ब्रज श्रीवास्तव समकालीन काव्य परिदृश्य में एक युवा स्वर है। ब्रज की कविताएं आकार में छोटी होती हैं किन्तु उनके निहितार्थ बड़े आशयों को रूप देते हैं।
यहां जीवन के विविध रंग – रूप की कविताएं हैं जो कहन में सहज हैं किन्तु इनके गूढ़ार्थ व्यंजना में खुलते हैं। मुझे तो जड़ता से मुक्ति का आह्वान लगती हैं :
एक स्वर आज़ाद होता है
फूटकर कंठ से
एक आवाज़
आज़ाद होती है
सच को ज़ोर से बोलकर
-हरि भटनागर

कविताएं :

1.

एक बयान

जन्म ले लिया था शोक ने वहांँ
अनुपस्थिति का धुंआ फैल गया था
कम लोग
उसके आखिरी दिन जी लेने की वजह से
दुःख में थे
अधिकतम लोगों ने क्षण भर के लिए
महसूस की कमी इस रोशनी की
चौंक कर फ़िक्र की अपनी भी

चरित्र खराब था उसका
एक बयान सा सुनाई दिया

सोचता रहा मैं
मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ साथ
चरित्र प्रमाण-पत्र
जारी हो जाने का भी दिन हुआ
अंतिम विदा लेने का

हालांकि अन्य प्रशस्तियों के लिए
गुजारा था उसने जीवन

2.

युद्ध।

 

युद्ध उड़ रहा था मगर धूल उसके नथुनों में भरती रही
औजार अपनी नोक को फहरा रहे थे
चीर का चरम अहसास हो रहा था वायुमंडल को
व्यक्ति बदल चुके थे अस्त्रों में
पशुओं के पास नहीं थी अहिंसक पिचकारी

तारीखें चुपचाप बैठ गयीं छत पर जाकर
कैलैंडर दीवार पर कम फर्श पर ज्यादा रहने लगा
हारमोनियम के पर्दों में से बाहर निकल गई थी आखिरी हवा
घर सावधान हो गये श्वानों की तरह
घड़ियों ने अपनी सुईयों से कुछ कह दिया था कान में

कंपनों के टूट गये थे दांत
धागे अपने दूसरे छोर को बहुत नजदीक पाने लगे
समकोण सिमट गया था
कर्ण और विकर्ण अब बस एक रेखा बन चुके थे
एक दिशा के रुदन का सुर दूसरी दिशा के रूदन के जैसा था

पक्षियों की तरह उड़ रहे थे विमान
युद्ध के हुक्म की तामीली में
विजय पाने की हवस हर पंख में फड़फड़ा रही थी
विशाल धरती अभिशाप का तीर अपने सीने में
चुभा पा रही थी
एक टुकड़ा दूसरे टुकड़े को टुकड़ों टुकड़ों में करते हुए
बहुत जोर से चीख रहा था।

 

3.
चिन्ह

गुणा में दोनों अंक
रचते हैं और बड़ा अंक
यह योग कुल का बुजुर्ग है
थोड़ा और वरिष्ठ है समाकलन

हम ऋण न हों
जो कम ही कम करता जाता है
मूल को
भाग और अवकलन
मूल्य को कम ही करते जाते हैं

शब्द से भी कम जगह लेकर
ज्यादा बोलते
दरअसल ये चिन्ह हैं
इनके पीछे
कहां कोई चलता है
चलते हैं लोग
लोगों के पीछे
जिन्होंने खुद बस किसी व्यक्ति के पीछे
चलने का चयन किया

4.

।।ध्यान।।

आंखों को खोलकर बैठ जाओ
देखो कि
लगभग सभी लोग आंखें खोले हुए
भाग रहे हैं
धक्का देकर निकल रहे हैं आगे

अपने पैरों की अंगुली में
स्पंदन महसूस करो
फिर घुटनों में
फिर जांघ में
धीरे-धीरे धीरे
सर के ऊपरी हिस्से में
एहसास होगा कि कभी किसी ने
यह अवसर नहीं दिया
कि तुम अपने ही बदन के इन अंगों में
रक्त का बहना महसूस कर सको

तुम्हें एहसास होना था
कि पूरी पृथ्वी तुम्हारी है
मगर अब तक अपने भूगोल से भी तुम दूर हो

अब सोचो कि
एक दिव्य ऊर्जा तुम्हारे भीतर प्रवेश कर रही है

ध्यान में भी हमने
वही सोचा जो
वास्तव में नहीं हो रहा था कहीं

अब आंखें बंद करो
कल्पना करके हासिल करो
सुकुन
और कोई उपाय है भी नहीं।

5.
सुबह जन्मदिन है

 

सुबह आई है खिले फूल की तरह
इसके गालों पर शबनम की छिड़क है।
चहुंओर उमंग है
अंगड़ाई लेकर जाग रहीं हैं दिशाएं
सूरज मुस्करा कर देख रहा है
सभी को नींद से उठते हुए
जैसे घर के बुजुर्ग देखते हैं
बच्चों को और टहलने के जाने के लिए कहते हैं।

रात के जाते ही सुबह ने अपनी ड्यूटी संभाल ली है
सुरक्षा गार्ड की तरह वह
पूरी दुनिया का विहगावलोकन कर रही है एक बार
उसके पास एक पहर है
लोगों को स्फूर्त करने के लिए
उसके ही रहते
स्नान करना है सारे मस्तिष्कों को
तमाम कदमों को कस लेना है जूतों के बंद
अनेक शपथों का नवीनीकरण होना है
सुबह आई है

सुबह को ही मालूम है कि वह
किसके लिए कितनी नयी है
किसके लिए कितनी भारी
किसके लिए वह एक स्वागत है
कौन उसे देखकर
क्षणों में जीवन देख पा रहा है
कौन चल पा रहा है
पहली ट्रेन की गति से
कौन मन की गति से दौड़ रहा है।

सुबह सबके लिए जन्मदिन है
सबके सम्मान के लिए आसमान में
बादलों के गुब्बारे लटके हैं सुबह सुबह.

6.
फिदा हो गया मैं

गुस्सा करते हुए
एक शख्स पर प्यार आया मुझे
फिर प्यार आया
सच को साहस से बोलती एक स्त्री पर
मुझे एक आलू पर प्यार आया
जो तैयार था भुनने के लिए
मेरे वास्ते

इतनी मनोभावों में से
प्यार करना मेरे हिस्से में आया
कि मैं अपने दोस्त पर गुस्सा हुआ
अंदर प्यार का अधिकार लेकर
जब भी मैं दुखी था
तो इसलिए था कि मेरा प्यार
कोई समझता ही नहीं

मैं इस पृथ्वी के हर हिस्से
पर कदम रखकर
चाहता हूँ एक बोसा रखना
हर रचना पर चकित होकर
मुस्कान देना चाहता हूँ होंठों को

अभी अभी प्यार आया
सामने जा रहे एक व्यक्ति पर
जो गोद में उठाए है
दूसरे का बच्चा
इधर एक पौधा फँसा रहा है
मेरी ओर हरीतिमा की फ्लाइंग किस देकर

मुझे बार बार प्यार हो जाता है
ओह एक लय, एक लहजा, कुछ
तलफ्फुसों से सजी एक बोली
पर फिदा हो गया मैं अभी अभी

 

7.

आजादी

बादल से छूटकर
एक बूँद आजाद होती है
एक बीज आजाद होता है
प्रस्फुटित होकर
एक हर्फ लिखकर आजाद होती है कलम
एक रुदन करके
जातक आजाद होता है

एक स्वर आजाद होता है
फूटकर कंठ से
हारमोनियम के

एक आवाज
आजाद होती है
सच को जोर से बोलकर

8.
कहां जाना चाहिए

मुझे कहां जाना चाहिए
जहां एक निर्जीव है
संवाद के लिए
जहां हम एक काल्पनिक किरदार के
खुश हो जाने के लिए
मुत्मइन हैं
या वहां जाना चाहिए
जहां कोई वाकई
खिल उठेगा
हमारी उपस्थिति देखकर
वहां जहां कोई
इंतज़ार कर रहा होगा हमारा
जो खुशी से गले लगा लेगा
कृपा नहीं करेगा
मगर उसकी बांछें खिल जायेंगी

वहीं जाना चाहिए
जहां न पहुंचने पर
अनुपस्थिति
चुभेगी शूल की तरह

9.

।।जाति ।।

जीवित बचा लेने पर
चिकित्सक को
धन्यवाद दिया मैंने

मेहनत की कमाई को
छीना तो
मैंने उस परिचित को कोसा

जिसने रिश्वत चाही
तो क्षुब्ध होकर कोसा
आए दिन झूठ, कपट, धोखा
सहयोग या उपकार भी मिला

किसी जाति ने नहीं
इन व्यक्तियों ने मुझे
सुख- दुख दिये

मुझे व्यक्ति बनाते रहे
मिटाते रहे
जातियांँ तो यूं ही
बदनाम थीं

10.

क्या भरोसा

 

सुबह का नाम रखकर अमूर्त में
नदी में जो पानी अभी है
वह लौटकर नहीं आएगा इस जगह कभी
सूरज की यह किरण
बस एक बार ही आई है धरती पर
नाम अलबत्ता शबनम है
मगर विदा ले चुकीं हैं वे बूंदें दूब से तत्क्षण

नहीं रहेगी ये दिनाँक
आने वाली तारीख के जैसी
ये संबंध भी
रह पाए न शायद आज के जैसा घनिष्ठ


ब्रज श्रीवास्तव:

विदिशा में 5 सितंबर 1966 को जन्म।

समकालीन हिंदी कविता का चर्चित नाम।
तमाम गुमी हुई चीज़ें,घर के भीतर घर,ऐसे दिन का इंतज़ार ,आशाघोष, समय ही ऐसा है, हम गवाह हैं सहित,अब तक छः कविता संग्रह प्रकाशित।एक कविता संग्रह ‘कहानी रे तुमे’ उड़िया में भी प्रकाशित।अनुवाद और समीक्षा सहित कथेतर गद्य में अन्य प्रकाशन।माँ पर केंद्रित कविताओं का संचयन‘धरती होती है मांँ’,पिता पर केंद्रित कविताओं का संचयन ‘पिता के साये में जीवन’एवं त्रिपथ सीरीज के अब तक तीन संग्रहों का संपादन। साहित्य की बात समूह का संचालन। कुछ काम कैलीग्राफी और चित्रकला में भी। संगीत में दिलचस्पी।
विदिशा में शासकीय हाईस्कूल में प्राचार्य की पद पर कार्यरत।
फोन -7024134312
वाट्स एप -9425034312
ईमेल -brajshrivastava7@gmail.com

 

 

 

 


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