रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति समकालीन युवा कविता के अत्यंत ही प्रतिभाशाली कवि हैं। स्वभाव से औघड़ दिखने वाले रवीन्द्र में सूफ़ी काव्य – परम्परा जीवंत दीखती है। आप विदिशा में रहते हुए भी विदिशा में नहीं रहते। बहुत मुश्किल इनको पाया जा सका है। और उतनी ही मुश्किल से इनकी कविता को।
बहरहाल, इर बिरले कवि की कविताएं आप पढ़ें,अच्छी लगेंगी।
कविताएं :
लिखने का कोना
तुम उम्मीदों की लाइन की तरह हो
जिसे ईस्वर ने सृजा है
तुहारे घर में लिखने का कोना होगा
दुनिया उम्मीदों से भरी होगी
करो अपने घर में अपने लिखने का समय भी शिफ्ट करो
अपनी कल्पनाओं को अपने सामानों के बीच में शिफ्ट करो
अपनी सोच को दरवाज़े पर रंग की तरह लगा लेना
अपने विचारों को गुलदान की तरह खिड़कियो में रख देना
रखना अपने करीब वह सब जिससे
दुनिया को सुंदर बनाने के लिए कोई भी तुमसे ले सके
अपनी दुनिया का एक दरवाज़ा सदैव खुला रखना
000
उदास होने से पहले
ज़िंदगी रात की लाइटों में चमक रही है
एक उदास सूने रास्ते पर जिस में मेरे अलावा कोई नहीं है
मेरे रास्तों पर तुम्हारा चेहरा फैला है
रात के काले बाल सुबह होने से पहले की भोर में बिखर गए
आंखों की चमक लाइटों में घुल कर मेरे शरीर से लिपटी है
विदा होती रात की ये बेला उदास है
मैं दिन के बचे होने की चिंता में तुमको लगातार देख रहा हूं
ओ उदास लड़की तुममें अब पक्षी चहकने लगे
और मुझमें तुम किरणों की तरह चमकने लगीं
तुम्हारी उदासी ज़िंदगी में पेंटिंग की तरह टँगी है
जिसमें मैं गुजर कर तुम्हारे दिन में प्रवेश करूँगा
000
वह
उसकी पानी भरी गहराइयों पर वह ज्ञान की किरणों की तरह चमक रही है
मैं उसमें नदी समुंदर और एक विशाल झील देख रहा हूँ
धरती पर सहेजे पानी पर उसकी ही किरणें झिलमिल हैं
वह पहाड़ों की तराई है और शिखरों की धवलता
इंसानियत के इतने रंगों से इंसान को जैसे उनने रंग दिया
कि पृथ्वी सब जगह उसकी ही तरह सुंदर हो गई
मैं पृथ्वी पर देख रहा हूं
वह किरणों की तरह सब कुछ में चमक रही है
उसके होने की छांव से धरती और इंसानियत कितनी रंगीन है
उसमें सुभाषितों की तरह अनन्त अर्थ भरे हैं
और ज्ञान की किरणों में जीवन की तरह चमक रही है
पृथ्वी पर वह ओस की बूंद की तरह चमकती है
हे प्रभु ! मैं तुम्हारे हस्ताक्षरों में चमकूं या उसके पवित्र ज्ञान में
सब तुम्हारा सृजन है
समुंदर के पानी और ज्ञान की किरणों के बीच मैं अकेला हूं
मैं तुम्हारे हस्ताक्षरों में उसके सौंदर्य की तरह चमक रहा हूं
000
आसान नहीं ये सफर
आसान नहीं धूप में चलना
ज़िंदगी छांव का पेड़ तो है
रास्ता पूरा छांव का नहीं
चलो धूप और छांव में
ये ज़िंदगी ऐसी ही है
आज किसी के लिए है
कल किसी और के लिए
बहुत गुजरते हैं दिन रात
कभी इनमें गुजर के देखो
ये ज़िंदगी ऐसी ही है
इसे ऐसे ही चल के देखो
000
स्वेटर किताबें और मौसम
ये मौसम समय के अक्षरों से लिखी किताब की तरह है
जिसे मैं किताब में समेट कर पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं
तुम भी पढ़ो मेरे साथ इस दूब में बहुत कुछ लिखा है
तुम्हारे क़दमों के चिह्न इस दूब में कविता ही तो हैं
जहां तुमने दूब की नोकों पर समय को रखा है
किसी भी मौसम में अपने क़दमों को पढ़ना
अपनी ही सुंदरता में से गुज़रना है
तुम्हारा स्वेटर मौसम में गरमाई के लेम्प पोस्ट की तरह
मेरे अंदर एक रोशनी से भीगा है
तुम समय और मौसम में से एक साथ गुज़र रही हो
जहां तुम्हारे क़दमों के आकार समय पर बने शिलालेख हैं
जिन्हें लाखों साल बाद तुम्हारी मुस्कुराहट की रोशनी में
कविता की तरह पढ़ा जाएगा
000
पूजा की थाली
मैं कुछ और सीख रहा था और वह कुछ और
वह कर्म और भाव की आराधना में वह निमग्न थी
और मैं कर्म की उथल पुथल में व्यस्त
हम जीवन को एक पहचान देने के लिए संघर्षरत थे
उसकी सुंदरता संघर्ष में झलक रही थी
मैं जीवन की एक रेखा में और वह पूजा के भावों की लय में
हम पूजा और कर्म के आसपास घूम रहे थे
जैसे कोई सुगन्ध हवाओं की लहरों पर चल रही हो
पूजा की थाली के साथ वह सबसे शांत प्रार्थना थी
मैं उसकी प्राथना में फूल की तरह
वह जीवन की सबसे बड़ी गति में
एक बहुत छोटे से भाव की तरह थी
जिसे मैं सब तरफ़ फैला रहा था
उसकी प्रार्थना मेरे सभी कर्मों में नमी की तरह व्याप्त थी
और मैं उसके लिए एक छोटे से फूल की तरह
वह अपनी पूजा और प्रार्थना में बहुत कुछ सीख रही थी
और मेरे सभी सिद्धान्तों से बाहर हो रही थी
वह अपनी पूजा की थाली के साथ
दुनिया में सबसे बड़ी प्रार्थना थी
000
फ़ाइल से बाहर का जीवन
वह सुबह की मुस्कान है और हरियाली जीवन का हिस्सा
जिसे सुबह की रोशनी में लॉन की हरियाली सा साधे हो
उससे पता चलता है जीवन हर फ़ाइल से बाहर है
और काम से लेकर घर तक फैली उठापटक में
तमाम सुबहों की मुस्कान से भरी हुई
एक छोटी सी राह का टुकड़ा फैला है उसके आगे
उसने खड़े होकर अपनी ज़मीन हासिल की
और अपने हर तरफ़ मुस्कान के पौधे लगाए
वह अपने काम में जीवन की सुंदरता को सहेजती है
उसकी साड़ी में गहरी शाम की पर्पिल लहरें
संसार के इस छोर से उस छोर तक लहलहा रही हैं
वह मेरी धरती पर फैली जीवन की सुंदरता है
जिसे मैं सुबह सुबह लान में हरियाली की फ़ाइल लिए
धरती पर चलते हुए देखता हूं
000
सोना मत
मत सोना कि सोने का मतलब बिस्तर पर लेट जाना नहीं
नींद पूरी करने को सोना नहीं कहते
तुम मत सोना जब तुम बाज़ार में घूमो
दुनिया के लिए कुछ लिखो तब मत सोना
जब दुनिया के स्वार्थी लोगों से मिलो तब मत सोना
जब कोई लोभ दे उस एक क्षण को मत सोना
दोपहर भर सोना और रात में भी सोना
लेकिन जब लालच सामने से गुज़रे तो एक पल की झपकी मत लेना
सोना रात भर लेकिन जब जागना हो तब एक पल की नींद से बचना
जब अपनी बेईमानियों को देखने का समय मिले तब मत सोना
सोना पर साथ साथ जागते रहना
सड़क पर चलते हुए मत सोना
आंखें खोल कर कभी मत सोना
रात में सोना लेकिन
सबसे ख़तरनाक है धूप में सड़क चलते हुए सोना
बाज़ार की लाइटों में सामान ख़रीदते हुए सोना
सबसे ख़तरनाक है सोना रात की नींद के अलावा
चलते हुए सोना
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तुम उम्मीदों की लाइन की तरह हो
जिसे ईस्वर ने सृजा है
तुमहारे घर में लिखने का कोना होगा
दुनिया उम्मीदों से भरी होगी
करो अपने घर में अपने लिखने का समय भी शिफ्ट करो
अपनी कल्पनाओं को अपने सामानों के बीच में शिफ्ट करो
अपनी सोच को दरवाज़े पर रंग की तरह लगा लेना
अपने विचारों को गुलदान की तरह खिड़कियों में रख देना
रखना अपने करीब वह सब जिससे
दुनिया को सुंदर बनाने के लिए कोई भी तुमसे ले सके
अपनी दुनिया का एक दरवाजा सदैव खुला रखना
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आजबाइन
कितनी कड़बी हो सकती है आजबाइन
लेकिन तुम इसे कड़वी मत समझना
ये जीवन की सबसे बड़ी कड़वाहट है
जिसकी मिठास बहुत गहरे ख़ून में घुलती है
जैसे प्रेम के दर्द होते हैं एक के बाद एक
आजबाइन वैसे ही कड़वाहट से मिटास पैदा करती है
घर मे उपेक्षित पत्नी के प्रेम की तरह
एक डिब्बी में या किसी पॉलीथिन में
कितनी अमृत है आजबाइन जिसे न तुम कोई महत्त्व देती
और न मैं
मेरे जीवन की सबसे बड़ी नेमत है ठीक तुम्हारे होने की तरह
000
बुद्ध जैसे रंग में
जीवन में मुस्कान के रंग की तरह हैं बुद्ध
आसमान में सुनहरा रंग हैं
जिसे तुमने शरीर पर रंगीन लय की तरह पहन लिया है
रेखाएं घूमते हुए जीवन का वलय बना रही हैं
उनकी शांति सब तरफ़ घूम रही है
तुम्हारे तन की गोलाइयों पर बुद्ध की विनम्र रेखाएं
संसार की कठोरता में लय के प्रवाह को साधे हुए हैं
तुम्हारे होने से संसार में बुद्ध हैं
जीवन अपने प्राचीन और नए के बीच
मध्यधारा की तरह गुंथा हुआ है
समय के बीच में बुद्ध पैदा होते हैं
और हम उनके किनारों पर सदियो तक खड़े होते हैं
आश्चर्य है कि आज तक हम जीवन को बुद्ध की लयों में
नहीं रख पाए
बुद्ध की लयों में मैं तुम्हारा और अपना जीवन खोजता हूं
तुम्हारे हाथों के कर्व और जीवन की गरिमा
किसी एक मोड़ पर मिलते हैं
ओ पृथ्वी ! मैं तुम्हारे जीवन की इस गरिमा को जीना चाहता हूं
मैं बुद्ध की लयों से अपने जीवन को सजाना चाहता हूं
तुम बुद्ध की सबसे शांत लय हो और मैं उनमें बहता हुआ उनका संदेश
000
रास्ता
जिस पर मैं आया था उस रास्ते पर भी तुम आई थीं
अक्सर रास्ते एक ही होते हैं पर हम बदल कर
न जाने कहां कहां पहुचते हैं
तुम एक दरवाज़े और मैं किसी जंगल में
कोई समुंदर के सामने तो कोई पहाड़ के पास
चलता मैं भी हूं और तुम भी चलती हो
हर चलने से मंजिल नहीं आती
चलना कमाल है रास्ता हमारे चलने की ख़ुशबू
000
चाय पर
पहली लाइन को देश की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़कर इकोनॉमिकल करो यह पार्टी पॉलिटिकल कविता बन जाएगी
कुछ लोग चाय पर आ रहे हैं इसलिए सब कुछ सही किया जा रहा है
किसी के यहाँ चाय पर जाना सबसे ख़ूबसूरत काम है
किसी को चाय पर बुलाना
धरती पर दुनिया का सम्मान करना है
मैं तुम्हारी चाय के लिए कहीं भी सम्मान देना चाहूंगा
तुम्हारे यहां चाय पर आने वाले या मेरे यहां
हमारे बीच चाय एक ग्रीज है
और रिश्तों की डोर उसकी भाप में गर्म रहती है
मैं चाय पर आने वालों का सम्मान करता हूं
000
मैं हिंदी का चोर हूं
मेरी प्यारी हिंदी मैं चोर और जुगाड़ का लेखक हूं
मैं लिखने से ज़्यादा संपर्क पद और धन पर यक़ीन करता हूं
मैं बहुत बड़ा चापलूस हूं
मैं गुरुडम और वरिष्ठों के पैर पड़ कर तारीफ हासिल करता हूं
मैं दस मित्रों को पुरस्कर से उपकृत करता हूँ
तब अपनी साख बचाने एक अपरिचित प्रतिभाशाली को खोजता हूं
मैं एक साल पहले अपने दोस्त से बोलता हूं
इस बार तुमको 11 हज़ार वाला पुरस्कार दूंगा
मैं बहुत जल्दी अपमानित महसूस करता हूं
कि मुझे फलां सुबह गुड मॉर्निंग नहीं बोलता
और अब मैं उसको आने वाले विशेषांक में नहीं लूंगा
हो कितना भी अच्छा लीखने वाला देखता हूं
तमाम कमतर मुझे कम से कम याद तो करते है
मैं इसको बड़ा लेखक बना सकता था
आलोचनाएं छपवा और छाप सकता था
लेकिन बहुत अकड़ में रहते हैं
अब एक लंबी उपेक्षा झेलेंगा तब पता चलेगा साले को
कि हम क्या हैं
मैं इसकी रचनाएं सिलेबस में लगवा रहा था पर अब नहीं
अब तो ये खुद ही साबित कर ले
मेरी प्यारी हिंदी
तुम्हरे अंदर दो चार भले लोगों के बीच
अधिकांश ऐसे लोग हैं जो सेवा प्लस चापलूसी का इन्वेस्ट पसन्द करते
मेरी हिंदी तुम जानती हो
इससे दुनिया तो क्या मेरे अड़ोस पड़ोस के लोग भी नहीं पसन्द करते
संघर्ष के नाम पर नकली भूख और मजूरी को
शब्दों मे पिरो कर वाही वाही कर रहे हैं
कबीर और मीरा को गोद में सम्हालने वाली मेरी हिंदी
आज मेरे कवि तुमसे इतने दूर हो गए
कि लोग चुटकुला सुनने वाली फ़ौज को कवि कहने लगे
ओ मेरी प्यारी हिंदी ! मैं तुमसे कुछ चुराना चाहता हूं
तुम मेरी ज़िंदगी में कबीर की तरह फैलो
मीरा की तरह नाचो
तुम पर कौन सा आलोचक भार बन कर टहल रहा है
तुम इतने तनाव में क्यों हो
000
हर तरह से समृद्ध है जीवन हरी साड़ी के पल्लू में
ओ पृथ्वी ! कितनी गहरी है तुम्हारी इंद्रधनुष जैसी मुस्कान
तुम्हारे गले में सुबह की सुनहरी किरणों का हार
जिससे दुनिया में उजास भरा है
ईश्वर के सात रंगों वाला
मेरे मन के आसमान का इंद्रधनुष
तुम्हारे आसपास खिल कर तुमको और सुंदर बना रहा है
मेरी दुनिया के सभी रंग तुममें ओस की तरह चमक रहे हैं
मैं मुग्ध हूं कि तुम मेरे समय पर रोशनी की रेखा सी खींची गई हो
संसार के सभी प्राणी तुम पर पनाह लिए हैं
तुम बहुत गहरी बहती नदी में चमक रही हो
मैं अपने संसार के लिए ऋणी हूं ओ पृथ्वी !
तुम्हारी सुंदरता सबसे गहरी जलधाराओं की तरह
प्रतिपल मेरे संसार से गुज़र रही है
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तुम मुझे प्यार मत करना
कितना गहरा है उसका प्यार वह नहीं बताती
वह नहीं करती कोई बात जो प्यार लगे
पर वह हर तरफ़ अपने प्यार को कालीन की तरह बिछाती है
मेरे हर तरफ़ उसका ही कालीन फैला है जैसे समुद्र
मैं देखता हूँ भौंचक
आखिर उसने क्यों बिना कहे मुझे समुद्र जैसा कालीन दिया
प्यार में मेरा जीवन कितने छोटे से तिनके सा फैला है
तुम प्यार मत करना मैं तुम्हरे समुद्र जैसे कालीन में डूबा हूं
000
कविता
एक जीवन को भगवान ने क्यारी में लगा दिया
तुम लाल फूल की तरह खिली हो
धरती के रंग में
जीवन और लाल फूल दोनों धरती के हैं
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तुममें डूब जाऊं अमृता
और एक इमरोज बन जाऊं
एक छोटे से घर में तुम आओ जाओ
जिसके दरवाजों में कोई कुंड़ी नहीं हो
000
सो जाता हूं मैं
मैं ऐसे नहीं सोता जैसे सब सोते है
मैं सोता हूं उस सब को भूल कर जिसे मैंने दिनभर जिया था
जो बचता है वह एक काली रात में बदल जाता है
कुछ घटनाओ के संदर्भ जड़ों की तरह मेरे अंदर रहते हैं
मैं सोता हूं सुबह को ख़ाली ड्राइंग शीट की तरह पाने के लिए
मैं सोता हूं बहुत सी नाजायज चीज़ें जीवन से बाहर करने के लिए
000
एअरपोर्ट पर लड़की
उसे देहली से लखनऊ जाना है और वापस भी लौटना है
तीन दिन के सफर में उसके पास कुछ कविताएं हैं
जो हैंडबैग में मुड़े तुड़े काग़ज़ जैसे काव्य भावों
और किसी कांच के टुकड़े हेअर पिन की तरह पड़े हैं
विचारों से बाहर की जेब में कुछ नोट और डेविट कार्ड हैं
फ़्लाइट का टिकिट है जो उसके साथ उदासीन इंसान के व्यक्तिव की तरह साथ है
एक और चीज़ है जिसे आत्मविश्वास कहा जाता है
ये उसके चारों तरफ़ उजले कपड़ों की तरह दिप दिप
मैं उसे कांच में से देख रहा हूं
और वह कांचों से आगे निकल रही है
उसकी फ्लाइट के पास आसमान ज़मीन से टच हो रहा है
मैं सोचता हूं लड़की एअर पोर्ट पर है
और कुछ चीज़ें उसके साथ उड़ान पर हैं
000
शब्दों के बाहर भीतर आओ जाओ
तू ही तू है और तुम भी मैं हूं और हम भी वो हैं
देख मेरी प्यार ये देश तू है
तुझ में मैं हूँ और कल तू लखनऊ में होगी
तू मेरी देश है और मैं तुझ में जनता की तरह लहराता हूं
मेरा कायदा नज़ाकत आप और तुम सब दरवाजे हैं
मैं तुझ में हर तरफ़ से अंदर आऊंगा
ओ लड़की ! मुझे अंदर आने दे
कभी तू की तरह कभी आप की तरह और कभी मेरी प्यारी कवि की तरह
देख मैं तुझ में हर तरह के फूलों की तरह मुस्कुरा रहा हूं
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एक पिक
तुममें तुम सबसे उचित लगती हो
तुम्हारी हरियाली में हरियाली सबसे अच्छी लगती है
जैसे कविता में कविता की पंक्ति होती है
तुम अपने आसपास में कितनी विविधता से भरी हो
जैसे नदी में लहरें होती हैं अनन्त
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ओस के आसपास
ओस के चारों तरफ़ वही है जो मेरे आसपास है
कुछ तिनके कुछ फूल और दूर तक फैली दुनिया
मैदानों में पड़े कुछ ख़ाली पैकिट और काग़ज़
कुछ हवा में उड़ कर दूर झाड़ियों में उलझे
एक अनावश्यक पर्यटन से बची ग़ैर ज़रूरी चीज़ें
ओस के आसपास वही सब है जो मेरे चारों तरफ़ है
मैं नहीं चाहता कि दुनिया में कुछ भी अलग अलग हो
ओस सब पर आती है और सबके लिए है
मैं जब भी ओस को देखता हूं उसमें अपने आसपास का सब दिखता है
फूल भी और छोड़ी और फेंकी गई रद्दी भी
दुनिया कितनी भी अलग हो कुछ चीज़ें सब पर बराबर आती हैं
000
आंखें जीवन देखती हैं
आंखों से जीवन जिया जाता है
ऐसी आंखें तुम्हारे पास हैं
000
हीरों की खान से भरी पृथ्वी जितनी सुंदर हो सकती है
मानवता के साथ हरियाली में दुनिया जितनी सुंदर हो सकती है
तुम उससे कुछ ज़्यादा हो
दुनिया का सब कुछ धूप में दीप्त हो रहा है
जैसे तुम अपनी आंखों में संसार की हर चीज लिए हो
बहती हुईं नदियां और पानी की नीली झीलें
गमले में खिले फूल की तरह बालकनी में
कभी कभी हवा के झोंके में सब कुछ उमड़ पड़ता है
तुममें वही उमड़ रहा है
तुम्हारी आंखों में धूप छांव सा एक सपना चमकता है
संसार के सारे बादल और किरणों की तरह पवित्र सुंदरता में तन दमक रहा है
प्रकृति तुम जीवन में छाए बसन्त की सबसे
गहरी छांव हो जिसमें
ऊपर खिले फूलों और नीचे बिछे फूलों में
छन कर आती किरणों की तरह हो
हर पल तुममें से गुज़र कर सुख में बदल रहा है
जीवन के सभी दुखों में तुम प्रार्थना की तरह हो
तुम्हारे आँचल पर धरती के सभी सुख
दूब के मैदान की तरह फैले हैं
मैं प्रार्थना में हूं और तुम प्रार्थना की तरह सुंदरता में
मेरा संसार तुम्हारी सुंदरता में सुख के हरे भरे मैदानों सा सुखी है
तुम पृथ्वी के सभी सुखों से कुछ ज़्यादा सुंदर हो
0000
चाय एक कमेंट है
कभी कभी चाय अच्छी नहीं लगती
कभी अकारण अच्छी लगती है
मैं चाय को दोनों स्थितियों मे जीता हूं
जब भी चाय हाथ में होती है
मुझे देश की राजनीति पर कमेंट करते हुए कप की तरह लगती है
और दूसरी तरफ़ तुम्हारे साथ महकती चाय की सोहबत
चाय पी कर हम कुछ भी हो सकते हैं
जैसे कि चाय एक प्रधानमंत्री पीता है
और गुमठी पर बैठ कर चार फोकटिये भी
हर स्थिति चाय को एक रंग देती है
जिसमें कभी में होता हूँ और कभी नहीं
चाय इस देश पर एक कमेंट है
000
क्या दूँ मैं तुमको
क्या दूं मैं तुमको कि कुछ देने जैसा लगे
देने के बिना कुछ देना कैसे हो
मैं दूं और तुम ले लो क्या है इस धरती पर
तुमको क्या दूं जो लगे कि दिया है
और तुमको लगे कि कुछ पाया है
आओ आज मैं तुमको अपना प्यार देता हूं
और एक छोटी सी गिफ्ट जो तुमको पाई हुई लगे
आओ हम एक दूसरे को कुछ देते हैं
जिसमें देना हो और पाना भी हो
मैं तुमको दे रहा हूं कुछ क्या तुम लोगी
000
मैं कैसे मर सकता हूँ
मैं तुम्हारे लिए मरना चाहता हूं
लेकिन कैसे मर सकता हूँ
मुझे बादल की तरह आसमान में मरना नहीं आता
मरने के बिना जीना भी कैसे सीखूं
मैं हवा की तरह हवा में नहीं मर सकता
ज़िंदगी में बहुत कुछ सीखा लेकिन मरना नहीं सीख पाया
सीखे हुए काम बार बार किये जाते हैं
मरना कैसे बार बार करूं
मैं अगर मृत्यु को जाने बिना मारा गया
तब मैं फिर से कैसे मर सकता हूँ
मृत्यु हरियाली की तरह सब जगह है
और तुम अगर मृत्यु हो तो
तुम मेरी प्रेमिका हो
मेरी ज़िंदगी इश्क का टुकड़ा है जिसे अपनी मृत्यु से मिलना है
000
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
जन्म 15 जून 1970, ग्राम-सियलपुर, तहसील-सिरोंज, जिला-विदिशा, मध्यप्रदेश
देश की सभी पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन
कोलाज, आधा बिस्किट, अफेयर, एक गर्लफ्रेंड की दुनिया, टीन टप्पर कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन
पता – रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
ग्रीन मोटर्स, गनपत कालोनी, विदिशा मप्र
सेल नंबर -9098410010
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रवींद्र स्वप्निल शब्दों से जीवन को बड़ी गहरायी से बुनते रहे हैं । जीवन की विसंगतियों को पकड़ना और उस पर निर्बाध चलना उनकी विशिष्टता है ।यूँ ही लिखते रहिए ।
abhar
रवींद्र स्वप्निल की रचनाएँ मंत्रमुग्ध कर देती है –
दुनिया को सुंदर बनाने के लिए
अपनी दुनिया का एक दरवाज़ा सदैव खुला रखना
धन्यवाद
ji namaskar