अकाल और संघर्ष
लेखक- हेनरी त्रोयत – अनुवाद – रूपसिंह चन्देल
’दि क्रुट्जर सोनाटा’ के विस्फोट के बाद दम्पति के संबन्ध सांत्वनाप्रद प्रयत्नों के बावजूद बिगड़ चुके थे. विवाह में शुद्धता या ब्रह्मचर्य व्रत की उद्घोषणा के बाद भी तिरसठ वर्ष की आयु में उन्हें सोन्या की चाहत थी लेकिन इसके लिए वह उन्हें ही दोषी ठहराते थे . यद्यपि सोन्या उन पर अपनी इस सामर्थ्य को लेकर प्रसन्न थी, लेकिन वह इस बात से निराश थे कि उनके सोच-विचार में उनका कोई स्थान नहीं था. वह यदा-कदा ही उनसे अपनी योजना पर बात करते थे प्रायः अपने कार्य के विषय में कुछ भी उनसे साझा नहीं करते थे. जब वह कोई घरेलू समस्या उनके समक्ष रखतीं वह चिड़चिड़ाते हुए उसे सुनते, गंवारूपन के साथ डांटते, यहां तक कि बच्चों के सामने उनके साथ अकेले रहने से बचने के लिए बाहर निकल जाते थे. लेकिन जब सोन्या की चाहत का ज्वार अचानक उमड़ता वह उनका नैकट्य पाना चाहते. उनकी दृष्टि में वह दो भयानक पापों—कामुकता और अर्थलिप्सा की प्रतिमूर्ति थी. घर का पूरा पैसा सोन्या के हाथों खर्च होता था, जबकि उनके अधिकार में कुछ नहीं था. सच था कि उन्होंने एस्टेट की देखभाल और प्रबन्धन का भार सोन्या को सौंप दिया था, लेकिन वह अभी भी उसके वैध मालिक थे. दस्तावेजों में जमीन और बिल्डिंग उनके नाम थे. यद्यपि वह अपने को एक शहीद और सुखी धनी व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते थे, जबकि सोन्या यह शिकायत करती कि परिवार का गंदा कार्य उनके कंधों पर लाद दिया गया था, “मैं ऎसा अनुभव करती हूं कि मानो मैं शिकंजे में कैद हूं और बाहर नहीं निकल सकती.” सोन्या ने ११ दिसम्बर, १८९० को अपनी डायरी में लिखा, “क्रिश्चियन सिद्धान्तों के नाम पर सम्पत्ति के प्रबन्धन का जो कार्य मुझ पर थोप दिया गया है वह मेरे लिए एक बड़ी मुसीबत है.”
१८९० के जाड़े की एक घटना ने उन दोनों के मिलाप के अंतिम अवसर को छिन्न-भिन्न कर दिया. कुछ समय से मुझिक तोल्स्तोय के जंगल में भुर्ज के वृक्ष काट रहे थे और लकड़ियां ले जा रहे थे. सोन्या का धैर्य चुक गया और उन्होंने जिला प्रमुख को शिकायत करने का निर्णय किया. उनका इरादा न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात अभियुक्तों को मुक्त करा देने का था, जिसे ल्योवोच्का ने भी अनुमोदित किया था. उन्हें छः हफ्ते की जेल और सत्ताइस रूबल की सजा मिली. लेकिन जब सोन्या ने उन्हें मुक्त किए जाने का अनुरोध किया, उन्हें बताया गया कि वह एक अपराधिक मामला था और शिकायत वापस लेना या सजा बदलना बिल्कुल असम्भव होगा. तोल्स्तोय अनुतप्त हो उठे. एक बार पुनः जायदाद, संकटापन्न बुराई समझ आयी. उन्हें सारे पेड़ उन गरीब अभागों को दे देना चाहिए था, बजाए इसके उन्होंने उन्हें न्यायालय के हाथों सौंप दिया, जिसकी उपयोगिता को अपने लेखन में वह नकार चुके थे. निश्चित ही उन्होंने अपनी पत्नी के उकसाने पर यह कार्य किया था. उन्होंने जोरदार ढंग से उन्हें डांटा-फटकारा. सोन्या ने प्रतिकार करते हुए कहा कि मुझिकों को डराने के लिए पुलिस के सामने भेजने का विचार उन्हीं का था.
वह सो नहीं सके. अपने कमरे में इधर-उधर टहलते रहे. सोन्या ने लिखा, “उन्होंने मेरे स्थान पर स्वयं को स्थापित करने का कभी हल्का-सा भी प्रयत्न नहीं किया अथवा यह नहीं समझा कि मेरा इरादा किसी को भी, यहां तक कि चोर मुझिकों को भी नुकसान पहुंचाने का नहीं था.”
सुबह के पांच बजे तक वह आहें भरते रहे, रोते रहे और अपनी पत्नी की निन्दा करते रहे, जबकि सोन्या निढाल, आत्महत्या के विषय में सोच रही थी. “सभी को अलविदा. मैं शांतिपूर्वक रेलवे ट्रैक पर लेटने जा रही हूं.” लेकिन उन्हें अन्ना कारेनिना की भुतही याद हो आयी. लेखक की पत्नी, फिर भी आत्महत्या! इससे उन्होंने हल्कापन अनुभव किया. इस बात को अपनी नोटबुक में लिखकर वह सोने चली गयीं. अगले दिन परिवार में इस पर चर्चा हुई. बड़ी लड़कियों ने विचार व्यक्ति किया कि मां सही नहीं थीं. लेकिन तान्या ने अपनी डायरी में लिखा, “मुझे पापा के बजाए मां के लिए अधिक दुख है,—क्योंकि वह किसी बात पर विश्वास नहीं करतीं.” अगले दिन तोल्स्तोय ने लिखा, “मैं सोचता हूं कि मैं सरकार को सूचित कर दूं कि मैं अपनी जायदाद का अधिकार छोड़ता हूं.—-.”
आगामी सप्ताह यह विचार उनके मस्तिष्क में दृढ होता गया. उन्होंने निर्णय किया कि सम्पत्ति का प्रबन्धन पत्नी पर छोड़ना पर्याप्त नहीं. इसका बेहतर ढंग यह होगा कि वह उसे किसानों में बांट दें. लेकिन सोन्या और बड़े बेटे ने इसका विरोध किया. लंबी बाताचीत के बाद वे एक समझौते पर पहुंचे. समझौते के बावजूद कुछ नहीं हुआ.
यद्यपि सम्पत्ति बंटवारे का निर्णय ईस्टर के दौरान हुआ था, लेकिन उत्तराधिकारियों के लिए वसीयत एक वर्ष से अधिक समय : ७ जुलाई, १८९२ से पहले नहीं हो पायी. अंतिम क्षण तक सौदेबाजी होती रही थी. पूरी एस्टेट का मूल्यांकन, ५,८०,००० रूबल (अथवा १,६४२,३०० डॉलर) किया गया. उसे दस हिस्सों में बांटा गया और कानूनी दस्तावेज में आबंटन पहले सोन्या और शेष नौ जीवित बच्चों में हुआ. निकोल्स्कोए (तोल्स्तोय की वासभूमि) का बटवारा सेर्गेई, इल्या, तान्या और माशा के मध्य हुआ. इल्या को ग्रिनेव्का भी मिला. लियो के पास मास्को का घर और समारा फार्म का कुछ हिस्सा था. तान्या और माशा को ओव्स्यानिकोवो और ४०,००० रूबल नकद मिले. आंद्रे, माइकल, और साशा को समारा में प्रत्येक को ३४०० एकड़ जमीन मिली और यास्नाया पोल्याना मां और अंतिम बच्चे वनिच्का को मिला.
१५ जुलाई को सोन्या ने अपने पति को इस बात की स्वीकृति दी कि उनके बाद के कार्य को कोई भी प्रकाशित कर सकेगा. लेकिन एक सप्ताह पश्चात (२१ जुलाई) उन्होंने घोषणा की कि उन्होंने प्रेस को अपने निर्णय के निहतार्थ स्पष्ट करते हुए पत्र लिखा था. सोन्या क्रोध से उबल पड़ी. क्रोध से सफेद पड़ी चीखती हुई सोन्या ने कहा कि परिवार चलाने के लिए उन्हें धन चाहिए और अधिकार देने के बाद पत्नी के साथ अपने विवादों को सार्वजनिक कर वह बुरा उदाहरण प्रस्तुत कर रहे थे. धर्मप्रचारक तोल्स्तोय चौंके और भभकते हुए बोले कि उनकी पत्नी “बहुत मूर्ख और लालची है.” ऎसे व्यक्ति से वह कभी नहीं मिले और वह बच्चों को “अपने रूबल के बल पर” पथभ्रष्ट कर रही है. फिर दरवाजे की ओर इंगित करते हुए वह चीखे, “बाहर निकल जाओ. बाहर निकल जाओ.” सोन्या पीड़ा से सिसकती हुई भागकर बगीचे में गयी और अपने को सेब के पेड़ों के बीच छुपा लिया जिससे बाग की देखभाल करने वाला उन्हें रोता न देख सके. वह एक खाईं के किनारे हांफती हुई बैठ गयीं. उन्होंने वहां अपनी नोटकुक में पेंसिल से लिखा कि उनके और ल्योवोच्का के बीच कलह का एक मात्र समाधान उनकी मृत्यु ही है. अन्ना कारेनिना का उदाहरण उनके समक्ष था. उन्होंने तय किया कि इस बार, निश्चित ही वह अपने को ट्रेन के नीचे फेंक देंगी. वह उठ खड़ी हुईं और स्कर्ट में लड़खड़ाती हुई कोज्लोव्का स्टेशन की ओर दौड़ पड़ीं.
धुंधलके में उन्होंने एक व्यक्ति को किसानों जैसा कुर्ता पहने अपनी ओर आते देखा. उन्होंने सोचा कि वह उनके पति थे और मेल-मिलाप हो जाएगा. लेकिन किसान के कुर्ते में वह व्यक्ति उनका बहनोई कुज्मिन्स्की था. उनकी स्थिति देख, उसने उनसे प्रश्न किया, उन्हें शांत करने का प्रयास किया और उनसे घर लौटने का अनुरोध किया. वह कुछ दूर तक उनके साथ चलीं, फिर वोरोन्का में स्नान के लिए उतर गयीं यह सोचकर कि वह उसमें डूब जाएगीं. लेकिन अंधेरा और अत्यंत ठंडे पानी से वह डर गयीं. वह वापस जंगल में चली गयीं. अचानक उन्होंने अनुभव किया कि एक जानवर उन पर धावा बोलने वाला था. श्वान? लोमड़ी? भेड़िया? वह चीख उठीं. कुछ नहीं कोई नहीं था. जानवर सांझ के धुंघलके में गायब हो चुका था. उन्होंने स्वयं से कहा कि वह पागल हो गयी हैं. फिर बेहतर अनुभव करती हुई वह घर लौटीं और बेड पर वनिच्का को देखने गयीं. उन्होंने उसे प्यार किया. कभी-कभी वह उसे लेकर आशंकित हो उठतीं थीं. उन्होंने लिखा, “कितना उकृष्ट बालक. मुझे डर है कि वह नहीं रहेगा.” वह लगातार उसे चूमा करतीं. बाहर बारजे पर तोल्स्तोय अपने बड़े बेटॊं, बेटियों और अतिथियों के साथ बातचीत करते हंस रहे थे. “उन्हें यह ज्ञात नहीं कि मैं अपने को मार लेने के कितना निकट थीं.” सोन्या ने सोचा.
रात देर से अतिथियों के विदा होने के बाद ल्योवोच्का अपनी पत्नी के पास आए, उन्हें अपने बाहुपाश में बांधा और प्रेम से बोले, “मैंने उनसे अनुरोध किया है कि वह मेरा वक्तव्य प्रकाशित न करें और इस विषय में और अधिक कुछ नहीं कहना.” बाद में सोन्या ने लिखा, “उन्होंने मुझे कहा कि वह उसे तब तक प्रकाशित नहीं करेंगे जब तक मैं उसे समझ नहीं लेतीं. मैंने उत्तर दिया कि मैं झूठ नहीं बोल सकती, मैं झूठ नहीं बोलूंगी और यह कि मेरे लिए उसे समझना नितांत असंभव है. आज जैसा दृश्य मुझे तेजी से मेरी मृत्यु की ओर खींच रहे हैं. वह और आघात करें, जिससे तेजी से मेरा अंत संभव हो.”
अगामी दिनों में बहसें अधिक हुईं, लेकिन बेड में मेल-मिलाप भी होता रहा. इन आलिंगनों के बाद, जिनमें वास्तविक प्रेम नहीं था, दोनों ने अपनी डायरियों में अपने पश्चाताप दर्ज किए.
“मैं स्वयं से भयानकरूप से अप्रसन्न हुई.” सोन्या ने २७ जुलाई को लिखा, “ल्योवोच्का ने मुझे बहुत सुबह कामुक प्रेमस्पर्श से जगा दिया—-उसके बाद मैं पॉल बॉर्ग का फ्रेंच उपन्यास Un Coeur de femme लेकर बैठ गयी और साढ़े ग्यारह बजे तक उसे पढ़ती रही. ऎसा मैंने पहले कभी नहीं किया था—.”
और निराशा में वह लिख रहे थे, “मैं शुद्धरूप से नहीं रहता बल्कि अपनी इंद्रियो के वश में रहता हूं. मेरे ईश्वर, मेरी सहायता करें. मैं अपना मार्ग भूल गया हूं. मैं दुखी हूं—-.”
१६ सितम्बर, १८९१ को उन्होंने सभी महत्वपूर्ण रशियन समाचारपत्रों को पत्र भेजा, “मैं उन सभी को १८८१ के पश्चात लिखे अपने सम्पूर्ण कार्य, जो वाल्यूम XII (1886) में प्रकाशित हैं और वाल्यूम XIII (1891 में प्रकाशित हो रहा है), और वह कार्य भी जो अभी तक रशियन में प्रकाशित नहीं है अथवा भविष्य में जो प्रकाशित होगा के रूस और विदेश में बिना किसी भुगतान के प्रकाशन का अधिकार प्रदान करता हूं.”
उन्होंने चाहा कि सोन्या उस पर हस्ताक्षर कर दें जिससे यह स्पष्ट हो जाए कि यह कार्यवाई उनके विरुद्ध निर्दिष्ट नहीं थी. लेकिन संभवतः यह कुछ अधिक ही अपेक्षा थी. जो बात सोन्या को अधिक कष्टप्रद प्रतीत हुई वह ’दि डेथ ऑफ इवान इल्लिच’ को उसमें शामिल करना था, जिसकी वह मुग्धकंठ प्रशंसक थीं और जिसे उन्होंने उन्हें उनके १८८६ के जन्मदिन के अवसर पर सम्पूर्ण कार्य के वाल्यूम XII में शामिल करने के लिए भेंट किया था. “सब कुछ एक ही श्रोत से आ रहा है, मिथ्याभिमान, प्रसिद्धि की भूख—कोई भी इस विषय में मेरे विचार को बदल नहीं सकता.” सोन्या ने क्रिश्चियन जीवन की शाश्वत बात की भर्त्सना की. “उनमें प्रेम की एक बूंद भी नहीं है, न बच्चों के प्रति न मेरे अथवा न ही किसी अन्य के प्रति. है तो केवल अपने प्रति.”
गांव में तोल्स्तोय प्रायः तिमोथी की ओर देखते, जो बालक उनसे एक किसान की पत्नी अक्सीन्या से पैदा हुआ था. वह असभ्य, फौलादी आंखों, बेढंगी नाक और भारी भौंहों वाला एक मुझिक था. अपनी अन्य औरस संतानों की अपेक्षा उन्होंने उसमें अधिक निकट सदृश्यता देखी. वह एस्टेट का कोचवान था. तोल्स्तोय कभी-कभी जवानी की उस टीस को याद कर दुखी हो उठते थे. उस दौर के रिवाज के अनुसार, उनके अपने सभी बच्चों को उनका नाम मिला हुआ था. वे भाग्यशाली थे. तिमोथी उन जैसा भाग्यशाली नहीं था. लेकिन उनके बच्चे उसके प्रति वैरभाव नहीं रखते थे. बल्कि उसके प्रति भाई जैसा व्यवहार करते थे. केवल सोन्या जब तब उस पर क्रुद्ध होती रहती थी.
१८९१ का वसंत और गर्मी में यास्नाया पोल्याना में बड़ी संख्या में मेहमान आए. फेत और उनकी पत्नी ने मई में कुछ दिन वहां व्यतीत किए. कवि फेत के अलावा आने वाले उतने प्रतिष्ठित न थे. उनमें हर तरह के उनके प्रशंसक, प्रोफेसर, छात्र, आदर्शवादी, ओपेरा गायक, पादरी, पश्चातापी क्रांतिकारी, और अनुयाइयों के छद्मवेश में सरकारी जासूस थे. सेंट पीटर्सबर्ग पब्लिक लाइब्रेरी का भीमकाय निदेशक दढ़ियल स्तासोव घर के मालिक की “तोल्स्तोय एक प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति” कहकर अंतहीन प्रशंसा करता रहा, जिन्हें वह, “लियो महान” भी कहता था. उस समय की परम्परा के अनुसार सोन्या ने पिकनिक तथा खेलों का आयोजन किया.
गर्मी के मध्य भयप्रद समाचार यास्नाया पोल्याना पहुंचा. लंबे समय तक पड़े असाधारण सूखे से रूस के कुछ केन्द्रीय और दक्षिणी –पश्चिमी प्रांतों में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी. लेखक लेस्कोव सहित बहुत से लोगों ने आकर तोल्स्तोय से जानना चाहा कि पीड़ित किसानों की सयाहता के लिए क्या किया जा सकता था? इस बारे में उन्होंने क्या कुछ सोचा? तोल्स्तोय परोपकार की इस अपील से खीज उठे, क्योंकि पहले उनके मस्तिष्क में यह विचार आया ही नहीं था और उसके बाद, क्योंकि मुझिक-दार्शनिक स्युताएव के साथ उन्होंने निजी चैरिटी को धनिकों द्वारा अपने अंतःकरण को सुख प्रदान करने के लिए अपनाया जाने वाला तुच्छ उपाय माना था.
तोल्स्तोय ने एक पत्र अपने सहयोगी को लिखा जिसके कुछ अंश समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए और समाचार पत्रों में क्रोध का तूफान उठ खड़ा हुआ. तोल्स्तोय को “हृदयविहीन कोरा सिद्धांतवादी” कहा गया. जब उन्होंने स्वयं यह अनुभव किया कि अकाल अत्यंत बुरी तरह फैल रहा था, १९ सितम्बर, १८९१ को उन्होंने अपनी बेटी तान्या के साथ अपने भाई के यहां पिरोगोवो जाकर नुकसान का जायजा लेने और उपाय खोजने का निर्णय किया. अपने इस धर्मानुराग पर सोन्या की मुस्कान पर उन्होंने कहा, “अनुरोध है कि यह अनुमान मत करो कि ऎसा मैं इसलिए करना चाह रहा हूं कि लोग मेरे इस कार्य की चर्चा करें.”
सोन्या ने उन्हें जाने दिया और नोट किया, “यदि भूख से मर रहे लोगों के लिए उनके हृदय में वास्तव में पीड़ा है, मैं उनके समक्ष कोहनियों के बल उनकी हर सहायता में सहायक रहूंगीं. इससे बड़ा कोई त्याग नहीं. लेकिन मैं ऎसा अनुभव नहीं करती थी और न करती हूं कि वह हृदय से ऎसा करना चाहते हैं.”
उन्होंने पिरोगोवो के आसपास घूमकर उस महाविपदा का जायजा लिया और दुर्भिक्ष पर एक आलेख लिखने की योजना बनायी. अक्टूबर में उन्होंने अपनी पत्नी को मास्को में छोड़ने और लौटकर अपनी बेटी तान्या और माशा को लेकर इस बार रयाजान प्रांत जाने का निर्णय किया जहां उनका मित्र राएव्स्की वीरोचित भाव से आपात्कालीन राहत की व्यवस्था में लगा हुआ था. जब उन्होंने अपनी योजना उन्हें बतायी वह भयभीत हो उठीं. उन्हें उतनी भयानक ठंड में तोल्स्तोय के स्वास्थ्य की चिन्ता हुई जो पेट और आंतों के मरीज थे. उन्हें अपनी दोनों “नन्हीं लड़कियों” यही शब्द लिखे थे सोन्या ने अपनी डायरी में, की भी चिन्ता हुई. “हम अल-सुबह प्रस्थान करने वाले हैं.” तान्या ने २६ अक्टूबर, १८९१ को अपनी डायरी में लिखा.
दल में जोश की कमी के बावजूद पिता, उनकी दोनों पुत्रियां और उनका भतीजा वेरा कुज्मिन्सिकाया रयाज़ान सरकार की रेआवेव्स्की की एस्टेट बेगीचेव्का गए. दो दिनों की ट्रेन और स्लेज की यात्रा के पश्चात जब वे पहुंचे वहां की दुर्दशा देखकर वे हिल उठे. बहुत से किसान भूख से मर गए थे. दूसरे अन्यत्र काम की तलाश में चले गए थे. बचे हुए उदास आंखों वाले हड्डियों का ढांचा मात्र थे. वे इतना कमजोर थे कि चल-फिर सकने में असमर्थ थे. फूले पेट वाले बच्चे चिथड़ों में थे. ठंड से उनके चेहरे नीले पड़ चुके थे. लकड़ी नहीं थी, इसलिए वे छत की छाजन जला रहे थे. उनके कष्टों की इससे अधिक व्याख्या असंभव थी. तोल्स्तोय और उनकी बेटियों ने राएव्स्की के साथ मिलकर काम प्रारंभ किया.
सोन्या द्वारा दिए गए पैसों से तोल्स्तोय लकड़ी खरीदकर लाए, और ब्राउन ब्रेड बनाने की व्यवस्था की. फिर उन्होंने गांवों में निःशुक्ल पाकशालाएं प्रारंभ कीं, “मांएं अपने बच्चों को लातीं. उन्हें खाना खिलातीं, लेकिन स्वयं कुछ नहीं खाती थीं.” तान्या ने २ नवंबर, १८९१ को लिखा.
पाकशालाओं की संख्या तेजी से बढ़ी. तोल्स्तोय ने बेगीचेव्का में राएव्स्की के घर में अपना मुख्यालय स्थापित किया. वहां से वह प्रतिदिन घोड़े पर आसपास के गावों में जाते, जरूरतमंदों की सूची तैयार करते, और सभी को कपड़ों और जलाने की लकड़ी की सही आपूर्ति हो रही है इसका निरीक्षण करते थे. उनकी बेटियां पूर्णरूप से उनकी सहायता कर रही थीं. उनके बेटॊं भी, दूसरे जिलों में राहतकर्मियों का हाथ बंटाने लगे थे. सेर्गेई और इल्या चेर्न में और लियो समारा में थे.
हर दिन जब तोल्स्तोय ठंड से कांपते और थके हुए लौटते अपनी बेटियों और वहां ठहरे स्वयंसेवकों के दल को उस दिन की घटना के विषय में बताते.
दूर बैठी सोन्या पति के उस कार्य से प्रभावित थी. मास्को में उन्हें अपने चार बच्चों –वनिच्का, आंद्रे, माइकल और साशा के लिए रुकना पड़ रहा था. पति के पत्रों और अखबारों में प्रकाशित होने वाले लेखों को पढ़कर उनका गला भर आता था. “पूरे जाड़े मुझे अकेला रहना होगा, यह मेरे लिए अकल्पनीय है.” उन्होंने पति की सहायता कर सकने के विषय में सोचना प्रारंभ किया. डायनिंग रूम में मेज पर बच्चों के साथ बैठी उनके विषय में सोचती रहीं जो चिथड़ों में थे और भूख से मर रहे थे. “लोगों से हमारा कोई संपर्क नहीं” उन्होंने लिखा, “हम उनकी विपत्ति को साझा नहीं करते, हम किसी की सहायता नहीं करते—-. मुझे अपने और अपने बच्चों के लिए दुख है—मैं क्या कर सकती हूं?” जीवन में पहली बार वह तोल्स्तोयवाद के प्रति आकर्षित हुईं. रात वह सो नहीं सकी. उन्होंने जनता से दान की अपील करने का निर्णय किया. उन्होंने जल्दबाजी में एक पत्र लिखा. उसे कुछ मित्रो को दिखाया. उन्हें वह पसंद आया और उसे लेकर वे ’रशियन न्यूज’ के सम्पादक के पास गए.
सोन्या का पत्र रूस के सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ. उसके अनुवाद योरोप और अमेरिका के कुछ समाचार पत्रों में छपे. तुरंत धनवर्षा होने लगी. सोन्या चकित हुई जब एक गरीब स्त्री ने कमरे में आकर उनके हाथ में चांदी का एक रूबल रखा, एक रईस युवती नकाब के नीचे भारी सांस खींचती उनके पास आयी और उसके हाथ में बैंक के रुपयों से भरा लिफाफा था, एक बालक कुछ कोपेक अपनी मुट्ठी में कसे आया. “मुझे नहीं मालूम मेरे विचार पर आप क्या सोचेंगे”, उन्होंने अपने पति को लिखा, “लेकिन मैं यहां खाली बैठी हुई हूं और आपकी कुछ भी सहायता नहीं कर पा रही—-कल से मैं बेहतर अनुभव कर रही हूं. मैंने धन संग्रह किया, रसीदें दीं—लोगों से बातचीत कर रही हूं और इस बात से खुश हूं कि आपके प्रयत्न में सहायता कर पाने में सक्षम हूं, भले ही दूसरे लोगों के धन से.”
दो सप्ताह में उन्होंने तेरह हजार रूबल से अधिक धन संग्रह कर लिया. सबसे पहले चन्दा देने वालों में क्रोन्स्टड के फादर जॉन थे. जल्द ही गाड़ियों में भरकर गेहूं, राई, मटर, और पत्ता गोभी राहत कर्मियों को भेजी गयीं, साथ में कपड़े और दवाएं भी भेजी गईं. पैसों और सामान के संबन्ध में उन्हें बहुत अधिक पत्राचार करना पड़ता, जो बिना किसी कुड़कुड़ाहट के वह करती थीं. बेगीचेव्का में तोल्स्तोय, हक्का-बक्का थे. तो क्या सोन्या “पुनर्जन्म” पा रही थी, जिसकी कल्पना उन्होंने दस वर्ष पहले की थी. उस अत्यंत ठंडे कमरे में, जिसमें न कालीन था, न पर्दे थे, एक जर्जर मेज थी और एक पुराना लोहे का पलंग था, उन्होंने उस पुनर्मिलन के लिए ईशर को धन्यवाद दिया. उन्होंने १४ नवंबर को पत्नी को लिखा, “मैं जानता हूं कि तुम यह कल्पना नहीं कर सकती कि कितने प्रेमपूर्णढंग से हम तुम्हारे विषय में सोचते और बातें करते हैं.”
उन्होंने मास्को लौटने का निर्णय किया जब उनके मित्र राएव्स्की ने ठंड लग जाने से बिस्तर पकड़ लिया था. दो दिन तक तीव्र ज्वर से ग्रस्त रहने के बाद इन्फ्ल्यूंजा से उनकी मृत्यु हो गयी थी. इस क्षति से तोल्स्तोय को बहुत आघात लगा था. बीते माह उनके बचपन के साथी द्याकोव भी नहीं रहे थे.
राएव्स्की की मृत्यु से उस राहत कार्य में वह अकेले पड़ गए थे. एक माह में उन्होंने तीस भोजशालाएं स्थापित की थीं. लेकिन वह जानते थे कि वे पर्याप्त न थीं. कुछ लोग व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के साथ कहते कि वह ईसा के “तेरहवें पट्टशिष्य थे.” वह स्वयं कहते कि उनकी वर्तमान गतिविधियां उनके सिद्धांत के विरुद्ध थीं. क्योंकि उसमें सोन्या द्वारा जुटाया और दूसरों द्वारा दिया धन खर्च हो रहा था. सोन्या के निवेदन पर वह कुछ दिनों के लिए आराम करने हेतु नवंबर में मास्को लौटे. “मास्को गया, “उन्होंने लिखा, “सोन्या के साथ का सुख. पहले इतना अधिक आनंद नहीं मिला था. आपको धन्यवाद पिता. मैंने आपसे इसीके लिए प्रार्थना की थी. सब कुछ— सब कुछ जो मैंने मांगा था, मुझे मिला. आपको मेरा धन्यवाद.”
२३ जनवरी, १८९२ को सोन्या भी उनके उस अभियान में सम्मिलित हो गयी. वह एक पर्दारहित कमरे में शिफ्ट हुईं और वहां की गंदगी और अव्यवस्था ने उसे विस्मित किया. कुछ ही समय में राएव्स्की के पूरे घर को उन्होंने व्यवस्थित किया . उसके बाद वह भोजशालाओं को देखने गयीं. “जब मैं पहुंची” उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, “झोपड़ी में दस लोग थे. लेकिन लोग आ रहे थे और शीघ्र ही वहां अड़तालीस लोग हो गए थे. सभी चिथड़ों में थे. उनके चेहरे दुबले और दुखी थे. वे आते, क्रास बनाते और मेज पर लंबी बेंचों पर बैठ जाते जिन्हें एक छोर से दूसरे छोर तक रखा गया था. महिला ने प्रत्येक को पूरी ट्रे टुकड़ों में कटी राई ब्रेड दी, फिर पत्ता गोभी के सूप से भरी एक बड़ी परात मेज पर लाकर रखी. उसमें मीट नहीं था बल्कि शण के तेल का हल्का स्वाद था—सूप के बाद आलू मैश अथवा मटर काशा, कच्चा चुकन्दर अथवा जौ की दलिया दी. दो व्यजंन दोपहर और दो रात में—दूसरा भोजशाला मैंने देखा. वहां पीली चमड़ी वाली दो किसान युवतियों ने इतने दुखी भाव से मुझे देखा कि मैं लगभग फूटकर रो पड़ी थी.”
जैसे-जैसे तोल्स्तोय का अभियान तेज हो रहा था सरकार की असहजता बढ़ती जा रही थी. अपने आलेखों के कारण वह अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति बन चुके थे. यहां तक कि अपने देश की असफलता की भर्त्सना करने और युद्धस्तर पर दुर्भिक्ष के लिए कार्य करने के कारण वह मानो स्वयं ही एक सरकार थे. योरोप के चारों दिशाओं से सामग्री पहुंच रही थी. अमेरिका से सात नावों में आनाज पहुंचा. मिनेसोटा के मिल मालिकों ने मुझिकों के लिए मुफ्त आटा भेजने का वायदा किया. परेशान करने वाली रपटों को रोकने के लिए सरकार ने एक विज्ञप्ति जारी की, “रूस में दुर्भिक्ष नहीं है. कुछ क्षेत्रों में फसलें खराब हुई हैं. यही सच है.” लेकिन यह मंगल भाषण तोल्स्तोय के आक्षेपों के समक्ष टिक नहीं सका. फिर प्रतिक्रियावादी समाचार पत्रों ने उनके विरुद्ध घृणाजनक मिथ्या अभियान शुरू किया. पोब्येदोनोस्त्सेव ने सम्राट को लेखक पर किसान विद्रोह भड़काने का आरोप लगाती एक रपट सौंपी.
बेगेचेव्का से लौटने के पश्चात सोन्या को ज्ञात हुआ कि उनकी अनुपस्थिति में कुछ धमकियां मिली थीं. नवंबर १८९१ में तोल्स्तोय ने फिलासोफिकल एण्ड साइकोलॉजिकल क्वेश्चन्स में प्रकाशनार्थ एक आलेख, “हेल्प फ़ॉर दि हंग्री” शीर्षक से लिखा. “लोग भूख से मर रहे हैं क्योंकि हम अधिक खाते हैं. सदैव यह सत्य रहा है—-सुविधाप्राप्त लोगों को उनके पास इस भाव के साथ जाना चाहिए कि वे अपराधी हैं.” मसीही उत्प्रेरणा से प्रभावित इस आलेख को सेंसर ने इतना विरूपित किया कि प्रधान सम्पादक को कहना पड़ा कि वह प्र्काशन योग्य नहीं रहा, लेकिन तोल्स्तोय के अनुरोध पर उसने मूल आलेख को फ्रेंच, जर्मन और इंग्लिश अनुवादकों के पास भेज दिया. १४ जनवरी (२६) १८९२ को लंदन टेलीग्राफ ने पूरा आलेख प्रकाशित किया. उसके पश्चात पोब्येदोनोस्त्सेव द्वारा संरक्षित और निदेशित चरम प्रतिक्रियावादी समाचार पत्र ने तोल्स्तोय के संदेश का भ्रष्ट रशियन अनुवाद प्रकाशित किया.
गृहमंत्री दुर्नोवो ने मामले की जांच-पड़ताल की और अलेक्जेंडर तृतीय को रिपोर्ट सौंपी. महल में यह अफवाह थी कि जार तोल्स्तोय के व्यवहार से अत्यधिक क्षुब्ध थे. दुखी सोन्या ने ६ फरवरी १८९२ को तोल्स्तोय को लिखा, “अपनी उत्तेजना से आप हम सबकी मौत का कारण बनेंगे. कहां है आपका ’पावन’ और ’अप्रतिरोध’ प्रेम. आपके नौ बच्चे हैं. उनका और मेरा जीवन तबाह करने का आपको कोई अधिकार नहीं है.”
अपने स्थायी साहस से उन्होंने फिर संघर्ष किया. सेंट पीटर्सबर्ग के अपने सभी संपर्कों को सूचित किया. उन्होंने ग्रैंड ड्यूक सेर्गेई से मिलना चाहा, जो मास्को के गवर्नर थे. उन्होंने सलाह दी कि ऑफिशियल हेराल्ड में तोल्स्तोय इस बात का पत्र प्रकाशित करें कि दुर्भिक्ष पर प्रकाशित विकृत आलेख उनका नहीं था. भुनभुनाते हुए तोल्स्तोय लिखने को तैयार हुए लेकिन ऑफिशियल हेराल्ड के निदेशक ने उसे प्रकाशित करने से इंकार कर दिया. सोन्या ने पत्र की शताधिक प्रतियां लिथोग्राफ मशीन से तैयार करवायीं और उन्हें रूस और विदेशों में बटवाया.
तोल्स्तोय ने २८ फरवरी १८९२ को पत्नी को पत्र लिखा, “ईश्वर के लिए, मेरी प्यारी इस मामले में अपना सिर मत खपाओ—.” इस दौरान चर्च और राज्य के उन पर हमले जारी थे. मुखबिर उनकी हर गतिविधि सूचित कर रहे थे. उनमें से एक ने रिपोर्ट किया, “वह यहां अपने सचिव और विश्वस्त एजेंट के साथ पहुंचे—किसीने भी मीट नहीं खाया, और जब वे मेज पर बैठे उन्होंने प्रार्थना नहीं की. इसने किसानों को सोचने के लिए विवश किया कि तोल्स्तोय शैतान के लिए काम कर रहे थे न कि ईश्वर के लिए—-.” अपने वरिष्ठों की आज्ञा पालन करते हुए कुछ धर्मगुरुओं ने विपत्ति क्षेत्र में यही संदेश अपने यजमानों को पहुंचाया और दुखद नारकीय स्थिति में भी मुझिकों को राहत से इंकार करने का आदेश दिया. एक दिन एक किसान स्त्री तोल्स्तोय के पैरों पर गिरकर चिरौरी करने लगी कि वह उसका बच्चा उसे वापस लौटा दें, जो एक भोजशाला में भोजन कर रहा था.
मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग में लोग कह रहे थे कि “तेरहवां धर्म प्रचारक” जल्दी ही अपनी जागीर में कैद कर लिया जाएगा अथवा विदेश भेज दिया जाएगा अथवा अवज्ञाकारी पुरोहितों के लिए सुरक्षित सुज़डल (Suzdal) मठ में कैद कर दिया जाएगा.
खतरा इतना निकट देख धर्मपरायण अलेक्जांद्रा तोल्स्तोय ने अपने भतीजे के साथ सभी मतभेद भूल उन्हें बिना सूचित किए, उनके विषय में जार से निवेदन करने का निर्णय किया. अलेक्जेंडर तृतीय से समय मिलने पर कांपते स्वर में उन्होंने कहा:
“वे महान प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति को मठ में कैद किए जाने के लिए आपसे कहने को अपने को तैयार कर रहे हैं.”
“तोल्स्तोय?” जार ने पूछा.
“जी महामहिम.”
“उन्होंने मुझ पर हमले की योजना बनायी थी?” मुस्कराते हुए मंद स्वर में सम्राट बोले.
अलेक्जांद्रा आश्वस्त होकर लौटीं. कुछ देर बाद ही अपने गृहमंत्री के मिलने आने पर जार ने कहा, “मैं आपको कहूंगा कि तोल्स्तोय को न छुएं. उन्हें सताने और आमजन को उत्तेजित करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है.
तूफान थम गया था.
दूसरे वर्ष वर्षा न होने के कारण उन्होंने आधे पेट खाए किसानों के लिए अपना कार्य जारी रखा. उनका मस्तिष्क वहां शांत था, जैसाकि वर्षों पहले सेवास्तोपोल में मृत्यु को सन्निकट पाकर भी वह अपने विषय में सोचने से बचते थे. उन्हें इस बात की भी प्रसन्नता थी कि इस धर्मयुद्ध में उन्हें सोन्या का सहयोग मिल रहा था. भोजशालाओं के दौरों के बीच वह “दि किंगडम ऑफ गॉड इज विदिन यू’ लिख रहे थे. उन्होंने चेर्त्कोव को लिखा कि “किसी भी पुस्तक ने उन्हें उतना परेशान नहीं किया था.”
तीन वर्ष के कार्य के पश्चात अप्रैल १८९३ में पुस्तक समाप्त हुई. सेंसर द्वारा रोके जाने पर टाइप की हुई प्रतियां विदेश पहुंची और उसका जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैण्ड और अमेरिका में अनुवाद हुआ. इस निबंध में तोल्स्तोय ने दावा किया कि “ईश्वर का साम्राज्य” हर व्यक्ति की पहुंच में है और उसमें प्रवेश के लिए उसे अपनी पाशविक प्रकृति को अपने अधिकार में रखना होगा.
१८९० में उन्होंने यहूदियों के उत्पीड़न का विरोध किया था. १८९३ में उन्होंने सम्राट अलेक्जेंडर तृतीय को प्रिन्स खिल्कोव के विषय में लिखा. प्रिंस उनका अनुयायी था और उसे काकेशस निर्वासित किया गया था. उसे अपने बच्चों के अभिरक्षण का कानूनन अधिकार नहीं मिल रहा था. उन्होंने २ जनवरी, १८९४ को वह पत्र सम्राट को भेजा.
जैसे ही फसल अच्छी हुई और तोल्स्तोय कार्य समाप्त कर घर और अपनी प्रकृति में लौटे पति-पत्नी के बीच संघर्ष प्रारंभ हो गया. २२ दिसम्बर, १८९३ को उन्होंने लिखा, “मैं अंदर ही अंदर उत्पीड़ित और बीमार अनुभव कर रहा हूं. मैं स्वयं को रोक नहीं सकता. कोई बड़ा कार्य करने की मेरी इच्छा है. अपना शेष जीवन ईश्वर को समर्पित कर देना चाहता हूं. लेकिन वह मुझे नहीं चाहता. जो चयन मैंने किया वह मुझे उस दिशा में प्रोत्साहित नहीं करना चाहता. और यह मुझे चिड़चिड़ा बनाता है. ओह! यह विलासिता! मेरी पुस्तकों से यह व्यवसाय. यह नैतिक दलदल! यह निरर्थक अशांति—-.”
और कुछ दिन पश्चात, २४ जनवरी, १८९४ ,”ईश्वर, मेरी सहायता करें. मुझे कष्ट सहने की शिक्षा दें—.” मास्को से निकलकर यास्नाया पोल्याना में कुछ दिन व्यतीत करने से वह अत्यंत प्रसन्न थे क्योंकि वहां उनकी नज़रों के सामने किसान थे. मार्च, १८९४ में वह अपनी बेटी माशा के साथ अपने अनुयायी चेर्त्कोव से मिलने गए. पत्नी सोन्या को लिखने से वह अपने को रोक नहीं पाए, “यहां आकर मैं बहुत प्रसन्न हूं—-आध्यात्मिक रूप से हम एक दूसरे के बहुत निकट हैं. हमारी बहुत-सी रुचियां एक-सी हैं और हम एक-दूसरे से यदा-कदा ही मिलते हैं, इसलिए हम दोनों ही बहुत प्रसन्न हैं.”
सोन्या को उनके इस घोषणा ने अत्यधिक आहत किया. वह अपने प्रति ल्योवोच्का के प्रेम में चेर्त्कोव को वास्तविक प्रतिद्वन्द्वी मानती थीं. उस महान लेखक के दर्शन के लिए काम करने का ढोंग करने वाले उस धूर्त अनैतिक व्यक्ति ने वास्तव में उन्हें बहकाया, उन्हें अपने परिवार से काट दिया और उनके कार्य को स्वयं चुरा लिया. जब तक ल्योवोच्का उसके प्रभाव में हैं कोई ’युद्ध और शांति’ अथवा ’अन्ना कारेनिना” जैसा कार्य संभव नहीं. यहां तक कि उसने माशा और तान्या को लिखना प्रारंभ किया है. वह उन्हें उनकी मां से अलग करने के कार्य को अंजाम दे रहा है. अगस्त १८९३ में उन्हें ज्ञात हुआ कि तोल्स्तोय की पाण्डुलिपि, जिसे वह रम्यान्त्सेव म्यूजियम को सौंपना चाहती थीं, चेर्त्कोव द्वारा अपने घर में सुरक्षित रखने के बहाने ले जायी गयी थी, उसके बाद उसे सेंट पीटर्गबर्ग के उसके मित्र कर्नल त्रेपोव के यहां पहुंचा दिया गया था.* ल्योवोच्का को जब यह सूचित किया गया, उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की. यहां तक कि अगली गर्मी में उन्होंने चेर्त्कोव और उसकी पत्नी को आमंत्रित करना चाहा. सोन्या ने क्रुद्ध हो इंकार का दिया, जबकि टुकर-टुकर देखते हुए तोल्स्तोय ने अपने उस महत्वपूर्ण मित्र को लिखा—-
“उसे भय है कि मेरी जिन चीजों से वह घृणा करती है आप वह व्यक्ति हैं जो उन चीजों को मेरे द्वारा बचाए रखने में मेरी सहायता करते हैं. इसलिए वह आपसे भयभीत है.” जबकि कुछ दिन पहले ही २१ अप्रैल, १८९४ को उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, “मैं सोन्या के साथ प्रसन्न हूं.”
दो सप्ताह बाद अपने चित्रकार मित्र गे की मृत्यु से वह अत्यधिक दुखी हो उठे. “वह प्रसन्नचित, प्रतिभासम्पन्न और विकासोन्मुख बालक था,” उन्होंने कहा. गे की अंतिम पेंटिंग जार के आदेश पर सेंट पीटर्सबर्ग के कमरे से हटा दी गयी थी.
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*त्रेपोव बाद में सेंट पीटर्सबर्ग का गवर्नर जनरल बना था. उस दौरान वह उदारवादियों के प्रति अपेक्षाकृत उदार था.
गे के कार्य को धर्म के लिए अपमान मानने वाला व्यक्ति भी लंबे समय तक जीवित नहीं रहा था. २० अक्टूबर, १८९४ को जार, अलेक्जेंडर तृतीय वृक्कशोथ (Nephritis) और उससे जुड़ी समस्याओं से मर गया था. दिवंगत
सम्राट का बड़ा पुत्र निकोलस द्वितीय उस समय छब्बीस वर्ष का था. वह जर्मन राजकुमारी एलिक्स ऑफ हेस के साथ शादी करने ही वाला था, जिसका नाम बदलकर अलेक्जांद्रा फ्योदोरोव्ना होना था. वह मृदुल,शांत स्वभाववाला और संवेदनशील युवक था. माना जा रहा था कि वह बुद्धिजीवीवर्ग के उदार विचारों का समर्थन करेगा और देश के लिए एक नया संविधान देगा. लेकिन वास्तव में निकोलस द्वितीय एक दुर्बल व्यक्ति था जो अपने पिता के प्रति अंध-सम्मान से परिपूर्ण था और धार्मिक मामलों के प्रतिक्रियावादी मंत्री से प्रभावित था जो उसका ट्यूटर रहा था. जब वह १७ जनवरी, १८९५ को जेम्स्त्वोस के प्रतिनिधियों से मिला, उसने अपने को पोब्येदोनोस्तेव का आज्ञाकारी शिष्य जैसा प्रदर्शित किया. उसके भाषण के बाद तोल्स्तोय ने अपनी डायरी में लिखा, “महत्वपूर्ण घटना. जार का अवमानक भाषण—मुझे भय है कि मेरे लिए इसके कुछ परिणाम हो सकते हैं.” लेकिन अपने सिद्धांत के प्रति सत्य-प्रतिज्ञ उन्होंने सेंसर समाप्त करने के अपने मित्र की अपील पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया.
अपने देश के भविष्य के लिए चिन्ता करते हुए वह अपने वैवाहिक जीवन के बारे में भी सोच रहे थे. कुछ माह के विराम के बाद, चेर्त्कोव के प्रति सोन्या की ईर्ष्या पुनः भड़क उठी थी. अपनी हर समस्या का कारण वह उसे मानती थी. हाल में ही वह पचास वर्ष की हुई थी और उनकी स्थिति बदतर होती जा रही थी. उन्हें ऎसा प्रतीत होता कि संपूर्ण संसार उनके विरोध और उन्हें विफल कर देने का षडयंत्र कर रहा था. उनके बच्चे उन्हें कुछ देने के बजाए अशांति देते थे. लियो की तंत्रिका की स्थिति खराब थी. उन्हें, “विद्युत उपचार” की आवश्यकता थी. वनिच्का, दुर्बल, सुन्दर वनिच्का इतना कोमल था कि उसके हर सूं सूं पर उन्हें बुरा भाव सताने लगता था. सेर्गेई दोषपूर्ण जीवन जी रहा था. इल्या ने गलत विवाह किया था और अत्यधिक धन खर्च कर रहा था. तान्या और माशा पूरी तरह अपने पिता के विचारों के अंधकार में जी रही थीं. उन्होंने कभी परिवार बनाने के विषय में सोचा ही नहीं था.
दिन प्रति-दिन वह अपनी डायरी को शिकायतों से भरती रहीं. ल्योवोच्का उन्हें गुस्सा दिलाते रहते. “शाकाहारी भोजन का अर्थ दो प्रकार के भोजन तैयार करना, जिससे खर्च भी बढ़ता है और भोजन तैयार करने में समय भी अतिरिक्त खर्च होता है.” उन्होंने लिखा, “सब कुछ वह मुझ पर थोपते हैं, बिना किसी अपवाद के. बच्चे की जिम्मेदारी, सम्पत्ति प्रबन्धन, लोगों के साथ संबन्ध, व्यवसाय, घर और प्रकाशन. —-वह टहलने, घोड़े की सवारी करने, थोड़ा लिखने, जहां मन करता है चले जाने के अलावा परिवार के लिए कुछ भी नहीं करते और हर चीज का लाभ उठाते हैं.—-.”
जब भी वह उनकी आलोचना सुनती तुरंत अपनी डायरी में दर्ज करती, “आज चेचेरिन ने कहा कि लियो निकोलाएविच में दो व्यक्ति हैं, एक प्रतिभाशाली लेखक और दूसरा साधारण विचारक जो लोगों को विरोधाभासी और अंतर्विरोधी बातों से प्रभावित करता है.”
जनवरी, १८९५ में ल्योवोच्का ने एक कहानी ’मास्टर एण्ड मैन’ लिखी. आपसी झगड़े के पश्चात सामान्य होने पर सोन्या ने कहानी की नकल और उसके प्रकाशन की अनुमति चाही. एक बार फिर तोल्स्तोय ने आपत्ति की, हठधर्मिता प्रकट की, बुरी तरह झल्लाए, विवेकहीन व्यवहार किया, और एक बार पुनः वह सड़क पर निकल गयी. लेकिन इस बार उन्होंने गर्म कोट और हैट और अपने बूटों पर ऊपरी जूते पहन लिए थे. पहले की ही भांति उनकी आत्महत्या का प्रयास पति की पुस्तक से प्रभावित था. वह अन्ना कारेनिना की भांति स्वयं को ट्रेन के सामने फेंक देना चाहती थीं.” ’मास्टर एण्ड मैन’ पढ़ने के पश्चात अनाश्रयता की सनक उन्हें बेचैन कर रही थी. “कहानी में, मुझे वासिल अंद्रेएविच की मौत पसंद है.” उन्होंने लिखा, और “मैं अपना अंत वैसा ही चाहती हूं.” इस प्रकार बर्फ में लड़खड़ाती हुई वह स्वैरोहिल की ओर बढ़ती रहीं, जहां के विषय में वह आश्वस्त थीं कि कोई भी उन्हें खोजने नहीं पहुंचेगा. लेकिन माशा ने उन्हें खोज लिया था और उन्हें बाड़े में वापस लौटा लायी थी.
दो दिन बाद उनकी विषादग्रस्तता लौट आयी थी. उन्होंने सड़क पर एक स्लेज को आवाज देकर रोका और उसे कुर्क स्टेशन चलने के लिए कहा. सेर्गेई और माशा ने उनका पीछा किया. जब वह ड्राइवर को भुगतान कर रहीं थीं उन्होंने उन दोनों को आते देखा. कोई उपाय नहीं था. उन्हें लौटना पड़ा था. उन्हें ठंड लग गयी और बच्चों के दबाव में उन्हें बिस्तर पर जाना पड़ा. डाक्टर बुलाया गया. ल्योवोच्का, लगातार उनके घर से जाने के प्रयासों से भयभीत कुछ अधिक ही विचलित हो उठे थे. वह उस कमरे में गए जहां वह आराम कर रही थीं और उनसे क्षमा मांगी.
वनिच्का जो पिछले माह अस्वस्थ था, फिर अस्वस्थ हो गया था. उसका गला खराब हो गया और साथ ही डायरिया भी हुआ. डाक्टर फिलातोव ने स्कारलेट ज्वर बताया. सोन्या को हर समय यह भय सताता रहता कि वह वनिच्का को खो देंगी. ऎसा सोचने वाली वही नहीं थीं. रूसी वैज्ञानिक मेक्नीकोव ने लिखा, “पहली बार जब मैंने उस बालक को देखा, मैंने यह सोचा कि या तो इसकी असामयिक मृत्यु होगी या यह अपने पिता से भी अधिक प्रतिभाशाली होगा.” और तोल्स्तोय ने उस सात वर्षीय नन्हें, कोमल, दूधिया गोरे बालक के विषय में सोन्या के यह कहने पर कि वह घर, वृक्ष और यास्नाया पोल्यान की जमीन एक दिन उसकी होगी कहा था, “मैम तुम्हें यह नहीं कहना चाहिए. सब कुछ सभी का होगा.”
वनिच्का का ज्वर सुबह प्रारंभ हुआ और शाम तक तीव्र हो उठा और वह प्रलाप करने लगा. “यह कुछ नहीं माम” वह बुदबुदाया, “यह जल्दी ही ठीक हो जाएगा. रोओ नहीं नैन्नी (आया)” . छत्तीस घण्टे बाद उसकी मृत्यु हो गयी थी.
२३ फरवरी, १८९५ को सोन्या ने अपनी डायरी में लिखा, “मेरा प्यारा नन्हा वनिच्का रात ग्यारह बजे नहीं रहा. मेरे ईश्वर! मैं अभी भी जीवित हूं.” उसके दो वर्षों तक उन्होंने अपनी डायरी को हाथ नहीं लगाया.
धर्मक्रिया के दौरान पूरे समय वह वनिच्का के ठंडे से सिर को अपने हाथों में थामे रही थीं और अपने चुम्बनों से उसे गर्म रखने का प्रयत्न करती रही थीं. ताबूत में रखने के समय वनिच्का को उनसे अलग किया गया. उन्होंने कठोर हकीकत से संघर्ष किया. घर लौटकर तोल्स्तोय ने लिखा, “और मैं आशा कर रहा था कि वनिच्का मेरे बाद मेरा कार्य संभालेगा.”
अगले दिन उन्होंने अपनी पीड़ा को हल्का करने का प्रयास किया. जबकि सोन्या बालक के कपड़ों और उसके खिलौनों को प्यार करती और दरवाजे के पीछे उसकी छाया खोजती रही. तोल्स्तोय ने अपनी डायरी में लिखा, “हमने वनिच्का को दफना दिया. भयानक—नहीं. भयानक– नहीं. एक महान आध्यात्मिक घटना. जन्मदाता, मैं आपका बहुत आभारी हूं.” कुछ दिन बाद, “वनिच्का की मृत्यु मेरे लिए निकोलस की मृत्यु जैसी है.”*
उन्होंने स्वयं को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया कि वनिच्का की मृत्यु व्यर्थ नहीं थी, कि ईश्वर ने उसे इस संदेश के साथ दुनिया में भेजा था कि वह “पथ-प्रदर्शक अबाबील था.” “मैंने सोन्या को कभी इतना प्यार नहीं किया जितना अब किया. “उन्होंने अलेक्जांद्रा को लिखा.
लेकिन सोन्या स्नेह की इस तरंग में दुख के कारण संज्ञाशून्य सी ही रही. वह चर्च गयी, पादरी से प्रश्न किए, विचित्र सपने देखे और जीवन को निरर्थक पाया. एक बार वह अर्खागेंल्स्की कैथेड्रल गयी. नौ घण्टे तक वहां प्रार्थना की और वर्षा में भीगती हुई घर लौटी. उदासीनता की इस स्थिति से उबरने के लिए
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* पैंतीस वर्ष पहले Hyeres (ह्यरेस,फ्रांस) में उनके भाई की मृत्यु हुई थी.
तोल्स्तोय ने उन्हें जेल देखने के लिए भेजा. वह उन्हें राजनैतिक कैदियों की दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों से परिचित करवाना चाहते थे. सब व्यर्थ. “नया भावबोध, जो हम दोनों को निकट ले आया, आश्चर्यजनक है.” उन्होंने सोन्या से कहा. यह सूर्यास्त जैसा है. समय समय पर हमारे झगड़ों के बादल, कुछ तुम्हारी ओर से अति और कुछ मेरी ओर से, उसकी किरणॊं पर परदा डाल देते थे. लेकिन मुझे अभी भी उम्मीद है कि वे रात से पहले ही दूर उड़ जाएगें और सूर्यास्त चमकदार होगा.” उनकी बातें सुन सोन्या अपने खुशी के आंसू छुपा लेती, लेकिन अगले ही क्षण वह अपने अस्वस्थ बच्चे की याद में डूब जातीं. धीरे-धीरे सोन्या सामान्य होने लगी तो उन्होंने उन्हें छोड़ दिया. १२ मार्च, १८९५ को वनिच्का की मृत्यु के दो सप्ताह पश्चात उन्होंने लिखा, “मैं कुछ साहित्यिक चीजें लिखने का विचार कर रहा हूं.” कोनी की कहानी (बाद में पुनरुत्थान) सहित एक दर्जन योजनाओं को उन्होंने सूचीबद्ध किया.
’मास्टर एण्ड मैन’ की अप्रत्याशित सफलता ने उन्हें अचंभित और परेशान किया, लेकिन उसने उन्हें पुनः पेन उठाने के लिए प्रोत्साहित भी किया. इंटरमीडिएटरी की पन्द्रह हजार प्रतियां चार दिनों में बिक गयी थीं. और संपूर्ण कार्य का वाल्यूम XIV , जिसमें कहानी थी, दस हजार बिका था. प्रशंसा की उन पर वर्षा हो रही थी. “मैं आपको क्या कह सकता हूं?” स्त्राखोव ने उन्हें लिखा, “ठंड ने मेरी खाल जकड़ ली है—मृत्यु का रहस्य, यह है आपके आसपास अप्रतिम चीज—.” और तोल्स्तोय ने लिखा, “चूंकि मैंने आलोचना नहीं सुनी ’मास्टर एण्ड मैन’ के विषय में केवल प्रशंसा ही सुना. मुझे धर्मोपदेशक का किस्सा याद आ गया जिसने अपने एक वाक्य के अंत में करतलध्वनि के शोर से अचंभित हो अचानक अपने को रोककर पूछा था, “क्या मैंने कुछ गलत कहा? मेरी कहानी अच्छी नहीं है. मुझे अज्ञातनाम से उसकी समीक्षा लिखनी होगी.” युवा लेखक, इवान बूनिन से, जो उसी दौरान उनसे मिलने आया था, उन्होंने अपने काम के प्रति विरुचि प्रकट की थी.
“यह घृणित है. यह इतनी खराब है कि सड़क पर अपने को दिखाते हुए मैं लज्जित अनुभव करता हूं.”
फिर वनिच्का की हाल में हुई मृत्यु की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा:
“हां, वह आनंदप्रद, असाधारण बालक था. लेकिन इसका क्या मतलब कि हम कहें कि वह मर गया. मृत्यु नहीं होती. वह मरा नहीं है, क्योंकि हम उसे प्यार करते हैं, क्योंकि वह हमें स्फूर्ति देता है.”
बूनिन बहुत प्रभावित हुआ. संक्षिप्त बातचीत के बाद दोनों व्यक्ति रात में बाहर घूमने गए. तीखी हवा उनके चेहरों पर डंक-सी लग रही थी और लैंपों की लौ फड़फड़ा रही थी. वे बर्फ से ढके ’वर्जिन के मैदान ’ के पार गए. बूनिन कठिनाई से वृद्ध व्यक्ति के साथ कदम मिलाकर चल पा रहा था.
कुछ दिन पश्चात उन्हें ज्ञात हुआ कि उनका मित्र लेस्कोव जिनकी मृत्यु उसी माह हुई थी जिस माह वनिच्का की हुई थी, एक साहित्यिक वसीयत छोड़ गए थे. उन्होंने निर्णय किया कि वह भी वैसी ही वसीयत तैयार करेंगें. २७ मार्च, १८९५ के इस दस्तावेज में उन्होंने लिखा कि उन्हें एक सस्ते ताबूत में बिना फूल अथवा माला और भाषण अथवा समाचार पत्रों में घोषणा के दफनाया जाए. अपने अप्रकाशित कागजों को उन्होंने सोन्या और चेर्त्कोव के लिए छोड़ दिया. दोनों ही गंभीरतापूर्वक उनके बहुत साधारण और वर्गीकृत कार्यों के लिए समर्पित थे. उनकी बेटियों तान्या और माशा की उन कामों में कोई भागीदारी नहीं थी. यद्यपि उनके बेटे उन्हें प्रेम करते थे, लेकिन उनके विचारों से वे दूर थे. इसके विपरीत उनके विश्वसनीय स्त्राखोव आवश्यकता पड़ने पर सोन्या और चेर्त्कोव की सहायता करते थे. तोल्स्तोय ने यह भी कहा कि उनकी निजी डायरियां, जो उन्होंने शादी से पूर्व लिखी थीं, उनके उन कुछ अंशों को जो सुरक्षित रखने के योग्य हों, को छोड़कर नष्ट कर दी जाएं. और बाद की नोटबुकों में दर्ज वह सब कुछ निकाल दिया जाए जो उनकी शर्मिन्दगी का कारण बने. “चेर्त्कोव ने मुझसे वायदा किया है कि उनके जीवित रहते ही वह यह सब करेगा.” उन्होंने लिखा, “—मुझे पक्का विश्वास है कि बिना हिचक वह अपना कर्तव्य निभाते हुए यह कार्य करेगा.”
उन्होंने उस पर पुनर्चिवार किया कि दस्तावेज तैयार करते समय उन्होंने यह कैसे नहीं सोचा कि यह कार्य वह एक बाहरी व्यक्ति को सौंप रहे थे. क्या प्रकाशित होना है और क्या नहीं यह निर्णय उन्हें करना था. जो बातें उन्होंने अपने विवाह के संबन्ध में लिखी थीं उनके बारे में सोचकर सोन्या को कितना दुख होने वाला था. पुनर्विचार के बाद उन्होंने घोषणा की, “नहीं, मेरी निजी डायरियां अपने मूलरूप में ही रहें. यह तो समझा जा सकेगा कि अपनी युवावस्था के अधःपतन और बेहियाइयों के बावजूद ईश्वर ने मेरा परित्याग नहीं किया.” उन्होंने अपने उत्तराधिकारियों से यह भी आग्रह किया कि वे उनके प्रारंभिक कार्य पर अपना अधिकार छोड़ दें, लेकिन इसके लिए उन्होंने कोई सुनिश्चित व्यवस्था नहीं दी.
वनिच्का की मृत्यु के एक माह पश्चात तोल्स्तोय ने पहली बाइसिकल खरीदी. उस समय वह सड़सठ वर्ष के थे. बिल्कुल नई बाइसिकल उन्हें मास्को की पैर गाड़ी प्रेमी सोसाइटी “मास्को सोसाइटी ऑफ वेलोसिपेड लवर्स” ने भेंट की थी. मुफ्त में एक प्रशिक्षक, कैसे संतुलन साधना है, सिखाने आया था. २८ मार्च, १८९५ को पति को बाग के रास्ते पर अनाड़ियों की तरह पैडल मारते देखकर सोन्या की क्या प्रतिक्रिया थी? गर्मी के पश्चात उन्हें
नए खेल का आनंद उठाते देखकर वह संभवतः आहत थीं. उसी रात तोल्स्तोय ने अपनी डायरी में तीन धार्मिक चिन्ह – “I L L” (If I live) दर्ज किए—-इसके अतिरिक्त कुछ नहीं लिखा.
नोट – हेनरी त्रोयत की लिखी तोलस्तोय की जीवनी ’तोलस्तोय’ का वरिष्ठ कथाकार रूपसिंह चन्देल द्वारा किया गया एक अंश. यह जीवनी ’संवाद प्रकाशन’ मेरठ से 2022 में 656 में पृष्ठों में प्रकाशित हुई थी, जिसका पेपर बैक मूल्य 600/- है. जीवनी अमेजॉन में उपलब्ध है.
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रूपसिंह चन्देल
फ्लैट नं.705, टॉवर-8,
विपुल गार्डेन्स, धारूहेड़ा-123106
हरियाणा
मो. नं.8059948233
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