड़ाने में ही असली मज़ा है।
लड़के के चाचा को सिगरेट पीने की लत थी, इसलिए चाचा सिगरेट पीने के बाद जो ठूंठ फेंक देते, उसने उन्हें ही चुरा कर पीना शुरू कर दिया।
लेकिन सिगरेट के ये ठूंठ हर समय तो मिल नहीं सकते थे और इनमें से धूंआ भी बहुत नहीं निकलता था।
अब नौकर की जेब में पड़े पैसों में से एकाध पैसा चुराने की आदत डाली और इन पैसों से दोनों बीड़ी खरीदने लगे।
इस बीच पता चला कि एक तरह का पौधा होता है जिसके डंठल सिगरेट की तरह जलते हैं और फूंके जा सकते हैं।
उन्होंने ऐसे डंठल खोजे और उन्हें सिगरेट की तरह फूंकने लगे।
लेकिन इससे उन्हें संतोष न हुआ।
उन्हें दु:ख इस बात का था कि बड़ों की आज्ञा के बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते थे। दोनों ऊब गये और आत्महत्या कर फैसला कर डाला!
पर आत्महत्या कैसे करें? ज़हर कौन देगा?
तभी सुना कि धतूरे के बीज खाने से मृत्यु हो जाती है।
दोनों जंगल में जा कर धतूरे के बीज ले आये।
शाम का समय तय किया और सुनसान जगह की तलाश की।
लेकिन ज़हर खाने की हिम्मत न हो।
अगर तुरंत मृत्यु न हुई तो क्या होगा? मरने से लाभ क्या?
फिर भी दो-चार बीज खाये। अधिक बीज खाने की हिम्मत ही न हुई।
दोनों ही मौत से डरे और तय किया कि राम जी के मंदिर में दर्शन करके शांत हो जायें और आत्म हत्या करने की बात भूल जायें।
• तभी एक और घटना हुई।
लड़के के भाई पर मामूली-सा कर्ज हो गया था।
दोनों भाई परेशान कि ये कर्ज कैसे चुकाया जाये।
तभी याद आया कि भाई के हाथ में खरे सोने का कड़ा था। उसमें से एक तोला सोना काट लेना मुश्किल न था।
कड़ा कटा। कर्ज चुकाया गया।
तभी बच्चे को लगा कि पिताजी के सामने जा कर अपना गुनाह भी कबूल कर लेना चाहिये।
लेकिन इस बात का डर था कि पिताजी पीटेंगे।
दु:खी भी होंगे ही!
लड़के ने यह सोचा कि अपने दोष को कबूल करना ही होगा।
इसके बिना शुद्धि नहीं होगी।
आखिर उसने तय किया कि एक पत्र लिख कर अपना दोष स्वीकार कर लिया जाये और माफी मांग ली जाये।
उसने पत्र लिख कर अपने सब दोष स्वीकार किये और सज़ा मांगी।
यह विनती भी की कि वे अपने आपको दु:ख में न डालें और भविष्य में ऐसा अपराध फिर न करने की प्रतिज्ञा की।
कांपते हाथों से पत्र पिताजी के हाथ में थमाया।
उन्होंने पत्र पढ़ा। उनकी आंखों से मोती टपकने लगे।
पत्र भीग गया। उन्होंने पल भर के लिए आंखें मूंदी, पत्र फाड़ डाला।
लड़का भी रोया। पिताजी का दु:ख समझ सका।
उसके लिए ये अहिंसा का साक्षात पाठ था।
उस लड़के ने आजीवन अहिंसा के पाठ को याद रखा और वह पाठ दुनिया को सिखाया।
इस बच्चे को हम महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं।
सूरज प्रकाश
सूरज प्रकाश मूल रूप से कथाकार और अनुवादक हैं। उनका लेखन बहुत विस्तार लिये हुए है। उन्होंने लगभग पचास कहानियां लिखी हैं। हाल में उनकी संपूर्ण कहानियों सेट तीन भागों में प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा उन्होंने चार उपन्यास लिखे हैं। लेखकों की दुनिया उनकी शोध आधारित किताब है जिसमें दुनिया भर के पांच सौ लेखकों के बारे में रोचक और दुर्लभ जानकारियां दी गयी हैं।
सूरज प्रकाश ने गुजराती से सात और अंग्रेजी से सात पुस्तकों के अनुवाद किये हैं। ऐन फ्रैंक की डायरी, एनिमल फार्म, चार्ली चैप्लिन की आत्म कथा और चार्ल्स डार्विन की आत्म कथा उनकी कुछ उल्लेखनीय अनूदित कृतियां हैं। महाराष्ट्र राज्य अकादमी और गुजरात राज्य अकादमी के सम्मान प्राप्त कर चुके सूरज प्रकाश ने कई पुस्तकों का संपादन भी किया है। उनके लेखन पर सात एम फिल हो चुकी हैं और तीन पीएचडी हो रही हैं।
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बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया प्रसंग पठनीय और विचारनीय है