सुखी राजकुमार
-मूल लेखक : ऑस्कर वाइल्ड
-अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

शहर से बहुत ऊँचाई पर एक लम्बे स्तम्भ पर सुखी राजकुमार की मूर्ति खड़ी थी । उसकी पूरी मूर्ति पर सोने का पानी चढ़ा हुआ
था । मूर्ति की आँखों की जगह दो चमकीले नीलमणि जड़े हुए थे । और उसकी तलवार की मूठ पर एक बहुत बड़ा चमकीला माणिक जड़ा हुआ था ।
एक रात एक नन्ही गौरैया शहर पर से उड़ते हुए वहाँ पहुँची । छह हफ़्ते पहले उसकी सभी सखियाँ और मित्र मिस्र चले गए थे , लेकिन यह नन्ही गौरैया पीछे रह गई । अब इस गौरैया ने भी मिस्र चले जाने का फ़ैसला किया । पूरा दिन उड़ते रहने के बाद रात में वह इस शहर में पहुँची ।
“ मैं कहाँ रुकूँ ? “ गौरैया बोली । “ मुझे उम्मीद है , इस शहर ने भी आने वाली सर्दी के मौसम से निपटने की तैयारी कर ली
होगी । “
फिर गौरैया ने ऊँचे स्तम्भ पर खड़ी मूर्ति को देखा । “ मैं वहाँ रुकूँगी । “ गौरैया ने चहक कर कहा । “ यह एक अच्छी , हवादार जगह है । “ इसलिए गौरैया उड़कर सुखी राजकुमार की मूर्ति के कदमों के बीच जा बैठी ।
“ मेरे पास सुनहरा शयन-कक्ष है , “ चारों ओर देखते हुए गौरैया धीरे से बोली । फिर वह सोने की तैयारी चकरने लगी । लेकिन वह अपना सिर अपने पंखों से ढँक ही रही थी कि पानी की एक बड़ी बूँद उसके ऊपर पड़ी ।
“ क्या अजीब बात है ! “ वह बोली । “ पूरे आकाश में एक भी बादल नहीं है , चमकीले सितारे साफ़ नज़र आ रहे हैं , फिर भी बारिश हो रही है । “
फिर उस पर एक और बूँद टपकी ।
“ ऐसी मूर्ति का क्या फ़ायदा जो मुझे बारिश से न बचा सके ? “ उसने कहा । “ मुझे एक अच्छी चिमनी की नली ढूँढ़नी
होगी । “ यह कह कर उस गोरैया ने वहाँ से उड़ने का मन बना
लिया ।
लेकिन इससे पहले कि गौरैया अपने पंख फैला पाती , पानी की एक तीसरी बूँद उस पर गिरी और उसने ऊपर देखा । अरे , उसे क्या दिखा ?
सुखी राजकुमार की आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं । और उसके सुनहरे गालों से नीचे आँसुओं की बूँदें ढुलक रही थीं । राजकुमार का चेहरा चाँदनी में इतना सुंदर लग रहा था कि नन्ही गौरैया को उस पर दया आ गई ।
“ तुम कौन हो ? “ उसने पूछा ।
“ मैं सुखी राजकुमार हूँ । “
“ फिर तुम रो क्यों रहे हो ? “ गौरैया ने पूछा । “ तुमने तो मुझे लगभग भिगो ही दिया है । “
“ जब मैं जीवित था और मेरे पास इंसान का धड़कता हुआ दिल था , “ मूर्ति ने जवाब दिया , “ तब मैं नहीं जानता था कि आँसू क्या होते हैं , क्योंकि मैं एक महल में रहता था जहाँ दुख का प्रवेश वर्जित था । मेरे दरबारी मुझे ‘ सुखी राजकुमार ‘ कह कर बुलाते थे , और मैं वाक़ई सुखी था । मैं सुख से जिया और इसी अवस्था में मेरी मृत्यु हुई । और अब , जबकि मैं मर चुका हूँ , उन्होंने मुझे इतनी ऊँची जगह पर स्थापित कर दिया है जहाँ से मैं अपने इस शहर की सारी बदसूरती और यहाँ के लोगों के सारे दुख-दर्द देख सकता हूँ । हालाँकि मेरा हृदय सीसे का बना है पर पर मेरे पास रोने के अलावा कोई विकल्प नहीं । “
“ यह क्या ? क्या यह मूर्ति ठोस सोने की नहीं बनी है ? “
गौरैया ने ने खुद से कहा । वह बेहद विनम्र थी , इसलिए व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करती थी ।
“ बहुत दूर एक पतली-सी गली में एक टूटा-फूटा मकान है , “ मूर्ति ने धीमी , संगीतमय आवाज़ में कहना जारी रखा । “ उस जर्जर मकान की एक खिड़की खुली हुई है , जिसमें से मैं एक स्त्री को एक मेज़ के पास रखी कुर्सी पर बैठे हुए देख सकता हूँ । वह थके और निस्तेज चेहरे वाली एक गरीब स्त्री है । कई जगह सुई चुभ जाने के कारण उसके हाथ लाल और खुरदरे हैं । दरअसल वह एक दरजिन है । वह महारानी की एक खूबसूरत परिचारिका के साटन के चिकने घाघरे पर कढ़ाई कर रही है । वह सुंदर परिचारिका दरबार में होने वाली अगली नृत्य-सभा में उस वस्त्र को पहनेगी । कमरे के दूसरे कोने में पड़े बिस्तर पर उसका छोटा बच्चा बीमार पड़ा हुआ है । उसे बुख़ार है और वह अपनी माँ से खाने के लिए संतरे माँग रहा है । लेकिन उसकी गरीब माँ के पास उसे देने के लिए नदी से लाए पानी के अलावा कुछ भी नहीं है । इसलिए वह बच्चा रो रहा है । ओ प्यारी , नन्ही गोरैया , क्या तुम उसे मेरी तलवार की मूठ पर लगा माणिक ले जा कर नहीं दोगी ? मेरे पैर पत्थर के तल से जुड़े हुए हैं और मैं हिल भी नहीं सकता । “
“ मिस्र में मेरी प्रतीक्षा हो रही है । “ गोरैया बोली । “ मेरी सखियाँ नील नदी पर उड़ान भर रही हैं और वहाँ मौजूद बड़े-बड़े कमल के फूलों को देखकर खुश हो रही हैं । जल्दी ही वे सोने चली जाएँगी । “
राजकुमार ने गोरैया से एक और रात उसके पास रुककर उसका दूत बनने के लिए कहा ।
“ वह लड़का बहुत प्यासा है और उसकी माँ बेहद उदास
है ।” राजकुमार बोला ।
“ मुझे नहीं लगता कि मुझे लड़के अच्छे लगते हैं , “ गोरैया ने उत्तर दिया । “ मैं मिस्र जाना चाहती हूँ । “
लेकिन सुखी राजकुमार इतना उदास लग रहा था कि नन्ही गोरैया दुखी हो गई ।
“ यहाँ बहुत ठंड है , “ गोरैया बोली । लेकिन वह एक रात राजकुमार के पास रुककर उसका दूत बनने के लिए तैयार हो गई ।
“ शुक्रिया, नन्ही गोरैया , “ राजकुमार ने कहा ।
गोरैया ने राजकुमार की तलवार की मूठ से वह सुंदर माणिक निकाल लिया और उसे अपने पंजों में दबा कर वह शहर के घरों की छतों के ऊपर से उड़ चली । उड़ते-उड़ते वह प्रधान गिरजाघर के बुर्ज के पास से गुजरी जहाँ सफ़ेद संगमरमर के देवदूत खुदे हुए
थे । वह महल के बग़ल से गुजरी जहाँ उसने नृत्य की आवाज़ सुनी । एक सुंदर लड़की अपने प्रेमी के साथ छज्जे पर आई ।
“ मुझे उम्मीद है , राजसी नृत्य-सभा वाले दिन से पहले मेरी सुंदर पोशाक बन कर तैयार हो जाएगी । “ उसने कहा । “ मैंने आदेश दिया है कि उस पोशाक पर सुंदर फूलों की कढ़ाई की जाए , लेकिन ये दरजिनें इतनी आलसी हैं न । “
गोरैया नदी के ऊपर से उड़ी और वहाँ उसे जहाज़ों के मस्तूलों से लटकी लालटेनें दिखीं । अंत में वह उस गरीब औरत के घर पहुँची और उसने खुली खिड़की में से अंदर झाँककर देखा । बुख़ार में तड़पता हुआ लड़का बिस्तर पर बेचैनी से करवटें बदल रहा था और उसकी थकी हुई माँ बिस्तर के दूसरी ओर सो गई थी । गोरैया फुदक कर कमरे के भीतर पहुँची और उसने मेज़ पर पड़े महिला के अंगुश्ताने के बग़ल में वह माणिक भी रख दिया । फिर वह धीरे से बिस्तर के चारों ओर उड़ी और उसने बिस्तर पर लेटे उस बीमार लड़के के माथे पर अपने पंख फड़फड़ा कर हवा कर दी ।
“ मुझे कितना अच्छा लग रहा है , “ लड़के ने कहा । “ ज़रूर मेरी तबीयत ठीक हो रही है । “ यह कह कर वह एक सुखद नींद के आग़ोश में चला गया ।
तब गोरैया उड़ कर सुखी राजकुमार के पास पहुँची और उसने जो किया था , वह सारी बात राजकुमार को बताई ।
“ यह अजीब बात है , “ गोरैया बोली । “ हालाँकि अभी मौसम काफ़ी ठंडा है पर मैं गर्माहट महसूस कर रही हूँ । “
“ यह इसलिए है क्योंकि तुमने एक नेक काम किया है । “
राजकुमार ने कहा । नन्ही गोरैया सोचने लगी , और फिर वह भी नींद के आग़ोश में चली गई । वह जब भी सोचना शुरू करती तो उसे नींद आ जाती ।
अगली सुबह दिन चढ़ने के बाद गोरैया उड़ कर नदी पर पहुँची और उसने नदी में स्नान किया ।
“ आज रात मैं मिस्र के लिए निकल जाऊँगी , “ गोरैया चहचहाई । इस सम्भावना से वह उत्साह से भर गई थी । उसने उड़ कर शहर की सभी इमारतों को देखा और वह बहुत देर तक गिरजाघर के शिखर पर बैठी रही ।
जब आकाश में चाँद निकल आया तो गोरैया सुखी राजकुमार के पास पहुँची ।
“ क्या मिस्र में आपका कोई काम है ? “ उसने चहक कर पूछा । “ मैं मिस्र के लिए निकलने ही वाली हूँ । “
“ ओ नन्ही गोरैया , क्या तुम एक और रात मेरे पास रुकोगी ? “
“ मिस्र में मेरे साथी और सहेलियाँ मेरी प्रतीक्षा कर रही
हैं । “
“ ओ नन्ही गोरैया, “ राजकुमार ने कहा । “ शहर में दूर एक छत पर बने एक कमरे में एक युवक दिख रहा है । वह काग़ज़ों से भरी एक मेज पर झुका हुआ है । मेज पर उसके बग़ल में रखे एक गिलास में बनफ़्शा के फूल पड़े हैं । युवक के बाल भूरे और कड़े हैं और उसके होठ किसी अनार की तरह लाल हैं । उसकी आँखें बड़ी और स्वप्निल हैं । वह नाट्यशाला के निदेशक के लिए एक नाटक लिख कर समाप्त करने का प्रयास कर रहा है । पर उसका कमरा बेहद ठंडा है जिसकी वजह से उससे और नहीं लिखा जा रहा है । कमरे में रखी अंगीठी में आग बुझ चुकी है और भूख से पस्त उस युवक पर बेहोशी छा रही है ।
“ मैं तुम्हारे पास एक रात और रुक जाती हूँ , “ गोरैया
बोली । गोरैया अच्छे दिल वाली चिड़िया थी । उसने राजकुमार से पूछा कि क्या वह उस युवक के लिए एक और माणिक ले जाए ?
“ आह , अब मेरे पास कोई माणिक नहीं बचा है , “ राजकुमार ने कहा । मेरी आँखें ही मेरा सब कुछ हैं । वे दुर्लभ नीलमणि से बनी हैं जो एक हज़ार साल पहले भारत से लाई गई थीं । “ राजकुमार ने गोरैया को आदेश दिया कि वह उसकी आँखों की जगह मौजूद नीलमणि में से एक को निकाल ले और उसे ले जा कर उस युवा नाटककार को दे दे । वह उसे जौहरी को बेचकर अंगीठी के लिए कोयला और खाना ले आएगा । तब वह लिखा जा रहा अपना नाटक पूरा कर पाएगा ।
“ प्यारे राजकुमार,” गोरैया बोली , “ मैं ऐसा नहीं कर सकती । “ यह कहकर वह रोने लगी । “ ओ नन्ही गोरैया , जैसा मैं आदेश दे रहा हूँ , वैसा करो । “
तब गोरैया ने राजकुमार की प्रतिमा की एक आँख की जगह मौजूद नीलमणि निकाल ली और उसे अपनी चोंच में दबा कर दूर स्थित उस युवा नाटककार के कमरे की ओर उड़ चली । वह कमरे में आसानी से घुस गई क्योंकि उस कमरे की छत में एक सूराख था । इस सूराख में से होकर गोरैया कमरे में प्रवेश कर गई । थके हुए युवक ने अपना सिर अपने हाथों से ढँका हुआ था । इसलिए वह गोरैया के पंखों की फड़फड़ाहट नहीं सुन सका । जब उसने अपने सिर से अपना हाथ हटाया तो उसे मुरझाए हुए फूलों पर एक सुंदर नीलमणि पड़ी हुई मिली ।
“ लगता है , लोग मेरे नाटकों की प्रशंसा करने लगे हैं । ज़रूर यह नीलमणि मेरे किसी बहुत बड़े प्रशंसक ने दी होगी । अब मैं अपना नाटक लिख कर पूरा कर सकता हूँ । “ यह कह कर वह बेहद प्रसन्न दिखने लगा ।
अगले दिन गोरैया उड़ कर बंदरगाह पर पहुँची । वह एक बड़े जहाज़ के मस्तूल पर जा बैठी और उसने नाविकों को काम करते हुए देखा ।
“ मैं मिस्र जा रही हूँ , “ गोरैया चहककर बोली पर किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया । जब चाँद आकाश में उग आया तब गोरैया दोबारा उड़ कर सुखी राजकुमार के पास पहुँची ।
“ मैं आप से विदा लेने के लिए आई हूँ । “ गोरैया बोली ।
“ ओ नन्ही गोरैया , “ राजकुमार बोला । “ क्या तुम एक और रात मेरे पास नहीं रुकोगी ? “
“ अब सर्दी का मौसम आ चुका है । “ गोरैया बोली । “ जल्दी ही यहाँ बर्फ़ पड़ने लगेगी । मिस्र में खजूर के हरे पेड़ों पर धूप गर्म है और मगरमच्छ आराम से कीचड़ में पड़े हुए हैं । “
“ नीचे चौक पर माचिस बेचने वाली एक छोटी-सी लड़की खड़ी है , “ सुखी राजकुमार ने कहा , “ उसके माचिस की सारी तीलियाँ नीचे नाली में गिर गई हैं और वे सब ख़राब हो गई
हैं । अगर वह कुछ रुपए-पैसे लेकर घर नहीं गई तो उसके पिता उसे मारेंगे । इसलिए वह रो रही है । उसके पास जूते और जुराबें नहीं हैं ।
इतनी ठंड में भी उसने सिर पर कोई टोपी नहीं पहनी हुई । मेरी दूसरी आँख की जगह लगी क़ीमती नीलमणि निकाल लो और जा कर उस छोटी लड़की को दे दो । तब उसका पिता उसे नहीं पीटेगा । “
“ मैं तुम्हारे साथ एक और रात रुक जाऊँगी , “ गोरैया ने कहा । लेकिन मैं तुम्हारी दूसरी आँख नहीं निकाल सकती । ऐसा करने पर तुम पूरी तरह से अंधे हो जाओगे ।
“ ओ नन्ही गोरैया , “ राजकुमार बोला । “ जैसा मैं आदेश दे रहा हूँ , तुम वैसा ही करो ।
इसलिए गोरैया ने नीलमणि से बनी राजकुमार की दूसरी आँख निकाल ली और तेज़ी से नीचे की ओर उड़ चली । उसने माचिस वाली लड़की के बग़ल से गोता लगाया और और उसकी हथेली में वह नीलमणि रख कर उड़ गई ।
“ यह कितनी सुंदर शीशे की चीज़ है , “ छोटी लड़की ख़ुशी से किलक कर बोली और खिलखिलाते हुए अपने घर की ओर भाग गई ।
फिर गोरैया राजकुमार के पास वापस लौट आई ।
“ अब तुम अंधे हो गए हो , “ उसने कहा । “ इसलिए मैं अब हमेशा तुम्हारे पास रहूँगी । “
“ नहीं , नहीं गोरैया , “ राजकुमार ने कहा , “ तुम्हें अवश्य ही मिस्र चले जाना चाहिए । “
“ नहीं , मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी , “ गोरैया बोली और वह राजकुमार के पैरों के पास मौजूद जगह पर अपने पंख समेट कर सो गई ।
अगले पूरे दिन गोरैया राजकुमार के कंधे पर बैठकर उसे उन अजीब जगहों की कहानियाँ सुनाती रही जहाँ वह गई थी ।
“ प्यारी नन्ही गोरैया , “ राजकुमार ने कहा , “ तुम मुझे अद्भुत चीज़ों के बारे में कहानियाँ सुना रही हो लेकिन लोगों के कष्ट, उनकी पीड़ा सबसे ज़्यादा अद्भुत होती है । कष्ट और दुर्गति से ज़्यादा रहस्यमयी चीज़ और कोई नहीं होती है । ओ नन्ही गोरैया , तुम मेरे शहर के ऊपर उड़ो और मुझे वे सारी चीज़ें बताओ जो तुम्हें यहाँ दिखती हैं । “
तब वह गोरैया उस बड़े शहर के ऊपर उड़ने लगी । उसने अमीर लोगों को अपने आलीशान मकानों में प्रसन्नता से रहते हुए देखा । दूसरी ओर बेचारे भिखारी मकानों के दरवाज़ों के बाहर बैठ कर भीख माँग रहे थे । वह अँधेरी गलियों के ऊपर से गुज़री जहाँ फीके चेहरे वाले भुखमरी के शिकार बच्चे सूनी आँखों से काली, अँधेरी गलियों की ओर ताक रहे थे । पुल के मेहराब के नीचे ठंड से ठिठुरते छोटे गरीब बच्चे थोड़ी ऊष्मा के लिए एक-दूसरे से चिपक कर वहाँ शरण लिए हुए थे ।
“ हमें कितनी भूख लगी है , “ वे बोले ।
“ तुम यहाँ नहीं लेट सकते , “ चौकीदार उन पर चिल्लाया
और वे बारिश में भीगते हुए वहाँ से बाहर निकल गए ।
तब गोरैया उड़ कर राजकुमार के पास लौटी और उसने राजकुमार को उन सभी दृश्यों के बारे में बताया जो उसने देखे थे ।
“ मेरी पूरी देह पर सोने की पत्तियाँ चढ़ी हुई हैं , “ राजकुमार बोला । “ तुम इन सबको मेरी देह पर से निकाल कर ले जाओ और गरीब लोगों में बाँट दो । जीवित लोग यही सोचते हैं कि सोना उन्हें ख़ुशी प्रदान करेगा । “ तब नन्ही गोरैया ने एक-एक करके राजकुमार की देह पर लगी सोने की सारी पत्तियाँ निकाल लीं और शहर के गरीब लोगों में बाँट दीं । अब राजकुमार की मूर्ति सजावट-रहित और धूसर लगने लगी । गरीब बच्चों के चेहरे अब प्रसन्न लगने लगे । वे अब गलियों में हँसते और खेलते हुए नज़र आए । “ अब हमारे पास खाना है , “ वे सब ख़ुशी से बोल रहे थे ।
फिर बर्फ़बारी का मौसम आ गया । वह मौसम अपने साथ भीषण ठंड और पाला लाया । बर्फ़ में गलियाँ ऐसी लगने लगीं जैसे वे चाँदी की बनी हुई हों । सभी लोगों ने रोएँदार खाल के बने हुए कपड़े पहने हुए थे और छोटी उम्र के लड़के लाल टोपियाँ पहन कर बर्फ़ पर ‘ स्केटिंग ‘ कर रहे थे । बेचारी नन्ही गोरैया बर्फ़बारी की वजह से भीतर तक ठंडी होती जा रही थी । पर उसने राजकुमार को छोड़ कर नहीं जाने का निश्चय कर लिया था । वह राजकुमार से प्यार करने लगी थी । जब नानबाई नहीं देख रहा होता तो वह उसकी दुकान के बाहर पड़े खाने के कुछ टुकड़े उठा कर ले आती । खुद को गर्म रखने के लिए वह लगातार अपने पंख फड़फड़ाती रहती ।
पर अंत में गोरैया समझ गई कि वह भीषण ठंड की वजह से मरने वाली थी । अब उसके पास केवल इतनी ही शक्ति और ऊर्जा बची थी कि वह एक बार और उड़ कर राजकुमार की प्रतिमा के कंधे पर बैठ पाती । उसने यही किया ।
“ अलविदा , प्रिय राजकुमार , “ वह बुदबुदाई । “ क्या तुम मुझे अपना हाथ चूमने की इजाज़त दोगे ? “
“ ओ नन्ही गोरैया , मैं खुश हूँ कि आख़िर तुम मिस्र जा रही हो , “ राजकुमार ने कहा । “ तुम यहाँ बहुत ज़्यादा समय तक रुक गई । पर अब तुम मेरे होंठों को चूम लो क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ । “
“ मैं मिस्र नहीं जा रही हूँ , “ गोरैया ने कहा । “ मैं मृत्यु के घर जा रही हूँ । मृत्यु नींद की बहन है , क्या ऐसा नहीं है ? “
फिर गोरैया ने सुखी राजकुमार के होंठों को चूम लिया और मरकर उसके पैरों के पास गिर गई ।
उसी पल राजकुमार की प्रतिमा के भीतर किसी चीज़ के चटख कर टूटने की आवाज़ आई । दरअसल राजकुमार की प्रतिमा में लगा सीसे का दिल दो हिस्सों में टूट गया था । वाक़ई भयानक ठंड पड़ रही थी ।
अगली सुबह शहर का महापौर अपने सभासदों के साथ चौराहे के इलाक़े में टहल रहा था । जब वह मूर्ति के पास से गुज़रा तो उसने ऊपर देखा ।
“ हे ईश्वर ! सुखी राजकुमार की प्रतिमा कितनी भद्दी और दरिद्र लग रही है ! “ वह बोला ।
“ कितनी भद्दी और दरिद्र ! “ सभासद सहमति में चिल्लाए । वे हमेशा महापौर की हर बात से सहमत होते थे । वे सब प्रतिमा को गौर से देखने के लिए उसके और क़रीब गए ।
“ राजकुमार की तलवार की मूठ में लगा माणिक गिर कर कहीं खो गया है । किसी ने उसकी आँखें निकाल ली हैं और उसकी देह पर लगी सोने की पत्तियाँ भी अब वहाँ नहीं हैं । “ महापौर ने
कहा । “ दरअसल यह तो किसी भिखारी की मूर्ति जैसी लग रही
है ।”
“ यह तो वाक़ई किसी भिखारी की मूर्ति जैसी लग रही
है । “ सभी सभासद एक स्वर में चिल्लाए ।
“ और इस प्रतिमा के पैरों के पास यहाँ एक मरी हुई चिड़िया पड़ी हुई है । “ महापौर ने कहना जारी रखा ।
“ हमें एक घोषणा करनी चाहिए कि यहाँ चिड़ियों को मरने की इजाज़त नहीं है , “ शहर के मुंशी ने फटाफट इस सुझाव को काग़ज़ पर लिख लिया ।
इसलिए उन्होंने सुखी राजकुमार की प्रतिमा को तोड़ कर गिरा दिया । “ क्योंकि यह प्रतिमा अब सुंदर नहीं रही , इसलिए यह किसी काम की नहीं रही , “ विश्वविद्यालय में कला संकाय के प्राध्यापक ने कहा ।
फिर उन्होंने उस प्रतिमा को भट्ठी में पिघलाया ।
“ कितनी अजीब बात है , “ उस ढलई-घर में मौजूद कामगारों के निरीक्षक ने कहा , “ सीसे का यह टूटा हुआ दिल इस भट्ठी में नहीं पिघल रहा । हमें इसे फेंक देना चाहिए । “ इसलिए उसने उस राजकुमार के सीसे के टूटे हुए दिल को कूड़े के ढेर पर फेंक दिया जहाँ मरी हुई चिड़िया भी पड़ी हुई थी ।

“ इस शहर की सबसे क़ीमती दो चीज़ें ला कर मुझे
दो , “ ईश्वर ने अपने एक देवदूत से कहा । देवदूत ने मरी हुई चिड़िया और राजकुमार का सीसे का टूटा हुआ दिल ला कर ईश्वर को दे दिया ।
“ तुमने सही चीज़ें चुनी हैं ,” ईश्वर ने देवदूत से कहा , “ स्वर्ग
के बगीचे में यह नन्ही चिड़िया सदा गीत गाती रहेगी और मेरी स्वर्ण-नगरी में सुखी राजकुमार सदा मेरी प्रशंसा करेगा । “

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सुशांत सुप्रिय
जन्म : 28 मार्च , 1968
शिक्षा : अमृतसर , ( पंजाब ) तथा दिल्ली में ।
हिंदी के प्रतिष्ठित कथाकार , कवि तथा साहित्यिक अनुवादक । इनके नौ कथा-संग्रह , चार काव्य-संग्रह तथा विश्व की अनूदित कहानियों के नौ संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । इनकी कहानियाँ और कविताएँ पुरस्कृत हैं और कई राज्यों के स्कूल-कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में बच्चों को पढ़ाई जाती हैं । कई भाषाओं में अनूदित इनकी रचनाओं पर कई विश्वविद्यालयों में शोधार्थी शोध-कार्य कर रहे हैं । इनकी कई कहानियों के नाट्य मंचन हुए हैं तथा इनकी एक कहानी “ दुमदार जी की दुम “ पर फ़िल्म भी बन रही है । साहित्य व संगीत के प्रति जुनून ।सुशांत सरकारी संस्थान , नई दिल्ली में अधिकारी हैं और इंदिरापुरम् , ग़ाज़ियाबाद में रहते हैं ।
प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद -201014
( उ.प्र. )
मो : 851207008
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

 


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