स्वर्गीय कवि

स्वर्गीय कवि
बहुत भला है
किसी की किसी बात का
बुरा नहीं मानता
किसी से किसी बात पर झगड़ता नहीं
किसी से ईर्ष्या नहीं करता

भूल जाने पर
दुखी नहीं होता
याद करो
तो खुश नहीं होता
बेहद निरभिमानी है

फूल चढ़ाओ
तो मुस्कुराता है
न चढ़ाओ तो भी मुस्कुराता है
धूल खाते हुए भी मुस्कुराता है
तस्वीर गिर जाए
कांच फूट जाए
तो भी मुस्कुराता है
बहुत बड़ा संत है

कवि को साधना के इस स्तर तक
पहुंचने के लिए
मरने के अलावा कुछ नहीं करना पड़ता।
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मीटिंग

मैं सात दिन पहले आया था न सर
तब आप मीटिंग में थे
पाँच दिन पहले भी
आप मीटिंग में थे
आता ही रहा उसके बाद भी
आज तो खैर चार बार आया
आप मीटिंग से फारिग नहीं हुए तो नहीं ही हुए

मीटिंग तो बहुत ही जरूरी है सर
आप तो ऐसा किया करो
दिन-रात-सुबह-शाम
उठते-बैठते, खाते-पीते, हगते-पादते
मीटिंग ही मीटिंग, मीटिंग ही मीटिंग किया करो सर
बीवी से बिस्तर में भी मीटिंग
किया करो सर
बच्चे तो होंगे ही आपके
उनसे भी रोज आपकी मीटिंग होनी चाहिए

मीटिंग हैं तो आप हैं
मीटिंग ही देश के प्राण हैं
मीटिंग ही लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ है
मीटिंग से ही हमें ऑक्सीजन मिलती है
कार्बनडाई ऑक्साइड पास होती है

मीटिंग पर ही पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण टिका है
मीटिंग ही मानवता का निचोड़ है
मीटिंग होती रही है इसलिए आज तक यह देश महान है

अच्छा
आज से मैं भी मीटिंग करना शुरू करता हूँ सर
जय हिंद, जय भारत, सर
आप जी, बिल्कुल हैरान-परेशान मत होना सर।

 

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न्याय

भुनगा न्याय मांगने गया
न्यायाधीश ने उसे मसलकर फेंक दिया

अगली बारी हाथी की थी

न्यायाधीश ने कहा
आपने कष्ट क्यों किया महाराज
न्याय तो खुद आपके घर के लिए
निकल चुका है ।
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एक हफ्ते बाद

एक हफ्ते बाद कुछ भी हो सकता है
कागज का जहाज अटलांटिक पार कर सकता है
लोहा अपनी पहचान खो सकता है
पानी अपना रंग और स्वाद बदल सकता है
मैं 71 की बजाए 17 का हो सकता हूं

बात आज और अभी की है
आग अभी लगी है, पानी अभी चाहिए
आज की रात ठंडी है, कंबल अभी चाहिए
मेहनत आज की है, मजदूरी अभी चाहिए

एक हफ्ते की बाद की बात गाली है
एक हफ्ते बाद की बात
भूख के पक्ष में दी गई दलील है।
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सफर में

आदमी सफर में कई बार सबकुछ भूल जाता है
वह सफर में है,यह भी
वह कहीं पहुँच गया , यह भी
पहुँचकर भी वह सफर जारी रखता है
कभी-कभी तो उसकी नींद भी सफर पर चली जाती है
वह भी भूल जाती है कि वह सफर पर है
और कहीं पहुँच चुकी है
उसे अब यहाँ रुकना है, आराम करना है।
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विष्णु नागर

विष्णु नागर का जन्म 14 जून, 1950 को हुआ। उनका बचपन और छात्र जीवन शाजापुर, मध्य प्रदेश में बीता। 1971 से दिल्ली में पत्रकारिता शुरु की और तभी से दिल्ली में हैं।
‘नवभारत टाइम्स’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘कादंबिनी’, ‘नई दुनिया’, ‘शुक्रवार’ आदि पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। भारतीय प्रेस परिषद एवं महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। फिलहाल स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हैं।
उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘मैं फिर कहता हूँ चिड़िया’, ‘तालाब में डूबी छह लड़कियाँ’, ‘संसार बदल जाएगा’, ‘बच्चे, पिता और माँ’, ‘कुछ चीज़ें कभी खोई नहीं’, ‘हँसने की तरह रोना’, ‘घर के बाहर घर’, ‘जीवन भी कविता हो सकता है’ तथा ‘कवि ने कहा’ (कविता-संग्रह); ‘आज का दिन’, ‘आदमी की मुश्किल’, ‘कुछ दूर’, ‘ईश्वर की कहानियाँ’, ‘आख्यान’, ‘रात दिन’, ‘बच्चा और गेंद’, ‘पापा मैं ग़रीब बनूँगा’ (कहानी-संग्रह); ‘जीव-जन्तु पुराण’, ‘घोड़ा और घास’, ‘राष्ट्रीय नाक’, ‘देशसेवा का धन्धा’, ‘नई जनता आ चुकी है’, ‘भारत एक बाज़ार है’, ‘ईश्वर भी परेशान है’, ‘छोटा सा ब्रेक’ तथा ‘सदी का सबसे बड़ा ड्रामेबाज’ (व्यंग्य-संग्रह); ‘आदमी स्वर्ग में’ (उपन्यास); ‘कविता के साथ-साथ’ (आलोचना); ‘असहमति में उठा एक हाथ’ (रघुवीर सहाय की जीवनी);
‘हमें देखतीं आँखें’, ‘आज और अभी’, ‘यथार्थ की माया’, ‘आदमी और उसका समाज’, ‘अपने समय के सवाल’, ‘ग़रीब की भाषा’, ‘यथार्थ के सामने’, ‘एक नास्तिक का धार्मिक रोजनामचा’ (लेख और निबन्ध-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार : विष्णु नागर’ (साक्षात्कार)।
‘सहमत’ संस्था के लिए तीन संकलनों तथा रघुवीर सहाय पर एक पुस्तक का संपादन। परसाई की चुनी हुई रचनाओं का संपादन। नवसाक्षरों एवं किशोरों के लिए भी पुस्तक लेखन।
उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान’, हिन्दी अकादमी, दिल्ली के ‘साहित्य सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘राही मासूम रज़ा साहित्य सम्मान’, ‘व्यंग्य श्री सम्मान’ आदि से सम्मानित किया जा चुका है।
सम्पर्क : vishnunagar1950@gmail.com

 

 


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