आख़िरी मादा

-नरेंद्र प्रताप सिंह

          उसने फुसफुसाकर कहा – उन्होंने रेशमी को पकड़ लिया है और अपने साथ ले गए ।देखने से ही उसके चेहरे पर घबराहट और भय का ऐसा लेप था कि समोध भी उलझन में पड़ गया । उसने पूछा – वह गई ही क्यों उनके साथ ? और लोग भी तो रहे होंगे मोहल्ले में या उसके घर में ,किसी ने रोका नहीं ?कुल्ले ने नाराज़ लहजे में कहा – वे पाँच छह थे ,बन्दूकों से लैस ।धड़धड़ाते हुए आये और दरवाज़ा जबरदस्ती  खुलवा लिया । कहते हुए उसके चेहरे पर ग़ुस्सा भी था और अजीब सा डर भी -उसकी माँ  से उन्होंने कड़कती आवाज़ में रेशमी के बारे में पूछा,वह कुछ कह पाती कि वे घर के अंदर दाखिल हो चुके थे ।उन्होंने रेशमी को पकड़ा और खींचते हुए बाहर ले आए । उसकी अम्मा को उन्होंने पीछे धकेलकर दरवाज़ा बंद कर कुण्डी लगा दी ।समोद बुदबुदाया – बड़े बुजदिल हैं इस मोहल्ले वाले- लेकिन उसने इतनी एहतियात से कहा कि कुल्ले के बताने में कोई व्यवधान न आए । वह कहता रहा -इस बीच कुछ मोहल्ले के लोग इकट्ठे भी हो गए थे । लेकिन उन्होंने उन्हें बंदूक दिखाते हुए धमकाया – यहाँ से दूर रहो ,हम सरकारी सिपाही है । इसने  बहुत संगीन जुर्म किया है ।बीच में पड़ोगे तो तुम्हें भी कड़ी सज़ा मिलेगी ।लोग बाग सहमे हुए तितर बितर हो गए ।

समोध कुछ और पूछना चाहता था लेकिन कुल्ले का चेहरा देखकर वह चुप रह गया । वास्तव में यह एक पहाड़ की तलहटी में बसा छोटा सा क़स्बा था जहाँ कुल डेढ़ दो हज़ार लोग रहते थे । इस क़स्बे की खास पहचान यह थी कि अग़ल बग़ल के लगभग सभी बीस पच्चीस गाँव के लोग इसी के निर्देशों का पालन करते थे या इसी के नियंत्रण में थे । इसका मुख्य कारण था कि यहाँ स्थित मंदिर के मुख्य पुजारी को वे ईश्वरीय शक्ति संपन्न मानते थे । वे मानते थे की इसी क़स्बे में ईश्वर एक दिन आकर रहे थे । इस क़स्बे का निर्माण भी ईश्वरीय लोगों ने ही किया था । यहीं से इंसान अग़ल बग़ल के गाँवों में गया । इसे वे अपने पूर्वजों का गाँव मानते थे । मुख्य पुजारी को वे अपने राजा की तरह देखते थे और वह भी पूरे इलाक़े की देख रेख उसी तरह करता था। मुख्य हाल में देवता की मूर्ति स्थापित थी , जिसके बग़ल में स्वर्ण जटित एक दंड रखा था , वह चार फीट के आसपास था, जिसकी मूठ पर देवता की मुखाकृति उकेरी हुई थी ,लोगों का मानना था की वह दंड मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित था ।पुजारी द्वारा रोज़ उसकी पूजा की जाती । मुख्य पुजारी  जब भी कहीं बाहर निकलते उनके आगे आगे एक पुजारी उसे लेकर चलता । लोगों की मान्यता थी कि दंड धारण करते हुए मुख्य पुजारी के अंदर देवता का वास होता था ।क़स्बे और साथ के गाँवों की व्यवस्था देखने के लिए हर गाँव से कुछ लोगों की नियुक्ति सुरक्षा कार्य के लिए होती थी ,जो मुख्य पुजारी के प्रति हमेशा वफ़ादार रहते। मंदिर के अन्य पुजारियों में  कार्य बटे हुए थे-मसलन न्याय का कार्य , ख़ज़ाने की और लोगों की सुरक्षा, समाज में सामान्य व्यवस्था देखने के कार्य आदि; जिन्हें वे पूरी तन्मयता से निभाते ।यहाँ के मंदिर में दर्शन करना लोगों के जीवन का अत्यंत पवित्र कार्य होता ,इसलिए भी इस क़स्बे के प्रति उनके दिलों में अत्यधिक सम्मान था। वहाँ रेशमी को इस तरह ले जाने की घटना बड़ी अप्रत्याशित थी ,जिस पर लोगों को कम ही विश्वास हो रहा था और वे हैरत में भी थे ।

वे रेशमी को सीधे न्याय अधिकारी के पास लेकर गए थे । यह एक बड़े हाल सी जगह थी, जहाँ एक कोने में उसे खड़े होने को कहा गया ।सामने एक बड़ी सी मेज थी जिसके पीछे करीने से दो कुर्सियाँ लगी थीं । रेशमी ने अपने चारों ओर निगाह डालकर देखने की कोशिश की ,वास्तव में उसे लाया कहाँ गया था । हाल में लाए जाते समय भी वह चीखती ही रही – मुझे यहाँ क्यों लाया गया है ?साथ के सिपाही ने बेफिक्री से कहा – अभी सामने न्यायाधीश आकर बैठेंगे ,वही तुम्हें सब बता देंगे ।

कुछ ही देर में एक व्यक्ति काले रंग के गाउन में सामने कुर्सी पर आकर बैठ गया । उसने सामने रखी फ़ाइल को खोलकर देखा ,इस बीच दो सिपाहियों ने उसे मेज़ के बायीं तरफ़ लाकर खड़ा कर दिया था । एक क्षण को मेज़ की दूसरी और बैठे आदमी ने लड़की को ध्यान से देखा ,फिर पूछा -तुम रेशमी पुत्री महेंद्र हो ? लड़की  ने कोई जवाब न दिया । सिपाही ने उसे बाँह से हिलाया – न्यायाधीश महोदय कुछ पूँछ रहे हैं , जवाब दो ।लड़की ने दीवार की ओर देखते हुए कहा – जी ।

फ़ाइल देखते हुए न्यायाधीश ने कहा – तुम पर आरोप है कि तुम दूसरे गाँव के लड़के के हाथ में हाथ डालकर क़स्बे में घूम रही थी। उस समय तुम्हारे साथ कोई तुम्हारे घर का नहीं था । तुमने सर पर ठीक से पल्लू भी नहीं डाला हुआ  था ।क्या ये सब सच है ?

रेशमी ने एक बार मेज़ के उस पार बैठे व्यक्ति को देखा , फिर इत्मीनान से बोली – मैं उस लड़के के साथ जीवन बिताना चाहती हूँ । किसी के साथ घूमना कोई अपराध तो नहीं ।

न्यायाधीश ने कड़क आवाज़ में पूछा -लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि दूसरे गाँव या क़स्बे के लड़के के साथ अकेले घूमना, वह भी बिना सर ढके बेपर्दगी से, अपराध की श्रेणी में आता है । इससे समाज में अनैतिक आचरण को बढ़ावा मिलता है । और सर पर पल्लू न रखना बेपर्दगी मानी जाती है ।

यह ग़लत क़ानून है । शरीर को ढक कर रखना चाहिए ,वह मैंने किया था । सर को न ढकने से कोई बेपर्दगी नहीं हुई- उसने बिना डरे तेज आवाज़ में अपनी बात कही ।

तो तुम्हारी निगाह में यह भी ग़लत नहीं था कि तुम किसी दूसरे गाँव के लड़के से हंस कर बात कर रही थी ,वह भी अकेले बिना किसी घर के व्यक्ति के ? मनाही के बावजूद दूसरी लड़कियों को नाचना गाना सिखाती हो ।

जी बिलकुल ग़लत नहीं मानती । हर इंसान को जीने का बराबर का हक़ है और अपनी मर्जी के काम करने का हक़ है ।

इस बार न्यायाधीश ने कुछ तेज आवाज़ में पूछा – चाहे उसकी कानूनन मनाही ही हो और क़ानून की निगाह में वह अनैतिक आचरण हो ? उसकी आवाज़ में तलखी थी – तुम्हें पता है लड़कियों को नाचने गाने की जगह पाक कला ,सिलाई कढ़ाई में पारंगत होना चाहिये ।

महामहिम ऐसा क्यों होना चाहिए ? मर्दों को भी इन बातों का अच्छी तरह ज्ञान होना चाहिए ।मैं मानती हूँ ईश्वर ने मर्द और औरत को बनाने के बाद उन्हें अपनी तरह जीने रहने का बराबर का हक़ दिया होगा ।

न्यायाधीश की त्योरियाँ कुछ और तन गईं, उसने कड़ाई से कहा – देखो यदि तुम इसे गुनाह मानकर आइंदा न करने का वादा करो तो मैं हमदर्दी बरत सकता हूँ । सामाजिक अधिकारी ने तुम पर ये सब आरोप लगाये हैं ।

लड़की ने ऊँची आवाज़ में कहा – मैं इन आरोपों को नहीं मानती और मानती हूं कि मेरा आचरण बिलकुल ठीक था , ऐसा करना मैं गुनाह नहीं मानती ।

न्यायाधीश ने कुछ धीमी आवाज़ में कहा -मैं आख़िरी बार पूछता हूँ – तुम इसे अपनी गलती मानती हो या नहीं । तुम ऐसा न करने की शपथ लोगी ।

लड़की ने बिना डरे ऊँची आवाज़ में कहा – नहीं नहीं ।

कुछ क्षण खामोशी में बीत गए ,बगल खड़े सिपाही एक दूसरे की ओर देखने लगे । न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को लड़की के बेखौफ रहने पर आश्चर्य था । अकसर यहाँ आकर व्यक्ति चुपचाप खड़ा रहता था या अपनी गलती मानकर क्षमा मांग लेता था, ऐसे में उसे भी सजा के निर्णय में आसानी होती थी । कुर्सी के पीछे बैठे व्यक्ति ने ऊंची आवाज में कहा -तो इसका मतलब है कि तुम पर जो भी इल्जाम लगाए गए हैं वे सही हैं । लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया । उसने तेज आवाज में कहा -मैं तुम्हें सोचने के लिए पंद्रह मिनट और देता हूँ ,कहते हुए वह उठकर अंदर चला गया ।

वे पंद्रह बीस मिनट बड़े बोझिल से बीतते रहे । सिपाहियों में से ,एक सिपाही जो कुछ बुजुर्ग सा था ,लड़की के पास आया ,बोला -बेटा तुम अभी उम्र में  बहुत छोटी हो, दुनियादारी को अच्छी तरह नहीं समझती हो । मेरी बात मानो तो तुम यह कह सकती हो कि तुम ऐसी बातें फिर दुबारा न करोगी । इससे कम से कम तुम किसी बड़ी सजा से बच सकती हो । तुम्हें सिर्फ यहाँ ये कहना भर है ,बाद में तुम इस पर दुबारा विचार कर सकती हो ।लड़की ने उन्हें सम्मान से देखा ,कुछ बोली नहीं ,इतनी ही देर में न्यायाधीश महोदय आकर अपनी कुर्सी पर पुनः आसीन हो चुके थे ।

न्यायाधीश ने एक क्षण को रेशमी को गौर से देखा ,फिर नरम लहजे में पूछा -तो तुमने क्या निर्णय किया रेशमी । क्या तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है और तुम उसके लिए माफी मांगने के लिए तैयार हो ?

बूढ़ा सिपाही रेशमी की ओर आशा भरी निगाह से देखता रहा।उसका मन किया कि लड़की एक बार कह दे कि वह अपनी गलती मानती है और फिर ऐसा न करेगी ,इस बीच एक बार रेशमी से उसकी निगाह टकराई भी । लेकिन रेशमी ने दृढ़ता पूर्वक कहा – नहीं मैं जिस कार्य को गलत नहीं मानती उसके लिए माफी नहीं माँग सकती । मुझे जो भी सजा मिलेगी मैं उसे भुगतने के लिए तैयार हूँ ।

न्यायाधीश के भीतर अजीब सी बेचैनी भर उठी ।एक तो उसकी कम उम्र को देखते हुए वह उसे हल्की सजा के बारे में देर से सोच रहा था , दूसरे आज तक किसी ने इस तरह उसके सामने खड़े होकर कानून को यूं चुनौती न दी थी । लड़की की कम उम्र को देखते हुए उसे लगता था कि शायद वह कानून की पेचीदगियों से अनभिज्ञ होगी ,लेकिन अब उसे विश्वास हो चला था कि लड़की को सब पता था और उसे उसके जुर्म के लिए कुछ न कुछ सजा देनी ही होगी । उसने लड़की की बातों को सुनते हुए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ।

उसने अपना आदेश कागज पर लिखा और फिर दो क्षण बाद बोला – तुम्हारे जुर्म और बेअदबी की वजह से तुम्हें माफ नहीं किया जा सकता । तुम्हें दस कोड़े मारने की सजा दी जाती है ,जो कल दोपहर बाद न्यायालय के बाहर दी जाएगी । साथ ही सिपाही को हिदायत दी कि लड़की के खाने का उचित प्रबंध किया जाये और उसके घर पर सूचना देते हुए उनके पारिवारिक सदस्यों को यहाँ उपस्थित रहने के लिये कह दिया जाये ।इसके साथ ही न्यायाधीश उठ गए ।

ऐसा न था कि रेशमी की गिरफ़्तारी की खबर कुल्ले और समोध के बीच होने वाली बातचीत में ही खो कर रह गई ।कुल्ले से बात करने के बाद समोध ने सबसे पहले रेशमी के घर की कुंडी खोलकर उसकी माँ को निकाला । माँ का रोते हुए बुरा हाल था – वे लोग उसे पकड़ कर ले गए हैं बेटा ।रो कर उसकी आंखें लाल हो गई थी – मेरी बच्ची को जाने कैसे रखा होगा । वह तो कभी अकेली एक रात भर भी कहीं रही नहीं।

तब तक मोहल्ले के भी काफी लोग जुट गए । यह खबर आग की तरह कस्बे में ही नहीं बल्कि गांवों में फैलती चली गयी ,यह भी कि उस लड़की को अगले दिन न्यायालय के सामने दस कोड़े भी लगाए जाएंगे । लोग एक दूसरे से पूछते -आखिर उसका अपराध क्या था । आज तक तो यूं किसी लड़की को कभी गिरफ्तार नहीं किया गया । सुदूर गाँवों से लोग कस्बे में न्यायालय की ओर सुबह से ही पहुँचने लगे, उनके अंदर हैरत भी थी ,और गुस्सा भी । रेशमी की माँ, पिता, समोध, कुल्ले भी वहाँ पहुँच चुके थे ।किसी को भी रेशमी से मिलने नहीं दिया गया था ,उसे जेल से ग्यारह बजे निकाल कर सजा के लिए न्यायालय के सामने लाया जाना था ।ग्यारह बजने के पहले ही बड़ी संख्या में वहाँ लोग इकट्ठा हो चुके थे ।

 

इस बात का शायद ही प्रशासनिक अधिकारियों को भी अन्दाज़ रहा हो कि इतनी भीड़ न्यायालय के सामने इकट्ठा हो जाएगी । जल्दी ही सुरक्षा विभाग ने बड़ी संख्या में पुलिस वहाँ लगा दी।अब कुछ ही देर में वहाँ न्यायालय के बाई तरफ़ रखे लकड़ी के तिकोने पर रेशमी को बांधा जाना था और कुछ दूर पर रखी कुर्सी पर न्याय विभाग का एक व्यक्ति दस तक गिनती करने के लिए बैठना था ,जिससे कोड़े मारने की दंड प्रक्रिया पूरी हो सके । समय तेज़ी से गुजर रहा था ,वहाँ तिकोने के पास सिपाहियों की संख्या बढ़ती जा रही थी । एक आदमी लंबी तुरही लिए खड़ा था जिसके बजने के बाद दंडित करने की कार्यवाही शुरू होनी थी ।

अभी लोग रेशमी का इंतजार कर रहे थे कि एक आदमी ने न्यायालय के मुख्य द्वार पर आकर तेज आवाज में कहा -रेशमी पुत्री महेंद्र के घर के लोग यहाँ आए हैं क्या ? यदि रेशमी के घर का कोई आदमी या उसका कोई नजदीकी रिश्तेदार यहाँ हो तो वह मेरे नजदीक आ जाए ।भीड़ में कोलाहल उठ खड़ा हुआ । कुल्ले ने रेशमी की अम्मा और पिता को देखते हुए कहा – हाँ वे यहाँ हैं । भीड़ से रास्ता बनाते हुए वह दोनों को लेकर उस आदमी के नजदीक जा पहुंचा । लोग उचककर उनको देखने की  कोशिश करते रहे ।

कुल्ले ने हाँफते हुए कहा – जी हुज़ूर , ये रेशमी की माँ है मुनरी और ये पिता हैं महेंद्र । मैं इनके पड़ोस में रहता हूँ और वह मेरी मुंह बोली बहन है । बुलाने वाले ने कहा -ठीक है ,तुम सब मेरे साथ आओ ।वह न्यायालय के भीतर के रास्ते बाई तरफ़ घूमता पिछले दरवाजे तक गया । दरवाज़े को खोल वह खुले मैदान में आ गया। सामने खड़े पुलिस के अधिकारी से उसने धीरे से कहा – ये उसके माँ बाप है और वह लौड़ा उसके पड़ोस में राहत है। वह अधिकारी धीरे धीरे कहता रहा – आपको मैं बंदीगृह की कोठरी में ले चल रहा हूँ जहां रेशमी को सुबह जेल से लाकर रखा गया था । उसकी आवाज धीमी थी ,जिससे लगता था वह उन्हें सांत्वना देने का प्रयास भी कर रहा था-आपकी लड़की का व्यवहार बहुत अच्छा रहा । इस कोठरी में उसे सिपाही बंद कर कल शाम को चले गये थे ।उसके बंद दरवाज़े के बाहर सिपाही तैनात था । चूकि अभी वक्त काफ़ी था इसलिए सुबह का नाश्ता भी भेज दिया गया था । सिपाही ने बताया है कि उसने खिड़की से नाश्ते की प्लेट स्वयं ही उठाई थी और अपनी चौकी पर जा बैठी थी।

उसकी माँ को यह समझ नहीं या रहा था कि ये सब बातें उसे इतनी तफ़सील से क्यों बताई जा रही थीं। वह बताता रहा- अभी जब ग्यारह बजने में कुछ ही देर थी ,तीन सिपाही उसे न्यायालय के सामने ले जाने के लिए आये और उन्होंने दरवाज़ा खोला तब उसे रस्सी से लटकते पाया । मैं आपको वहीं ले चल रहा हूँ ।

उसकी बात सुनते ही रेशमी की माँ और बाप के दिल में घबराहट भर आई ।कुल्ले भी भयभीत हो उठा, सोचता रहा – रेशमी तो ऐसी न थी, जो इस तरह आत्महत्या कर ले । कोई दस मिनट में वे एक कमरे में पहुंचे ,जहां फ़र्श पर चादर में लिपटी हुई लाश रखी थी । सिपाही ने सफेद चादर हटा दी – वह रेशमी की ही लाश थी । रेशमी की माँ उससे लिपट कर रोने लगी – रेशमी.. रेशमी , तुझे ये क्या हो गया बेटी । पिता की आँखों में भी आँसू भर आये ,वह रेशमी की माँ को चुप कराने की कोशिश करता रहा । कुल्ले दुखी खड़ा रहा ।

वहाँ से वे उन्हें एक दूसरे अधिकारी के पास ले गए ।अधिकारी ने उन्हें बैठने का इशारा किया । कुछ क्षण वह उन्हें देखता रहा ,फिर धीरे से बोला -हमें बहुत दुख है कि आपकी बेटी ने ऐसा कदम उठा लिया ।आप लाश को कहाँ ले जाएंगे । बड़े पुजारी जी अभी आकर बच्ची के लिए अंतिम प्रार्थना करने वाले हैं , उसके बाद जहां भी आप चाहेंगे ,अंतिम संस्कार वहीं किया जाएगा ।वे एक दूसरे का मुंह देखते रहे, उन्होंने आपस में सलाह मशविरा कर कहा – साहब हम चाहते हैं गाँव की नदी के पास इसका अंतिम संस्कार हो जाये । अधिकारी ने उनसे सहमति दर्शायी ,बोला – ठीक है, आप चलिए लाश के कमरे के बाहर रहिए ,ये सिपाही आपके साथ रहेंगे । आपको अंतिम संस्कार के लिए पाँच सौ सिक्के मिलेंगे ,वैसे मंदिर की ओर से सारे संस्कार का प्रबंध निशुल्क किया जा रहा है ।

न्यायालय के सामने इकट्ठा भीड़ से एक पुलिस अधिकारी ने आकर कहा – अब कोई सजा नहीं दी जाएगी । भीड़ की खुशी का कोई ठिकाना न था । सब अपने घरों की ओर चल दिए । रात के अंधेरे में प्रशासन ने पिछले दरवाजे से रेशमी की लाश को उसके गाँव की ओर रवाना कर दिया ,जहां उसका अंतिम संस्कार किया जाना था । वैसे सब कुछ बड़ी खामोशी व सावधानी से हुआ ,लेकिन आग कि तरह खबर कस्बे में ,अगल बगल के गांवों फैलती चली गई । आपस में औरतें लड़कियां बात करती रहीं-ऐसे कैसे लड़की की मौत हो गई ,जरूर उसे पुलिस ने ही मारा पीटा होगा। क्यों वह आत्म हत्या करती ? किसी लड़के के साथ घूमना कौन सा गुनाह है जिसके लिए उसकी जान ले ली गयी । कई गांवों के लोग रेशमी के घर आते ,उसकी माँ से मिलते ,युवा लोगों में इस बात से आक्रोश बढ़ता रहा। चार पाँच लड़कों ने अचानक एक दिन एक पुलिस वाले को पीट दिया ,फिर क्या था पुलिस ने तीन लड़कों को गिरफ्तार कर लिया।

लड़कों की गिरफ़्तारी से प्रशासन व मंदिर के पुजारियों के ख़िलाफ़ लोगों का हुजूम विरोध में उठ खड़ा हुआ ।शायद ही किसी गाँव का कोई कोना रहा हो जहां सड़कों गलियों में मंदिर प्रशासन मुर्दा बाद ,पुलिस प्रशासन मुर्दा बाद के नारे न लगे हों ।हत्यारों को फाँसी दो, हत्यारों को फाँसी दो .. की कर्ण भेदी आवाज़ें मंदिर तक आती। क़स्बे का हाल ठीक न था ,पुलिस पता करती -कौन कौन आंदोलन में लगा था ।रात के अंधेरे में वह लोगों को जिनमें अधिकतर युवा लड़के और लड़कियाँ होते गिरफ़्तार करती ,यातनाएँ दी जाती। इससे आंदोलन कम होने की जगह बढ़ता ही गया। यह बात भी विशेष थी कि उन प्रदर्शनकारियों में बड़ी उम्र की महिलायें भी बड़ी संख्या में होती । वे सड़क पर नारे लगाती –हमारा जीवन  हमारा है ,कैसे रहना तय हम  करेंगे ।

मंदिर के मुख्य पुजारी और पूरे प्रशासन की देर रात भर बैठकें चलती ।मुख्य पुजारी ,उनके सहयोगी आंदोलन को कड़ाई से रोकना चाहते थे। मुख्य पुजारी एक दिन  सभा में कहते थे -इस तरह हम अपनी परंपरा को छोड़कर आधुनिक बनेंगे तो समाज नष्ट हो जाएगा । हमारी पहचान हमारे ईश्वर से है । हमारे पूर्वज सुख शांति से रहे ,दुनिया में सभी से उन्नत रहे ,क्योंकि वे अपने आचरण में पवित्र थे ।उन्होंने अपने जीवन में धर्म को स्थापित कर रखा था और उसका पालन किया ।सभी लोग उनकी बातों को ध्यान से सुनते ,वे एक क्षण रुके ,अपने अगल बग़ल उन्होंने देखा ,लोगों की निगाह में आ रहे भावों को पढ़ने का प्रयास करते रहे ,अचानक पूछ पड़े – आपको क्या लगता है ?

बहुत से लोग जो हो रही बात के दौरान ऊंघ से रहे थे अचानक चैतन्य हो उठे, वे ऊँची आवाज़ में बोले – आपकी बात से हम सब सहमत हैं । मुख्य पुजारी के चेहरे पर कुछ संतोष उभरा, बोले -लेकिन मेरी इच्छा है कि हम हर गाँव से वरिष्ठ लोगों को बुलाकर एक आम सभा का आयोजन कर उनकी राय भी लें । इसमें इस पवित्र धाम के वरिष्ठ लोगों को आमंत्रित करें ,यदि महिलायें आना चाहें तो उन्हें भी बुलाया जाये । हमें यह भी देखना होगा कि वे क्या सोचते हैं ? हमें इन आंदोलनकारियों से कैसे निपटना चाहिए ,इस पर भी उनमें एक जनमत तैयार करना होगा ? जितनी तेज़ी से यह आंदोलन बढ़ रहा है उसे देखते हुए हमें अत्यंत सावधानी से इसे नियंत्रित करना होगा।

समोध तीन दिन पहले ही पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा चुका था । उसके दो दिन बाद पूछताछ के लिए कुल्ले को भी पुलिस ने बुला भेजा, कुछ दिन तक उसका कुछ पता न चला कि वह कहाँ था । कुछ दिनों बाद यह बात लोगों तक और उसके घर वालों को बताई गयी कि वह पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। रेशमी की माँ, पिता, मुख्य पुजारी द्वारा बुला लिए गए थे और उन्हें वहीं मंदिर में एक कमरे में ठहराया गया था । ये खबरें आग की तरह चारों तरफ फैलती रहीं ।चल ,अस कोट ,पाँगू ,गरबयांग ,धारचूला सब जगह से लोगों के आक्रोश और आंदोलित होने की खबरें थीं ।      ऐसा पहले किसी न देखा था -बूढ़ी महिलाएं ,लड़कियों और युवा महिलाओं के साथ जुलूस बनाकर गाँव कस्बे में निकलती थीं । युवा लड़के उनके साथ नारे लगाते चलते -सब मानुष एक समान ,सबका है एक भगवान ।वे नंगे सिर चलती ,वे सब निडर दिखते । पुलिस समझाती ,लाठियाँ भाजती ,कुछ को गिरफ्तार करती,लेकिन उनकी संख्या बढ़ती ही जाती थी। कुछ गिरफ़्तार लोगों पर देश द्रोह के आरोप भी थे ,कुछ पर सरकार को बदनाम करने के आरोप थे ,कुछ लोग जनता में भ्रामक प्रचार करने के लिए भी हिरासत में लिए गए थे ।

मुख्य पुजारी के माथे पर बल था-उसके साथ मुख्य मंदिर के बगल के बड़े हाल में सहायक पुजारी ,पुलिस के बड़े अधिकारी ,दंडाधिकारी ,विशेष कार्य पालक अधिकारी सभी बैठे थे । सभी अपनी तरह से लोगों में फैले असंतोष को नियंत्रित करने के उपाय बता रहे थे, तभी छोटे पुजारी ने कहा – आप सब शांत रहिए ,मुख्य पुजारी जी आप से कुछ कहेंगे, जिसे हम सबको ध्यान से सुनकर उसका पालन करना होगा ।मुख्य पुजारी के बोलने के पहले पूरे हाल में सन्नाटा फैल गया ।

एक क्षण को मुख्य पुजारी ने बग़ल रखे दंड को देखकर प्रणाम किया ,फिर कहना शुरू किया ,आवाज में कुछ आक्रोश भी था -लोगों में अपनी संस्कृति के प्रति कोई प्रेम नहीं रह गया है । यह न्याय की मांग है कि हम भटके हुए लोगों को सही रास्ते पर ले आयें ।जब शरीर का कोई अंग रोग ग्रस्त हो सड़ जाता है तब उसे काटकर अलग करना पड़ता है । पिछले दिनों समाज के बहुत से लोगों से विचार विमर्श भी किया गया । मैंने स्वयं कई गाँव के लोगों से बात की है ,बुजुर्गों अनुभवी लोगों से मुलाकात की है । सब का यही मत था कि लोगों में बढ़ रही अनास्था को कड़ाई से रोकना ही एक मात्र उपाय है ।इसके लिए उन्हें कड़े दंड भी देने हों तो दिए जाये ।इस सबको देखते हुए मैं ये आदेश देता हूँ कि कोई भी इस प्रकार की गतिविधि में लिप्त पाया जाये ,तो उसे कठोरता से रोका जाये। इसी निर्देश के साथ बैठक खत्म हुई ।

अगले कुछ दिन पुलिस द्वारा तेजी से गिरफ्तारियाँ की जाती रहीं । जहां भी प्रदर्शनकारी इकट्ठा होते पुलिस वहाँ पहुँच जाती ।पुलिस के लाठी चार्ज से कुछ लोग घायल होते, कुछ को पुलिस पकड़ थाने ले जाती, लेकिन इस सबके बावजूद विरोध कम न हो रहा था । न्यायाधिकारी द्वारा कोड़े लगाने का दंड देने के स्थान पर बड़ी भीड़ इकट्ठा हो जाती ।भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस को भारी मशक्कत करनी पड़ती । उस दिन जब एक प्रदर्शनकारी बड़ोखर को, जो अभी मुश्किल से बीस बाइस वर्ष का लड़का था ,कोड़े लगाने के लिए टिकठी से बांधा जा रहा था ,भीड़ अचानक उस स्थान पर टूट पड़ी । उसने बड़ोखर को टिकठी से छुड़ा लिया ।

पुलिस ने पहले तो लाठियाँ पटक कर लोगों को डरना चाहा ,लेकिन वे बड़ोखर को लेकर चल दिए । कोड़े मारने वाला और तुरही बजाने वाला भीड़ को देखकर अपनी जान बचाने के लिए कोर्ट रूम में जा छिपे ।भीड़ से भयभीत कई पुलिस के सिपाही भी इधर उधर जान बचाने के लिए जा छिपे ,लेकिन ऊंचाई पर खड़े अधिकारी ने अपने साथ खड़े सिपाही को तेज आवाज में आदेश दिया – फायर .. फायर । सिपाही ने दो बार खटका खींचा-धाय धाय की आवाज गूंज उठी । लोगों में भगदड़ सी मच गयी थी ।

कुछ उग्र लोग खड़े होकर नारे लगाते रहे ,जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया । गोली चलने से दो प्रदर्शनकारी मारे गए थे ,आठ दस लोग घायल हुए थे । प्रत्येक गाँव से मंदिर प्रशासन को खबर मिलती रहती ,उनके आदमी बताते लोग क्या सोच रहे थे ,अगली सभा कहाँ होगी ,कौन व्यक्ति मंदिर शासन के ख़िलाफ़ अधिक सक्रिय थे । प्रदर्शन से पहले ही रात के अंधेरे में गिरफ़्तारी कर ली जाती । प्रशासन हर तरह से प्रयास कर रहा था कि लोगों का ग़ुस्सा थाम सके ।

महिलायें ,लड़कियां पूरे प्रदर्शन में बहुत सक्रिय थीं ,उनके साथ युवा पूरे जोश और हिम्मत से जुड़े थे ।प्रशासन अधिकतर महिलाओं लड़कियों की गिरफ़्तारी से बचता था ,हाँ उनके साथ जो युवा या पुरुष होते उन्हें तुरंत गिरफ़्तार कर लिया जाता, उन्हें पुलिस द्वारा मारा पीटा जाता ,कोड़े लगवाए जाते, फिर किसी अनजान जगह की जेल में बंद कर दिया जाता । कई दिनों तक मामले की सुनवाई मुलतवी रखी जाती ;इस सबसे महिलायें परेशान हो उठी -क्योंकि उनमें कई उनके भाई होते ,कुछ शुभचिंतक होते – जो प्राण पण और निःस्वार्थ भाव से उनके लिए कार्य कर रहे थे । महिलाओं ने आपस में कई दिन तक विमर्श किया ,दूर दराज के गाँवों तक सूचना भेजी गयीं।

गाँव में छोटे छोटे समूहों उनकी में बैठकें होती , मंदिर के क़स्बे में भी कई दिन से छिप कर बैठकें हो रही थीं ,वे चुप चाप एक दूसरे के संपर्क में रहती ,छोटी बच्चियाँ एक गाँव से दूसरे गांवों ,एक घर से दूसरे घर तक संदेश भेजने का काम करतीं, लेकिन न तो लोगों को ,न पुलिस के सिपाहियों को ,न घर के बुजुर्गों को कुछ खबर हुई कि उनके भीतर क्या पक रहा था ,हाँ साथ के युवाओं को वे सभी निर्णयों से अवगत रखती थीं । दूसरा मंगलवार प्रशासन के लिए नयी आफत ले आया, जिसने पूरी जनता ,मुख्य पुजारी ,उनके सलाहकारों ,पुलिस, न्यायालय सबकी नींद उड़ा दी ।यह नई तरह का विरोध था ,जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा ही न था ।

गाँवों से ,कस्बे से बड़ी संख्या में युवा लड़के ,लड़कियों ,महिलाओं की  टोलियाँ  नारे लगाते हुए निकल पड़ी – जीवन जिसका उसका अधिकार ,कोई न थोपे अपना अधिकार। जीवन अपना हम जीयेंगे ,औरों की हम नहीं सुनेंगे । सभी मनुष्य एक है उनमें नहीं विभेद है । जारी रहेगा आमरण अनशन ,जब तक नहीं झुके प्रशासन । चार पाँच गाँव में एक जगह आठ दस  महिलायें  भूख हड़ताल पर बैठ गई थीं ,कस्बे में बीस महिलाओं का समूह भूख हड़ताल पर बैठा था । पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार अधिकतर पहले बैठने वाली टोली में बड़ी उम्र की महिलायें अधिक थीं ,जिससे प्रदर्शन और रैलियों में ज्यादा युवा भागीदारी कर सकें ।

मुख्य पुजारी अपने कच्छ में बैठकें करते ,जिसमें मुख्य विषय यही होता कि कैसे इन प्रदर्शनकारियों से निपटा जाये । कुछ लोगों का मत था कि इन भूख हड़ताल करने वालों से कोई बात न की जाये ,उन्हें तवज्जोह देने से उनके भाव और बढ़ेंगे । थक हार कर वे स्वयं ही भूख हड़ताल से अलग हो जाएंगी । कुछ लोग सोचते थे उन्हें बलपूर्वक भोजन करवाया जाये और जो न मानें उन्हें हिरासत में ले लिया जाये । उनका अनशन भी तोड़ा जाना आवश्यक था । लेकिन पुजारियों का मत यही था कि उनसे बेकार न उलझा जाये ,उनके अनशन पर कोई बात न की जाये । हाँ आंदोलन करने वाले वे लोग जो रैलियों में लिप्त थे, उनको एक ओर समझाया जाये कि उनकी मांगो पर सरकार पूरी सहृदयता से विचार कर रही थी ,साथ ही उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही भी जारी रखी जाये ।

कुल्ले भी जेल से रिहा होकर वापस आ चुका था । पुलिस द्वारा हुई मार पीट से वह  चलने में कुछ परेशानी महसूस करता था ,फिर भी वह जेल से छूटते ही आंदोलन के साथ जुड़ गया। समोध भी छूटकर आ गया था, लेकिन उसने अपना कार्य क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र को बना लिया था । कभी जब वह कस्बे में लौटता तो कुल्ले से मिलता ,दोनों देर तक आपस में बात करते कि कैसे लोगों को संगठित किया जाये। रेशमी की माँ भी कस्बे में आमरण अनशन पर बैठने वाली महिलाओं में शामिल थी ।

हफ़्ते भर बीत चले थे ,गुप चुप गिरफ्तारियाँ होती रही थीं , प्रशासन ने आमरण अनशन पर बैठी महिलाओं से आँख मूँदे ही रखी ।अनशन के नौवें दिन अनशन में एक दुखद मोड़ आ गया । क़स्बे में आमरण अनशन पर बैठी महिलाओं में से दो महिलाओं की तबीयत अचानक ख़राब हो गई । उन्हें चिकित्सकों द्वारा उपचार देने का बहुत प्रयास किया गया ,लेकिन उन्होंने कोई भी उपचार लेने से मना कर दिया । पुलिस ने उन्हें जबरन अस्पताल पहुँचाया । दो तीन महिलाओं की गाँवों में भी तबीयत ख़राब हो गई थी , उन्हें भी पुलिस द्वारा आमरण अनशन स्थल से हटा दिया गया । लेकिन उनकी जगह दूसरी महिलायें आमरण अनशन पर आ बैठीं ।

मुख्य पुजारी के हाल में बैठक पर बैठक होती रही । लोगों को वार्ता के लिए भी बुलाया जाता रहा ।आमरण अनशन पर बैठने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी , साथ ही लोगों के भीतर बेचैनी भी ।लेकिन अभी भी पुजारियों और प्रशासनिक अधिकारियों का मत यही था कि जल्दी ही लोग अनशन से थक कर दूर हो जाएंगे, उनसे बात चीत का दिखावा करते रहना होगा; लेकिन उनकी कोई भी बात मान लेने से उनका मन बढ़ जाएगा और वे और बहुत से आदेशों का उलंघन करने लगेंगे ।पुजारियों या प्रशासन ने जो अनुमान लगाया था , वैसा कुछ न हुआ। इस बीच एक अनशनकारी की और मृत्यु हो गई ,लोगों का ग़ुस्सा भड़क उठा ।लोग बाग जो हमेशा पुजारी व प्रशासन के साथ खड़े रहे थे ,उनमें भी असंतोष बढ़ता जा  रहा था, लेकिन प्रशासन जैसा मीटिंग में तय हुआ था उसी प्रकार कार्यवाही करता रहा।

आंदोलन को तीस दिन से ऊपर हो चले थे, सात आठ बार आंदोलनकारियों और प्रशासन , मंदिर के पुजारियों के बीच वार्ता हो चुकी थी ,लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकल पाया, ऐसा प्रतीत होता था कि मंदिर प्रशासन सिर्फ दिखावे के लिए ही मीटिंग कर रहा था ।अगला हफ़्ता आंदोलनकारियों के लिए दुखद रहा-क़स्बे से गाँवों तक में दो और महिलाओं ने दम तोड़ दिया । युवा लड़कियों के साथ जवान पुरुष, युवतियां, युवा लड़के भी आमरण अनशन में शामिल होते गए ।

लोग आपस में मिल बैठते ,बहस करते – इतनी महिलायें आमरण अनशन में अपना बलिदान दे रहीं हैं । हम क्या ऐसे किसी समाज की कल्पना कर सकते हैं जहां स्त्रियाँ न हों। फिर इस नैतिकता और धार्मिक आचरण की बात का हम अचार डालेंगे क्या ?कुछ लोग मंदिर के मुख्य पुजारी का पक्ष लेते – लेकिन समाज के भले के लिए ही तो सारे धार्मिक आचरण बनाये गये हैं ।लेकिन पुजारियों के पक्ष में बोलने वालों की संख्या धीरे धीरे नगण्य होती गई ;प्रायः उन्होंने अपना पक्ष रखना ही बंद कर दिया । अधिकतर इन मीटिंगों में भाग लेने वाले युवा लड़के लड़कियों होते ,युवा महिलायें ,उत्साहित जवान होते । वे कहते- इसके परिणाम तो आने वाले समय में, हमें ही भुगतने होंगे  । तब ये पुजारी और बूढ़े सलाहकार तो ऊपर जा चुके होंगे ।इस प्रकार लड़कियाँ ,बहने आमरण अनशन में मरती रहेंगी क्या ?हमें इसके लिए कुछ करना ही होगा ।प्रायः मीटिंग बिना किसी निष्कर्ष के ख़त्म हो जाती ।

अचानक दो घटनाओं ने जनता के मन में आक्रोश भर दिया ।पहली घटना तो यह हुई कि कुल्ले एक रैली में नारा लगा रहा था । पुलिस ने तगड़ा लाठी चार्ज कर भीड़ को तितर बितर कर दिया ,लेकिन कुल्ले तेज़ी से भाग न पाने के कारण पुलिस की चपेट में आ गया ।एक लाठी उसके सिर पर जा लगी । वह गिर पड़ा ,बेहोश होते हुए वह चिल्लाया -यहाँ से सब निकल जाओ ,यहाँ लाठी चार्ज में मरने की ज़रूरत नहीं है ।लेकिन तभी एक और लाठी उसकी पीठ पर लगी। , वह एक ओर लुढ़क गया । लोगों ने उसे गिरते देखा ,वे वापस लौट पुलिस से जा भिड़े ,जिसके हाथ में जो कुछ था उसी को ले पुलिस से भिड़ गए , लोगों द्वारा हो रहे पथराव से पुलिस पस्त हो चली थी, पुलिस पीछे हटती चली गई ।उसी  के साथ दूसरी घटना भी जुड़ गयी- क़स्बे के दूसरी ओर प्रदर्शन में पुलिस के लाठीचार्ज में कई लोग गंभीर रूप से  घायल हो गए ।

समोध रात के अंधेरे  में छिपता छिपाता क़स्बे में आया, लेकिन बहुत प्रयास के बाद भी वह कुल्ले के नजदीक नहीं पहुँच सका ।बहुत पता लगाने के बाद वह इतना ही जान सका कि कुल्ले उस दिन रैली में हुए लाठी चार्ज में बहुत गंभीर रूप से घायल हुआ था । वह सुबह से पहले ही गाँव की ओर लौट गया ।रात के अंधेरे में छिपकर मीटिंग होती रहीं । कई गाँवों में पुलिस और मंदिर के मुखबिर के शक में पाँच आदमियों को लोगों ने पीटकर अधमरा कर दिया ,जिसके लिये कई लोगों को हिरासत में ले लिया गया था ।

महिलाओं के भीतर एक तूफ़ान सा उठ खड़ा हुआ था । दिन रात वे एक दूसरे से मिलती रही थीं, उन्होंने आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया ।उन्होंने तय किया कि वे एक साथ आमरण अनशन पर बैठेंगी । और तब तक उनमें से कोई भी अन्न जल ग्रहण न करेगा ,जब तक मुख्य पुजारी स्वयं घोषित न कर दें कि वे लड़कियों, महिलाओं पर से सारे प्रतिबंध हटा रहे हैं । उन्होंने एक दिन पहले समोध और दूसरे पुरुष साथियों को अपने निर्णय से अवगत कराया । उनकी बात सुनकर समोध और दूसरे लोग सकते में आ गए। समोध उन्हें समझाने का प्रयास करता रहा -आप सब ऐसा निर्णय अभी न लें । हम सब प्रयास कर रहे हैं ,शीघ्र ही कुछ न कुछ हल निकल आएगा ।इस प्रकार अपने जीवन को संकट में डालना ठीक नहीं है । उनकी सलाह से महिलायें सहमत नहीं हुई , वे कहती रहीं – हमारे कारण आप में से कितने लोग अपना जीवन खो चुके हैं , कितने लोग जेलों में बंद हैं ।इसलिए अब हम आपकी और शहादत न होने देंगे । हमने बहुत सोचकर यह निर्णय किया है ।अब हम इससे पीछे न हटेंगे ।वे आपस में विचार विमर्श करते ,उपाय सोचते- कैसे मंदिर प्रशासन को बात मानने के लिए मजबूर किया जा सकता था ,लेकिन कोई भी उपाय उनको दिखायी न दे रहा था ।

तभी मंदिर प्रशासन से वार्ता के लिए प्रस्ताव आ पहुँचा । उन्हें लगा यह अचानक वार्ता का प्रस्ताव शायद उनके लिए नयी राह खोल रहा हो । आंदोलनकारियों से मंदिर प्रशासन ने पुनः वार्ता के लिए संदेश भेजा था ।वे सोचते थे वार्ता से उनके प्रतिरोध और आक्रोश को कुछ कम किया जा सकता था। पहले तो आंदोलनकारियों की अगवाई कर रहे समोध ने स्पष्ट कर दिया कि वह किसी वार्ता में भाग नहीं लेगा क्योंकि इतनी वार्ताओं का कोई परिणाम नहीं निकला । मंदिर प्रशासन अपने किसी वादे पर कभी टिकता नहीं, लेकिन सबके कहने पर वे वार्ता के लिए तैयार हो गया  ।

प्रशासन द्वारा वही सवाल पूछा जाता रहा -आप सब प्रशासन से चाहते क्या हैं ? आपकी कोई नयी माँग हो तो बतायें, प्रशासन उस पर गम्भीरता पूर्वक विचार करेगा ।

समोध बोला – हमारी तो शुरू से केवल एक ही माँग रही है । कई बार सहमति के बावजूद आपने किसी माँग को पूरा नहीं किया ।मंदिर के पुजारी ने पूछा -बताइए कौन सी आपकी माँग नहीं पूरी हुई ।

समोध ने कुछ नाराजगी से कहा -हमारी दो ही तीन माँग थीं । पहली – लड़कियाँ परिधान अपनी इच्छा से पहन सकें। वे चाहें सिर ढकें या न ढकें ये उनपर छोड़ देना चाहिए । दूसरे –वे अपना जीवन साथी चुनने के लिए स्वतंत्र हों ,वे जिससे चाहें विवाह करें । तीसरे –उनकी इच्छा को धर्म के नाम पर न दबाया जाये। उन्हें भी पुरुषों के समान अधिकार हों ।

जिन लोगों की आंदोलन ,पुलिस कार्यवाही में मृत्यु हुई है इन्हें मदद मिले । लोगों पर आंदोलन के कारण जो मुक़दमे हैं, वे वापस लिए जाये।

प्रशासन की ओर से वार्ता कर रहे व्यक्तियों ने कहा कि हमने तो पहले ही कह दिया है कि हम जल्दी ही सभी बातों का पर निर्णय कर देंगे ।

समोध ने कहा -लेकिन दो महीने में कुछ तो नहीं हुआ ।इतने अनशनकारी आमरण अनशन और पुलिस कार्यवाही में प्राण गवा चुके ।

इतनी महिलायें रोज़ आमरण अनशन में शामिल हो रहीं हैं, अभी और महिलायें आमरण अनशन पर बैठने जा रही हैं ,सरकार ने उनकी बातों पर गम्भीरता से क्या विचार किया  ।कितने लोगों को और आप मारना चाहते हैं ?

समोध ने उद्धगिन्न हो पूछा -क्या आप आखिरी मादा तक की मृत्यु का इंतज़ार कर रहे हैं ?

मीटिंग  गहमा गहमी में बिना किसी निर्णय के ख़त्म हो गई ।

आंदोलन कर रहे लोगों की समझ में आ गया कि प्रशासन कोई भी पहल करने नहीं जा रहा । उन्होंने ने तय किया गया कि शीघ्र ही उन्हें कोई निर्णय करना ही होगा ।अगले तीन चार दिन में ही दो महिलाओं की मृत्यु हो गई थी ।प्रशासन को जैसे इन बातों से जैसे कोई फर्क न पड़ रहा था । वह सोचता – वे इस तरह सभी महिलाओं के आमरण अनशन पर बैठने से भी चिंतित न हुए थे ,प्रशासन इतना संवेदनहीन  कैसे रह सकता है -उन सबको शीघ्र ही कोई कठोर निर्णय लेना ही होगा ।

कुल्ले भी दो दिन बाद छूटकर घर आ गया था , लेकिन लाठियों का दर्द अभी शरीर को सीधा न होने देता था । वह समोध के साथ बैठा था । पूरी बात सुनकर उसने कहा – तुम्हें सभी महिलाओं और दूसरे लोगों से जल्दी संपर्क करना होगा । अंत में तय हुआ कि आने वाले मंगलवार को हर गाँव से अधिक से अधिक लोग क़स्बे में पहुँचेंगे और मुख्य मंदिर पर प्रदर्शन करेंगे ,जिसमें यही माँग मुख्य होगी कि मुख्य पुजारी द्वारा जारी किए गए धार्मिक आदेश रद्द हों । स्त्रियों को अपने जीवन का पूरा अधिकार हो । वह स्वेच्छया से जिसके साथ चाहे रहे ,विवाह कर सकें  ।ऐसी ही मीटिंग क़स्बे में भी होती रहीं । समोध चुपचाप रात के अंधेरे में क़स्बे में आता, लोगों के साथ मीटिंग करता और भोर होने से पहले ही वापस लौट जाता ,कुल  चार पाँच दिन ही उनके पास थे सब कुछ करने के लिए , समोध दिन रात भाग दौड़ में व्यस्त रहता । उसने कुल्ले से कई बार कहा – मैं सब सम्हाल लूँगा , तुम्हें प्रदर्शन स्थल पर रहने की ज़रूरत नहीं । हमें तुम्हारी जान की भी चिंता है, लेकिन उसने साफ़ मना कर दिया , नाराजगी  में बोला – क्या मैं कोई हज़ार पाँच सौ वर्ष ज़िंदा रहूँगा? क्या यह तय है कि मेरे वहाँ न जाने से मैं अमर हो जाऊँगा ? समोध की आँख भर आयी ,उसने कुल्ले को बाँहों में भर लिया, बोला – ठीक है ,रहना वहाँ ,लेकिन अपना ख़याल रखना । हम सबके लिए तुम्हारा जीवन बहुत कीमती है । दोनों एक दूसरे के बाहुपाश में देर तक बंधे रहे, समोध कुछ देर में आगे के कार्य को देखने निकला -कुल्ले से कहता गया – अभी दो तीन दिन कहीं निकालना मत , अपना ध्यान रखना । कुल्ले ने हाथ हिला उसे अलविदा कहा , उसकी भी आँखें डबडबा आई थीं ।                                                                                 वह दिन आ ही पहुंचा जब आंदोलनकारियों के धैर्य की परीक्षा होनी थी ,जब मंदिर के मुख्य पुजारी को लोगों के विश्वास पर खरा उतरना था ,पुलिस प्रशासन को उस बड़े प्रतिरोध को रोकने के लिए तत्पर रहना था ।

उससे पहले होने वाली रात आधी से अधिक बीत चुकी थी ,मुख्य पुजारी के कमरे में हो रही बैठक में अधिकारियों, पुजारियों के चेहरों पर सर्द सी खामोशी बैठी थी । कल के प्रदर्शन के विषय में मुख्य पुजारी के सवाल का जवाब देते समय पुलिस प्रमुख उतने आश्वस्त न थे , शायद पुलिस को ठीक तरह जनता की संभावित कार्यवाही की पूरी जानकारी भी न थी । पुलिस प्रमुख ने खड़े होकर जब कहा – आप किसी तरह की चिन्ता न करें, पुलिस पूरी तरह मुस्तैद है ।किसी को भी कल क़स्बे में बाहर से प्रवेश की अनुमति न होगी । यदि किसी ने कानून तोड़ने की कोशिश की, तो हम कठोर कार्यवाही करेंगे । कुछ पुजारियों, और अधिकारियों ने कुछ क्षणों के लिए आशा भरी निगाह से पुलिस प्रमुख को देखा, लेकिन मुख्य पुजारी के भीतर चिन्ता सिर उठाए ही रही ।

सुबह से ही लोगों का हुजूम क़स्बे में इकट्ठा होने लगा । पुलिस ने  क़स्बे में आने वाले रास्तों पर अवरोध लगा रखे थे। कई जगहों पर लोगों को हिरासत में लेकर अस्थायी बनी जेलों में रखा गया था ।लेकिन  बहुत बड़ी संख्या में लोग दो तीन दिन पहले से  ही क़स्बे में ,गाँवों से आकर ठहर गये थे ।आंदोलनकारियों को इस बात की आशंका पहले से ही थी कि उस दिन पुलिस उन्हें क़स्बे में न जाने देगी ।ऐसा न था कि मुख्य पुजारी के साथ कोई न था । बड़ी उम्र के बहुत से लोग , वे लोग जो प्रशासन से जुड़े थे ,कुछ पुरातन विचार मानने वाले यह मानते थे कि मुख्य पुजारी द्वारा  दिये गये सभी धार्मिक आदेश समाज के हित में थे, लेकिन अधिकतर युवा ,जवान ,महिलायें ,युवतियाँ इसको  पूरी तरह ग़लत मानते थे।

मुख्य मंदिर के सामने भारी भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी ,भीतर अपने कक्ष में बैठे  मुख्य पुजारी ,मंदिर के अन्य पुजारी ,प्रशासन के अधिकारी सब बढ़ रही भीड़ को देखकर चिंतित थे । पुलिस प्रमुख ने मुख्य पुजारी को देखते हुए कहा – महाराज जी यदि आप एक बार भीड़ को बारजे से संबोधित कर दें तो भीड़ कुछ नियंत्रित हो जाएगी ।बाहर से कस्बे में हर प्रवेश द्वार पर पुलिस तैनात है। ऐसा लगता है प्रदर्शनकारी किसी और रास्ते से कस्बे में प्रवेश कर गए हैं । लेकिन हम पूरी तैयारी से हैं । हम जल्दी ही इन्हें नियंत्रित कर लेंगे । अन्य लोग भी पुजारी महाराज को देखते रहे मुख्य ,पुजारी ने सबकी ओर एक बार देखा, फिर दंड को देखते हुए बोले -ठीक हैं मैं जनता को संबोधित करूँगा  ।

बाहर भीड़ अनियंत्रित हो रही थी जिसे पुलिस के सिपाही किसी तरह नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे, भीड़ तेजी से नारे लगा रही थी -पुलिस प्रशासन मुर्दा बाद , मंदिर प्रशासन मुर्दाबाद । हमारा जीवन हमारा है ,कैसे रहना तय हम करेंगे । बारजे पर दो तीन व्यक्तियों के साथ दो पुजारी आ खड़े हुए । उनमें से एक ने तेज आवाज में कहा -आप सब शांत रहिये । महाराज जी आपसे कुछ कहने के लिए स्वयं आ रहे हैं ।पुलिस भी लोगों को शांत करने की कोशिश करती रही , इस सबसे भीड़ कुछ शांत जरूर हुई ।

आगे एक पुजारी दंड लेकर चलता हुआ आ खड़ा हुआ , उसके बग़ल से निकल मुख्य पुजारी आकर बारजे पर खड़े हो गये ।उन्हें देख भीड़ कुछ क्षणों को शांत हो गयी  । मुख्य पुजारी ने हाथ उठाकर भीड़ का अभिवादन किया ।पुलिस लोगों को शांत करने में जुटी रही ,लेकिन बीच में नारे लगते रहे ।मुख्य पुजारी ने कहना शुरू किया -मेरे प्रिय जनों ,आप ईश्वरीय आशीष से पूर्ण लोग हैं ।आपके ऊपर पर इस वक्त धर्म की रक्षा की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है । हम सबसे प्राचीन सभ्यता के अवशेष हैं । इस पवित्र धरा के निवासियों, आप धर्म के रास्ते आगे बढ़ें । लेकिन तभी भीड़ से कोई चिल्लाया – यही है पातकी, इसी के कारण हमारे लोग मारे जा रहे हैं। इसी के साथ भीड़ पुलिस पर टूट पड़ी । कुछ लोग मंदिर के अंदर प्रविष्ट कर गये । कुछ लोग दौड़ते भागते ऊपर बारजे तक जा पहुँचे । दो एक पुजारियों को उन्होंने धक्का दिया और मुख्य पुजारी को पकड़ लिया ।इससे पहले एक ने दंड को पुजारी से छीन लिया । एक आंदोलनकारी ने मुख्य पुजारी को चोटी से पकड़ ,कहा –चलिए आप स्वयं घोषित करिए कि आप सारे नियम वापस ले रहे हैं । मुख्य पुजारी उसके धक्के से फ़र्श पर लुढ़क गये थे ।वहाँ खड़े सुरक्षा कर्मचारी जनता का उग्र रूप देख गायब हो गए थे। पुलिस का भी कहीं पता न था । कुछ देर यूं ही अफरा तफरी भरा माहौल बना रहा, लगता था जैसे प्रशासन नाम की कोई व्यवस्था वहाँ न थी ।

तब तक समोध भी ऊपर पहुँच चुका था । एक व्यक्ति मुख्य पुजारी को पकड़ खींचते हुए बारजे तक ले आया था। वह व्यक्ति बोला- महराज जी स्त्रियों पर लागू सभी धार्मिक प्रतिबंधों को समाप्त करने की घोषणा कर रहे हैं ।उसने पुजारी को बारजे पर आगे खड़ा कर दिया, बोला -आप हाथ उठाकर जनता को आशीर्वाद दीजिए । पुजारी ने दोनों हाथ हवा में जोड़ने की मुद्रा में उठाये ,उसके पाँव थर-थर कांप रहे थे ,उसने शायद हाँ कहा हो या मुंह से कोई बोल न फूटे थे ,समोध ने दंड को हवा में उठाकर लहराया ,बोला – पुजारी जी कह रहे हैं कि आज से सभी स्त्रियों पर लगे प्रतिबंध वे हटाने के आदेश दे रहे है । वे अपनी इच्छा से अपने निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं । इसलिए वे इस दंड को तोड़ देने के आदेश दे रहे हैं । इसी के साथ उसने दंड को दो तीन टुकड़ों में तोड़कर बारजे पर फेंक दिया , नीचे भीड़ तेज तेज नारे लगाती रही- जय हो ,जन जन की जय हो । कुछ ने पुजारी को लड़खड़ाकर फर्श पर गिरते देखा। भीड़ में खड़े जोश में हाथ हिलाते रहे थे ,कुल्ले को समोध ने देखा , वह जल्दी से सीढ़ियाँ उतरने लगा , उसे कुल्ले से मिलने की उतावली थी ।

—————————————

नरेंद्र प्रताप सिंह

जन्म -2 फरवरी 1955 को उत्तर प्रदेश (जनपद सुल्तानपुर) के गाँव उघरपुर भटपुरा में ।

वर्ष२००१ में कथा देश के नव लेखन अंक में कहानी -अधूरी कविता से लेखन विधिवत शुरू हुआ। विभिन्न पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित- यथा कादंबिनी,हंस,कथादेश,वागर्थ,नया ज्ञानोदय,साक्षात्कार,उत्तर प्रदेश,लमही आदि।

पेशे से चिकित्सक रहे ,उत्तर प्रदेश स्वस्थ सेवा में 1979 से विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे ।

राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा वर्ष 2018-19 में बाण भट्ट पुरस्कार व हिन्दी साहित्य परिषद प्रयाग द्वारा कथा श्री सम्मान प्राप्त ।                       प्रकाशित रचनाएँ –

उपन्यास -ताल कटोरी ,स्पेशल वार्ड

कहानी संग्रह -सलीब पर देव

कविता संग्रह – अयोध्या विदा .

संपर्क -624c/50 आर के पुरम

मल्हौर स्टेशन रोड चिनहट

(शिवम् भारत इंटर कॉलेज के पीछे )

चिनहट लखनऊ उप्र

पिन -२२६०१०

मोबाइल 9415364658

 


Discover more from रचना समय

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Categorized in: