एनडीटीवी इंडिया में काम करने वाली पूनम अरोड़ा समकालीन कविता का एक चमकता नाम हैं। पूनम ने कई महत्त्वपूर्ण कहानियां लिखी हैं और उपन्यास। साहित्य के क्षेत्र में महती योगदान के लिए आपको फिक्की यंग अचीवर पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।
आपकी कविताओं में ज़मीनी हक़ीक़त है। छिछली भावुकता से दूर आपकी कविताएं जिस्मानी प्यार की जगह एक विचार को तरजीह देती हैं जो इंसान को इंसान से जोड़ता है। लीजिए, पढ़ें पूनम अरोड़ा की कविताएं। – हरि भटनागर
कविताएं
1.
हाँ होता है एक सलीका भी भूलने-भुलाने का
कि कोई चश्मदीद गवाह न पढ़ ले
मन की उलझी गुत्थियाँ
कोई पशु न सूँघ ले
गलती हुई ग्लानि
कोई पंछी न चुरा ले मन के गीत
याद रहे
उन रास्तों पर से
फिर गुज़रना होगा तुम्हें
उस आखिरी मुलाक़ात में आई करुणा को
किसी पौधे के साथ गाड़ कर
उससे वही झूठ कहना
जिससे प्रेम की तरावट मिलती रहे उसे
और वह फलता-फूलता रहे
तब तुम भूलने के मौसम की प्रतीक्षा करना
प्रतीक्षा करना उस इंद्रधनुष की
जिसका ज़िस्म बना हो उस तपिश का
जिससे बच्चे जन्में जाते हैं
फिर तुम अचानक ऐलान भर देना माहौल में
कि तुम्हें चीटियाँ काटती हैं
पैरों की उंगलियों की दरारों के बीच
दीवारें गिरने के भरम में तुम सो नहीं पाते
एक कामयाब रति-क्रीड़ा के बाद भी
और कहना
कि मृत मवेशी की दुर्घन्ध
तुम्हें माँ की छातियों की गंध देती है
और जैसे ही तुम ये कह कर
चौखट पार करोगे अपनी
‘आर वी एन एक्सीडेंट ऑन द अर्थ’ की थ्योरी
तुम पर लागू हो जायेगी
क्या अब तुम तैयार हो
दुनिया के सबसे बड़े व्यंग्य के लिए
2.
स्पर्श
चुम्बन
आलिंगन
देह का समागम
ऐसा कुछ नही मिलेगा मेरे प्रेम में तुम्हें
हाँ एक फूल दे सकती हूँ
बुद्ध की चेतना से लिया था एक दिन
क्या ले पाओगे उसे
3.
आज रात
मैं तुम्हारे सपनों में नही आऊंगी
न सहलाउंगी तुम्हारी लड़खड़ाती रात्रि-विदा को
आज रात मैं थोड़ा झुक कर मुआयना करुँगी
कविताओं में अपनी खुली आँखों का
याद करुँगी
उन निहत्थे और सलीकेदार प्रेमियों की शक्लनुमा काली जिल्दों को
जिन पर देर तक प्रेम के गीतों की अगरबत्तियां जला करती थीं
साफ़ करुँगी उन कमरों को
जहाँ बामुश्किल छुप पाती थी अपनी तकदीर से
फिर नृत्य करते हुए बंद कर दूँगी अरबी संगीत की धुनें
तुम किसी कुत्ते पर क्रोध का वार मत करना
मैं नहीं आऊंगी
वो सारे कमरे हरे नर्क से पीड़ित हैं
और मैं भटकते हुए पानी का दम्भ हूँ
मेरी कल्पना में तुम बारिश की तरह हो
सुबह तक साफ़ हो जाएंगे बादल
4.
जलाशय जैसे हैं तुम्हारे हाथ
हरे रंग के
और जब छूते हैं
मेरा उपेक्षित और काली छाया से डरा माथा
तो वो फूल बन जाया करता है
सोचने पर भी उस फूल का नाम नहीं याद आता मुझे
कभी लगता है
ये नॉर्विजी लोकगीतों की तरह है
और कभी लगता है
ये जंगल से निष्कासित पंछी
और युवा रहने की स्वप्नहीन नींद का एक छोटा-सा धब्बा है
वक्षों की प्रतिबंधित सामूहिकता को
कविता की अनावृत पारदर्शी कामुकता से छूते हुए तुम्हारे हाथ
प्रेम में मेरी सहमति कब मांगी तुमने
न संयोग हुआ कभी प्रेम का
तुमने हर बार प्रेम रचा.
‘नही’ की रीति को जन्मने ही नहीं दिया
तब मैं चित्रकला में पारंगत हो रही थी
जब प्रथम झूठ का अदृश्य चाँद
नीले रंग में बनाया था
और आसमान रंगा था सफेद रंग का
मैं सूर्यास्त को क्रम में रात का जाना समझती थी
और स्वेच्छा से तुम मेरी देह के शहद में नमक मिला दिया करते थे
मैं प्रेम में थी
मेरे गुप्त सम्प्रदाय बिखरी हुई कल्पनाओं के मध्यांतर में
तुमसे दीक्षित होना चाहते थे
मैं दूरियों को नहीं समझती.
अपने चित्रों में केवल छायाएं लिखती हूँ प्रेम की
5.
मैंने यथार्थ में ईश्वर को नहीं रचा
न उसके सम्मान में गहरी साँस भरी
मेरे लिए वे क्षण सदा हवा में तैरते रहे
जिनमे मैंने लड़खड़ाते हुए ईश्वर के ज़िक्र वाली कवितायें लिखीं
मुझे हर तरह का ईश्वर एक खिलौना लगता है
मिट्टी का
काष्ठ का
या संगमरमर का
सब के सब ईश्वर जमी मुस्कानों से हमें देखते हैं
सब के सब ईश्वर अपने प्रतिनिधित्वों की लकवाग्रस्त ज़बानों से हमारा कन्फेशन सुनते हैं
लेकिन ईश्वर अब धुंधला हो चुका
और बहुत बार अपनी उपस्थिति से कविता को बोझिल कर देता है.
ऐसा कहने वाला लेखक
अपनी पालतू चिड़िया से बिना किसी लोभ के प्रेम करता है
मैं सोचती हूँ
कभी उसकी चिड़िया की नाज़ुक गर्दन पर
मेरी सबसे शैतान बिल्ली
अपनी आकांक्षा की जलती हुई मशालें न रख दे.
उसे कविताओं के ईश्वर से घृणा है
मुझे यथार्थ के ईश्वर में दिलचस्पी नहीं
उसे सजीव ईश्वर की कामना रहती है
लेकिन मेरा निर्जीव ईश्वर ही मेरे हृदय का अन्धकार बेध पाता है
और ऐसा ईश्वर रच मैं खुद को दोषमुक्त करती हूँ
6.
हे पार्थ
आँखें खोलों
देखो संध्यातारा
रक्त नमक नहीं होता
जो अपनी आवृति नष्ट कर देगा रेत में
वह देर तक खौलेगा मृत देह में
देर तक उसका ताप रहेगा धमनियों में
कुछ सियार भटकेंगे मृत देहों की सुगंध पाकर
कुछ भेड़िये नोचेंगे बचे हुए स्वप्नों को
हे पार्थ
जाता नहीं कुछ कहीं भी
न समाप्त होता है कभी युद्ध
जीवन अक्सर पीड़ा देता है
और अस्त्र भी
देखो उस लहू की धार को
उन कटे अंगों को
उन ज़ुबानों को
जो निकली पड़ी हैं अंतिम प्यास से
लेकिन यह साँझ है
और माँओं के चूल्हे गर्म
आज संतोष के कौर ग्रहण करना
अपने आशीषों पर विश्वास रखना
अगर जन्मे कोई ग्लानि
तो एकलव्य की अंगूठे की पीड़ा बनना
उस छल को याद करना
जिसे द्रोण ने गुप्त साधना के बदले एकलव्य से लिया
यह निश्चित है
कोई युद्ध कभी समाप्त नहीं होता
न धूमिल होते है इतिहास में दर्ज़ कुछ दृश्य
न समाप्त होते हैं कुछ प्रसंग
न धुंधले होते हैं कुछ प्रतिबिम्ब
कुछ तीर तुम्हारे भी हृदय पर घात करेंगे
कुछ शंकाओं से तुम्हारे पुत्र अभिशप्त हो जायेगें
तुम्हारी गरजती ललकारों का सूर्यास्त
उस पतन का सूचक होगा
जिसमें ग्लानि के अभियंता केवल तुम बनोगे
हे पार्थ
कठिन है सर्वथा
अपने ही अहंकार को नष्ट करना
और भी कठिन है उससे धर्मयुद्ध जीतना
सरल है कुंती पुत्र अर्जुन होना
पर कठिन है
उसी गर्भ से कर्ण होकर जन्म लेना
सरल है
अनैतिक सर्वनाश पर मुग्ध होना
लालसा के लाक्षागृह में एक संकोची कमल खिलाना
और उससे भी सरल है
हर युग के अभिमन्यु के लिए चक्रव्यूह की रचना करना
युगों के दीर्घ-स्वरों में
अब युधिष्ठिर सीख चुके हैं अमर्यादित होना
भूल चुके हैं उस झूठ पर नेत्र झुकाना
जिस झूठ पर धर्मयुद्ध का सारांश लिखा गया
जो युग-पुरुषों की जिव्हा पर
अपने पुण्यों की विजय-गाथा कहता रहा
भेस बदल चुके अर्जुन के सारथी
और युद्ध हो चुके बिन हथियारों के
लेकिन आज भी प्रलय के बाद बचे मानव और मानवता श्रापित है
और शायद तब तक श्रापित रहेगें
जब तक कोई एक प्रश्न अस्तित्व से ऊपर नहीं उठ जाता
जब तक
दुर्योधन अपनी जंघाओं के
वज्र होने के तिलिस्म को त्याग नहीं देता
निश्चित है
कोई युद्ध कभी समाप्त नहीं होता
न शीतल हो पाते हैं कुछ रक्त
और न भूले जाते हैं कुछ अपमान
देव गंध का अनुसरण करते हैं
त्याग करते हैं प्रायोजित अशुद्धियाँ
किसी गर्भ में हुई हलचल का उन्हें भान होता है
भान होता है उस वीर्य का भी
जो स्निग्धता खो चुका होता है
हर जन्म यहाँ एक उत्सव है
और मृत्यु एक संस्कार
हे पार्थ
उठो अपने आचरण में
यदि लक्ष्य-संधान को आतुर हो
किसी असंतुलित योजना के बल पर
कोई दुर्ग नहीं टिकता है
न ध्वस्त होते हैं
मृत्यु तक पहुँचाने वाले विष-बाण
करना है विद्रोह
तो त्याग दो कवच अपनी अस्थियों पर से
त्याग दो अपने प्रेम पात्रों की स्तुतियां
और
त्याग दो युद्ध के मध्य यह कहना
कि मारा गया अश्वत्थामा
7.
बेटियाँ अपने दुखों को
रोज़ झुलसती दोपहरों के हवाले कर आती हैं
उन्हें धुले कपड़ों के साथ सलीके से सुखाती हैं
दुःख के छंद छतों पर मंद-मंद दोहराती हैं
छत से गली का सबसे आखिरी घर देखती हैं
जैसे कोई ख़ुशी का अज्ञात पुर्जा
हवा में उड़ता वहाँ से आएगा
और वे भी उड़ जाएंगी एक अनजान नाम के साथ
बेटियां अपने दुखों को रोज़ मांजती हैं
जैसे बर्तनों से छुड़ाया जाता है जलने का निशान
और लोग कहते हैं
वे कविताएं बहुत अच्छी लिखती हैं
उनकी नज़रों में इल्म भरा होता है शरबत जैसा
और रात के तीसरे पहर
वे अपने उस मकान पर उदास बैठी दिखाई देती हैं
जो जमीन से तीन हज़ार फुट ऊँचा है
लेकिन उनकी माएँ
इस तीसरे पहर
अपनी सबसे सुंदर नींद में होती हैं
चौथे पहर बेटियां फिर कविताओं में बदल जाती हैं
8.
नींद
सबसे कामुक पल है
प्रेमी को चूमने का
और सबसे कोमल समय है
उसके अधउगे सपनों को हौंसला देने का
पूनम अरोड़ा
कवयित्री, उपन्यासकार और लघु कथाकार।वे इतिहास, जनसंचार और हिंदी साहित्य में परास्नातक हैं।
पूनम का एक कविता संग्रह ‘कामनाहीन पत्ता’ नाम से और एक उपन्यास ‘नीला आईना’ प्रकाशित हो चुका है। वह ‘बारिश के आने से पहले’ नामक कविता संकलन का संपादन कर चुकी हैं।
पूनम की लिखी दो कहानियाँ हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हैं और साहित्य के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए उन्हें ‘फिक्की यंग अचीवर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा हाल ही में उन्हें ‘सनातन संगीत संस्कृति’ पुरस्कार से नवाज़ा गया है।
उनकी कुछ कविताओं का अंग्रेजी, मराठी और नेपाली भाषा में अनुवाद किया गया है।
पूनम वर्तमान में NDTV इंडिया में काम करती हैं।
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