ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, दूधनाथ सिंह, विजयमोहन सिंह और रवीन्द्र कालिया की कथा पीढ़ी के बाद जो कथा पीढ़ी कथा का बदलाव लेकर आई – असग़र वजाहत उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण नाम हैं। असग़र वजाहत छोटी कहानियों के लिए विख्यात हैं जिनको पढ़ते हुए सआदत हसन मंटो के स्याह हाशिए और बतोॅल्त ब्रेख्त की कहानियों का स्मरण हो आता है। असग़र भाई के नाटकों की प्रसिद्धि किसी से छिपी नहीं है।
बहरहाल, पाठक पढ़ें, असग़र वजाहत की कहानियां जिनके एक – एक शब्द जैसा अंतोन चेख़व के शब्दों के बारे में कहा जाता है, पुराने सितार की तरह भारी हैं और जो अपनी तल्ख़ी में किर्च की तरह लहूलुहान भी कर देते हैं – हरि भटनागर

 

असग़र वजाहत की कहानियां

चादर

सीधे, शरीफ, मेहनती, पढ़े – लिखे और ईमानदार आदमी को न नौकरी मिल रही थी, न कोई काम। वह अपनी परेशानी का कारण खोज रहा था कि एक दिन, किसी पीपल के पेड़ के नीचे नहीं, बल्कि बस स्टॉप पर उसे ज्ञान प्राप्त हो गया ।वह समझ गया कि उसकी परेशानी का कारण उसकी शराफत और ईमानदारी की चादर है। उसने झटपट अपनी चादर को उतार कर बस स्टॉप पर रखना चाहा तो आवाज आई – नहीं नहीं यह मत करो। अगर तुमने यह चादर यहां रख दी तो कभी कोई बस यहां नहीं रुकेगी।
शरीफ आदमी ने घबराकर चादर उठा ली।
शरीफ आदमी आगे बढ़ा। उसने देखा फुटपाथ पर एक लंगड़ा भिखारी भीख मांग रहा है । शरीफ आदमी ने अपनी चादर लंगड़े भिखारी पर डालनी चाहिए। लंगड़ा भिखारी पी.टी. ऊषा की रफ्तार से भागा और चिल्लाने लगा- एक पैसे की भीख नहीं मिलेगी अगर यह चादर तुमने मेरे ऊपर डाल दी।
शरीफ आदमी ने चादर एक खजहे कुत्ते पर डालना चाही तो कुत्ता उछल कर भागा और बोला – मुझे कुत्ता ही रहने दो ।अब इसके ज़्यादा तो मैं गिर नहीं सकता। चादर मेरे ऊपर न डालो।
शरीफ आदमी ने सोचा, यह चादर धर्मगुरु तो ज़रूर ले लेंगे। वह चादर लेकर मंदिर और मस्जिद पहुंचा तो उसे दूर से ही देख कर धर्मगुरु इधर उधर खिसकने लगे।
जब वह बुरी तरह तंग आ गया तब उसने सोचा कि देश की सबसे बड़ी अदालत में इस मामले को ले जाना चाहिए। वह अदालत गया । वहां बताया गया कि बिना किसी वकील के मुकदमा पेश नहीं हो सकता। वह वकीलों के पास गया तो वकील कई सौ मीटर से चादर की गंध सूंघ लेते थे और इनकार में उनकी गर्दन हिलने लगती थी।
उसे मालूम था कि देश में एक सब से ऊंची संस्था है । वह सर्वोच्च संस्था पहुंचा ।गेट पर पास बनाने वालों ने उसका पास बनाने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा – तुम यह चादर लेकर अंदर नहीं जा सकते।
शरीफ आदमी ने कहा- तो तुम चादर ले लो।
पास बनाने वाले ने कहा – मेरे ऊपर कृपा करो। सर्विस के दस बारह साल रह गए हैं। लड़की की शादी करनी है। लड़के को विदेश भेजना है। चादर ले ली तो मैं कहीं का न रहूंगा।
शरीफ आदमी सदन के अंदर आ गया। चादर देख कर सभी सदस्य हड़बड़ा कर भागे । पक्ष और विपक्ष के सदस्य एक साथ खड़े हो गए।
शरीफ आदमी ने कहा- मैं यह चादर सदन को देने आया हूं।
उन लोगों ने कहा – क्या चाहते हो सदन की सारी कार्रवाई रुक जाए ? ऐसा नहीं हो सकता। हमारे ऊपर देश और जनता की सेवा करने की जिम्मेदारी है जिसे हम पूरा करके रहेंगे ।यह चादर तुम ले जाओ।
शरीफ आदमी ने कहा- इसके कारण मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई ।
सदन ने कहा – हम जानते हैं इस चादर में कुछ ऐसे वायरस हैं जिनका कोई इलाज नहीं है।
– तो मैं क्या करूं।’ शरीफ आदमी ने कहा।
एक समझदार जनप्रतिनिधि बोला- यह जो सत्यमेव जयते लिखा हुआ है इसके ऊपर अपनी चादर डाल दो।
शरीफ आदमी ने सत्यमेव जयते पर चादर डाल दी। एक ज़ोर का विस्फोट हुआ । बम जैसा फटा। सदन में सन्नाटा छा गया और फिर ठहाके गूंजने लगे।
‘हम सब बच गए’, का शोर उठा।
….

ढांचा

वह घर लौट कर आया तो कुछ अजीब सा लग रहा था। न उसने बच्चों से कोई बात की और न जमीला से कुछ बोला जो स्टोव पर खाना बना रही थी।
किसी चीज़ की छीना झपटी पर बड़कू और मुनिया में लड़ाई हो गई । बड़कू मुनिया को मारने लगा लेकिन वह कुछ नहीं बोला। जबकि ऐसे मौकों पर वह बड़कू के कान पकड़कर मरोड़ देता था और मुनिया को अपनी गोद में बिठा लेता था।
मुनिया रोती रही और वह ख़ाली ख़ाली आंखों से कमरे को निहारता रहा। फर्श पर बिछे हुए गद्दे, अलगनी से लटकते कपड़े, ताक़ में रखे काग़ज़ के फूल, दीवार पर लगी मक्का मदीने की फोटो, छत से लटकता एक बल्ब- सब कुछ उसे नया लग रहा था जबकि कुछ भी नया न था।
– रोटी खा लो।’ जमीला ने उसकी तरफ़ देखे बिना कहा।
उसने जब कोई जवाब नहीं दिया तो जमीला ने उसकी तरफ़ देखा। वह बेपढ़ी-लिखी लेकिन समझदार औरत थी । देखते ही समझ गई कि दाल में कुछ काला है। उसके आदमी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया है।
– क्या हुआ? क्या बात है? क्या सेठ ने पैसा नहीं दिया?
– पैसा दिया है।’ उसने अपनी जेब से नोट निकालकर जमीला की तरफ़ हाथ बढ़ाया।
– तब क्या बात है? गिरवर भाई से कुछ कहा – सुनी हो गई क्या?’
जमीला को अच्छी तरह मालूम था कि कभी-कभी उसके आदमी और गिरवर भाई में कहा- सुनी हो जाती है।
– नहीं।’ उसने कहा।
जमीला की आंखें उसकी उदासी की वजह समझने की कोशिश करती रहीं लेकिन कुछ समझ में न आया।
रात जब बच्चे सो गए और दोनों लेटे तो जमीला ने फिर पूछा- आज कुछ न कुछ हुआ जरूर है।
काफी देर तक तो वह छुपाता रहा फिर बोला – सब कह रहे हैं, मैं ढांचा हो गया हूं ।
जमीला की आंखें हैरत से फट गईं।
उसने कहा, अरे अच्छे खासे गोश्त – पोस्त के आदमी हो। ढांचा कहां हो?
वह बोला, सब यही कह रहे हैं कि मैं ढांचा हूँ… आदमी नहीं…
– वह सब झूठ बोल रहे हैं।
– पता नहीं झूठ बोल रहे हैं कि सच बोल रहे हैं… पर वे मुझे ढांचा मानते हैं..
– यह तो बड़ी अजीब बात है… काम पर से निकालने का बहाना तो नहीं?
– नहीं ऐसा नहीं है।
– फिर?
– काम तो कहते हैं जितना कर सकते हो करो, पैसा लेते रहो…. पर तुम ढांचा हो… आदमी नहीं हो।
– कहने दो… उनके कहने से क्या होता है।
– कहते हैं तुम ढांचा हो तो तुम्हारी औरत भी ढांचा है, तुम्हारे बच्चे भी ढांचा हैं।
– वाह ! यह अच्छी रही…. उनके कहने से हम सब ढांचा हो जाएंगे?

जमीला से बातचीत करने के बाद उसे कुछ इत्मीनान हुआ और वह अच्छी नींद सोया।
अगले दिन सुबह उठा तो काम पर जाने से पहले ही बड़कू स्कूल से लौट आया ।
– क्या बात हो गई, स्कूल से क्यों भाग आया।’ उसे देखते ही जमीला चिल्लाई।
– भाग नहीं आया, निकाल दिया सर ने।
– क्यों , क्या स्कूल का काम पूरा नहीं किया था?
– काम तो पूरा किया था।
– फिर क्यों निकाल दिया? कोई बदमाशी की होगी।
– नहीं कोई बदमाशी भी नहीं की ।
– फिर क्यों निकाल दिया सर ने ?
– कहा, तुम ढांचा हो… ढांचा पढ़ नहीं सकता।

उसे और जमीला को बड़ी हैरानी हुई। अभी कल तक तो बढ़कू स्कूल जाया करता था। अचानक ढांचा कैसे बन गया।
वह बड़कू के साथ स्कूल गया। सर जी से बात की तो सर जी ने यही कहा कि बड़कू तो ढांचा है। ढांचा कैसे पढ़ सकता है? बड़कू का नाम स्कूल से कट गया है।

वह तो काम पर चला गया पर जमीला मोहल्ले के वकील साहब के पास पहुंच गई और उन्हें पूरी बात बताई। कहा कि स्कूल पर मुकदमा कर दीजिए। उन्होंने मेरे बेटे का नाम काट दिया है।
वकील ने कहा, देखो ढांचा तो अदालत में जा नहीं सकता। तुम और तुम्हारा आदमी ढांचा हैं। ढांचे को न्याय मिलने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि वह आदमी ही नहीं है।

जमीला इलाके के एम एल ए के पास गई और उन्हें पूरी बात बतायी। यह भी कहा कि हम आप को ही वोट देते हैं। हमारे साथ यह अन्याय हो रहा है। हमें ढांचा बताते हैं।
एम एल ए ने कहा, देखो वोट देने वाली बात तो भूल जाओ। अब तुम लोग वोट नहीं दे पाओगे।
– क्यों?
– ढांचे वोट नहीं देते… वैसे मुझे तुमसे हमदर्दी है…. पर यह तुम्हारी गलती है कि तुम ढांचा बन गए।’
जमीला ने कहा, हमें क्या पता था कि हम ढांचा बन जाएंगे। हमसे पूछ कर तो किसी ने हमें ढांचा बनाया नहीं।’
एम एल ए ने कहा, देखो पूछ कर ढांचे नहीं बनाए जाते। बहरहाल अब तुम जाओ और ढांचा बन जाने से समझौता कर लो।’

जमीला घर आ गई। दोपहर को खाना वाना खाने के बाद मोहल्ले की औरतें आने लगीं। पड़ोसन ने कहा, बहिनी हमें बहुत दुख है कि तुमरा परिवार ढांचा बन गवा…
रामदीन की अम्मा बोली, बड़कू की अम्मा, कौनो बात होय तो बताना.. संकोच न करना..
– हम तो पड़ोसी हैं दीदी …..पड़ोसी का धर्म निभाएंगे.’ बच्चू सिंह की लड़की बोली।
जमीला की आंखों में आंसू आ गए । उसने धोती के कोने से आंसू पोछे और बोली, आप ही लोगों का तो सहारा है….

वह शाम को घर आया तो बहुत डरा हुआ था। कुछ लोगों से उसकी लड़ाई हो गई थी। सिर में चोट लगी थी ।
– वे लोग तो मुझे घेर कर मार डालना चाहते थे। कह रहे थे, ढांचे की हत्या पर कोई सज़ा नहीं मिलती….. ढांचा कोई आदमी थोड़ी है।’
जमीला ने उसका सिर धोया तो लाल ख़ून निकलने लगा।
जमीला ने कहा, देखो तुम्हारे तो ख़ून निकल रहा है। तुम ढांचा कहां हो? ढांचा होते तो लाल लाल ख़ून न निकलता।
20.08.2020
…..

लोकतंत्र का मन्त्र

फाइव स्टार रिज़ॉर्ट में किसी तरह की कोई तकलीफ न थी । हर -हर सेकंड पर जनप्रतिनिधियों का ध्यान रखा जा रहा था । यह माना जा रहा था कि घर से इतनी दूर एकांत में जनप्रतिनिधि दरअसल तपस्या कर रहे हैं और इस तपस्या का फल सभी को अवश्य ही मिलेगा।
जनप्रतिनिधियों पर विरोधियों की निगाह उसी प्रकार गड़ी हुई थी जिस तरह शिकार पर शेर की निगाह गड़ी होती है । विरोधी दल ने जनप्रतिनिधियों को तोड़ने के लिए इतना ज्यादा पैसा ऑफर कर दिया था कि जनप्रतिनिधियों के पैर लड़खड़ा गए थे और डर था कि वे कहीं टूट न जाएं। उनके पैरों को सबुत बनाये रखने के लिए यहां ले आया गया था । फिर भी यह डर था कि कहीं जनप्रतिनिधियों को लेकर विरोधी हवा न हो जाएं । इसलिए जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा था। बाथरूम तक में सीसीटीवी लगा दिए गए थे और हाईकमान को यह पता चल रहा था कि जनप्रतिनिधि दाहिने हाथ का ‘प्रयोग’ करते हैं या बाएं हाथ का।
इतनी कड़ी व्यवस्था होने के बाद भी एक रात एक जनप्रतिनिधि ग़ायब हो गया । हाहाकार मच गया। ख़तरे की घंटियां बजने लगीं। हाईकमान ने सख़्ती से पूछा, क्या मामला है? क्या कमी है जो एक जनप्रतिनिधि रात में भाग गया ? पूछने पर पता चला कि दरअसल प्रतिनिधि उस खाने से परेशान है जो उन्हें यहां दिया जा रहा है। वे अपने प्रदेश का खाना खाना चाहते हैं। बस इतना पता चलना था कि चार्टर्ड प्लेन से रसोइयों की पूरी टीम और खाने का सामान, मसाले, बर्तन और पता नहीं क्या-क्या रिज़ॉट पहुंच गया।
जनप्रतिनिधियों को उनके प्रदेश का स्वादिष्ट खाना मिलने लगा। वे बहुत प्रसन्न हो गए। उन की खुराक बढ़ गई ।शरीर में ख़ून की मात्रा बढ़ गयी। शरीर में ज़्यादा ताक़त आ गई ।उन्हें अंगड़ाइयां आने लगीं। वे हवा में मुक्के चलाने लगे। यह सब देखकर हाईकमान बहुत ख़ुश था ।लेकिन एक रात फिर दुखद घटना घट गई। मतलब एक प्रतिनिधि ग़ायब हो गया। यह तो बहुत अधिक चिंता की बात थी। हाईकमान ने कहा कि अब बताया जाए कि प्रतिनिधियों को किस बात की कमी है। काफी खोजबीन के बाद पता चला के जनप्रतिनिधि अच्छा अच्छे खाने और पीने के बाद अब दूसरी एक बड़ी प्राकृतिक आवश्यकता ‘मिस’ कर रहे हैं। हाईकमान ने आदेश दिया कि फौरन जनप्रतिनिधियों की पत्नियों को रिज़ाट भेज दिया जाए। चार चार बच्चों की माताएं, अधेड़ उम्र, मोटी ताजी जनप्रतिनिधियों की पत्नियां जब रिज़ाट पहुंची तो उन्हें देखकर जनप्रतिनिधि गुस्से से पागल हो गए और लगभग विद्रोह जैसा कर दिया। तब हाईकमान की समझ में बात आई और हाईकमान ने पत्नियों को वापस भेज कर विदेशों से अप्सराएं मंगाईं और जनप्रतिनिधियों को सौंप दी गईं।तब कहीं जाकर शांति स्थापित हुई।
कुछ दिन तक तो सब ठीक ठाक चलता रहा लेकिन एक दिन फिर पता चला की एक जनप्रतिनिधि ग़ायब हो गया है। यह तो बहुत गंभीर मामला था इसलिए हाईकमान ने एक बड़ी सिक्योरिटी कंपनी को ‘हायर’ किया । उस कंपनी ने कहा कि प्रतिनिधि भाग न जाए इसलिए हर प्रतिनिधि के एक ‘माइक्रोचिप’ लगवाना चाहिए। प्रतिनिधियों को जब यह बताया गया कि उनको माइक्रोचिप लगाया जाएगा तो वे घबरा गए । उन्हें यह पता न था की माइक्रोचिप क्या होता है। उन्हें समझाया गया कि यह एक इलेक्ट्रॉनिक ज़ंजीर होती है। यदि वे भागने की कोशिश करेंगे तो उन्हें ‘शाक’ लगेगा और वे भाग नहीं पाएंगे।सबकी तशरीफों में एक एक माइक्रो चिप लगा दिया गया।
कुछ दिन बाद रिज़ॉर्ट से किसी पत्रकार ने यह खबर भेजी कि चार जनप्रतिनिधि ग़ायब हो गए हैं। हाईकमान ने सोचा कि जब और कोई सहारा नहीं रहता तो अध्यात्म से बल मिलता है। क्यों न किसी आध्यात्मिक गुरु से बात की जाए। खोजते खोजते उन्हें एक ऐसा चमत्कारी बाबा मिला जिसने यह दावा किया कि वह जनप्रतिनिधियों को पाला बदलने से रोक सकता है। जब उससे पूछा गया है कि वह ऐसा किस प्रकार करेगा तब उसने कहा कि वह जनप्रतिनिधियों का रूप बदल देगा ।मतलब जनप्रतिनिधि कुछ और बन जाएंगे जैसे बकरी बन जाएंगे या खरगोश बन जायेंगे और समय आने पर उन्हें फिर जनप्रतिनिधि बना दिया जाएगा । यह बात हाईकमान को बहुत पसंद आई और चमत्कारी बाबा को रिज़ॉट पहुंचाया गया।
रिज़ॉट में उस समय जनप्रतिनिधि और कुछ पत्रकार डाइनिंग हॉल में खाना खा रहे थे । उन्हें देखकर बाबा ने कहा कि इन लोगों को तो केवल कुत्ता बनाया जा सकता है। अगर आप कहें तो हम एक मंत्र द्वारा इन्हें कुत्ता बना सकते हैं और जब वोट देने का समय आएगा तब फिर इन्हें जनप्रतिनिधि बना दिया जाएगा। हाईकमान ने कहा कि ठीक है। बाबा ने मंत्र पढ़ा और सभी जनप्रतिनिधि कुत्ता बन गए लेकिन पत्रकार कुत्ता नहीं बने । हाईकमान ने बाबा से पूछा कि मंत्र का प्रभाव पत्रकारों पर क्यों नहीं पड़ा तो बाबा ने कहा, मंत्र आदमी को कुत्ता बनाता है, कुत्ते को कुत्ता नहीं बनाता।
कुछ दिनों बाद जब वोट देने का समय आया और यह जरूरत पड़ी कि कुत्तों को फिर जनप्रतिनिधि बनाया जाए तो चमत्कारी बाबा को ढूंढा गया। बाबा अपने घर पर नहीं मिला, मोहल्ले में नहीं मिला, शहर में नहीं मिला ,कहीं नहीं मिला। बहुत तलाश की गई लेकिन बाबा का कोई पता न चला।
जनप्रतिनिधि कुत्ते के कुत्ते रह गए। पर उन्होंने ‘फ्लोर टेस्ट’ में हाथ उठाए। बहुमत सिद्ध किया। सरकार बनाई और आजकल वही सरकार चला रहे हैं।
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पैदायशी गधा

एक दिन गधा बोलने लगा। उसने लोगों से कहा – ये जो तुम लोग बोलते हो, ये भाषा ही नहीं है। मैं जो बोलता हूं वही भाषा है।
कुछ लोगों ने कहा – लेकिन हम लोग आपकी भाषा नहीं समझते।
गधे ने कहा – मेरी भाषा समझने के लिए तुम्हें गधा बनना पड़ेगा।
लोगों ने कहा- हम कैसे गधे बन सकते हैं।
गधे ने कहा- गधा बनना बहुत आसान है। लोग बहुत आसानी से गधे बन जाते हैं । मैंने तो करोड़ों को गधा बनते देखा है।
लोगों ने कहा – हमें बताओ न कि हम कैसे गधे बन सकते हैं।
गधे ने कहा- रोज़ टीवी देखा करो।
लोगों ने कहा – तो क्या तुम यह कहना चाहते हो कि टीवी पर जो एंकर आते हैं वे गधे हैं?
गधे ने कहा – मैं इतना बड़ा सम्मान सारे टीवी एंकरों को नहीं देना चाहता। पर उनमें से अधिकतर सम्मानित और धनवान गधे ही हैं ।
लोगों ने कहा- उन एंकरों की क्या पहचान है?
गधे ने कहा- वे सदा गुस्से में रहते हैं, बहुत ऊंची आवाज़ में बोलते हैं, हाथ पैर चलाते हैं, उनके मुंह से झाग निकलता है, उनकी आंखें और चेहरे लाल हो जाते हैं। वे बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। उन्हें देखकर कभी यह लगता है कि वे अभिनेता हैं और कभी यह लगता है कि वे नेता हैं।
लोगों ने कहा – तो क्या सिर्फ उन्हें देख और सुनकर लोग गधे बन जाते हैं?
गधा बोला – हां , उन्होंने करोड़ों लोगों को गधा बना दिया है ।
लोगों ने कहा- ख़ैर यह सब छोड़िए, यह बताइए कि आप कैसे गधे बने?
गधे ने कहा- आप लोग मेरा क्यों अपमान कर रहे हैं। मैं पैदाइशी गधा हूं।
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जन्नत का मंज़र
(संवाद कथा)

-मुझे जन्नत में सबसे बड़ा बँगला और सबसे सुंदर हूर मिलना चाहिए…
– क्यों?
– मै 72 काफ़िरों को मार कर आया हूँ…
– काफ़िर कौन थे…?
– मतलब…?
– मतलब, काफ़िर ईंट गारे के थे या घास फूस के या रोबोट…?
– जी , काफ़िर भी मेरी तरह हाड़ माँस के इंसान थे।
– उन्हे किसने बनाया था?
– जी , सारी कायनात अल्लाह ने बनाई है…उन्हें भी अल्लाह ने बनाया…
– जिसको अल्लाह ने बनाया उसे मारने का हक़ तुम्हें किसने दिया…?
– ज..ज..जी…!
– अल्लाह के बंदों को मारने के बाद तुम्हें क्या मिलना चाहिए ?
– जी, मौलवी साब ने तो बताया था काफ़िरों को मारने से जन्नत मिलती हैं…
– तो जाओ मौलवी साब से ही ले लो…
……..

लिंचिंग

बूढ़ी औरत को जब यह बताया गया कि उसके पोते सलीम की ‘लिंचिंग’ हो गई है तो उसकी समझ में कुछ न आया। उसके काले, झुर्रियों पड़े चेहरे और धुंधली मटमैली आंखों में कोई भाव न आया। उसने फटी चादर से अपना सिर ढक लिया। उसके लिए ‘लिंचिंग’ शब्द नया था। पर उसे यह अंदाजा हो गया था कि यह अंग्रेजी का शब्द है। इससे पहले भी उसने अंग्रेजी के कुछ शब्द सुने थे जिन्हें वह जानती थी। उसने अंग्रेजी का पहला शब्द ‘पास’ सुना था जब सलीम पहली क्लास में ‘पास’ हुआ था। वह जानती थी के ‘पास’ का क्या मतलब होता है। दूसरा शब्द उसने ‘जॉब’ सुना था। वह समझ गई थी कि ‘जॉब’ का मतलब नौकरी लग जाना है। तीसरा शब्द उसने ‘सैलरी’ सुना था। वह जानती थी ‘सैलरी’ का क्या मतलब होता है। यह शब्द सुनते ही उसकी नाक में तवे पर सिकती रोटी की सुगंध आ जाया करती थी। उसे अंदाज़ा था कि अंग्रेजी के शब्द अच्छे होते हैं और उसके पोते के बारे में यह कोई अच्छी ख़बर है।
बुढ़िया इत्मीनान भरे स्वर में बोली- अल्लाह उनका भला करें..
लड़के हैरत से उसे देखने लगे। सोचने लगे बुढ़िया को ‘लिंचिंग’ का मतलब बताया जाए या नहीं। उनके अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी की बुढ़िया को बताएं कि ‘लिंचिंग’ क्या होती है ।
बुढ़िया ने सोचा कि इतनी अच्छी ख़बर देने वाले लड़कों को दुआ तो ज़रूर देनी चाहिए ।
वह बोली- बच्चो, अल्लाह करे तुम सबकी ‘लिंचिंग’ हो जाए…. ठहर जाओ मैं मुंह मीठा कराती हूं।

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नेता का त्याग

मरते हुए बच्चे की मां ने कहा, डॉक्टर, दवा और अस्पताल चाहिए ।
बेरोजगार युवक ने कहा, नौकरी चाहिए।
मजदूर बोला, मजदूरी चाहिए।
खुले आसमान के नीचे जाड़े से ठिठुरते हुए आदमी ने कहा, छत चाहिए।
बाढ़ के पानी में डूबते आदमी ने कहा, मुझे बचा लो
नेता ने कहा, तुम लोग कितने स्वार्थी हो….. सबको अपनी अपनी लगी है…देश की चिंता किसी को नहीं है…. मुझे देखो… मुझे कुछ नहीं चाहिए… सिर्फ देश सेवा करना चाहता हूं…मुझे मंत्री बना दो…

दुनिया पस्त, हम मस्त
(पांच कहानियां)

1.

नेता जी ने ज़्यादा इंतज़ार करने को बेकार समझा और अपने आप को माफ कर दिया। उनके ऊपर जितने मुकदमे चल रहे थे उन सब को उन्होंने अपने आप ख़ारिज कर दिया। उनकी देखादेखी अफसरों ने भी अपने ऊपर जो आरोप लगे थे उन्हें ख़ारिज कर दिया।यह परंपरा आगे बढ़ी। हत्यारों, डाकुओं, लुटेरों ने भी अपने आप को माफ कर दिया। जब इतने लोगों ने अपने आप को माफ कर दिया तब छोटे मोटे लोगों पर जो मुकदमे चल रहे थे वे अपने आप डिलीट हो गए।
अब देश में किसी पर कोई आरोप नहीं है। पूरा देश आरोप मुक्त है। नेता से लेकर जनता तक, किसी पर कोई इल्ज़ाम नहीं है। किसी ने कोई अपराध नहीं किया है , चारों तरफ शांति ही शांति है।
सैकड़ों साल बाद हमें यह स्वर्ग मिला है। हमारे सभ्य होने का इससे बड़ा सुबूत और क्या हो सकता है।
यही देख कर दुनिया पस्त है और हम मस्त हैं।

2.

हमारे मस्त होने की कोई सीमा नहीं है। पूरे संसार में अब तक कोई भी देश इतना मस्त नहीं है या रहा होगा या रहेगा जितने हम हैं। मस्ती की सभी हदों को हमने पार कर दिया है। उससे आगे निकल गए हैं। हम इतने मस्त हैं कि छोटी मोटी मार पिटाई पर ही नहीं हम हत्याओं पर भी ख़ुशी मनाते हैं। हमारे सामने जब किसी आदमी को पेड़ में बांधकर बुरी तरह मारा और जलाया जाता है और फिर उसकी गर्दन काट दी जाती है, तब हमें आत्मीय ख़ुशी होती है।
हम अपनी ख़ुशी को छिपाते भी नहीं हैं। डंके की चोट पर सब को बताते हैं कि हम ख़ुश हैं। बहुत ख़ुश हैं। हम हत्या का वीडियो बनाते हैं और पूरे संसार को दिखाते हैं । बताते हैं कि देखो हमसे अधिक शक्तिशाली और कौन हैं ।हम संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली हैं। लेकिन उसी समय है जब शत्रु अकेला होता है और हम सौ- पचास होते हैं।
यही देख कर संसार पस्त है और हम मस्त हैं।

3.

मेरा एक इंटरव्यू
प्रश्न और उत्तर

पत्रकार – सर , सुना है आप महिलाओं का बड़ा सम्मान करते हैं ।
मैं – आपने ठीक सुना है, मैं महिलाओं का बड़ा सम्मान करता हूं ।
पत्रकार – कैसे सम्मान करते हैं?
मैं – मैं महिलाओं को उनके पूरे अधिकार देता हूं। मैं महिलाओं के ऊपर किसी भी अत्याचार का, अन्याय का विरोधी हूं। मैं चाहता हूं ऐसा कानून बने कि महिलाएं स्वतंत्र रूप से सम्मानित जीवन जी सकें।
पत्रकार – सर, यह तो बहुत बड़ी बात है। आप तो बधाई के पात्र हैं। आदर्श पुरुष हैं।
मैं – हां, इसमें कोई संदेह नहीं , मैं आदर्श पुरुष हूं।
पत्रकार – आप अपनी पत्नी का भी सम्मान करते हैं ?
मैं – मेरी पत्नी? वह अपना सम्मान स्वयं कर लेती है। मुझे उनका सम्मान करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। यही देख कर संसार पस्त है और हम मस्त हैं।

4.

भाई साहब , आप लोग चाहे अच्छा मानो चाहे बुरा मानो, सच्ची बात यह है कि मैं अपने दुश्मनों के इलाके में निकल जाता हूं और उनके सिर काटकर ले आता हूं ।यह काम में बहुत वीरता, समझदारी, चतुराई और होशियारी से करता हूं। अब तक मैं दुश्मनों के बहुत से सिर काट लाया हूँ। आप पूछेंगे, मैं ऐसा क्यों करता हूं ? इसलिए करता हूं कि मेरे दुश्मन भी यही करते हैं । वे मेरे इलाके में आ जाते हैं और मेरे लोगों के सिर काटकर ले जाते हैं। मैंने कई सौ सिर काट लिए हैं क्योंकि मैं अपने एक सिर के बदले दुश्मन के दस सिर काटता हूं ।
कुछ ही दिनों में मैं एक कल्ला मीनार बनाऊंगा । कल्ला मीनार आप जानते हैं क्या होती है? सिरों को काटकर उनसे एक मीनार बनाई जाती है। उसे कल्ला मीनार कहते हैं। मैं लगातार अपने दुश्मनों के सिर काटता रहूंगा। मेरे दुश्मन बहुत हैं इसलिए मुझे लगता है कि सिर काटने का काम चलता रहेगा और…और…और अगर दुश्मन कम पड़ गए , दुश्मन न रहे तब भी मैं सिर काटने के काम को नहीं छोडूंगा क्योंकि इस काम में मुझे बहुत मज़ा आने लगा।…यही देख कर संसार पस्त है और हम मस्त हैं।

5.
मेरा एक दूसरा इंटरव्यू
प्रश्न और उत्तर

पत्रकार – संसार में यह ख़बर बहुत तेजी से फैल गई है कि आपने नया आदमी बना लिया है जो गट्टा पारचा का आदमी है।
मैं – यह ख़बर ठीक है पर इसमें जानकारी कम है।
पत्रकार – क्या कम है।
मैं – मैंने गट्टा प्लास्टिक का आदमी बनाया नहीं। आदमी को प्लास्टिक का आदमी कर दिया है।
पत्रकार – वह कैसे?
मैं – यही तो मेरा कमाल है । आदमी वही है जो भगवान ने बनाया है लेकिन मैंने उसे ऐसा कर दिया है अब वह मेरा बनाया हुआ। मैं जब चाहता हूं वह हँसता है। मैं जब चाहता हूं वह रोता है । मैं जब चाहता हूं वह गुस्से में आ जाता है। मैं जब चाहता हूं ,वह ख़ुश हो जाता है। मैं जब चाहता हूं वह अपने आप को विकसित महसूस करने लगता है । मैं जब चाहता हूं वह अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगता है । मैं जो चाहता हूं वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करने लगता है । मैं जब जो चाहता हूं तब वह वैसा कर देता है। उसे बनाया तो ऊपर वाले ने है लेकिन अब वह मेरा बनाया हुआ है।
पत्रकार – यह काम आपने कैसे किया है?
मैं – यही सोच कर संसार पस्त है और हम मस्त हैं।

गांधी का पुतला
(दस कहानियां)

1.
गांधी के पुतले को यह समझ कर गोली मारी गई थी कि पुतले को मारी जा रही है। लेकिन गोली गांधी को लगी।
पुतले के पीछे से गांधी निकल आए। गोली मारने वालों ने कहा , यह तो हमारे लिए बहुत ख़ुशी की बात है कि गोली असली गांधी को लगी है । पर चिंता की बात यह है कि अगले साल जब हम पुतले को गोली मारेंगे तो उसके पीछे से गांधी कैसे निकलेगा ।
गांधी ने कहा , तुम चिंता मत करो, हर साल तुम पुतले को गोली मारना और हर साल उसके पीछे से गांधी निकलेगा।

2.
गांधीजी के पुतले को जब गोली मारी गई और ख़ून बहने लगा तो अचानक सभा में कर्नल डायर(Colonel Rsginald Edward Harry Dyer 1864- 1927) आ गया । उसके चेहरे से ख़ुशी फूटी पड़ती थी। उसने अंग्रेजी में गोली मारने वालों से कहा, वेल डन …जो काम हमारा पूरा साम्राज्य नहीं कर सका , वह काम तुम लोगों ने कर दिया है। हम तुम्हारे बड़े आभारी हैं। अगर कभी कोई काम हो तो बताना।
डायर के पीछे-पीछे ऊधम सिंह भी आ गए थे पर उन्हें कोई देख नहीं पाया।

3.
गांधी के पुतले पर गोली चलाने वालों ने सोचा कि उन्हें अधिक प्रामाणिक होना चाहिए। इतिहास बताता है कि गोली लगने के बाद गांधी ने ‘हे राम’ कहा था, इसलिए गोली चलाने वाले ने अपनों में से किसी आदमी से कहा कि गांधी के पुतले पर गोली लगते ही वह हे राम बोले। हे राम बोलने वाला तैयार हो गया।
गोली चली, गांधी के लगी, ख़ून बहा लेकिन हे राम कहने वाला, हे राम न बोल सका । वह केवल हे-हे करता रह गया।

4.
गांधी के पुतले पर गोली चली। पुतला गिर गया और देखा गया के पुतले के पीछे तो तमाम लोगों की लाशें पड़ी हैं।
पहचानने की कोशिश की गई तो पता चला कि वे चम्पारन के किसानों की लाशें हैं।

5.
गांधी के पुतले को जब गोली मारी गयी तब एक देववाणी हुई। आकाश से आवाज़ आई- अरे मूर्खो, पुतले को क्या मार रहे हो। मारना ही है तो गांधी की आत्मा को मारो।
मारने वालों ने कहा- आत्मा क्या होती है हमें नहीं मालूम।
देववाणी ने कहा- आत्मा तो सबके अंदर होती है। तुम लोग भी अपनी आत्मा को खोज कर देखो ।
उन्होंने कहा- हमें नहीं मिलती। हम सौ साल से खोज रहे हैं।

6.
गांधी को गोली मारने वालों ने सोचा कि पुतले को कब तक गोली मारेंगे, क्यों न उन लोगों को गोली मारी जाए जिन्होंने फ़िल्मों और नाटक में गांधी के रोल किए हैं । बस यह ख़्याल आना था कि वे आनन-फानन में उन सब को पकड़ लाए जिन्होंने गांधी के रोल किये थे।
उनसे कहा गया, तुम्हें गोली मार दी जाएगी क्योंकि तुम गांधी बने थे।
उन्होंने कहा, ठीक है लेकिन हमें गोली मारने वाले गोडसे होंगे न… क्या उन्हें फांसी पर लटकाया जाएगा?

7.
पहले तो मीडिया की यह हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी कि वह इस विवाद में शामिल हो। जब एक पत्रकार ने चैनल के मालिक से इस बारे में बात की तो मालिक पर उसकी प्रतिक्रिया यह हुई कि उसकी कुर्सी फट गई । मतलब कुर्सी में छेद हो गया। मालिक ने कहा इस छेद के अंदर झांक कर देखो। तुम्हें इसमें अपना भविष्य दिखाई देगा। पत्रकार ने छेद में झांका और वास्तव में उसका भविष्य दिखाई दिया दिया।
चैनल के मालिक ने कहा, अब तुम अगर इस मामले में कुछ करना ही चाहते हो तो स्वर्ग में जाकर गांधी जी का इंटरव्यू करो। पत्रकार गांधी जी के पास स्वर्ग में जा पहुंचा ।गांधी जी बैठे चरखा कात रहे थे । उनसे पत्रकार ने पूछा, महात्मा जी , आप के पुतले को गोली मारी गई है। आपको कैसा लग रहा है?
गांधी जी ने कहा, मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है।
पत्रकार ने पूछा, अच्छा क्यों लग रहा है?
गांधी जी ने कहा, इसलिए कि पहले उन्होंने एक निहत्थे को गोली मारी थी। और अब उन्होंने एक पुतले को गोली मारी है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि वे उसे गोली कभी नहीं मारेंगे जिसके हाथ में कोई हथियार होगा।

8.
गांधी जी से स्वर्ग में बताया गया कि आपको गोली मारने वाले आपको अपना शत्रु मानते हैं। गांधी जी ने कहा, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।
पत्रकार ने पूछा, आपको कैसा लग रहा है महात्मा जी?
गांधी जी बोले, मुझे अच्छा लग रहा है।
पत्रकार ने पूछा, क्यों ?
गांधी ने कहा, इसलिए कि अंग्रेज भी मुझे दुश्मन मानते थे… मेरे दुश्मनों को एक दोस्त मिल गया है।

9.
गांधी के पुतले को गोली मारने वालों से पूछा गया कि आप गांधी को गोली क्यों मार रहे हैं? वे तो बहुत पहले मार दिए गए थे।
गांधी के पुतले को मारने वालों ने कहा, सब को यही ‘भ्रम’ है।
– फिर
– गांधी को गोली तो ज़रूर मारी गयी थी पर वह मरा नहीं था।
– ये आप क्या कह रहे हैं?
– हम सच कह रहे हैं।
– तो फिर?
– हम लगातार मार रहे हैं। पर वह मरता ही नहीं।अगले साल फिर मारेंगे।

10
गांधी का पुतला बनाने वाले ने बहुत मेहनत से पुतला बनाया। जब पुतला तैयार हो गया तो उसने पुतले को चश्मा पहना दिया।
पुतले को गोली मारने वाले उत्तेजित हो गए। उन्होंने कहा यह चश्मा उतारो। गांधी को चश्मा नहीं पहनाना है ।
पुतला बनाने वाले ने कहा, वे तो चश्मा पहनते थे ।
उन्होंने कहा, पहनते थे और यही तो सबसे बड़ी बुराई थी।
– चश्मे से क्या बुराई , उससे तो साफ़ दिखाई देता है ।
– हां, हम नहीं चाहते कि पुतले को कुछ साफ़ दिखाई दे।चश्मा हमें दे दो। इस चश्मे से बड़े काम लेना हैं।
– क्या काम लेना है?
– इसके दोनों शीशों को घिसना बाकी रह गया है।
……..

नेताजी और औरंगज़ेब

पत्रकारों ने डरते-डरते नेताजी से पूछा कि आपकी डिग्री के बारे में शक किया जाता है। लोग कहते हैं ,आपके पास फ़र्ज़ी डिग्री है।आपका क्या कहना है?
नेता जी ने कहा, यह सब मेरे शत्रुओं ने भ्रम फैलाया है। अरे भाई डिग्री बी.ए. की होती है, एम.ए. की होती है। फ़र्ज़ी की कोई डिग्री नहीं होती।
पत्रकारों ने पूछा, क्या आपने वास्तव में एम.ए किया है ?
नेता जी ने कहा, मैंने तो पीएच -डी भी कर लिया है ।
पत्रकारों ने पूछा, आपकी पीएच -डी का विषय क्या था ?
नेता जी ने कहा, मैंने औरंगज़ेब पर पीएच-डी की है। और औरंगजेब के बारे में मुझे वह सब मालूम है जो उसे भी नहीं मालूम । मैंने तो औरंगजेब के बारे में इतनी रिसर्च कर ली है कि वह उससे परेशान हो गया है। रात में छिपता- छिपाता मेरे पास आता है, गिड़गिड़ाता है, हाथ जोड़ता है, पैर पकड़ता है और कहता है , नेताजी मुझे माफ कर दो।
पत्रकारों ने पूछा, आप तो दयानिधान है नेताजी! आप को औरंगजेब पर दया नहीं आती ? नेता जी ने कहा, दया आती है, बहुत दया आती है। लेकिन मैं मजबूर हूं ।
पत्रकारों ने पूछा, तो आप औरंगजेब को कभी माफ नहीं करेंगे?
नेताजी ने कहा, अगले चुनाव तक तो बिल्कुल माफ नहीं करूंगा। उसके बाद देखा जाएगा।

भय का दर्शन
दस कहानियां

1.
– गुरु जी , मेरी लोकप्रियता कम हो रही है।
– कैसे राजन?
– लोग मेरी बात नहीं सुनते।
– तुम कैसे बात करते हो?
– जैसे आप से बात कर रहा हूं।
– नहीं नहीं इस तरह कोई तुम्हारी बात नहीं सुनेगा।
– फिर क्या करूं गुरुजी?
– कान खोल कर सुन लो। तुम्हारी बात लोग उस समय तक नहीं सुनाएंगे जब तक तुम उनको डराओगे नहीं।

2.
– लोगों को कैसे डराया जा सकता है राजगुरु?
– आदमी को डराना तो संसार का सबसे सरल काम है राजन ! किसी भी चीज से लोगों को डराया जा सकता है।
– जैसे?
– जैसे मरे हुए चूहे से डरा दो।
-और?
– जैसे पानी से डरा दो।
– और?
-जैसे आग से डरा दो । डर तो बहुत ही उत्तम भाव है राजन!
– कैसे?
– डर से ही लोगों में एकता आती है।
– मैं यही करना चाहता हूं राजन!

3.
– डराने का सबसे उत्तम विषय क्या है राजगुरु ?
– इसका एक ही सिद्धांत है राजन!
– क्या सिद्धांत है राजगुरु?
– पहले पता करना चाहिए किसको क्या सबसे प्रिय है।
– उस से क्या होगा गुरुजी?
– उसी से सब कुछ होगा राजन! उसी से सब कुछ होगा।

4.
– तुम को सबसे अधिक प्रिय क्या है राजन?
– मुझे सबसे अधिक प्रिय है मेरी सत्ता।
– अगर तुम्हें डरा दिया जाय कि तुम्हारी सत्ता चली जाएगी तो ?
– मैं बहुत डर जाऊंगा ।
– बस यही सिद्धांत है। यही सिद्धांत है। इस को पकड़ लो।

5.
– लोगों को सबसे प्यारा क्या होता है राजन?
– धर्म ।
– तुम्हें लोगों से कहना पड़ेगा कि उनका धर्म ख़तरे में है।
– पर किसी का धर्म ख़तरे में कैसे हो सकता है राजगुरु? सबको अपने अपने धर्म पर चलने की आज़ादी है । जो जितना चाहे धर्म करें, कौन उसे रोक सकता है।
– हां , तुम ठीक कहते हो । किसी का धर्म ख़तरे में नहीं हो सकता।
– तब लोगों को कैसे समझाया जाएगा कि उनका धर्म ख़तरे में है?
– डर होता नहीं, डर पैदा किया जाता है राजन, यह बात गांठ में बांध लो

6.
– आप तो ज्ञान का सागर हैं राजगुरु। यह बताइए कि डर किस तरह पैदा किया जाता है?
– हज़ार मुंह से बोल कर भी और चुप रह कर भी।
– चुप रहने से कैसे डर पैदा होता है राजगुरु?
– चुप्पी एक संदेश है राजन!
– और बोलना
– हज़ार मुंह से बोलना उससे बड़ा संदेश है। और वही संदेश है।

7.
– डर के और क्या क्या लाभ हैं राजगुरु?
– भय के अनगिनत लाभ हैं राजन !
– क्या?
– पहला लाभ यह कि लोग तुम्हारी बात सुनते हैं।
– और ?
– और दूसरा लाभ यह है कि लोग संगठित होते हैं।
– और?
– तीसरा लाभ यह है कि लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है
– और
– उसके बाद लोग तुमसे सुरक्षा की मांग करते हैं।
– सुरक्षा की मांग?
– हां हां , इसमें डरने की क्या बात है । और राजन , जनता को सुरक्षा देना सदा लाभकारी होता है।

8.
– भय के और क्या लाभ है राजगुरु?
– भय का एक और बहुत बड़ा लाभ है।
– वह क्या है?
– राजन , भय शत्रु पैदा करता है।
– शत्रु?
– हां रजन , शत्रु।
– उससे क्या होता है राजगुरु?
– उसी से सब कुछ होता है राजन!
– क्या?
– यदि शत्रु न हों तो मित्र बनाना बहुत मुश्किल हो जयेगा राजन!

9.
– शत्रु होने से क्या लाभ होते हैं राजगुरु?
– शत्रु होने से घृणा का भाव पैदा होता है।
– घृणा का भाव?
– बहुत उत्तम, सर्वोच्च होता है घृणा का भाव।
– कैसे राजगुरु?
– इससे बदला लेने की भावना पैदा होती है।
– बदले की भावना?
– हां , प्रतिशोध की भावना।

10.

– प्रतिशोध की भावना से क्या लाभ होता है राजगुरु?
– सबसे बड़ा लाभ इसी भावना से होता है।
– कैसे?
– इस तरह कि प्रतिशोध में आदमी अंधा हो जाता है।
– अंधा हो जाता है, तो उस से क्या लाभ?
– उसी से तो लाभ होता है। अंधे लोगों से सत्ता को जितना लाभ पहुंचता है उतना आंख वालों से नहीं पहुंचता।

चूहेदान

मेरे घर में चूहे बहुत हो गए थे। काफी नुकसान पहुंचाते थे। न सिर्फ अपना पेट भरते थे बल्कि हमारे पेट पर लात मारते थे। मतलब यह कि हमारा जीवन मुश्किल में कर दिया था। श्रीमती जी से सलाह हुई और उन्होंने कहा कि चूहों को पकड़ने के लिए एक चूहेदान ले आओ। मैं बाजार गया और एक बड़ा चूहेदान ले आया।अब धीरे-धीरे चूहे उस चूहेदान में आने लगे ।लेकिन मुश्किल यह हो गई कि उस चूहेदान से उनको बाहर कैसे निकाला जाए और फिर क्या किया जाए । यह बात हमारी समझ में नहीं आई थी। तो हुआ यह कि चूहेदान भरता चला गया और उसमें बहुत ज्यादा चूहे आ गए।
फिर क्या हुआ कि चुनाव आ गए। चुनाव मतलब इलेक्शन। तय पाया कि चुनाव में सब वोट देंगे । मतलब घर में जो भी है वह वोट देगा। तब चूहों ने भी वोट दिए।
चुनाव का नतीजा यह निकला। बहुमत के कारण चूहे चुनाव जीत गए और फिर क्या था। वे चूहेदान से बाहर निकल आए । उनके हाथ में सत्ता आ गई और उन्होंने सबसे पहले यह पता लगाया कि उन्हें चूहेदान में किसने बंद किया था। तब उन्हें मेरे बारे में पता चला और उन्होंने आदेश दिया कि लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए मुझे चूहेदान में बंद कर देना चाहिए।
अब चूहे लोकतंत्र चला रहे हैं और मैं चूहेदान में बंद हूं।

भीड़ तंत्र

सरकारी दफ्तर गया । अधिकारी जी से कहा – मेरे केस का क्या फैसला हुआ?
अधिकारी ने कहा – मुझे नहीं मालूम ।
मैंने पूछा – मेरी फाइल कहां है?
अधिकारी ने कहा- मुझे नहीं मालूम।
मैंने कहा – उस पर क्या निर्णय लिया गया ?
अधिकारी ने कहा- मुझे नहीं मालूम।
मैंने पूछा – कब निर्णय लिया जाएगा?
अधिकारी ने कहा – मुझे नहीं मालूम।
मैंने अधिकारी से पूछा- आप यहां क्यों बैठे हैं?
अधिकारी ने कहा- मुझे नहीं मालूम।
मैंने पूछा – यह सब किसे मालूम है?
उन्होंने खिड़की के बाहर इशारा किया जहां चार – पांच सौ की भीड़ जमा थी।
अधिकारी ने कहा – उन्हें।

लेनिन मूर्ति संवाद

1.
लेनिन की मूर्ति तोड़ तो दी गई लेकिन फिर सवाल पैदा हुआ कि उसे कहां फेंका जाए। काफी बहस होती रही। हील – हुज्जत होती रही। जब कुछ तय न पा सका तो लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने कहा, मुझे वहीं फेंक दो जहां हज़ारों साल से टूटी हुई मूर्तियां फेंकी जाती रही हैं।

2.
लेनिन की मूर्ति तोड़ तो दे गई लेकिन फिर बहस होने लगी कि मूर्ति किसने तोड़ी है। सब लोग अपना अपना दावा पेश करने लगे । किसी ने कहा, मैंने तोड़ी है । किसी ने कहा, मैंने तोड़ी है। बड़ी बहस शुरू हो गई जो लात – जूते में बदल गई । क्योंकि लेनिन की मूर्ति तोड़ने वाले का शानदार ‘कॅरियर’ सामने था।
जब यह तय न हो पाया कि लेनिन की मूर्ति किसने तोड़ी है तो लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने कहा, तुम लोगों ने नहीं, मेरे लोगों ही ने मेरी मूर्ति तोड़ी है।

3.
लेनिन की मूर्ति जब तोड़ी जा रही थी तो मूर्ति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई ।कुछ देर बाद मूर्ति हँसने लगी।
तोड़ने वालों को बड़ी हैरानी हुई । उन्होंने पूछा, आप क्यों हँस रहे हैं? आपको तो तोड़ा जा रहा है।
मूर्ति ने कहा, तुम लोग मेरी पसंद का काम कर रहे हो।
तोड़ने वालों ने कहा, कैसे?
लेनिन बोले , मैं जीवन भर यही करता रहा हूं।

4.
लेनिन की मूर्ति ने अपने तोड़ने वालों से सवाल किया।
मूर्ति ने कहा, तुम लोग किसकी मूर्ति तोड़ रहे हो?
लोगों ने कहा, लेनिन की ।
मूर्ति ने कहा, मेरा पूरा नाम क्या है जानते हो?
तोड़ने वालों ने कहा, अरे , हमें अपने-अपने नाम नहीं मालूम, आपका नाम क्या जानेंगे।

5.
लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने तोड़ने वालों से पूछा , तुम लोग सिर्फ़ तोड़ते हो या कुछ जोड़ भी सकते हो ?
उन लोगों ने कहा, जोड़ने का काम हमारा नहीं है ।
मूर्ति ने पूछा, जोड़ने वाले कहां हैं?
तोड़ने वालों ने जवाब दिया, वे उधर बैठे हैं।
– क्यों उधर क्यों बैठे हैं ? मूर्ति ने पूछा
तोड़ने वालों ने कहा, हमने इतना तोड़ दिया है कि अब उनकी समझ में नहीं आ रहा कि क्या क्या जोड़ें।

6.
मूर्ति ने तोड़ने वालों से पूछा, तुम मूर्ति के अलावा और क्या-क्या तोड़ सकते हो ?
तोड़ने वालों ने कहा, बहुत कुछ तोड़ सकते हैं। जिसे भी नापसंद करते हैं, जो हमें पसंद नहीं है उसे हम तोड़ देते हैं। बड़ी-बड़ी इमारतें तोड़ देते हैं। जिंदा लोगों को तोड़ देते हैं। और तो और हम मुर्दा लोगों को तोड़ देते हैं। हमसे अच्छा यह काम और कोई नहीं कर सकता।
मूर्ति ने पूछा, क्या तुम जोड़ना भी जानते हो?
तोड़ने वालों ने कहा, ये क्या होता है?

7.
मूर्ति ने अपने गिराने वालों से पूछा, यह बताओ क्या संसार के दूसरे देशों में भी मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं?
मूर्ति गिराने वाले प्रसन्न हो गए ।
उन्होंने कहा, यह पवित्र काम तो सारे संसार में हो रहा है ।
मूर्ति ने पूछा, कौन कौन कर रहा है?
मूर्ति गिराने वालों ने कहा, जो जो कर रहे हैं, सब हमारे भाई हैं।

8.
मूर्ति तोड़ने वालों ने मूर्ति से पहला सवाल किया, तुम्हें कोई बचाने क्यों नहीं आ रहा ?
मूर्ति ने जवाब दिया, अगर वे अपने आपको बचा पाएंगे तो मुझे बचाने आएंगे।

9.
मूर्ति ने अपने तोड़ने वालों से पूछा, आप लोगों को मुझ से इतनी घृणा थी तो आपने मुझे पहले क्यों नहीं तोड़ा?
मूर्ति तोड़ने वालों ने कहा, विरोध का डर था।
मूर्ति ने पूछा, आप विरोध को पसंद नहीं करते?
तोड़ने वालों ने कहा, बिल्कुल नहीं , हम विरोध और विरोधियों को पसंद नहीं करते। हम वीर हैं। हम अपनी शक्ति वहीं दिखाते हैं जहां कोई विरोध नहीं होता।

10.
लेनिन की मूर्ति ने पूछा, तुम लोग मूर्तियों के अलावा और क्या-क्या तोड़ोगे?
उन्होंने कहा, हम तोड़ने में एक्सपर्ट हैं । जो चाहेंगे तोड़ देंगे।
लेनिन की मूर्ति ने कहा, तुम सब कुछ तोड़ सकते हो लेकिन लोगों का हौसला नहीं तोड़ सकते।

नया विज्ञान

– देखो हमने इतिहास बदल डाला। हमने शासकों के नाम, घटनाओं का घटनाक्रम बदल दिया। हार को जीत बना दिया और जीत को हार बना दिया। इतिहास को ही नहीं, हमने भूगोल को भी बदल दिया है। अब हम विज्ञान को बदलने जा रहे हैं।
मितरों न्यूटन झूठ बोलता है कि पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण है। मतलब यह कि पृथ्वी में शक्ति है। हम कहते हैं कि आकाश में शक्ति है। न्यूटन कहते हैं किसी चीज को ऊपर फेंको तो वह पृथ्वी की ओर आएगी, नीचे गिर जाएगी। हम कहते हैं कि किसी चीज को ऊपर फेको तो आकाश मे चली जायेगी । हम आज यही सिद्ध करेंगे।
उनके शिष्य एक बड़ा भारी पत्थर लाए । उसने अकेले पत्थर को उठा लिया। तालियां बजने लगीं। लोग उसकी जय जयकार करने लगे। उसने पत्थर को दोनों हाथों से उठाकर आकाश की ओर फेंका और पत्थर ऊपर जाने लगा। तालियों की गड़गड़ाहट और बढ़ गई। जय जयकार के नारे लगने लगे।
ज़रा देर में बहुत भव्य मंच लग गया। फूलों से सज गया। बैनर पोस्टर लग गए। लाउडस्पीकर आ गए। अपार जनता आ गई और भाषण शुरू हो गए। देश प्रेम के भाषण। देश की उपलब्धियां । देश का गौरवशाली अतीत। देश का विज्ञान।
अचानक देखा गया कि आकाश में उछाला गया पत्थर बहुत तेजी से नीचे मंच पर आ रहा है। उसका आकार भी बहुत बढ़ गया है। जैसे-जैसे वह नीचे आ रहा है वैसे वैसे उसका आकार बढ़ता जाता है। लोग इधर-उधर भागने लगे । मंच से नेता कूदे। भागो , बचाओ-बचाओ की बहुत सी आवाज़ें आने लगीं । लेकिन ऊपर से गिरने वाला पत्थर इतना बड़ा और इतना भारी हो गया था कि पूरा मंच और जय जयकार करने वाले सभी लोग और दर्शक उसके नीचे आ गए हैं।

मैं और पड़ोसी
1.
पड़ोसी – तुम मेरी बोली बोला करो ।
मैं – ठीक है । मैं आपकी बोली बोलूंगा।
पड़ोसी- तुम मेरी तरह सोचा करो।
मैं – हां जी , मैं आपकी तरह सोचा करूंगा।
पड़ोसी- तुम मेरे जैसे कपड़े पहना करो।
मैं – हां जी, मैं आप जैसे कपड़े पहना करूंगा।
पड़ोसी – तुम मेरी तरह रहा करो।
मैं – जी, मैं आपकी तरह रहा करूंगा।
पड़ोसी – तुम मेरे जैसे हो जाओ।
मैं – मैं आप जैसा हो जाऊंगा…तब तो आप मुझे अपने ही घर में रख लेंगे?
पड़ोसी – क्या बकवास करते हो, तुम अपने ही घर में रहना।
…..

बंदरों का इंटरव्यू
(पन्द्रह छोटी छोटी कहानियां)

1.
एक बहुत बड़े राष्ट्रवादी टी.वी चैनल के बहुत बड़े लिपे-पुते एंकर चमकीले – भड़कीले कपड़ों में बड़े- बड़े कैमरे और ओ.बी वैने लेकर बंदरों के यहां पहुंचे और कहा कि हम बंदरों का इंटरव्यू करना चाहते हैं।
यह सुन कर बंदर बहुत प्रसन्न हुए।
बंदरों ने टीवी चैनल के एंकरों को कैमरे के सामने बिठा दिया और खुद कैमरे के पीछे चले गए।

2.
बंदरों से किसी ने सवाल पूछा कि कहा जाता है कि आदमी पहले बंदर था। इस बारे में आप लोगों को क्या कहना है?
बंदरों ने कहा, हमारा इतना अपमान मत कीजिए । आदमी कभी बंदर नहीं था। काश आदमी कभी बंदर होता।अगर वह बंदर होता तो हम लोगों के साथ होता और यह धरती, धरती होती।

3.
बंदरों से पूछा गया कि आप लोगों के समाज मेॅ आरक्षण है?
बंदरों ने कहा कि हमारे समाज में सभी के पास काम है। सभी एक समान रहते, खाते-पीते हैं। कोई आरक्षण नहीं चाहता।

4.
बंदरों से पूछा गया कि वह कौन सी कला है जिसे आदमी जानते हैं और आप लोग नहीं जानते?
बंदरों ने कहा – आदमी, आदमी को मार डालने की कला जानता है। यह कला हमें नहीं आती।

5.
बंदरों से कहा गया आदमी धर्म पर विश्वास करते हैं ।क्या आप लोग भी धर्म पर विश्वास करते हैं?
बंदरों ने कहा, आदमी धर्म पर विश्वास करते हैं और हम धर्म का पालन करते हैं।

6.
सवाल पूछा गया, आदमियों के समाज में राजनीति है। चुनाव होते हैं । सांसद बनते हैं। मंत्री बनते हैं। प्रधानमंत्री बनते हैं ।राष्ट्रपति बनते हैं। आपके समाज में क्या राजनीति होती है ?
उन्होंने उत्तर दिया, हां, हमारे समाज में भी राजनीति है।
तो आपके समाज में प्रधानमंत्री कौन है?
हमारे समाज में कोई भी प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहता।

7.
सवाल पूछा गया, आदमी शिकायत करते हैं कि आप लोग उनकी बस्तियों में घुस आते हैं। तोड़फोड़ करते हैं। उधम मचाते हैं। लोगों को डराते हैं। ऐसा आप लोग क्यों करते हैं?
उत्तर दिया गया, हम लोगों को कुछ बताने के लिए ऐसा करते हैं ।
क्या बताने के लिए करते हैं?
यह बताने के लिए कि जहां वे रह रहे हैं वह जगह हमारी है।

8.
सवाल पूछा गया, आप लोग कपड़े- वपड़े क्यों नहीं पहनते ?
उत्तर दिया गया, आदमी कपड़े कपड़े पहनते हैं न ?
– हां आदमी तो कपड़े – वपड़े पहनते हैं।
– पर कपड़े- वपड़े पहनने के बाद भी ‘आदमी नंगा’ है। तो हम कपड़े- वपड़े क्यों पहनें?

9.
सवाल पूछा गया आप का पुनर्जन्म पर विश्वास है ?
उत्तर दिया गया कि हां हमारा पूर्व जन्म पर विश्वास है ।
– तो अगले जन्म में आप लोग क्या बनेंगे?
– अगले जन्म में भी हम बंदर ही बनेंगे ।
– आदमी बनने की इच्छा कभी नहीं होती?
– हम मानवजाति के विरोधी नहीं बनना चाहते।

10.
सवाल पूछा गया, आप लोग आदमी के समाज को कोई संदेश देना चाहते हैं ?
– हां संदेश देना चाहते हैं ।
– क्या संदेश देना चाहते हैं ।
– आदमीपना छोड़ो, बंदरपना अपनाओ।

11.
– कहा जा रहा है कि आप लोगों की जनसंख्या बढ़ रही है।
– हां बढ़ रही है क्योंकि हमारे लिए धरती को छोटा किया जा रहा है।

12.
– आप लोगों के मन में कभी अपने मूल स्थान जाने की इच्छा नहीं होती ?
– अपने मूल स्थान जाने की इच्छा उन्हीं के मन में होती है जो नहीं जानते हैं कि उनका मूल स्थान कहां है । हमको मालूम है हमारा मूलस्थान यहीँ है जहां हम रहते हैं।

13.
– आप लोग भगवन पर विश्वास करते हैं?
– भगवान हम लोगों पर विश्वास करते हैं।

14.
– आप लोगों और आदमियों में कॉमन क्या है?
– वे हमें बुरा समझते हैं और हम उन्हें बुरा समझते हैं।

15.
आप लोगों की सबसे बड़ी इच्छा क्या है?
– जल्दी से जल्दी सभी आदमी बन्दर बन जाएँ।
…..

पचहत्तर के ऊपर के हो गए क्रांतिवीर
(प्रेमी तटस्थ नहीं रह सकते)

एक

क्रांतिवीर जीवन भर इस भ्रम में रहे कि उनका केवल बायां हाथ ही काम करता है। इसलिए जीवन भर उन्होंने दाहिने हाथ से काम न लिया जबकि दाहिना हाथ बाएं हाथ से ज्यादा काम कर सकता था।
अब पचहत्तर साल के हो जाने के बाद दाहिना हाथ बाएं हाथ से बदतर हो चुका है।
यही कारण है कि क्रांतिवीर सब कुछ कर सकते हैं लेकिन शहनाई नहीं बजा सकते।

दो

क्रांतिवीर एक किसान के पास गए और बोले, हमारे साथ चलो, संगठन बनाओ, संघर्ष करो। हम क्रांति करेंगे। सबको न्याय मिलेगा। सबका जीवन सुधरेगा।
किसान ने कहा, मेरे छप्पर की बल्ली टूट गई है। मेरे साथ चल कर बल्ली कटवा लाओ तो छप्पर छा जाए ।
क्रांतिवीर ने कहा, क्या मूर्खता वाली बातें कर रहे हो। कहां क्रांति और कहां छप्पर!
क्रांतिवीर यह कहकर चल दिए और किसान बल्ली की जगह खुद खड़ा हो गया ताकि छप्पर गिर न जाए।
सालों बाद क्रांतिवीर उधर से गुजरे तो उन्होंने देखा बल्ली की जगह लगातार खड़ा रहने के कारण किसान खुद बल्ली बन गया है ।
क्रांतिवीर उसे क्रांतिकारी भाषण देने लगे।
किसान बोला, कामरेड, तुम जो कुछ कह रहे हो बिल्कुल ठीक कह रहे हो लेकिन अब मैं चाहूं भी तो तुम्हारे साथ नहीं जा सकता।
क्रांतिवीर का मन किया, किसान का हाथ पकड़कर घसीट लें पर यह सोचकर ऐसा नहीं किया कि उससे छप्पर गिर जाता और दोनों उसके नीचे दब जाते।

तीन

क्रांतिवीर ने एक तख्ती बनवाई जिस पर लिखवाया ‘क्रांतिकारी’ और उन्होंने यह तख्ती गले में लटका ली और बाहर निकल गये पर उनके पास कोई न आया।
इसके बाद क्रांतिवीर ने एक लोहे का टोप बनवाया और उस पर ‘कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’ लिखवाया । लेकिन फिर भी कोई क्रांतिवीर के पास न आया।
इसके बाद क्रांतिवीर ने जिरह बख्तर बनवाया और उस पर पूरी ‘द कैपिटल’ लिखवाई । जिरह बख्तर पहनकर क्रांतिवीर खड़े हो गए। लेकिन उन्होंने जब चलना चाहा तो चल न सके। बैठना चाहा तो बैठ न सके। बोलना चाहा तो बोल न सके। हँसना चाहा तो हंस न सके।
वे केवल खड़े रहे।
वर्षों खड़े-खड़े जिरह बख्तर के अंदर उनका शरीर गल गया लेकिन जिरह बस्तर खड़ा रहा।

चार

क्रांतिवीर को इंग्लिश आती थी, जर्मन आती थी, रूसी आती थी, इतालवी आती थी, स्पेनिश आती थी लेकिन हिंदी नहीं आती थी।
किसी ने क्रांतिवीर से पूछा, तुम हिंदी नहीं जानते तो हिंदुस्तान में क्रांति कैसे करोगे?
क्रांतिवीर ने जवाब दिया- मैं पहले इंग्लैंड में क्रांति करूंगा फिर जर्मनी में क्रांति करूंगा फिर रूस में, फिर इटली में, फिर स्पेन में और जब इतने सारे देशों में क्रांति आ चुकी होगी तो भारत में बिना हिंदी के क्रांति हो जाएगी।

पांच

क्रांतिवीर यह रहस्य जीवन भर न समझ सके कि वे गरीबों शोषितों, दलितों, अल्पसंख्यकों के सच्चे समर्थक हैं तब भी ये सब उनके साथ क्यों नहीं आते।
इस रहस्य को समझने के लिए क्रांतिवीर पार्टी के सबसे बड़े नेता के पास गए और अपना सवाल पूछा।
उनका सबसे बड़ा नेता सौ सवा सौ साल का एक बुजुर्ग था । उसकी भवें और पलकें तक सफ़ेद हो चुकी थीं। वह चल – फिर उठ – बैठ नहीं सकता था।
उसने क्रांतिवीर का सवाल सुनकर कहा, क्या हमारा दर्शन ग़लत है कामरेड?
– नहीं कामरेड नहीं। क्रांतिवीर घबरा गए।
– क्या हमारी पार्टी ग़लत है?
– नहीं नहीं। क्रांतिवीर फिर गिड़गिड़ाए।
– जाओ काम करो…. बकवास मत किया करो ।
क्रांतिवीर काम करने लगे। लंबे समय तक जब उन्हें अपने सवाल का जवाब न मिला तो होते हुआते एक दिन वे एक ज्योतिषी के पास पहुंचे और अपना सवाल पूछा।
ज्योतिषी ने कहा, सवा पांच रुपये निकालो तो बताऊं।
क्रांतिवीर ने सवा पांच रुपये ज्योतिषी के हाथ पर रख दिए।

छ:

क्रांतिवीर ने एक रात स्वप्न में कार्ल मार्क्स को देखा पर आश्चर्य की बात थी कि कार्ल मार्क्स ने शेव कर रखा था।
क्रांतिवीर ने कहा, प्रभु , यह आपने क्या कर डाला।
कार्ल मार्क्स बोले, यह मैंने नहीं, तुम लोगों ने किया है।

सात

क्रांतिवीर बहुत दिनों से अंडर ग्राउंड नहीं हुए थे। उन्हें यह बात कुछ अजीब लगती थी।
एक रात जब वे पत्नी के साथ बिस्तर में लेटे थे तो बोले, सुनो कॉमरेड, हम बहुत दिनों से अंडर ग्राउंड नहीं हुए हैं।
पत्नी बोली, चुपचाप लेटे रहिए, मुझे नींद आ रही है।
…….

एक टीवी एंकर का इंटरव्यू
(कथा-कहानी)

-आप टीवी एंकर होने से पहले क्या करते थे?
– मैं एक लिंचिंग ग्रुप का मेंबर था।
– क्या टीवी एंकर बनने में पुराना अनुभव आपके काम आया?
– दरअसल पुराने अनुभव के आधार पर ही मुझे टीवी एंकर बनाया गया है।
– लिंचिंग का अनुभव टीवी एंकर के काम में कैसे सहायक सिद्ध हुआ?
– लिंचिंग करने के लिए जिस क्रोध और घृणा की जरूरत पड़ती है वह एंकरिंग करते हुए मेरे बहुत काम आया। लिंचिंग करने में जिस तरह हाथ पैर चलाए जाते हैं उसी तरह टीवी की एंकरिंग करते हुए भी मैं हाथ पैर चलाता हूं जिसे लोग पसंद करते हैं।
– तो आपने रोड पर लिंचिंग करना छोड़ दी?
– मुझे लगा छोटा काम है।
– उसके बाद ही आप टीवी एंकर बन गए?
– टीवी एंकर मेरे लिए छोटा शब्द है।
– फिर आप अपने लिए कौन सा शब्द इस्तेमाल करना चाहेंगे?
– टीवी लींचेर कह सकते हैं।
– तो आप टीवी पर कौन सा प्रोग्राम करते हैं?
– वही जो पहले सड़क पर करता था ।
– मतलब आप पहले लिंचिंग करते थे और अब जो करते हैं उसमें तो काफी फ़र्क़ है ?
– नहीं।
– कैसे?
– पहले हम सब मिलकर किसी एक आदमी की लिंचिंग करते थे।
– और अब?
– अब मैं अकेला लाखों लोगों की लिंचिंग कर देता हूँ।
– इसी पेशे में बने रहेंगे या भविष्य में कुछ और करने का इरादा है?
– राजनीति में जाने का इरादा है।
– चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिल जाएगा।
– हां क्यों नहीं। जब लिंचिंग के लिए टिकट मिल गया था तो चुनाव के लिए क्यों नहीं मिलेगा?
…….

रानू के संवाद -1

1.
-मम्मी जी , आप पूजा क्यों करती हैं?
– बेटा ,भगवान को खुश करने के लिए।
– आप के खुश करने से भगवान खुश हो जाते हैं?
– हां बेटा, हो जाते हैं।
– यह आपको कैसे पता चलता है?
– बस चल जाता है।
– कैसे चल जाता है?
-कहा न, पता चल जाता है।
– पर कैसे?
– तुम अभी नासमझ हो। इन बातों को नहीं समझोगे। बड़े हो जाओगे तो समझ में आ जाएंगी।

2.

– मम्मी जी, आप भगवान से क्या मांगती हैं?
– मैं भगवान से मानती हूं कि भगवान तुम्हें सुरक्षित रखे, तुम्हारी हेल्थ अच्छी रहे , तुम पढ़ने लिखने में आगे बढ़ते रहो।पास होते रहो।
– तो भगवान सब देते हैं, सबको देते हैं
-हाँ , जो मांगता है उसे देते हैं
-भगवान से मांगना तो बहुत आसान है मम्मी। थोड़ी सी पूजा कर ली और मांग लिया ।
– हां , सब पूजा प्रार्थना करते हैं और मांगते हैं बेटा।
– तो बच्चे फेल क्यों होते हैं ? मेरे क्लास में कई लड़के फेल हो गए। क्या उन्होंने भगवान से यह नहीं मांगा होगा था कि वे पास हो जाए?
– जरूर मांगा होगा।
-तो भगवान ने उन्हें पास क्यों नही किया?
– ये बातें तुम्हारी समझ में अभी नहीं आएंगी। तुम बहुत छोटे हो। जब बड़े हो जाओगे तो इन बातों को समझोगे।

3
– मम्मी जी , लोग भगवान से क्या मांगते हैं?
– बेटा , वही मांगते हैं जिसकी उन्हें जरूरत होती है। कोई मांगता है कि वह स्वस्थ हो जाये । कोई मांगता है उसको नौकरी मिल जाए। कोई मांगता है कि संतान हो जाए ।
– पर मम्मी भगवान तो सब कुछ जानते हैं न कि किसे क्या चाहिए?
– हां हां भगवान सब जानते हैं बेटा।
– भगवान तो यह भी जानते होंगे कि किसे क्या मिलना चाहिए और क्या नहीं?
– हां बेटा, भगवान यह भी जानते हैं
– तो भगवान मांगने पर ही क्यों देते हैं। बिना मांगे क्यो नहीं दे देते।
– बेटा, यह बातें तुम्हारी समझ में नहीं आएंगी। तुम अभी बहुत छोटे हो। बड़े हो जाओगे तो समझ लोगे।

4
– पापा , ये रिक्शेवाले इतने गरीब क्यों हैं?
– गरीब इसलिए हैं कि उन्होंने पिछले जन्म में अच्छे कर्म नहीं किए होंगे।
– आपने पिछले जन्म में अच्छे काम किए थे पापा ?
– हां, किए होंगे।
– क्या-क्या किया था आपने?
– कुछ न कुछ अच्छा किया होगा ।
– पर क्या?
– यह तो पता नहीं।
– फिर यह कैसे पता है कि रिक्शे वाले ने पिछले जन्म में अच्छे काम नहीं किए थे?
– तुम बहस बहुत करने लगे हो रानू ,यह अच्छा नहीं है।

5.
– पापा, क्लास में टीचर बता रहे थे कि संसार में सब कुछ ईश्वर ने बनाया है।
– हां बेटा , यह सब ईश्वर ने बनाया है ।
– तो यह सब ईश्वर का है पापा ?
– हां बेटा , यह सब ईश्वर का है ।
– तो हमार घर और गाड़ी भी ईश्वर की है ?
– हां बेटा, यह ईश्वर की है।
– तो आप ये क्यों कहते हैं कि घर और गाड़ी आपकी है?
– बेटा, तुम बच्चे हो अभी यह बातें तुम्हारी समझ में नहीं आएंगी।

6.

– पापा, जब आप घर आते हैं तो मम्मी आपके सामने खाना लगाती हैं लेकिन जब मम्मी आती हैं तो आप उनके सामने खाना नहीं लगाते।
– तुम्हारी मम्मी हमारी पत्नी हैं, पत्नी।
– तो आप उनके पति हैं न?
– हां , मैं उनका पति हूं ।
– तो आप मम्मी के सामने खाना क्यों नहीं लगाते ?
– अरे भाई , मैं नौकरी करता हूं, पैसे कमा कर लाता है।
– तो मम्मी भी तो नौकरी करती हैं?
– अरे रानू , तुम हम दोनों में झगड़ा कराना चाहते हो क्या? अभी ये बातें तुम्हारी समझ में नहीं आएंगी । बाद में बताएंगे।

7.
– पापा हमारे घर से स्कूल इतनी दूर क्यों है?
– स्कूल उधर ही है।
– स्कूल इधर क्यों नहीं है।
– क्या मूर्खता की बात कर रहे हो।
– सारे बच्चे इधर से उधर जाते हैं। स्कूल इधर होता तो आसानी होती ।
– अच्छा तो है स्कूल तुम्हारे हिसाब से होना चाहिए?तुम जहां चाहो वहां स्कूल बने।
– नहीं नहीं पापा मेरे हिसाब से नहीं।
– फिर
– बहुत देर लगती है पापा…बहुत देर लगती है ….रास्ते में नींद आ जाती है… हम सोचते हैं स्कूल घर के पास होता तो कितना अच्छा होता ।
– अरे सोचने से कुछ नहीं होता है। पढ़ाई पर ध्यान दिया करो।

8.

– पापा , आज स्कूल में एक नए टीचर आए हैं।
– कैसे हैं?
– बहुत खराब हैं पाप, बिल्कुल अच्छी तरह नहीं पढ़ाते। उन्हें स्कूल में क्यों रखा।
– अरे भाई स्कूल के प्रिंसिपल हैं, स्कूल का मैनेजमेंट है उन्होंने रखा होगा।
– पर उन्हें क्यों रखा है? हमें अच्छे नहीं लगते ।
– तो अब टीचर ऐसे रखे जाएं जो तुम्हें अच्छे लगते हो?
– हां पापा टीचर ऐसे होने चाहिए जो अच्छे लगें।
– यह सब बेवकूफी की बातें हैं। ऐसे टीचर कैसे रखे जा सकते हैं जो तुम्हें अच्छे लगते हों? यह सब बकवास है।

9.
– पापा हम सब को भगवान ने बनाया है न?
– हां बेटा, अः भगवान ने बनाया है।
– बंदरों को भगवान ने बनाया है?
– हां बनाया है।
– पाप, जब छत पर बंदर आए थे तो आप डंडा लेकर गए थे ।उनको भगा रहे थे,उनको मार रहे थे। जब हमको भी भगवान ने बनाया है और उन्हें भी भगवान ने बनाया है तो आप उनको मार क्यों रहे थे?
– क्या बेवकूफी की बातें कर रहा है ।बंदरों को भगाया नहीं जाएगा तो घर में बिठा कर डिनर करया जाएगा?

10.
– तुम बहुत बिगड़ते जा रहे हो रानू।
– कैसे पापा?
– तुम सवाल बहुत पूछने लगे हो।
– तो सवाल पूछना गलत है पापा?
– हां , सवाल पूछना ठीक नहीं है
– तो पापा, क्लास में टीचर हमसे सवाल क्यों पूछते हैं?

रानू के संवाद -2

1.

-पापा, हम लोग हिंदू हैं?
-हां बेटा , हम हिंदू हैं।
– और सलीम क्या है पापा?
– वह मुसलमान हैं बेटा।
– वह मुसलमान क्यों है पापा हिंदू क्यों नहीं है?
– उसके घर वाले मुसलमान हैं तो वह भी मुसलमान है।
– पर उसके घर वाले मुसलमान क्यों हैं?
– वह इस्लाम धर्म को मानते हैं। हम हिन्दू धर्म को मानते हैं।
– धर्म किसने बनाया है पापा?
– धर्म भगवान ने बनाए हैं बेटा।
– दोनों धर्म भगवान ने बनाए हैं?
– हां बेटा, दोनों धर्म भगवान ने बनाये हैं।
– दोनों धर्म भगवान ने बनाये हैं तो हिंदुओं को भी भगवान ने बनाया है और मुसलमानों को भी भगवान ने बनाया है?
– हां बेटा।
– तो हिंदू और मुसलमान एक ही हुए पापा?
– हां बेटे , एक ही हैं।
– तब हिंदू मंदिर क्यों हो जाते हैं और मुसलमान मस्जिद क्यों जाते हैं?

2
– पापा, टीचर बता रहे थे कि मरने के बाद अच्छे आदमी स्वर्ग में जाते हैं और बुरे आदमी नरक में जाते हैं।
– हां बेटा , यही है। सही बता रहे थे। जो अच्छे काम करते हैं, वे स्वर्ग में जाते हैं जो बुरे काम करते हैं वे नरक में रखे जाते हैं ।
– स्वर्ग में क्या है पापा ?
– बेटा , स्वर्ग में सब कुछ बहुत अच्छा है। बहुत सुंदर है। बहुत अच्छा जीवन है। कोई तकलीफ नहीं है। बहुत शांति है ।
– और नरक में क्या है पापा?
– नरक में कष्ट ही कष्ट है। वहां का जीवन बहुत खराब है। वहां बुरे लोगों को बहुत सजाएं दी जाती हैं। उनके ऊपर गरम तेल डाला जाता है ।उनको हंटर से पीटा जाता है । उन्हें तरह तरह की भयानक यातनाएं दी जाती हैं। वहां रहना बहुत कठिन है ।
– तो पापा आपने स्वर्ग नरक दोनों देखे हैं?
– नहीं बेटा, मैंने स्वर्ग और नरक नहीं देखे।
– तो आपको कैसे पता है पापा कि वहां क्या होता है?

3

– पापा आप भिखारी को पैसे क्यों दे रहे हैं ?
– बेटा ये बहुत गरीब है इसके पास न तो रहने की जगह है और न खाने के लिए पैसे है । मैंने जो पैसे दिए हैं उनसे आज खाना खा लेगा।
– और पापा , कल कैसे खाना खाएगा?
– कल कोई और इसे पैसे दे देगा ।
– यह कैसे पता है पापा?
– बेटा लोग भिखारियों को पैसे देते रहते हैं ।
– पर कल किसी ने इसे पैसे नहीं दिए तो ये क्या खायेगा ?

4.
– यह राष्ट्रपति भवन का चित्र है पापा जी ?
– हां बेटा, राष्ट्रपति भवन का चित्र है।
– इसमें कितने कमरे हैं पापा?
– इसमें 340 कमरे हैं बेटा ।
– तो इसमें कितने राष्ट्रपति रहते हैं पापा?
– एक राष्ट्रपति रहता है बेटा ।
– 340 कमरों में बस एक?
– हां बेटा एक।
– तब तो पापा हर कमरे में दो-दो दिन रहता होगा?

5
-पापा चोर चोरी क्यों करते हैं
– दूसरे का सामान ले जाते हैं। पैसे ले जाते हैं
– दूसरों के पैसे क्यों ले जाते हैं ? क्या उनके पास पैसा नहीं होता है
– नहीं उनके पास पैसा नहीं होता
– पैसा क्यों नहीं होता
– बेटा काम नहीं करते
– काम क्यों नहीं करते?
– पढ़े-लिखे नहीं होते ।
– पढ़े लिखे क्यों नहीं होते?
– उनके पास पैसे नहीं होते।
– क्या इसीलिए वे पैसे चुराते है ?

6.
– पापा पुलिस का क्या काम है?
– बेटा पुलिस का काम लोगों की सुरक्षा करना है। चोर,डाकुओं को, बदमाश लोगों को पकड़ना है।
– तो पापा पुलिस अच्छा काम करती है?
– हां हां बेटा करती है ।
– तो पापा लोग पुलिस से डरते क्यों हैं?

7.
– पापा आप चुनाव में क्यों नहीं खड़े होते ?
– नहीं बेटा यह हम लोगों का काम नहीं है
– क्या यह कोई खराब काम है ?
– नहीं नहीं खराब काम तो नहीं है
– तो फिर ये आपका काम कैसे नहीं है?

8.
-पापा अमीरों और गरीबों दोनों को भगवान ने बनाया है
– हां बेटा दोनों को भगवान ने बनाया है
– पापा क्या भगवान सब को अमीर बना सकते थे
– हां बना सकते थे भगवान तो कुछ भी कर सकते हैं
– तो भगवान ने सबको अमीर क्यों नहीं बनाया?
– यह तो भगवान की इच्छा है बेटा
– पापा भगवान की यह इच्छा क्यों है?
– यह तो भगवान ही बता सकता है
– क्या भगवान से कोई पूछ सकता है?
– नहीं,भगवान से कोई नहीं पूछ सकता।

9.
-पापा स्कूल में टीचर कह रहे थे कि सब काम भगवान की इच्छा से होता है
-हां, ठीक कह रहे थे
-और पापा फिर उन्होंने उन लड़कों को डांटना शुरू कर दिया जो होमवर्क करके नहीं लाए थे
-तो क्या करते हो लड़कों को इनाम देते हैं
-पापा, भगवान की इच्छा होती तो वे लड़के होम वर्क कर लेते। भगवान की इच्छा नहीं थी तो -होम वर्क नहीं कर पाए
-नहीं बेटा भगवान अच्छे काम करने की प्रेरणा देता है
-तो बुरे काम करने की प्रेरणा कौन देता है पापा?

10.
-पढ़ाई-लिखाई क्यों जरूरी है पापा?
-बेटा, पढ़ लिखकर आदमी को अच्छी नौकरी मिलती है ।अच्छा पैसा मिलता है। उसका जीवन अच्छी तरह से गुजरता है।
-तो पापा अगर बिना पढ़े अच्छा पैसा मिलने लगे, अच्छा जीवन हो जाये तो पढ़ाई की कोई जरूरत नहीं है क्या?
****


असग़र वजाहत

5 जुलाई, 1946 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में जन्मे असग़र वजाहत ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए., पीएच.डी. और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से पोस्ट डाक्टोरल रिसर्च की। 1971 से 2011 तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, दिल्ली के हिन्दी विभाग में अध्यापन किया। पाँच वर्षों तक ओत्वोश लोरांड विश्वविद्यालय, बुडापेस्ट, हंगरी में भी पढ़ाया। यूरोप और अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिए।
पाँच कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास, एक उपन्यास त्रयी, दो लघु उपन्यास, दस नाटक, एक नुक्कड़ नाटक-संग्रह और यात्रा-संस्मरण की चार पुस्तकों सहित दो दर्जन से अधिक पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएँ कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। ‘बीबीसी हिन्दी’, ‘हंस’ और ‘वर्तमान साहित्य’ के विशेषांकों का अतिथि सम्पादन भी किया। फ़ि‍ल्मों के लिए पटकथाएँ लिखने के अलावा धारावाहिक और डॉक्यूमेंटरी फ़ि‍ल्में भी बनाई हैं।
चित्रकला और पर्यटन में गहरी रुचि है।
साहित्यिक अवदान के लिए ‘कथा यूके सम्मान’, हिन्दी अकादेमी, दिल्ली के ‘शलाका सम्मान’, ‘स्पन्दन कथा शिखर सम्मान’, व्यास सम्मान जैसे प्रतिष्ठित सम्मान-पुरस्कार।
इन दिनों स्वतंत्र लेखन।
सम्पर्क : awajahat45@gmail.com

 


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