डाॅ मयंक मुरारी कवि के साथ एक दृष्टिसम्पन्न विचारक और चिंतक हैं। विगत तीस वर्षों से आप साहित्य , इतिहास, परम्परा और दर्शन पर सतत् लेखन करते आ रहे हैं।
आधुनिक और उत्तर आधुनिकता की अंध दौड़ में ज्ञान – विज्ञान के आधारभूत जीवन – मूल्य जो हमारी प्राण- वायु रहे , धीरे – धीरे हमारे हाथ से फिसल गए –
डाॅ मयंक लोक कथा और लोक जीवन के बहाने इसका विमर्श यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। सुधी पाठक पढ़ेंगे और इस पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे। – हरि भटनागर

 

आलेख

भारतीयता की पहचान करना कठिन है। आप उसका अस्तित्व महसूस कर सकते हैं और उसे व्यवहार में ला सकते हैं। इसके लिए लोक की यात्रा करनी होगी।परंतु उसे गुण-दोष के आधार पर वर्गीकृत नहीं कर सकते। भारतीय पहचान को भाषा, नस्ल, संप्रदाय जैसे लक्षणों के आधार पर नहीं बांधा जा सकता। भारतीयता का अर्थ हमें उन मूल्यों और गुणों में तलाशना होगा जो कमोबेश सभी भारतीयों में विराजमान है। चरित्र का ऐसा गढ़न जो राष्ट्रीय नीतियों, बाज़ार और संस्कृति में होते फेरबदल के बाद भी लगभग हर व्यक्ति में अंतरतम चेतना पर विद्यमान रहा है। एक ख़ास सामाजिक मूल्यों की खोज जो हर बदलाव के बाद भी भारतीयता को परिभाषित करती रही हो। हर परिवर्तन की लहर के साथ अपनी पहचान और समाज एवं देश के साथ उसे कैसे जोड़ा जाए ? जोड़ने का कार्य सदैव ही युगपुरुष यानी लोकनायक के माध्यम से होता आ रहा है। समन्वय एवं संवर्द्धन का नाम ही भारतीयता है। समन्वय धर्म और राजनीति का, लोक जीवन और शास्त्रीय जीवन का, भौतिकवाद एवं भाववाद का और विविध वादों एवं प्रतिवादों का। जीवन की आपाधापी में भी व्यक्ति व समाज के लिए उत्सवधर्मिता के सूत्र खोज लिये जाएं। यह सदैव ही कथा, गीत, खेल, और विविध लोक जीवन में मिलते हैं।
भारतीय संस्कृति केवल लिखित शास्त्र ही नहीं, बल्कि यह मौखिक परंपराओं के कारण भी समृद्ध हुई है। मौखिक परंपरा में लोक साहित्य एक बड़ा क्षेत्र है जिसमें लोक कथाएं, कहावतें, लोरियां, लोक खेल, लोक गीत और लोक नाट्य शामिल हैं। लोक साहित्य भारतवर्ष नामक भवन का आधार है जिस पर समस्त भारतीय साहित्य टिका हुआ है। जहां भी लोग रहते हैं, वह लोक बन जाता है। वहां लोक साहित्य का वास होता है। एक कथा, एक कहावत, एक चिकित्सकीय सलाह जब कोई मौखिक देता है, तो यह वाचिक परंपरा के तहत बढ़ता जाता है। लोक कथाएं किसी क्षेत्र विशेष की कथाएं हैं जो परंपरागत रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जाती हैं। इनका अस्तित्व जनश्रुतियों के माध्यम पर निर्भर करता है। लोककथाओं में वे कहानियां होती हैं, जो मनुष्य की कथा प्रवृत्ति के साथ चलकर, विभिन्न कालखंडों में परिवर्तित एवं परिवर्धित होकर वर्तमान रूप धारण करती हैं। लोक कथा में एक ही कथा विभिन्न संदर्भों और क्षेत्रों में बदलकर अनेक रूप धारण करती है। कभी-कभी तो कथा के नायक एवं संदर्भ को छोड़कर कथ्य में कोई परिवर्तन नहीं होता है। एक ही कथा संताली में, कुछेक बदलाव के साथ भोजपुरी में, कन्नड़ या गुजराती में दिख जाती है। लोक कथा की एक विशेषता होती है कि वह थाती एवं परंपरा के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती है। दादी और नानी की कहानी विरासत में चली आ रही हमारी समृद्ध संस्कृति एवं जागृत लोक जीवन का परिचायक है। बच्चों को रात को कहानी सुनाने के अलावा प्रारंभिक शिक्षा के विद्यार्थियों की पाठ्यपुस्तक में भी लोक कथाएं शामिल की जाती हैं। इसके पीछे मुख्य भाव है कि बाल मन में ज्ञान का संचार हो और वे मनोरंजन के साथ जीवन की बारीकियों एवं आदर्शों को सीख सकें।
शुरूआत में लोकमंगल और लोक कल्याण को केंद्र में रखकर लेखन होता था। वैदिक वाड्गमय को भी श्रुति परंपरा के तहत हजारों साल तक लोक में गाया और पढ़ा गया। उस दौर में लेखक अपने नाम को गुप्त रखकर लोक के लिए रचना करते थे। बाद में जब लोक से उपजे लोगों ने खुद को शिष्ट मान लिया और विभूषणों से खुद को अलंकृत कराने में शोभा पाने लगे, तब लोक का लोप हो गया। लोक कथा की प्राचीनता, भारतीय संस्कृति के इतिहास के साथ जुड़ी है। ऋग्वेद के संवाद सूक्त में कथोपकथन के माध्यम से संवाद की परिपाटी है। इसके बाद ब्राह्मण ग्रंथों में भी इसकी परंपरा विद्यमान है। उपनिषद में भी संवादों का एक क्रम मिलता है। बाद के कालखंडों में पंचतंत्र की बहुत सी कथाएं हमारी लोक कथाओं के रूप में प्रचलित हैं। हालांकि लोक जीवन की कथाओं का क्षेत्र पंचतंत्र की कहानियों से कही ज्यादा हैं। लोक जीवन में प्रचलित कथाओं की भावभूमि पर ही हितोपदेश, बेताल पंचविंशति, जातक कथा, बृहत्कथा मंजरी जैसे ग्रंथों में कथाओं की रचना की गयी। लोक जीवन का क्षेत्र इतना विशााल और विशद है कि इसमें सारे शास्त्रीय ग्रंथ सम्माहित हो जायेंगे। लोक जीवन में प्रचलित कहानियों की बराबरी तक कोई शास्त्र कभी नहीं पहुंच सकता है।
लोककथाओं की कुछ विशेषताएं होती हैं। चूंकि मनुष्य सदैव सुख का आकांक्षी है, अतएव लोक कथाएं भी सुखांत होती हैं, यानी अंत भला तो सब भला। कहानी की शुरूआत दुख और परेशानी से होगी, लेकिन अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है। चिरकाल से लोक कथाओं की यह प्रवृत्ति रही है। इसी कारण लोक कथाओं के पात्र और नायक अपने साहस एवं रोमांचक कारनामों से अंत में सुख की खोज कर लेते हैं। लोक कथा मंगलकामना की भावना को समावेशित किए होती है। बचपन की बातें याद हैं। जब दादी या नानी से कहानी सुनते थे तो अंत में वे कुछ शुभ वचन बोलती थीं। जैसे उनके यानी कथा के मुख्य पात्र के दिन फिरे, वैसे ही हमारे दुश्मन के भी दिन फिरें। सबके सुख, शुभ और मंगल की कामना एवं चाहत ही लोककथाओं का मूल संदेश होता है। कथाओं के माध्यम से पहले प्राकृतिक प्रकोप, भय एवं परेशाानी का वर्णन होता, उसके बाद कथा के मुख्य पात्र की धर्मपरायणता या कर्तव्यपालन के प्रति अडिग विश्वास को दर्शाया जाता। लोक कथाओं में एक समय आता है, जब सभी पात्र एक धरातल पर आ जाते हैं। चाहे वह मनुष्य हो, जानवर हो या पेड़ और पौधें। सभी का एक दूसरे से सामान्य वार्तालाप होता है, सब एक दूसरे के दुख और सुख के सहभागी होते हैं। इस प्रकार लोक कथाओं में कथा के विस्तार की कोई सीमा नहीं होती है। यही कारण है कि कई बार लोक कथाएं भी लोक को पार कर जाती हैं। क्षेत्र से बाहर प्रदेश, प्रदेश से देश और इससे भी परे महादेश की सीमाएं भी पार करती प्रतीत होती हैं। आज क्षेत्रीय विखंडन पर बड़ा जोर है। परंतु जरूरत है इन क्षेत्रीय विविधताओं में एक- सू़त्रता खोजने की, जो बार-बार टूटने पर भी हरेक बार जोड़ती है। यह लोक कथा में कई स्तर पर देखा जा सकता है। आदिवासी समाज पूजा करते हुए आदिशक्ति से जुड़ते हैं तो सरहुल का खेल शालभंजिका की रचना से जुड़ता है। यही लोक कथा के स्तर पर भी देखने को मिलता है।
लोककथाएं तो भाषाओं एवं लोक की दीवारों को भी तोड़ देती हैं। कई कहानियां भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में मिलती हैं। तेेलगु लोक साहित्य में बगुला पुत्र की कहानी है। इसमें औरत की संतति बगुला पुत्र के रूप में जन्म लेकर लड़के का काम किया। इसी प्रकार की कहानी मैंने बचपन में दादी से सुनी थी। एक अंतर है-भोजपुरी लोक कथा में बगुला के बदले मुर्गा पैदा हुआ था। वह मुर्गा खेती का काम करता था। कन्नड़ कहानी कौवे का प्रतिशोध विभिन्न रूपों में प्रायः सभी लोकभाषाओं में मिलती है। कहानी की विषय वस्तु है कि कौवा सांप से बदला लेने के लिए रानी के हार को सांप के बिल में डाल देता है। यह कहानी झारखंड की जनजातीय भाषाओं में भी प्रचलित है। बंदर और मगरमच्छ की लोक कथा का वर्णन तमिल, कन्नड़ के अलावा भोजपुरी तथा आदिवासी भाषाओं में भी मिलता है। यह कहानी बहुत पुरानी है। यह कहानी बौद्धग्रंथों में है, और पंचतंत्र में भी। यह कहानी सिंहल भाषा में भी लोकप्रिय है। वहां मताई नामक स्थान में खुदाई में एक मिट्टी के बरतन का टुकड़ा मिला है जिसमें एक चित्र है। इसमें मगरमच्छ के पीठ पर बंदर बैठा है। दीये तले अंधेरा कहावत कन्नड़ और काश्मीर दोनों जगहों पर प्रचलन में है जबकि दोनों भारत के दो छोर हैं। कहते हैं कि संसार की सबसे पुरानी कहानियां लोक कथाओं की ही संतानें हैं। महाभारत के कई आख्यान लोककथाओं के ही रूपांतरण हैं। मसलन नल दमयंती की कथा। पौराणिक कथाओं का विशाल भंडार लोककथाओं के अक्षय पात्र का ऋणी है। जातक कथाएं, हितोपदेश और पंचतंत्र की कहानियां इन्हीं से निकली हैं। इन्हीं से बूंद-बूंद जल लेकर कथासरित सागर जैसे शास्त्रीय ग्रंथ रचे गये।
लोक की एक खास पहचान यह है कि उसमें कोई निजी दुनिया नहीं होती है। वहां निज भी सार्वजनिक होकर रहता है। लोक साहित्य हमें आज़ादी देता है कि हम भी खुद अपनी रचनाशीलता के पल में कबीर, सूर और तुलसी की तरह सोचें। याद कीजिए किस तरह दादी और नानी कहानियां सुनाती थीं, और जब हमारे बच्चे कहानी कहने की जिद करते हैं तो हम उसमें मिर्च मसाला लगाकर उसे ज्यादा आकर्षक बनाने की कोशिश करते हैं। लोक जीवन में लोक कथा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लोक कथाएं लोक जीवन की झलक प्रस्तुत करती हैं और समाज की संस्कृति, परंपरा, मूल्यों और विश्वासों को दर्शाती हैं। यहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण बातें हैं जो लोक जीवन में लोक कथा के महत्त्व को दर्शाती हैं। लोक कथाएं संस्कृति के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे समाज की परंपराओं, रीति-रिवाजों और मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाती हैं। लोक कथाएं शिक्षा और नैतिकता का स्रोत हैं। वे लोगों को अच्छे और बुरे के बीच के अंतर को समझने में मदद करती हैं। वे लोगों को हँसाती हैं, रुलाती हैं और उनकी कल्पना को बढ़ावा देती हैं। लोक कथाएं सामाजिक संदेश देती हैं। वे समाज में व्याप्त समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाती हैं और समाधान की ओर इंगित करती हैं। लोक कथाएं आत्म-ज्ञान का स्रोत हैं। वे लोगों को अपने बारे में और अपने समाज के बारे में समझने में मदद करती हैं।

विभिन्न देशों की लोक कथाओं में कई समानताएं होती हैं जो इन कथाओं की सार्वभौमिकता और मानवीय अनुभवों की एकता को दर्शाती हैं। प्राकृतिक तत्वों का उपयोग अधिकांश लोक कथाओं के रूप में प्राकृतिक तत्वों जैसे कि जानवर, पेड़, पहाड़, नदी आदि का उपयोग किया जाता है। अच्छे और बुरे का संघर्ष लोक कथाओं में अच्छे और बुरे के बीच का संघर्ष एक आम विषय है। जादू और अलौकिक तत्व कई लोक कथाओं में जादू और अलौकिक तत्वों का उपयोग किया जाता है। प्रेम और वफादारी की कहानियाँ विभिन्न संस्कृतियों में पाई जाती हैं। शिक्षा और नैतिकता की लोक कथाएं अक्सर शिक्षा और नैतिकता के मुद्दों पर केंद्रित होती हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य की लोक कथाएं सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाती हैं। सिंदबाद की यात्रा (अरबी), गुलीवर की यात्रा (अंग्रेजी), और मार्को पोलो की यात्रा (इतालवी) में समुद्री यात्रा और विदेशी संस्कृतियों के बारे में वर्णन है। स्नो व्हाइट (जर्मन), सुंदरी (हिंदी), और बेले (फ्रेंच) में सुंदरता और ईर्ष्या की कहानी है। अलादीन (अरबी), अलीबाबा (फारसी), और जैक और बीनस्टॉक (अंग्रेजी) में जादू और अलौकिक तत्वों का उपयोग है। रोमियो और जूलियट (इतालवी), लैला मजनूं (फारसी), और हीर रांझा (पंजाबी) में प्रेम और वफादारी की कहानी है। इन उदाहरणों से पता चलता है कि विभिन्न देशों की लोक कथाओं में कई समानताएं होती हैं जो मानवीय अनुभवों की एकता को दर्शाती हैं।

लोक कथा मानव जीवन के सभी पहलुओं से संपर्क रखती हैं। हाल के दिनों में लोक कथाओं के संग्रह और संरक्षण के प्रयास हुए हैं लेकिन लोक कथा की विशेषता है कि इसे श्रुति और स्मृति के माध्यम से ही जिंदा रखा जा सकता है। संरक्षण के कारण इसका मूलभाव ही ख़त्म हो जायेगा, जो सदाचारी, धर्मपरायण, कर्मशील व्यक्तित्व का निर्माण करना रहा है। लोक कथाओं की तीन शैली रही है। एक गद्य शैली जो सभी क्षेत्रों में पायी जाती है, दूसरी पद्य शैली जिसको चंपू शैली की कथा कहा जाता है। इस प्रकार की लोक कथाओं में विशेष स्थान पर पद की रचना होती है। इससे कहानी में एक प्रवाह मिलता है जो श्रोताओं पर असर डालता है। कहानी की शुरूआत में पहले वाक्य से ही नायक का वर्णन मिल जाता है। इसकी शुरूआत होगी कि – एक राजा था, या एक जंगल में शेर रहता था। लोक कथा में कहानी को कहने वाले के साथ ही सुनने वाले की सहभागिता जरूरी हैं। इसके लिए कथा सुनने वाला व्यक्ति जब तक हुंकारा नहीं भरता तब तक कथाकार को रस नहीं आता है। हुंकारा का अर्थ है कि सुनने वाला व्यक्ति अंधेरे में भी कथा का आनंद उठा रहा है।
युगों से लोक कथाएं मानव मूल्यों का संवहन करती रही हैं। दादी नानी के मुंह से बचपन में सुनी कहानियां एक तरह से लोक शिक्षण का काम करती रही हैं। यह एक सच्चाई है कि जैसे-जैसे हमारे जीवन से लोक एवं लोक कथाएं गुम होती गईं, वैसे-वैसे मानव मूल्य का भी क्षरण होता गया। लोक कथाओं में ही एकमात्र रूप से सुखी जीवन की सामूहिक अभिलाषा बनी रहती है। सुखी जीवन की कामना केवल व्यक्तिगत जीवन के लिए नहीं बल्कि समाज एवं देश के लिए भी। लोक सभी के मंगल की कामना करता है। यही कारण है कि लोक कथाओं की बुनियाद में परिवार और समाज सब शामिल होते हैं। इस लोक की वृहत्तर समाज में पशु-पक्षी, पेड़ -पौधे, देवता-दानव सभी सहभागी होते हैं। इस कारण लोक कथाओं में मानवीय करुणा एक क्षितिज से लेकर पूरी सृष्टि तक पहुंच जाती है। इसके प्रभाव से कोई बच नहीं पाता। क्या मानव और क्या जानवर ! यह लोक का ही प्रभाव है कि लकड़हारा संपेरे से सांप की रक्षा करता है तो बदले में सांप भी बाघ से लकड़हारे की रक्षा करता है। यहां लोक चेतना में करुणा एक स्तर पर सभी में प्रवाहित होती है। कोई केवल अपने लिए दूसरे के प्राण को संकट में डालने से बचता है।
लोक कथाओं के कई रूप हैं। सोते समय जब बच्चा जिद करे, तो उसके मनोरंजन के लिए सुनाई जानेवाली कथाएं एक प्रकार की होती है, तो पर्व – त्योहार के अवसर की कथाएं दूसरे प्रकार की। राजा और रानी की कथा-कहानी में जनसाधारण के सुख और दुख को भी समावेशित किया जाता है। दुख और विपदा में पड़े लोक मानस को जगाने के लिए राजकुमार राम की कथा है जो साधनहीन रहकर भी अपनी पत्नी की राक्षस से रक्षा करता है। लोक में राजकुमार की पुरुषार्थ की कथा है तो एक चिड़िया की जिजीविषा की कहानी है। इस अकेली चिड़िया की दाल का दाना खूंटे में अटक गया है तो उसे पाने के लिए शांति एवं धैर्य के साथ लंबा सत्याग्रह चलाती है। खूंटे से दाल को निकालने के लिए वह बढ़ई से लेकर राजा, जंगल के सभी जानवर तक जाती है और अंत में सफल होती है। लोक की इस कहानी का प्रभाव कहीं प्रेमचंद की रंगभूमि पर तो नहीं है ! इसमें अंधा सूरदास अपनी ज़मीन के लिए किस तरह डट जाता है। लोक साहित्य का अध्ययन हमें लोकचित की बुनियादी संरचनाओं को जानने-समझने में मदद करता है। उसमें भाषा की आदिम रचनाशीलता के विविध रूप, अभी तक अपनी निरंतरता बनाये देखे जा सकते हैं। कथा, काव्य, संगीत, नृत्य और नाट्य की आपसदारी के साथ मूर्त होनेवाला लोक साहित्य मानव जाति के सामूहिक चित्त के संस्कार, स्मृति और रचनाशीलता को मुखर बनाने में मदद करता है।

लोक कथाओं की कहन शैली का क्षरण हुआ है। कथा कहना और प्रस्तुत करना दो अलग विधाएं हैं। कथा कहने में, कहने और सुनने वालों के बीच भाव विनिमय की ध्वनि यानी हुंकारा भरना और उसके सापेक्ष एक सघन अंतरक्रियाशीलता का खेल होता है। कथाएं कई रूपों में विस्तार पाती हैं। सिंड्रेला की कथाएं विश्व में पांच सौ रूपों में जानी जाती हैं। मध्य एशिया में गुणाढ्य की वृहत्कथा की शैली से प्रभावित अरेबियन नाइट्स की कथाएं आती हैं। बौद्ध जातक कथाएं और जैन आगम की कथाओं के समरूप बाइबिल की नये टेस्टामेंट में कथाएं हैं। रामायण और महाभारत की कथाएं अपने कई रूपों में दक्षिण एशिया से पूर्वी एशिया तक फैली हुई हैं। पंचतंत्र और हितोपदेश की कथाएं विश्व की हरेक भाषाओं में अनुवादित हो चुकी हैं।

आज कथा को सुनाने की वह लोक लुभावनी विधि ख़त्म हो गयी है जिसमें आल्हा-ऊदल, सोरठी बृजभान, गोपीचंद्र, भर्तृहरि के गीत कथाओं को गेयात्मक रूप में गांव, कस्बों में लोग समूह बनाकर सुनते थे । आधुनिक जीवन में बाज़ार संस्कृति, माॅल एवं बहुआयामी परंपरा ने समुदाय की पहचान को ख़त्म किया है। हाट, बाज़ार और चौपाल विस्थापित हो गये हैं। संयुक्त परिवार सिमट कर एकल परिवार बन गये हैं जहां माता-पिता के अलावा किसी अन्य का अंतरंग संबंध अवांछनीय है। तर्कवाद के विकास तथा अर्थनीति के धर्म एवं समाज पर प्रभाव ने लोक कथाओं के प्रसार और उसकी गति को रोका है। सर्वविदित है कि जब समाज की परंपरागत संरचना दरकी, तो साहित्य, मान्यताएं एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में भी एक ठहराव आया। हालांकि इसके बाद भी मेरा मानना है कि लोक साहित्य का अपना एक स्थान है। इसमें इतिहास के वे पक्ष उजागर होते हैं जिनका स्थान पाठ्यपुस्तकों में नहीं है। अब वैदिक कालीन देवता हो या भक्तिकालीन देवगण- सबकी विकास की परंपरा लोक साहित्य से होकर जाती है।

लोकगीत, लोक नाट्य और लोक कथा में कौन पुराना है और कौन सबसे ज्यादा लोकप्रिय, इसके बारे में कुछ भी कहना कठिन है। लेकिन गीत, नाटक और कथा हमारे लोक जीवन में बहुत प्रचलित हैं तथा पुराने भी हैं। लोक चिंतन की विविध धाराएं हमारे लोक जीवन को अपनी रसधारा से हज़ारों वर्षों से सिंचित करती आ रही हैं। जन्म से लेकर मरण तक, मुंडन से विवाह तक , रोपनी से सोहनी और कटनी से लेकर कजरी, पिंड़िया और होरी तक। इसके अलावा गंगा नहान से कार्तिक स्नान एवं फिर चईता से लेकर सावन तक प्रत्येक अवसर पर लोक जीवन अपने विभिन्न रूपों में गूंजायमान होता है। रासलीला से लेकर रामलीला तक और शिव संवाद तक की यात्रा अनुपम है जो लोक को अखंडता, नूतनता, विविधता और सामूहिक भावबोध के साथ निरंतर गतिमान रखती है।

लोककथा का महत्त्व क्या है ? इसको एक दक्षिण भारतीय लोक कथा के माध्यम से समझा जा सकता है। एक बुढ़िया अंधेरी रात को गली में बहुत ध्यान से कुछ ढूंढ रही होती है। एक राहगीर उससे पूछता है कि क्या ढूंढ रही हो ? कुछ खो गया है ? बुढ़िया कहती है कि मेरी चाबियां खो गईं हैं। मैं उसे शाम से ढूंढ़ रही हूं।
तब राहगीर पूछता है- चाबियां खोई कहां, कुछ याद है ?
बुढ़िया बोलती है कि नहीं , कुछ याद नहीं आ रहा, पर शायद घर में ही।
तो फिर तुम उन्हें यहां क्यों ढूंढ रही हो ? राहगीर ने पुनः पूछा।
वह बुढ़िया जवाब देती है कि घर के अंदर अंधेरा है। मेरे दीए का तेल ख़त्म हो गया है। यहां गली की बत्तियों के नीचे मैं ज्यादा अच्छी तरह से देख सकती हूं।

इस नीति कथा का सार है कि अभी भी लोक चिंतन की धारा में लोक कथा को हम बाहर के प्रकाश में ही खोज रहे हैं – इसे अब अपने अंदर खोजना होगा। इसे लोक, शास्त्र, संस्कृति के उजाले में ढूंढने का प्रयास करना होगा। ऐसा करने से हमें कुछ नया मिलेगा जिसकी अहमियत बहुत ज्यादा होगी। हमारी लोक और शास्त्र की परंपरा के लिए।
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डाॅ मयंक मुरारी

आधुनिक समय में भारतीय समाज तथा जीवन, इतिहास,परंपरा और दर्शन विषय पर लिखते हैं। अपने 30 सालों के सार्वजनिक जीवन में अखबारों एवं पत्रिकाओं में अब तक 600 से अधिक आलेख और एक दर्जन किताबें लिख चुके हैं। जिनमें मानववाद एवं राजव्यवस्था, राजनीति एवं प्रशासन,भारत- एक सनातन राष्ट्र, माई- एक जीवनी, झारखंड के अनजाने खेल, झारखंड की लोक कथाएं, लोक जीवन ( पहचान, परंपरा और प्रतिमान), यात्रा बीच ठहरे कदम ( काव्य संग्रह )
ओ जीवन के शाश्वत साथी, पुरोषत्तम की पदयात्रा, अच्छाई की खोज, भगवा ध्वज, जंबूद्वीपे-भरतखंडे आदि शामिल है।
उन्होंने ग्रामीण विकास,प्रबंधन, जनसंपर्क एवं पत्रकारिता के अलावा राजनीति शास्त्र में उच्च शिक्षा, स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद विकास के वैकल्पिक माध्यम पर पी0एचडी0 किया।
उनके कार्यों एवं योगदान के लिए विद्यावाचस्पति, झारखंड गौरव सम्मान, सिद्धनाथ कुमार ‌स्मृति सम्मान, झारखंड रत्न, जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान, साहित्य अकाडमी रामदयाल मुंडा कथेतर सम्मान, लायंस क्लब आफ रांची की ओर से समाज सेवा के लिए अन्य संस्थाओ के द्वारा कई सम्मान एवं पुरस्कार दिये गये हैं। व्यक्तित्व विकास, प्रेरणा और संवाद के अलावा भारतीय परंपरा एवं जीवन पर विभिन्न विद्यालय एवं संस्थान में व्याख्यान देते हैं। इसके अलावा उनका आध्यात्मिक और भारतीय दर्शन पर आधारित आलेख देश के सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में नियमित रूप से प्रकाशित होता है।
संपर्क- 99934320630
मेल-murari.mayank@gmail.com
रांची, झारखंड

 


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