मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
1. नया जीवन
ज्वार के समय खड़ा था उस शाम मैं समुद्र किनारे
भीग रहा था तेज़ लहरों की बारिश-सी बौछार में
क्षितिज में गहरा रही थी लाली, कर रही थी इशारे
पच्छिम में डूबे दिन, बह रही थी हवा समुद्री क्षार में
चीख़ रहे जलपाखी कें..कें.., समुद्र-तट था ख़ाली
हाय… – मैं रोया उस क्षण – कितना दुखी ये जीवन
देगा नहीं कोई मुझे खाने को एक अनाज की बाली
जो पड़ी रह गई उजड़े खेतों में, बदल गया मौसम
घिसकर मेरा जाल पुराना हो गया था बेहद जर्जर
पर बची हुई ताक़त से फेंका, उसे फिर से सागर पर
परेशान था मैं उस समय बेहद, जीवन था बदहाल
क्या करूँ, कैसे जीऊँ, मुँह बाए खड़ा था ये सवाल
और चमत्कार हुआ जैसे फिर, वहाँ पड़ा मुझे दिखाई
लहरों से उभरा, अलबेला इक गोरा हाथ-सा, भाई
फिर भूल गया मैं सब पीड़ाएँ, दुख अतीत का अपना
देख लिया था मैंने जैसे, कोई सुन्दर-सा प्यारा सपना
2. छायाएँ
झलक रही थीं सागर में भूरी-सलेटी चित्तियाँ
औ’ उदास बह रही थी वहाँ, धीमी-सुस्त हवा
चाँद उड़ रहा था, जैसे पतझर की सूखी पत्तियाँ
लहरें उठ रही तूफ़ानी, खाड़ी में कर रहीं बलवा
मलिन रेत पर पड़ी हुई थी, एक काली नाव अकेली
बैठा था उस नाव में एक लापरवाह नाविक लड़का
उमग रहा था ख़ुशी से वह, हर्ष कर रहा अठखेली
चेहरे पे उसके, उसका गोरा हाथ झुटपुटे में चमका
जलपाखी मण्डरा रहे थे ऊपर, चीख़ रहे थे कें…कें…
मलिन ऊँची घास उगी थी, सागर के कूल-कगारे
गुजर रहा था एक युवा कमेरा, उस जगह से बेखटके
छायाकृति-सी झलक रही थी, वह जगह, सुबह-सकारे।
3. मृत बहन के लिए प्रार्थना-गीत
धीमे-धीमे रक्खो क़दम, वह पास ही लेटी है
बर्फ़ के नीचे
धीरे-धीरे फुसफुसाओ, वह बात तुम्हारी सुनती है
वनफूलों के पीछे
उसके सुनहरे चमकदार बाल
बदरंग हो बन गए हैं चूल
वह जवान गोरी लड़की
अब बन चुकी है धूल
कमलिनी की तरह, बर्फ़-सा रंग था
वह नहीं जानती थी
वह भी औरत है एक
यह तक नहीं पहचानती थी
भारी पत्थर की तरह ताबूत का ढक्कन
उसकी छाती पर पड़ा है
वह शान्ति से सो रही है
औ’ मेरी छाती में इक शूल गड़ा है।
शान्ति, शान्ति, वह सुन नहीं सकती
संगीत या भजन
मिट्टी के उस ढेर के नीचे है मेरा भी जीवन
मैं भी हूँ वहाँ दफ़न।
4. चन्द्रमा का पलायन
सारी इन्द्रियों पे सुखदाई बेफ़िक्री पसर गई
और, छाई है एक स्वप्निल शान्ति चारों ओर
छायादार धरती पर ख़ामोशी का असर वही
बे-छाया भूमि पर गहरी चुप्पी, न कोई शोर
तीखी गूँज सुनाई देती है, पीड़ा भरे रुदन की
लगे ज्यों कोई उदास अकेला पंछी रो रहा है
ये दुखी आवाज़ है अन्नपुट पक्षी के क्रन्दन की
कुहरीली पहाड़ी पे अपनी प्रिया को टोह रहा है
वहाँ दूर आसमान में झलके हँसिये जैसा चाँद
अचानक छिप गया वो नभ में छा गया अन्धेरा
चेहरा ढक घुस गया यकायक वह किसी माँद
मुख पे कस लिया है उसने पीले घूँघट का घेरा
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