श्रुति कुशवाहा के काव्य संग्रह ‘ सुख को भी दुख होता है’ को तोलस्तोय के अन्ना कारेनिना उपन्यास की इस पंक्ति के आलोक में देखें कि ‘सभी ख़ुशहाल परिवार एक जैसे होते हैं और हर दुखी परिवार अपने तरीके से दुखी होता है’ तो कह सकते हैं कि यह काव्य संग्रह मूलत: दुख को रूप देता है। स्त्री हो या पुरुष अंतत: घर परिवार समाज में रहते हुए जो यंत्रणा झेल रहे हैं , वह किस तंत्र की उपज है ? यह विचारणीय पक्ष है। इसी विषय की धुरी पर यह संग्रह घूमता है।
बहरहाल , पवन करण ने इस संग्रह पर अपने विचार रखें हैं जो अहम हैं। – हरि भटनागर
समीक्षा:

इन दिनों मर्जियों का शासन है….. मेरा भोजन, मेरे कपड़े
मेरी आस्था पर भारी है ….उनकी मर्जी
कवि श्रुति कुशवाहा के कविता संग्रह ‘सुख को भी दुख होता है’ को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया की शुरुआत श्रुति की सामाजिक-राजनैतिक चेतना की संपन्नता के उल्लेख से करना चाहता था। मगर क्या करूं संग्रह की कविताएं पढ़कर, मेरे भीतर कब से चुपचाप सोया प्रेमी, अपनी आंखें मीड़ता उठकर बैठ गया। वह बहुत पीछे पहुंचकर अपनी प्रेमिका से पूछना चाह रहा है कि तुमने मुझे इन कविताओं के प्रेमी की तरह क्यों नहीं देखा। देखा तो मुझसे कहा क्यों नहीं। क्या मैं ऐसा नहीं था या तुम ऐसी नहीं थीं। श्रुति ने प्रेम को केंद्र में रखकर, प्रेमियों को उछाल देने वाली कविताएं लिखी हैं। प्रेमी को इतने (मां जैसे) रस भरे लाड़ और मर-मिटने वाले भाव से कितनी स्त्री-कवियों ने देखा है?
लड़कियां अपने पिता में अपने भविष्य के प्रेमियों/पतियों को देखती हैं। तब क्या वे मांएं भी अपने पुत्रों में अपने देखे-अ-देखे, मिले-न मिले, प्रेमियों को देखती हैं। क्या वे अपने पुत्रों को प्रेमियों तरह पालती हैं। क्या इसीलिए मांए जब बेटों को छोड़ देना चाहिए तब भी इसीलिए उनका पीछा नहीं छोड़तीं। प्रेमी को लेकर लिखीं श्रुति की कविताओं में ‘कृष्ण को लेकर लिखीं सूरदास की कविताओं’ जैसी भावभूमि श्रुति की कविता की होनी भी नहीं चाहिए मगर उनमें साम्य यह है कि सूरदास ने मन की आंखों से अपने प्रेमी को देखा श्रुति नें आंखें खोलकर प्रेमी को देखा। श्रुति आंखें बंद करके प्रेमी को देखने वाली कवियत्री नहीं। आंखों में आंखें डालकर प्रेम रचने वाली कवि हैं। क्या सूफियाना और लुट जाने वाला भाव है। प्रेमियों श्रुति की लिखी इन कविताओं को पढ़िये और खुद को उतना खास, जितना किसी से प्रेम करने के दौरान भी तुमने महसूस नहीं किया, उतना महसूस कीजिए। प्रेम करने वाले ‘खास’ ही तो होते हैं।
श्रुति की कविताओं प्रेम में गंवा देने को लेकर कोई रुदन अथवा पश्चाताप का भाव नहीं, नाहीं वे इसमें होने वाले अलगाव, टूटन और बिखराव को लेकर पुरुष को कोसने और शाप देनें पर उतरतीं हैं। मगर इसका आशय यह भी नहीं कि वह खुद को प्रेम से बाहर रखकर प्रेम करती और प्रेम के विषय में बस सोचती हैं। नहीं वे खुद भी अपनी प्रेम कविताओं में आवेग के साथ उपस्थित हैं। और अपनी प्रेम-कामनाएं बेझिझक कविता में लिखती हैं। वे हिंदी कविता की नई बिंबकार भी है। जो एक अनजाने स्थान से या प्रतीक से अपनी कविता की शुरुआत कर उसमें जीवन का आश्चर्य भर देती हैं। एक शब्द जो अनेक घटनाओं और बातों से चलता बढ़ता हुआ अंतत: खुद को कविता में बदला अथवा लिखा हुआ पाता है।
उनकी कविता और उनके स्त्री होने की मूल ताकत (समझ) भी यही है कि वह पुरुष अथवा पितृसता से आक्रांत नहीं हैं। वे पुरुष के साथ बराबर हैं न कम न ज्यादा। स्त्री-विमर्श की एक स्वस्थ धारा यह भी है। बराबरी। संभवतया उनकी राजनैतिक-सामाजिक चेतना के प्रमुख-प्रतिनिधि होने का कारण भी यही है। वे ऐसी स्त्री कवि हैं जो खुद अपने संग्रह में न्यूनतम उपस्थित रहकर कविता रचतीं और तड़पा देने वाले प्रहार करती हैं। श्रुति की कविताओं में स्त्री उपस्थिति ‘मैं स्त्री’ की प्रवृति में नहीं, हम स्त्रियां के विस्तार और विश्वास में है। दिखाई देता है कि वह अपनी कविताओं में अपनी कविता से बाहर रहकर हैं। यह हिंदी कविता की समृद्धि-सूचक आत्मविश्वासी दृष्टि और उसका आश्वस्तिकारक वैविध्य है।
श्रुति अपनी कविता में निर्भीक होने के साथ-साथ अनूठीं तंजवान हैं। सामाजिक-राजनैतिक क्षरण पर उनके तंज उनकी कविता को धार तो देते ही हैं वर्तमान दौर में उन्हें आवश्यक भी बनाते हैं और निशाने पर भी लेते हैं। वे एक संग्रह में ही विचार से लेकर वस्तुओं, कहावतों से लेकर स्मृतियों, कथनों से लेकर घटनाओं तक की दीर्घयात्रा तय करती हैं। शायद हिंदी कविता का यह स्त्रीकाल है जिसमें स्त्री कवि चुनौती की तरह साहित्य, समाज और राजनीति के समक्ष अपनी कविताएं रख रही हैं। –
किसी को देखने, छूने, चूमने की कामना
जिस दिन खत्म हो जायेगी, उस दिन हम मर जायेंगे
हृदय को चीर देने की कला है उसकी मुस्कान
एक जादूगर जो कबूतर बनाकर कर ले कैद
और मैं उड़ना भूल जाऊं
हंसता है तो जादू-सा हुआ जाता है
देखता है तो सीना चाक कर देता है कमबख्त
लौट आना, इससे पहले कि मैं कहूं
अब तुम्हारे लौटने न लौटने से कोई फर्क नहीं पड़ता
उसे वैसा सुनना जैसे वो देखती है तुम्हें
सुनने के बाद फिर देखना सीखना
जो सीखना हो बरसना तो बादलों से नहीं
किसी रूठी प्रेमिका से सीखना
उसके आगे पानी भर्ती हैं सारी बारिशें
मैं एक दिन जादू से मिट्टी हो जाऊंगी
उदासियां कभी फूटकर नहीं रोईं वो बड़ा शातिराना मुस्कुराती थीं
खूबसूरती की आड़ में उदासी खुद को बचाने का हुनर जानती है
मेरे जूड़े में सेवंती के फूल सा-बंधा है शोक
जिसकी पत्तियां कभी झरती नहीं
प्यार वो चिड़िया तो नहीं
जो सोने के पिंजरे में गाती है आजादी के गीत
प्रेमिका सुख की सबसे आखिरी हिस्सेदार होती है
दुख की पहली
उम्र एक बेवफा प्रेमी है जो लड़की को छलकर भाग चुका है
कितना उबाऊ है प्रेमी का लहजा और प्यार का तरीका बोझिल
बताएं कि बो आज भी हैं प्रेमी से बेहतर
आजकल अच्छा लगना संवैधानिक अधिकारों पर भारी हो रहा है
जब सुख राजप्रासाद की सीमाओं में कैद हुआ
कविता ने शुरु की सिंहासन की चिरौरी
आइए दो मिनट का मौन रखिए सड़कों पर निकले लोगों के लिए..
ये किसी भी क्षण मारे जा सकते हैं, दो मिनट का मौन
घरों में बंद लोगों के लिए ये पहले ही मारे जा चुके हैं
उन्हें बताया गया मंदिर बन गया, बस इसी भरोसे युवाओं ने
दानपेटी में डाल दिया अपना भविष्य
सोकर अंधेरा तो काट सकते हैं, मिटा नहीं सकते
अंधेरे समय में सबसे जरूरी था जागना
हमने नींद को ढाल बना लिया अंधेरे को आदत
कुछ लोगों के पास मखमल की भाषा थी,
उन्होंने थोड़ी खादी मिलाकर इसे राजनीति की भाषा बना दिया
खद्दर की भाषा में बात करते-करते
कुछ लोग कुर्सी की भाषा तक जा पहुंचे
एक दिन रात बंद ताले सी न होगी स्त्री के लिए
उसी के पास होंगी उसकी सारी चाबियां
भाषा कवि श्रुति की सखी है जिसकी रोशनी में वह अंधेरे की पहचान करती है, यह उसकी सामर्थ्य है जिसके बूते वह कविता के तेज को बखूबी साधती हैं।
श्रुति कुशवाहा
जन्म 13 फरवरी को भोपाल, मध्यप्रदेश में।
पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल, वर्ष 2001)।
वर्ष 2025 में दूसरा कविता संग्रह ‘सुख को भी दुख होता है’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित।
पहला कविता संग्रह ‘कशमकश’ वर्ष 2016 में मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित । वागीश्वरी पुरस्कार , कादंबिनी युवा कहानी पुरस्कार और अचला सम्मान से सम्मानित – पुरस्कृत।
हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, भोपाल में विभिन्न न्यूज़ चैनल में काम करने के बाद अब गृहनगर भोपाल में डिजिटल मीडिया में कार्यरत।
ई-मेल : shrutyindia@gmail.com
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