रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति समकालीन युवा कविता के अत्यंत ही प्रतिभाशाली कवि हैं। स्वभाव से औघड़ दिखने वाले रवीन्द्र में सूफ़ी काव्य – परम्परा जीवंत दीखती है। आप विदिशा में रहते हुए भी विदिशा में नहीं रहते। बहुत मुश्किल इनको पाया जा सका है। और उतनी ही मुश्किल से इनकी कविता को।
बहरहाल, इर बिरले कवि की कविताएं आप पढ़ें,अच्छी लगेंगी। -हरि भटनागर

कविताएं :

लिखने का कोना

तुम उम्मीदों की लाइन की तरह हो
जिसे ईस्वर ने सृजा है

तुहारे घर में लिखने का कोना होगा
दुनिया उम्मीदों से भरी होगी

करो अपने घर में अपने लिखने का समय भी शिफ्ट करो
अपनी कल्पनाओं को अपने सामानों के बीच में शिफ्ट करो
अपनी सोच को दरवाज़े पर रंग की तरह लगा लेना

अपने विचारों को गुलदान की तरह खिड़कियो में रख देना
रखना अपने करीब वह सब जिससे
दुनिया को सुंदर बनाने के लिए कोई भी तुमसे ले सके
अपनी दुनिया का एक दरवाज़ा सदैव खुला रखना

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उदास होने से पहले

ज़िंदगी रात की लाइटों में चमक रही है
एक उदास सूने रास्ते पर जिस में मेरे अलावा कोई नहीं है

मेरे रास्तों पर तुम्हारा चेहरा फैला है
रात के काले बाल सुबह होने से पहले की भोर में बिखर गए
आंखों की चमक लाइटों में घुल कर मेरे शरीर से लिपटी है

विदा होती रात की ये बेला उदास है
मैं दिन के बचे होने की चिंता में तुमको लगातार देख रहा हूं

ओ उदास लड़की तुममें अब पक्षी चहकने लगे
और मुझमें तुम किरणों की तरह चमकने लगीं

तुम्हारी उदासी ज़िंदगी में पेंटिंग की तरह टँगी है
जिसमें मैं गुजर कर तुम्हारे दिन में प्रवेश करूँगा

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वह

उसकी पानी भरी गहराइयों पर वह ज्ञान की किरणों की तरह चमक रही है
मैं उसमें नदी समुंदर और एक विशाल झील देख रहा हूँ
धरती पर सहेजे पानी पर उसकी ही किरणें झिलमिल हैं

वह पहाड़ों की तराई है और शिखरों की धवलता
इंसानियत के इतने रंगों से इंसान को जैसे उनने रंग दिया
कि पृथ्वी सब जगह उसकी ही तरह सुंदर हो गई

मैं पृथ्वी पर देख रहा हूं
वह किरणों की तरह सब कुछ में चमक रही है
उसके होने की छांव से धरती और इंसानियत कितनी रंगीन है

उसमें सुभाषितों की तरह अनन्त अर्थ भरे हैं
और ज्ञान की किरणों में जीवन की तरह चमक रही है

पृथ्वी पर वह ओस की बूंद की तरह चमकती है
हे प्रभु ! मैं तुम्हारे हस्ताक्षरों में चमकूं या उसके पवित्र ज्ञान में
सब तुम्हारा सृजन है
समुंदर के पानी और ज्ञान की किरणों के बीच मैं अकेला हूं

मैं तुम्हारे हस्ताक्षरों में उसके सौंदर्य की तरह चमक रहा हूं

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आसान नहीं ये सफर

आसान नहीं धूप में चलना
ज़िंदगी छांव का पेड़ तो है
रास्ता पूरा छांव का नहीं

चलो धूप और छांव में
ये ज़िंदगी ऐसी ही है
आज किसी के लिए है
कल किसी और के लिए

बहुत गुजरते हैं दिन रात
कभी इनमें गुजर के देखो
ये ज़िंदगी ऐसी ही है
इसे ऐसे ही चल के देखो

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स्वेटर किताबें और मौसम

ये मौसम समय के अक्षरों से लिखी किताब की तरह है
जिसे मैं किताब में समेट कर पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं

तुम भी पढ़ो मेरे साथ इस दूब में बहुत कुछ लिखा है
तुम्हारे क़दमों के चिह्न इस दूब में कविता ही तो हैं
जहां तुमने दूब की नोकों पर समय को रखा है
किसी भी मौसम में अपने क़दमों को पढ़ना
अपनी ही सुंदरता में से गुज़रना है

तुम्हारा स्वेटर मौसम में गरमाई के लेम्प पोस्ट की तरह
मेरे अंदर एक रोशनी से भीगा है
तुम समय और मौसम में से एक साथ गुज़र रही हो
जहां तुम्हारे क़दमों के आकार समय पर बने शिलालेख हैं
जिन्हें लाखों साल बाद तुम्हारी मुस्कुराहट की रोशनी में
कविता की तरह पढ़ा जाएगा

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पूजा की थाली

मैं कुछ और सीख रहा था और वह कुछ और
वह कर्म और भाव की आराधना में वह निमग्न थी
और मैं कर्म की उथल पुथल में व्यस्त
हम जीवन को एक पहचान देने के लिए संघर्षरत थे
उसकी सुंदरता संघर्ष में झलक रही थी

मैं जीवन की एक रेखा में और वह पूजा के भावों की लय में
हम पूजा और कर्म के आसपास घूम रहे थे
जैसे कोई सुगन्ध हवाओं की लहरों पर चल रही हो

पूजा की थाली के साथ वह सबसे शांत प्रार्थना थी
मैं उसकी प्राथना में फूल की तरह

वह जीवन की सबसे बड़ी गति में
एक बहुत छोटे से भाव की तरह थी
जिसे मैं सब तरफ़ फैला रहा था

उसकी प्रार्थना मेरे सभी कर्मों में नमी की तरह व्याप्त थी
और मैं उसके लिए एक छोटे से फूल की तरह

वह अपनी पूजा और प्रार्थना में बहुत कुछ सीख रही थी
और मेरे सभी सिद्धान्तों से बाहर हो रही थी

वह अपनी पूजा की थाली के साथ
दुनिया में सबसे बड़ी प्रार्थना थी

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फ़ाइल से बाहर का जीवन

वह सुबह की मुस्कान है और हरियाली जीवन का हिस्सा
जिसे सुबह की रोशनी में लॉन की हरियाली सा साधे हो

उससे पता चलता है जीवन हर फ़ाइल से बाहर है
और काम से लेकर घर तक फैली उठापटक में
तमाम सुबहों की मुस्कान से भरी हुई
एक छोटी सी राह का टुकड़ा फैला है उसके आगे

उसने खड़े होकर अपनी ज़मीन हासिल की
और अपने हर तरफ़ मुस्कान के पौधे लगाए

वह अपने काम में जीवन की सुंदरता को सहेजती है
उसकी साड़ी में गहरी शाम की पर्पिल लहरें
संसार के इस छोर से उस छोर तक लहलहा रही हैं

वह मेरी धरती पर फैली जीवन की सुंदरता है
जिसे मैं सुबह सुबह लान में हरियाली की फ़ाइल लिए
धरती पर चलते हुए देखता हूं

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सोना मत

मत सोना कि सोने का मतलब बिस्तर पर लेट जाना नहीं
नींद पूरी करने को सोना नहीं कहते

तुम मत सोना जब तुम बाज़ार में घूमो
दुनिया के लिए कुछ लिखो तब मत सोना
जब दुनिया के स्वार्थी लोगों से मिलो तब मत सोना
जब कोई लोभ दे उस एक क्षण को मत सोना
दोपहर भर सोना और रात में भी सोना
लेकिन जब लालच सामने से गुज़रे तो एक पल की झपकी मत लेना

सोना रात भर लेकिन जब जागना हो तब एक पल की नींद से बचना
जब अपनी बेईमानियों को देखने का समय मिले तब मत सोना

सोना पर साथ साथ जागते रहना
सड़क पर चलते हुए मत सोना
आंखें खोल कर कभी मत सोना
रात में सोना लेकिन
सबसे ख़तरनाक है धूप में सड़क चलते हुए सोना
बाज़ार की लाइटों में सामान ख़रीदते हुए सोना

सबसे ख़तरनाक है सोना रात की नींद के अलावा
चलते हुए सोना

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तुम उम्मीदों की लाइन की तरह हो
जिसे ईस्वर ने सृजा है

तुमहारे घर में लिखने का कोना होगा
दुनिया उम्मीदों से भरी होगी

करो अपने घर में अपने लिखने का समय भी शिफ्ट करो
अपनी कल्पनाओं को अपने सामानों के बीच में शिफ्ट करो
अपनी सोच को दरवाज़े पर रंग की तरह लगा लेना

अपने विचारों को गुलदान की तरह खिड़कियों में रख देना
रखना अपने करीब वह सब जिससे
दुनिया को सुंदर बनाने के लिए कोई भी तुमसे ले सके
अपनी दुनिया का एक दरवाजा सदैव खुला रखना

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आजबाइन

कितनी कड़बी हो सकती है आजबाइन
लेकिन तुम इसे कड़वी मत समझना
ये जीवन की सबसे बड़ी कड़वाहट है
जिसकी मिठास बहुत गहरे ख़ून में घुलती है

जैसे प्रेम के दर्द होते हैं एक के बाद एक
आजबाइन वैसे ही कड़वाहट से मिटास पैदा करती है

घर मे उपेक्षित पत्नी के प्रेम की तरह
एक डिब्बी में या किसी पॉलीथिन में

कितनी अमृत है आजबाइन जिसे न तुम कोई महत्त्व देती
और न मैं
मेरे जीवन की सबसे बड़ी नेमत है ठीक तुम्हारे होने की तरह

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बुद्ध जैसे रंग में

जीवन में मुस्कान के रंग की तरह हैं बुद्ध
आसमान में सुनहरा रंग हैं
जिसे तुमने शरीर पर रंगीन लय की तरह पहन लिया है

रेखाएं घूमते हुए जीवन का वलय बना रही हैं
उनकी शांति सब तरफ़ घूम रही है

तुम्हारे तन की गोलाइयों पर बुद्ध की विनम्र रेखाएं
संसार की कठोरता में लय के प्रवाह को साधे हुए हैं

तुम्हारे होने से संसार में बुद्ध हैं
जीवन अपने प्राचीन और नए के बीच
मध्यधारा की तरह गुंथा हुआ है

समय के बीच में बुद्ध पैदा होते हैं
और हम उनके किनारों पर सदियो तक खड़े होते हैं

आश्चर्य है कि आज तक हम जीवन को बुद्ध की लयों में
नहीं रख पाए

बुद्ध की लयों में मैं तुम्हारा और अपना जीवन खोजता हूं
तुम्हारे हाथों के कर्व और जीवन की गरिमा
किसी एक मोड़ पर मिलते हैं

ओ पृथ्वी ! मैं तुम्हारे जीवन की इस गरिमा को जीना चाहता हूं
मैं बुद्ध की लयों से अपने जीवन को सजाना चाहता हूं

तुम बुद्ध की सबसे शांत लय हो और मैं उनमें बहता हुआ उनका संदेश

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रास्ता

जिस पर मैं आया था उस रास्ते पर भी तुम आई थीं
अक्सर रास्ते एक ही होते हैं पर हम बदल कर
न जाने कहां कहां पहुचते हैं

तुम एक दरवाज़े और मैं किसी जंगल में
कोई समुंदर के सामने तो कोई पहाड़ के पास

चलता मैं भी हूं और तुम भी चलती हो
हर चलने से मंजिल नहीं आती
चलना कमाल है रास्ता हमारे चलने की ख़ुशबू

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चाय पर

पहली लाइन को देश की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़कर इकोनॉमिकल करो यह पार्टी पॉलिटिकल कविता बन जाएगी

कुछ लोग चाय पर आ रहे हैं इसलिए सब कुछ सही किया जा रहा है
किसी के यहाँ चाय पर जाना सबसे ख़ूबसूरत काम है
किसी को चाय पर बुलाना
धरती पर दुनिया का सम्मान करना है

मैं तुम्हारी चाय के लिए कहीं भी सम्मान देना चाहूंगा

तुम्हारे यहां चाय पर आने वाले या मेरे यहां
हमारे बीच चाय एक ग्रीज है
और रिश्तों की डोर उसकी भाप में गर्म रहती है

मैं चाय पर आने वालों का सम्मान करता हूं

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मैं हिंदी का चोर हूं

मेरी प्यारी हिंदी मैं चोर और जुगाड़ का लेखक हूं
मैं लिखने से ज़्यादा संपर्क पद और धन पर यक़ीन करता हूं
मैं बहुत बड़ा चापलूस हूं
मैं गुरुडम और वरिष्ठों के पैर पड़ कर तारीफ हासिल करता हूं

मैं दस मित्रों को पुरस्कर से उपकृत करता हूँ
तब अपनी साख बचाने एक अपरिचित प्रतिभाशाली को खोजता हूं

मैं एक साल पहले अपने दोस्त से बोलता हूं
इस बार तुमको 11 हज़ार वाला पुरस्कार दूंगा
मैं बहुत जल्दी अपमानित महसूस करता हूं
कि मुझे फलां सुबह गुड मॉर्निंग नहीं बोलता
और अब मैं उसको आने वाले विशेषांक में नहीं लूंगा
हो कितना भी अच्छा लीखने वाला देखता हूं

तमाम कमतर मुझे कम से कम याद तो करते है
मैं इसको बड़ा लेखक बना सकता था
आलोचनाएं छपवा और छाप सकता था
लेकिन बहुत अकड़ में रहते हैं
अब एक लंबी उपेक्षा झेलेंगा तब पता चलेगा साले को
कि हम क्या हैं

मैं इसकी रचनाएं सिलेबस में लगवा रहा था पर अब नहीं
अब तो ये खुद ही साबित कर ले

मेरी प्यारी हिंदी
तुम्हरे अंदर दो चार भले लोगों के बीच
अधिकांश ऐसे लोग हैं जो सेवा प्लस चापलूसी का इन्वेस्ट पसन्द करते

मेरी हिंदी तुम जानती हो
इससे दुनिया तो क्या मेरे अड़ोस पड़ोस के लोग भी नहीं पसन्द करते
संघर्ष के नाम पर नकली भूख और मजूरी को
शब्दों मे पिरो कर वाही वाही कर रहे हैं

कबीर और मीरा को गोद में सम्हालने वाली मेरी हिंदी
आज मेरे कवि तुमसे इतने दूर हो गए
कि लोग चुटकुला सुनने वाली फ़ौज को कवि कहने लगे

ओ मेरी प्यारी हिंदी ! मैं तुमसे कुछ चुराना चाहता हूं
तुम मेरी ज़िंदगी में कबीर की तरह फैलो
मीरा की तरह नाचो

तुम पर कौन सा आलोचक भार बन कर टहल रहा है
तुम इतने तनाव में क्यों हो

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हर तरह से समृद्ध है जीवन हरी साड़ी के पल्लू में
ओ पृथ्वी ! कितनी गहरी है तुम्हारी इंद्रधनुष जैसी मुस्कान

तुम्हारे गले में सुबह की सुनहरी किरणों का हार
जिससे दुनिया में उजास भरा है
ईश्वर के सात रंगों वाला
मेरे मन के आसमान का इंद्रधनुष
तुम्हारे आसपास खिल कर तुमको और सुंदर बना रहा है

मेरी दुनिया के सभी रंग तुममें ओस की तरह चमक रहे हैं
मैं मुग्ध हूं कि तुम मेरे समय पर रोशनी की रेखा सी खींची गई हो

संसार के सभी प्राणी तुम पर पनाह लिए हैं
तुम बहुत गहरी बहती नदी में चमक रही हो

मैं अपने संसार के लिए ऋणी हूं ओ पृथ्वी !
तुम्हारी सुंदरता सबसे गहरी जलधाराओं की तरह
प्रतिपल मेरे संसार से गुज़र रही है

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तुम मुझे प्यार मत करना

कितना गहरा है उसका प्यार वह नहीं बताती
वह नहीं करती कोई बात जो प्यार लगे
पर वह हर तरफ़ अपने प्यार को कालीन की तरह बिछाती है

मेरे हर तरफ़ उसका ही कालीन फैला है जैसे समुद्र
मैं देखता हूँ भौंचक
आखिर उसने क्यों बिना कहे मुझे समुद्र जैसा कालीन दिया

प्यार में मेरा जीवन कितने छोटे से तिनके सा फैला है
तुम प्यार मत करना मैं तुम्हरे समुद्र जैसे कालीन में डूबा हूं

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कविता

एक जीवन को भगवान ने क्यारी में लगा दिया
तुम लाल फूल की तरह खिली हो
धरती के रंग में

जीवन और लाल फूल दोनों धरती के हैं
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तुममें डूब जाऊं अमृता
और एक इमरोज बन जाऊं

एक छोटे से घर में तुम आओ जाओ
जिसके दरवाजों में कोई कुंड़ी नहीं हो

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सो जाता हूं मैं

मैं ऐसे नहीं सोता जैसे सब सोते है
मैं सोता हूं उस सब को भूल कर जिसे मैंने दिनभर जिया था
जो बचता है वह एक काली रात में बदल जाता है
कुछ घटनाओ के संदर्भ जड़ों की तरह मेरे अंदर रहते हैं

मैं सोता हूं सुबह को ख़ाली ड्राइंग शीट की तरह पाने के लिए
मैं सोता हूं बहुत सी नाजायज चीज़ें जीवन से बाहर करने के लिए

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एअरपोर्ट पर लड़की

उसे देहली से लखनऊ जाना है और वापस भी लौटना है
तीन दिन के सफर में उसके पास कुछ कविताएं हैं
जो हैंडबैग में मुड़े तुड़े काग़ज़ जैसे काव्य भावों
और किसी कांच के टुकड़े हेअर पिन की तरह पड़े हैं

विचारों से बाहर की जेब में कुछ नोट और डेविट कार्ड हैं
फ़्लाइट का टिकिट है जो उसके साथ उदासीन इंसान के व्यक्तिव की तरह साथ है

एक और चीज़ है जिसे आत्मविश्वास कहा जाता है
ये उसके चारों तरफ़ उजले कपड़ों की तरह दिप दिप

मैं उसे कांच में से देख रहा हूं
और वह कांचों से आगे निकल रही है
उसकी फ्लाइट के पास आसमान ज़मीन से टच हो रहा है

मैं सोचता हूं लड़की एअर पोर्ट पर है
और कुछ चीज़ें उसके साथ उड़ान पर हैं

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शब्दों के बाहर भीतर आओ जाओ
तू ही तू है और तुम भी मैं हूं और हम भी वो हैं
देख मेरी प्यार ये देश तू है
तुझ में मैं हूँ और कल तू लखनऊ में होगी
तू मेरी देश है और मैं तुझ में जनता की तरह लहराता हूं

मेरा कायदा नज़ाकत आप और तुम सब दरवाजे हैं
मैं तुझ में हर तरफ़ से अंदर आऊंगा
ओ लड़की ! मुझे अंदर आने दे
कभी तू की तरह कभी आप की तरह और कभी मेरी प्यारी कवि की तरह

देख मैं तुझ में हर तरह के फूलों की तरह मुस्कुरा रहा हूं

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एक पिक

तुममें तुम सबसे उचित लगती हो
तुम्हारी हरियाली में हरियाली सबसे अच्छी लगती है
जैसे कविता में कविता की पंक्ति होती है
तुम अपने आसपास में कितनी विविधता से भरी हो
जैसे नदी में लहरें होती हैं अनन्त
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ओस के आसपास

ओस के चारों तरफ़ वही है जो मेरे आसपास है
कुछ तिनके कुछ फूल और दूर तक फैली दुनिया

मैदानों में पड़े कुछ ख़ाली पैकिट और काग़ज़
कुछ हवा में उड़ कर दूर झाड़ियों में उलझे
एक अनावश्यक पर्यटन से बची ग़ैर ज़रूरी चीज़ें

ओस के आसपास वही सब है जो मेरे चारों तरफ़ है
मैं नहीं चाहता कि दुनिया में कुछ भी अलग अलग हो
ओस सब पर आती है और सबके लिए है
मैं जब भी ओस को देखता हूं उसमें अपने आसपास का सब दिखता है
फूल भी और छोड़ी और फेंकी गई रद्दी भी

दुनिया कितनी भी अलग हो कुछ चीज़ें सब पर बराबर आती हैं

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आंखें जीवन देखती हैं

आंखों से जीवन जिया जाता है
ऐसी आंखें तुम्हारे पास हैं

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हीरों की खान से भरी पृथ्वी जितनी सुंदर हो सकती है
मानवता के साथ हरियाली में दुनिया जितनी सुंदर हो सकती है
तुम उससे कुछ ज़्यादा हो

दुनिया का सब कुछ धूप में दीप्त हो रहा है
जैसे तुम अपनी आंखों में संसार की हर चीज लिए हो
बहती हुईं नदियां और पानी की नीली झीलें
गमले में खिले फूल की तरह बालकनी में
कभी कभी हवा के झोंके में सब कुछ उमड़ पड़ता है
तुममें वही उमड़ रहा है

तुम्हारी आंखों में धूप छांव सा एक सपना चमकता है
संसार के सारे बादल और किरणों की तरह पवित्र सुंदरता में तन दमक रहा है

प्रकृति तुम जीवन में छाए बसन्त की सबसे
गहरी छांव हो जिसमें
ऊपर खिले फूलों और नीचे बिछे फूलों में
छन कर आती किरणों की तरह हो

हर पल तुममें से गुज़र कर सुख में बदल रहा है
जीवन के सभी दुखों में तुम प्रार्थना की तरह हो
तुम्हारे आँचल पर धरती के सभी सुख
दूब के मैदान की तरह फैले हैं

मैं प्रार्थना में हूं और तुम प्रार्थना की तरह सुंदरता में
मेरा संसार तुम्हारी सुंदरता में सुख के हरे भरे मैदानों सा सुखी है

तुम पृथ्वी के सभी सुखों से कुछ ज़्यादा सुंदर हो

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चाय एक कमेंट है

कभी कभी चाय अच्छी नहीं लगती
कभी अकारण अच्छी लगती है

मैं चाय को दोनों स्थितियों मे जीता हूं
जब भी चाय हाथ में होती है
मुझे देश की राजनीति पर कमेंट करते हुए कप की तरह लगती है
और दूसरी तरफ़ तुम्हारे साथ महकती चाय की सोहबत

चाय पी कर हम कुछ भी हो सकते हैं
जैसे कि चाय एक प्रधानमंत्री पीता है
और गुमठी पर बैठ कर चार फोकटिये भी

हर स्थिति चाय को एक रंग देती है
जिसमें कभी में होता हूँ और कभी नहीं
चाय इस देश पर एक कमेंट है

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क्या दूँ मैं तुमको

क्या दूं मैं तुमको कि कुछ देने जैसा लगे
देने के बिना कुछ देना कैसे हो
मैं दूं और तुम ले लो क्या है इस धरती पर
तुमको क्या दूं जो लगे कि दिया है
और तुमको लगे कि कुछ पाया है

आओ आज मैं तुमको अपना प्यार देता हूं
और एक छोटी सी गिफ्ट जो तुमको पाई हुई लगे
आओ हम एक दूसरे को कुछ देते हैं

जिसमें देना हो और पाना भी हो
मैं तुमको दे रहा हूं कुछ क्या तुम लोगी

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मैं कैसे मर सकता हूँ

मैं तुम्हारे लिए मरना चाहता हूं
लेकिन कैसे मर सकता हूँ
मुझे बादल की तरह आसमान में मरना नहीं आता
मरने के बिना जीना भी कैसे सीखूं
मैं हवा की तरह हवा में नहीं मर सकता
ज़िंदगी में बहुत कुछ सीखा लेकिन मरना नहीं सीख पाया
सीखे हुए काम बार बार किये जाते हैं
मरना कैसे बार बार करूं

मैं अगर मृत्यु को जाने बिना मारा गया
तब मैं फिर से कैसे मर सकता हूँ

मृत्यु हरियाली की तरह सब जगह है
और तुम अगर मृत्यु हो तो
तुम मेरी प्रेमिका हो

मेरी ज़िंदगी इश्क का टुकड़ा है जिसे अपनी मृत्यु से मिलना है
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रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

जन्म 15 जून 1970, ग्राम-सियलपुर, तहसील-सिरोंज, जिला-विदिशा, मध्यप्रदेश
देश की सभी पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन
कोलाज, आधा बिस्किट, अफेयर, एक गर्लफ्रेंड की दुनिया, टीन टप्पर कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन

पता – रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
ग्रीन मोटर्स, गनपत कालोनी, विदिशा मप्र
सेल नंबर -9098410010

 


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