रचनाकार दूधनाथ सिंह ने आज से तकरीबन तीस बरस पहले मुझे एक ख़त लिखा था। यह ख़त बोधिसत्व की कविताई को लेकर था। बोधिसत्व को उन्होंने किसान – चेतना का कवि बताते हुए कहा था कि यह कवि हमें क़दम – क़दम पर ठिठका देता है। यह ठिठकना जीवन को नए अंदाज़ में देखने को विवश करता है। दूधनाथ सिंह की बात आज भी सच है जितनी उस समय थी। क्या आप भी ऐसा महसूस करते हैं, पढ़के दो शब्द लिखें। -हरि भटनागर
कुछ नई कविताएँ
न गिरता तो!
उगने के लिए मैं गिरा
खेत के कूँड़ में बीज बन कर!
मिट्टी के उर्वर अंधकार में न गिरता तो
उगता कैसे?
कौर होने के लिए
बटलोई में भात बनने के लिए गिरा
थाली में रोटी बन कर गिरा!
सुहाग बनने के लिए
गिरा माँग में सिंदूर बन कर
नाव सहित पार जाने के लिए
पानी पर पतवार बन कर गिरा!
शब्द में रहता हुआ
अर्थ की तरह बाहर गिरा!
फिर से जन्मने के लिए मैं
कोख में बूंद बन कर गिरा!
न गिरता तो जन्म कैसे लेता?
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वृक्षों की अपनी कोई विनय पत्रिका नहीं!
सूखता हुआ पेड़ जल के लिए
नहीं करता नदी निर्झर या
बादलों से प्रार्थना!
तुमने किसी वृक्ष को
आकाश की ओर हाथ उठाए या घुटनों के बल
झुके देखा है?
पेड़ कर्म करते हैं जीवन रहने तक
अनुनय नहीं!
काठ हो गए तरु भी
अग्नि वायु मेघ जल से
रक्षा के लिए नहीं करते विनय!
वे पृथ्वी के किसी भी भू भाग पर
अपनी नागरिकता का भी कोई दावा नहीं करते
कोई जुलूस नहीं निकालते!
कभी उड़ते थे वृक्ष
यह बात भूल कर वे
खड़े रहते हैं अपनी जगह पर!
स्वयं से अपनी पृथ्वी को छोड़ कर नहीं जाते!
लकड़हारों पर उन्होंने कोई मुकदमा नहीं किया
कुल्हाड़ी से उन्होंने कभी मित्रता नहीं चाही
नहीं चाहा वैर।
संसार की किसी अदालत में उनकी
कोई शिकायत कोई फरियाद
लंबित नहीं!
वृक्ष किसी से क्या चाहते हैं
बताते नहीं किसी को
साथी वृक्षों और तरुओं को भी नहीं!
वृक्षों को काट कर ली गई तलाशी
चीर कर किए शोध
उनको जलाकर आग ने पढ़ना चाहा उनका मन
किंतु राख हो जाने पर भी उनका दुःख दिखा नहीं
वृक्षों ने अपनी मज्जा में भी अपनी व्यथा को नहीं बसाया!
किए गए सब उपाय लेकिन वृक्ष-व्यथा की
कोई गाथा नहीं मिली!
उनके दुःख उन चिड़ियों को भी नहीं ज्ञात हो पाये
जिन्होंने उनकी डालियों में खोथे लगाये
कितने वर्षा बसंत साथ बिताये
यह तो निश्चित है कि
किसी लिपि–भाषा स्वर में
वृक्षों की अपनी कोई विनय पत्रिका नहीं!
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पानी की बूँदों ने बोल दिया!
बोलने के समय जब चुप रह कर
दर्शक बन गये थे लोग
पानी की बूँदें बोलीं!
बूँदें बोलीं तो फिर लहरें बोलीं
नदियाँ बोलीं
फिर बूँदों वाले बादल भी बोले।
फिर सबने देखा
जो चुप थे उन्होंने भी देखा
देखते देखते
घमंड के पुल बह गये
सत्ता के भवन रिस गए ढह गए
सत्ताधिराज झूठ की चौड़ी छाती
पीटते रह गये!
रिस कर दरारों से
नन्हीं बूँदों ने चुपचाप बोल दिया
राजा ने खेल किया राजा ने झोल किया!
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नदी समुद्र!
मुझे समुद्र इसलिए अच्छे लगते हैं कि
उसमें अपनी जानी पहचानी अनेक छोटी नदियों के
घुलें मिले होने का आभास होता है!
उसमें गंगा भी हो सकती है
और जमुना भी
थोड़ा जल गोमती का होगा
थोड़ा सई का थोड़ा सरजू का!
जिन नदियों का नाम नहीं जानता मैं
उनका जल भी समुद्र पर उधार है!
क्या समुद्रों के पास
नदियों के जल का कोई हिसाब होगा!
जैसे यदि बूढ़ी गंडक, बेतवा, मोरवा या कावेरी या चंबल या कमला बलान कोयिल
अपना पानी वापस माँगे तो कैसे लौटाएगा समुद्र!
संसार के सभी समुद्र नदियों के कर्जदार हैं
अपने बकायेदार समुद्र से
नदियाँ अपना जल वापस माँगते संकोच से भरी
लेकिन समुद्र को जल देने पर अड़ी हैं
इसीलिए नदियाँ छोटी होकर भी
संसर्ग के हर समुद्र से बड़ी हैं!
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हे राम!
जब दुर्दिन दूर हो जाते हैं
राम भी पैदल चलना छोड़
पुष्पक विमान में चढ़ जाते हैं
राम जिस वन में रहे चौदह वर्ष
जिन मुनियों के साथ जिये
जिन नदियों का पानी पिया
जिन सरोवरों में नहाए
जिन वृक्षों के फल खाए
जिनके नीचे छहाँये
पर्णकुटी बनाये
सबको फलांगते निकल जाते हैं!
समय सुदिन होते ही राम के लिए भी
प्रिय जन और वन प्रदेश
पर्वत नदियाँ युद्ध क्षेत्र
रावण की बुझी चिता
सब के सब
दृश्य और कथा में बदल जाते हैं
सबको यथास्थान छोड़
राम राजधानी लौट जाते हैं!
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बोधिसत्व
11 दिसम्बर, 1968 में उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद के भिखारीरामपुर गाँव में जन्मे बोधिसत्व का मूल नाम अखिलेश कुमार मिश्र है। वे यूजीसी के फेलो रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से किया गया शोध प्रबन्ध ‘तार सप्तक कवियों की कविता और काव्य-सिद्धान्त’ पुस्तक के रूप में प्रकाशित है। उनके अब तक पाँच कविता-संग्रह प्रकाशित हैं, जिनके नाम हैं- ‘सिर्फ़ कवि नहीं’, ‘हम जो नदियों का संगम हैं’, ‘दुःखतंत्र’ ‘ख़त्म नहीं होती बात’ और ‘अयोध्या में कालपुरुष’ ‘महाभारत यथार्थ कथा’ नामक एक किताब पिछले दिनों चर्चित रही, जिसमें महाभारत की कथाओं के आन्तरिक सूत्रों का एक नवीन अध्ययन किया गया है। उनका छठवाँ कविता संकलन ‘संदिग्ध समय में कवि’ प्रकाशित होने वाला है। उनकी कविताओं के भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हैं। कुछ कविताएँ मास्को विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। बोधिसत्व साहित्य और सिनेमा दोनों में बराबर दखल रखते हैं। लगभग दो वर्ष ‘स्टार न्यूज़’ के सम्पादकीय सलाहकार रहे। दो दर्जन से अधिक टीवी धारावाहिकों और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म के शोज़ की स्क्रिप्ट्स का प्रमुख हिस्सा रहे बोधिसत्व के क्रेडिट में ‘शिखर’ और ‘धर्म’ जैसी फ़िल्में भी शामिल हैं। पिछले दिनों स्टार प्लस पर प्रसारित हुए धारावाहिक ‘विद्रोही’ का निर्माण उन्होंने अपने प्रोडक्शन हाउस ‘गाथा प्रोडक्शंस’ से किया है। विख्यात टीवी धारावाहिक ‘देवों के देव महादेव’ के लिए शोधकार्य कर चुके हैं। उन्हें ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’, ‘संस्कृति अवार्ड’, ‘गिरिजाकुमार माथुर सम्मान’, ‘फ़िराक़ गोरखपुरी सम्मान’ समेत कई पुरस्कार प्राप्त हैं।
सम्प्रति साहित्य और सिनेमा के साथ टीवी धारावाहिक के लिए लेखन और निर्माण में व्यस्त हैं।
मुंबई में रहते हैं
ई-मेल : abodham@gmail.com
मो. 9820212573
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अच्छी कवितायें. हे राम तो विशेष है
आभार अमित
मैंने आपकी कविताएं पढी ,जमीनी हैं बिना किसी शिल्प के, लाग लपेट के,पर अन्तर्मन को छूने वाली