डाॅ भावना हिंदी ग़ज़ल का ऐसा नाम है जो ग़ज़ल को ज़मीनी हकीक़त से जोड़ता है। ग़ज़ल में Satire है और विडम्बना जो जीवन के तल में बैठे विद्रूप को उजागर करते हैं। डाॅ भावना भाषा का कोई पेंच नहीं खड़ा करतीं, यही वह सादगी है जो ध्यान खीचती है।
बहरहाल, डाॅ भावना की प्रस्तुत ग़ज़लें सुधी पाठकों को पसंद आएंगी।
-हरि भटनागर
- ग़ज़ल
अजब-सा दर्द सहती है किसी से कह नहीं पाती
समय की तेज धारा में हकीकत बह नहीं पाती
मरीजों को भला वो किस तरह कर पायेगी चंगा
चिकित्सक बन के बेटी जब सुरक्षित रह नहीं पाती
कभी ताने, कभी छींटाकशी के बढ़ते फैशन में
मेरी बिटिया बहुत नादान है सब सह नहीं पाती
जो खुशियों के सरोवर में मचल कर पाँव रखती हो
उसे कहते हो दुख की पोटली क्यों तह नहीं पाती
समुन्दर हो तो कोशिश करके वो चाहे तो मह भी ले
सरोवर को तरीके से वो अक्सर मह नहीं पाती
2. ग़ज़ल
पिंजरे में रहकर छायेगी, ऐसा भी होगा
वो चिड़िया इक दिन गायेगी ,ऐसा भी होगा
डैने को जख्मी करके तुम खुश हो लो लेकिन
हिम्मत कर वह उड़ जायेगी ,ऐसा भी होगा
झूठ खड़ा होकर सदमें से झाकेगा बग़लें
सच को गुड़िया समझायेगी, ऐसा भी होगा
सब बातों को हरदम जनता मान नहीं सकती
प्रतिरोध कभी जतलायेगी, ऐसा भी होगा
शादी- वादी ,दूल्हा -उल्हा होने को होंगे
बेटी हक से घर आयेगी ,ऐसा भी होगा
3. ग़ज़ल
कैसी सूरत लिये चले हैं लोग
वक्त की बेबसी पिये हैं लोग
मुँह चुराकरके सच की दुनिया से
कितने आभासी हो गये हैं लोग
एक अनुमान बस लगाया था
क्या से क्या बोलने लगे हैं लोग
वक्त सबसे बड़ा है रफ्फूगर
अब इसे मानने लगे हैं लोग
बस जरा सी मिली थी सोहरत पर
किस तरह हांकने लगे हैं लोग
थमके बैठे कहीं घड़ी दो घड़ी
ऐसी पीढ़ी की क्या बचे हैं लोग
चन्द पैसे कमाने की खातिर
अपने ईमान बेचते हैं लोग
क्या कहा था जो मैंने आख़िर में
और क्या सोचने लगे हैं लोग
4.ग़ज़ल
हादसे आये गये तो क्या हुआ
रास्ते में हम गिरे तो क्या हुआ
रोज जलती हो जहाँ पर झोपड़ी
घर अमीरों के जले तो क्या हुआ
है सुरक्षित दाग उनके दिल के सब
दाग चेहरे के मिटे तो क्या हुआ
मुझको अक्सर दर्द अपनों से मिले
दर्द गैरों से मिले तो क्या हुआ
खोज उनकी थी ही ऐसी क्या कहें
धूप में हम जो चले तो क्या हुआ
जो जमीं पर दिख न पाये आजतक
ख्वाब आँखों में पले तो क्या हुआ
मुस्कुराकर कह रहे वो आज भी
फिक्र से हम जल मरे तो क्या हुआ
उनको हासिल कुछ नहीं हो पायेगा
दुश्मनी करते रहे तो क्या हुआ
सुबह से देखा नहीं था आपको
आ गये हैं दिन चढ़े तो क्या हुआ
5. ग़ज़ल
वो मेरे पास आना चाहता है
छुपा हर सच बताना चाहता है
मेरे कमरे में पुस्तक है जहाँ पर
वहीं बिस्तर लगाना चाहता है
मुझे आवाज देता है वो अक्सर
मुझी के गीत गाना चाहता है
किसी के आँख में यूँ कैद होकर
नया दर्पण दिखाना चाहता है
उसे है जीतने की लत मगर क्यूँ
वो मुझसे हार जाना चाहता है
वो उसका गीत है इतना समझ लो
तभी तो गुनगुनाना चाहता है
किसी से प्यार हो न दुश्मनी हो
नया रिश्ता निभाना चाहता है
डाॅ भावना
जन्म तिथि – 20-02-1976
स्थायी पता –आद्या हाॅस्पिटल, सीतामढ़ी रोड, जीरोमाईल, मुजफ्फरपुर,बिहार 842004
प्रकाशित किताब- हम्मर लेहू तोहर देह (बज्जिका कविता- संग्रह),अक्स कोई तुम-सा,शब्दों की कीमत, चुप्पियों के बीच, मेरी माँ में बसी है ,धुंध में धूप (ग़ज़ल-संग्रह),सपनों को मरने मत देना( कविता -संग्रह ), बदलते परिवेश में हिन्दी ग़ज़ल, कसौटियों पर कृतियाँ,हिन्दी ग़ज़ल भाषा और मूल्यांकन, हिन्दी ग़ज़ल के बढ़ते आयाम (आलोचना पुस्तक) के अलावा अनेक संपादित संग्रह।
आद्या हाॅस्पिटल, सीतामढ़ी रोड, जीरोमाईल, मुजफ्फरपुर 842004
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ज़िन्दगी की बेहतर समझ से लिखी गई ग़ज़लें ।जीवन को सही पहचान देती हैं डॉ भावना ।