तानाशाह नंबर चार
-ज्ञान चतुर्वेदी
(कि देशप्रेम में बाधा है प्रेम ,और ये बात बादशाह को बर्दाश्त नहीं )
चलिये , अब उस तानाशाह से मिलते हैं जिसकी ताबेदारी में न केवल ये तीनों तानाशाह हैं , पूरा देश ही है ; इस कथा का चौथा तानाशाह ।
देश का तानाशाह :
कि देश उसकी मुट्ठी में ,सत्ता उसकी चेरी ; उसकी तेग के नीचे देश की हर गर्दन ; कद बित्ते भर का पर छाया विराट ; उसके समक्ष हर सर झुका , झुकने को मजबूर , झुकने को बेताब , उठने से घबराता ; संस्कृति और साहित्य जिस पर चंवर डुलायें , कवि जिसके लिये भांड़ बनने को आतुर और भांड़जन साहित्य संस्कृति के नियंता बनकर इठलायें इतरायें ; वो कहे तो रात , वो कहे तो दिन , चहुंओर भयावह नपुंसक सहमति ; सर्वत्र उसी की वाॅह वाॅह , नारों का नाश्ता , प्रशस्तियों का लंच , ढकोसलों का डिनर , चापलूसी के पेय ; जिंदाबाद की प्राणवायु ; देशसेवा का मेकअप , राष्ट्रप्रेम का डीओ , देशभक्ति का इत्र कि जिसकी गंध के नीचे हर दुर्गंध दब जाये ; मुट्ठी में गौरवशाली परंपरा का चबैना ; गाल बजाने के संगीत कार्यक्रम , देश की हर समझदार सुर-ताल उसकी संगत को आतुर , समस्त वाद्यवृंद उसकी दबोच में , हर राग उसके कब्जे में , हर सुर उसी की लय पर ; झंडे का बाना , झंडे का गाना ,झंडे का डंडा निकालकर सर फोड़ने को आतुर मसीहा ; प्रबल राष्ट्रवादी, महान देशप्रेमी ; सबसे समझदार , सबसे बहादुर , सबसे भयभीत ; निरंतर गरजता, निरंतर ताल ठोकता , निरंतर घबराता ; चेहरे पर परम आत्मविश्वास , आत्मा में हीनताबोध ; सिंहासन में प्राण जिसके ; शिगूफे बनाने में ही अपनी सारी ऊर्जा होम करने को तत्पर ; और भी न जाने क्या क्या !
है वो पूरा तानाशाह पर नाम उसका जन सेवक ।
देश को मुट्ठी में भींचे यह कैसा सेवक है भाई ?
देशद्रोहियों टाइप प्रश्न मत करिये , मुंह तोड़ दिया जायेगा आपका ।…मुंह क्यों तोड़ेंगे ? हमारा प्रश्न एकदम जायज है ; क्या ग़लत कहा हमने ? बिल्कुल गलत नहीं कहा आपने , सच बोला पर यह सच बोलने का समय है क्या ; यह तो उससे बचने का समय है । किसी भी समझदार नागरिक को आपने यहां सच बोलते देखा है कभी ? ज्यादा समझदार तो अब मौन ही हो चुके , वे बोलते ही नहीं ; न सच , न झूठ ,कुछ भी नहीं क्योंकि यहां हर बात का कोई ऐसा वैसा अर्थ निकाला जा सकता है सो ,बोलो ही मत । न झूठ , न सच । चुनी हुई चुप्पियों का समझदार समय है ये।
*
विकट देशप्रेमी है चौथा तानाशाह ।
उसका मानना है कि उससे बड़ा देशप्रेमी कभी हुआ ही नहीं ।
वो मानता है कि लोगों को देशप्रेम सिखाने की सख्त आवश्यकता है । उस जैसा देशप्रेमी तो खैर लोग बन नहीं सकते पर कुछ तो सीखें उससे । अभूतपूर्व और अतुलनीय राष्ट्रभक्त है वो। राष्ट्र पर बलि-बलि जाने वालों की कभी लिस्ट बने तो उसी का नाम सबसे ऊपर होगा , पहले से दसवें नंबर तक बस उसी का नाम ; लिस्ट तैयार करने वाले को भी अपना कैरियर देखना होता है !बादशाह को लिस्ट नागवार लगी तो जांच एजेंसियों पीछे लग जायेंगी ; तानाशाह के समकक्ष लिस्टित नामों पर जांच बैठ जायेगी कि ये शहीद हुये थे या कहीं दारु पीकर छत से फिसलकर तो नहीं मरे थे ?
तानाशाह नाम उसे पसंद नहीं ।
कोई उसे तानाशाह कहे ,वह बरदाश्त नहीं करेगा। वैसे उसका दृढ़ मत है कि यह देश तानाशाही से ही ठीक होगा । देश के लोगों को डंडा चाहिये । विश्वास तानाशाही पर है पर यह बात वह बोलता कभी नहीं ; तानाशाही नाम से नहीं , काम से जाहिर होनी चाहिये ,मानता है वो ; लगे डेमोक्रेसी , और हो विशुद्ध तानाशाही । ऐसी तानाशाही जिसका चेहरा लोकतांत्रिक हो ; ऐसा लोकतंत्र जिसमें तानाशाही के सारे तत्व समाहित हों ; लोकतांत्रिक संस्थायें स्वप्रेरणा से तानाशाह के अनुरूप चलें ; अदालतें निर्णय देते हुये ध्यान रखें कि बादशाह क्या चाहता है ; अखबार निष्पक्ष होकर वो छापें जो बादशाह को पसंद हो ; अफसर उसके इशारे पर आंख मूंद कर एक्शन लें ; विरोधी उसी हद तक विरोध करें जितना विरोधी की पहचान के लिये जरुरी हो ; प्रजा बादशाह की जय , उसके नारों , उसके भजन-कीर्तन की निःशुल्क कक्षाओं में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले । उसी के पास देश की हर समस्या का हल है , मानवता के हर प्रश्न का सटीक उत्तर है । दैहिक ,दैविक , भौतिक , राजनैतिक ,आर्थिक , समाजिक और सांस्कृतिक ,हर ताप का हल उसके पास है ; केवल उसी के पास ।
सारे उत्तर तानाशाह की जेब में हैं ,बस उससे प्रश्न समझ-बूझकर किये जायें। उत्तरों पर एकाधिकार है उसका। खेल के नियमों और अंपायर पर एकाधिकार की आश्वस्ति के बिना वह किसी खेल में नहीं उतरता ; सारे इक्के उसके कब्जे में हों और हर बाजी को वही दोनों तरफ से खेले तभी खेलता है वह । दूसरों का अच्छा खेलना उसे बिल्कुल पसंद नहीं ।
दूसरों के उत्तर उसे बर्दाश्त नहीं ; होंगे उनके उत्तर सच , एकदम सोलह आने सच पर उनका सच जब तक उसके द्वारा निर्धारित और अनुमोदित उज्जवल परंपराओं , मान्यताओं , पवित्र संस्कृति और पुरखों के अखंड ज्ञान के साथ मेल न खाये ,उसे मान्य नहीं ।
वैसे तो ,किसी का कोई सवाल बरदाश्त नहीं उसे । हर सवाल से ऊपर है वह ।
उसे पता है कि वह बड़ा राष्ट्रप्रेमी है । पर उसकी चिंता है कि देश में कहीं उसकी तरह का राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम दिखलाई नहीं देता । ऐसे तो यह देश एकदम गर्त में ही चला जायेगा ? उसको ही कुछ तो करना होगा । देश में राष्ट्रप्रेम जगाना ही होगा ।
पर इस देश को सच्चा देशप्रेम कैसे सिखाया जाये ?
दिनरात यही सोच सोचकर परेशान रहता था तानाशाह कि ऐसा देशप्रेम नागरिकों में कैसे पैदा हो ?उसे पता है , प्रजाजन स्वयं में मग्न हैं , लोग देश से दूर हो चुके हैं , वे देश की सोचते ही नहीं । कहते सब हैं कि वे देश से प्रेम करते हैं पर जिस चीज को तुम अभी जानते ही नहीं उससे प्रेम कैसे करोगे ? बादशाह प्रजाजन को राष्ट्र का मतलब समझाना चाहता है ।उसे सारे देश को विकट देशप्रेमी बनाना है । यही जीवन उद्देश्य है उसका ।
पर कैसे बनाये ? क्या करे ? समझ न आता था उसे ।
कि तभी इसका उत्तर उसे एक सपने में मिला ।
उस रात मदिरा बढ़िया रही थी , साकी ने पिलाई भी बड़े प्रेम से सो महफिल के बाद उसे नींद भी उतनी ही बढ़िया आई ।और उस रात अलसभोर में उसे यह सपना दिखा जिसमें ये उत्तर मिला कि कैसे बनाये वो सबको देशभक्त ? सपने में उसे अपने ही तैनात किये इतिहासकार काम करते दिखे ।वे बैठकर पुराना इतिहास ठीक कर रहे थे । उसने एक कमाल यह देखा कि वे लोग भविष्य का इतिहास भी अभी से लिखकर रखे ले रहे थे । इसी तारतम्य में वे मनोयोग से आगामी इतिहास की कोई ऐसी अद्भुत ऐतिहासिक घटना दर्ज कर रहे थे जो अभी घटी ही नहीं थी । …ये क्या लिख रहे हो आप मेरे बारे में ? बादशाह ने उनसे पूछा ।…ये जिस आदेश का जिक्र तुम यहाँ कर रहे हो वो आर्डिनेंस मैंने कब जारी किया ? तुम किस आदेश को ऐतिहासिक बता रहे हो ? … सरकारी इतिहासकार दंडवत होकर कहने लगे कि सर , आप कैसी बात कर रहे हैं ? यह तो आपका ही वो आर्डिनेंस है जो आप शीघ्र निकालने वाले हैं जो इस देश की तस्वीर बदल देगा । यह एक ऐतिहासिक घटना साबित होने वाली है । वे दंडवत पड़े रहे । वहीं पड़े पड़े बोलने लगे कि आपका आर्डिनेंस तो ऐसा है कि जल्दी ही देश में देशभक्ति की उन्मादी लहर फैल जायेगी।…पर कौनसा आर्डिनेंस?….बादशाह ने तरद्दुद में पड़कर पूछा । उत्तर में वे लोग केवल बादशाह की प्रशस्ति गाते रहे । प्रशस्ति के बोल थे कि…ऐसा आदेश निकालने की केवल आप ही सोच सकते थे । आपके एक आर्डिनेंस के कारण पूरे देश को झक मारकर देशभक्त बनना पड़ा ।….बादशाह चिढ़ गया। उसने चिल्लाकर कहा , उल्लू के पट्ठो ,कौनसा आदेश ? किस आर्डिनेंस की बात कर रहे हो तुम लोग?
और इतनी जोर से चिल्लाने के कारण उसकी नींद खुल गई ।
सपना टूट गया था ।
अभी पूरी सुबह नहीं हुई थी ।
वह सपने के प्रभाव में था । सपने की सोचते हुये वो पलंग पर बैठ गया । अलसभोर की बेला थी । सुबह के सपने सच हुआ करते हैं । सपने के बारे में ही सोचता रहा वो कि ये इतिहासकार लोग उसके किस आदेश और आर्डिनेंस की बात कर रहे होंगे ? वह अभी समझ ही नहीं पाया था सारी बात कि सपना टूट गया था ;अब वो परेशान था कि इस सपने द्वारा आखिर ईश्वर उसे क्या करने का आदेश दे रहा है ? सुबह का सपना सच होता है पर यह कौनसा सच था जो वह जानने से चूक गया ? ईश्वर उसे आदेश दे रहा है ,यह पक्का है कि परमात्मा उसके हाथों कोई ऐसा आर्डिनेंस निकलवाना चाहता है कि जिससे समस्त देश राष्ट्रभक्त हो जाये। ईश्वर उसी की वर्षों की इच्छा को पूरा करने हेतु ये सपना दिखा रहा था पर वह बीच में ही टूट गया । उसकी भी यही तो साध है कि प्रजा के बीच देशप्रेम की लहर उठे , पर कैसे ? सपने द्वारा ईश्वर किस आर्डिनेंस निकालने की तरफ इशारा कर रहा था ?
वह इस सपने के निहितार्थ को लेकर सोचता रहा , सोचता रहा ।
दो दिन तक कमरा बंद करके इसी के बारे में सोचता रहा ।
उन दो दिनों में उसने और कुछ भी नहीं किया ; दारु के जाम अधपिये पड़े रहे , जूता खाने को बेताब सर फालतू झुके रहे , लोग चमचागिरी को प्यासे रह गये , ,राजनर्तकी के नितंब अन -आंदोलित रह गये, दरबारी चरणवंदना को तरस गये और दरबार में रखा सिंहासन श्रीहीन महसूस करता रहा ।बादशाह पूरे दो दिन तक सपने का इशारा समझने की कोशिश करता रहा कि वह इसका क्या अर्थ ले ? क्या सपने के बहाने ईश्वर ने आदेश दिया है उसे कि तू जो लंबे समय से सोच रहा है उस काम को करने का अब समय आ पहुंचा है ? हां, उसके मन में लंबे समय से एक प्लान तो लगभग बना रखा है । यह प्लान इस सोच से उपजा है कि प्रजाजन स्त्री प्रेम में ही समय बरबाद करते रहते हैं , देश से प्रेम करने का टाइम ही नहीं रह जाता उनके पास । ऐसे में वे देशप्रेम की सोचें भी कब ? बादशाह लंबे समय से सोचता रहा है कि उसे इस स्त्री प्रेम का कुछ करना होगा । उसने इन दो दिनों में मन ही मन वह प्लान तैयार कर डाला जिससे देश के स्त्री प्रेम को देशप्रेम की दिशा में मोड़ा जायेगा ।
वैसे तो उसके पास लंबे समय से इसके लिये यह योजना थी पर उसे खुद ही इस पर संदेह भी था कि यह व्यव्हारिक होगी भी या नहीं ? पर आज ईश्वर ने सपने में उसे इशारा कर दिया है । अब उसके प्लान पर खुदा की मोहर थी । अब वह इसे पूरी तरह से फाॉलो करेगा ।
वह अब अपनी योजना पर काम करेगा । अब समय आ गया है कि इस काम को एक ईश्वरीय आदेश मानकर वह देश को राष्ट्रप्रेमी और राष्ट्भक्त बनाने का ऐतिहासिक काम करेगा , ऐसा काम कि उसका नाम देश के इतिहास में अमर हो जाये ।
*
और तीसरे दिन उसने एक मीटिंग करने का तय किया । अपने खास लोगों की विशेष मीटिंग बुला ली । इन लोगों को अब इशारे में बता ही दिया जाये कि जहापनाह क्या चाहते हैं ?
उसने ताली बजाकर अपने खास लोगों को दरबारे-खास में बुलवा भेजा ।
खास लोग तुरंत से पेश्तर आ भी पहुंचे ; वे आसपास ही मंडरा रहे थे , दरवाजे के ठीक बाहर खड़े थे कि पता नहीं बादशाह हमें कब याद कर ले । तानाशाह के निज़ाम में खास आदमी बन जाना एक बड़ी बात थी पर हर वो ख़ास डरा भी रहता था कि बादशाह को ऐन मौके पर हम न दिखे तो वो किसी और को न बुला ले , तब कोई और ही उसका खास बन सकता है । खास बनना कठिन था , खास बने रहना और भी कठिन ।
ताली बजते ही समस्त खास सभासद भागकर अंदर पहुंच गये । सबने बढ़ चढ़कर बादशाह की काॅर्निस बजाई और सर झुकाकर उसके समक्ष बाॅअदब खड़े हो गये ।
बैठक में तानाशाह ने एक सारगर्भित वक्तव्य दिया ।वह सारगर्भित ही बोलता है। उसका बड़बड़ाना तक सारगर्भित होता है । समझदार लोग उसकी बड़बड़ाहट से भी गहन अर्थ निकाल लेते हैं ।
उस दिन वह खूब बोला ; बोलता ही चला गया ।
खास लोग श्वास रोककर समझने की कोशिश करते रहे कि देखें , आज बादशाह की कौनसी सनक उजागर होती है ? देश बादशाह की सनक से चलने का आदी हो चुका था । उसकी सनक ही देश का कानून बन जाती थी । देश में संविधान होने का फिर क्या मतलब ? यही तो मजा था कि संविधान बादशाह की ऐसी सनकों के आड़े नहीं आता था , वह उनसे बचकर चलता था ; बादशाह की हर सनक संविधान सम्मत हो जाती थी ।
उसका उद्भबोधन देशप्रेम से शुरू हुआ ।
उसका हर वक्तव्य देशप्रेम , देशभक्ति , देशवासी , राष्ट्र , राष्ट्रीय विरासत , राष्ट्रीय परंपराओं से शुरू और खत्म होता है – ये उसके अति प्रिय विषय थे । वह कभी खरीब की फसल या कंपोस्ट खाद पर भी भाषण दे तो उसमें भी यही सब ले आता था। उद्भबोधन में देशवासियों का जिक्र भी आया जिसके दौरान बादशाह का गला भर आया । उसे अपने प्रजाजनों से अति प्रेम है । न केवल उसका गला भर आया , एकाध आंसू भी उसके मोटे गाल पर ढलक गया । मौके पर आंखों में आंसू लाने की ट्रिक पता है उसे ; कुछ देर तक अपनी पलकें मत झपकाओ , आंखें खोले रखो तो आंसू आटोमैटिकली आ जाते हैं । नाजुक मौकों पर बड़े काम की ट्रिक है ये ; इसमें थोड़ी सी कंपित आवाज, भरा गला और उदास मुखमुद्रा जोड़ दो , बस ; काम बन जाता है ।
इसके साथ ही वो राष्टभक्ति पर कूद गया ।
उसे सबसे बड़ा राष्ट्रवादी माना जाता है , वो खुद ही मानता है यह । उसने कहा कि अब जिनको इस देश में रहना है उनको देशप्रेमी होना ही होगा ।प्रजाजनों को देशप्रेम की अपनी फिलासफी समझाने का समय आ पहुंचा है और वो सबको शीघ्र ही समझायेगा भी ।
तानाशाह ने अब एक नजर अपने खास दरबारियों पर डाली ।
खास जन मंहगे डिजाइनर कुर्ते ,जैकेट्स , शेरवानी , भारी साड़ी , वस्त्राभूषण आदि धारण किये जरूर हैं पर बेहद दरिद्र लग रहे हैं । …खास लोगों का यह दरिद्र रुप तानाशाह को बहुत भाता है। कितना मनोहारी है ये देखना कि ऐसे सारे सर उसके समक्ष झुके हुये हैं ; लोग रीढ़ के बिना जितना तन सकते हैं ,तने हैं और तने रहकर भी केंचुऐ से रेंग रहे हैं ; वही आदमी ,उसी समय ,तना भी हो और झुका भी ,कैसा चमत्कारी और मनोहारी दृश्य !
तानाशाह ने अपनी आगे की बात शुरू की :
कोई मुझे बतायेगा कि देश में यह सब चल क्या रहा है ?
लोग देश से ही बेपरवाह क्यों हो गये हैं ? देशभक्ति का जज्बा कहां गया उनका ?
क्यों छीजती जा रही है हमारी देशभक्ति ? लोग पहले जैसे देशभक्त क्यों नहीं रह गये ? याद करें अपने पूर्वजों को । प्राचीन काल में लोग कैसे अपना सर अपनी ही हथेली पर रखकर निकल पड़ते थे मातृभूमि के लिये शहादत देने , पर अब ? सब लोग इधर-उधर के निरर्थक कामों में उलझे रहते हैं ; देश मानो उनकी लाॅस्ट प्रायरिटी बन गई है। लोग खाते तो देश का हैं ,गाते उसका नहीं ,ऐसा क्यों ?
ये क्या चल रहा है भाई ?
और आप ,मेरे खास दरबारी , आप इस बारे में क्या कर रहे हैं ?
कभी सोचा है आपने इस बारे में ? कभी कुछ सोचते भी हो तुम लोग? पता है न कि सोचना भी एक काम होता है ? बताओ , कुछ तो सोचते होगे ?
खास लोगों की भीड़ को उस दिन ख़ूब दुत्कारा बादशाह ने ।
सारे गन्यमान सभासद मौन होकर फटकार सुनते रहे ।
सभी मौन थे । सबके चेहरों पर तनाव था ,भय भी ।…बादशाह सलामत का मूड ठीक नहीं लग रहा ; किसकी बलि चढ़ने वाली है आज ?… तानाशाह ने घबराये पिल्लों जैसे उनके भयभीत चेहरे पढ़ लिये । वह खुलकर मुस्कुराया ।… बाप रे ! बादशाह सलामत तो मुस्कुरा भी रहे हैं !! … आज क्या अनर्थ घटने को है ? …तानाशाह कभी फालतू नहीं मुस्कुराता । यह कोई बुद्ध की मुस्कान नहीं । उसकी मुस्कान के अपने निहितार्थ होते हैं। मुस्कुराते हुये वह किसकी गर्दन नाप ले , अंदाज़ नहीं लग पाता ।
मुस्कान समेटकर बादशाह ने आगे कहा :
मित्रों ,आप लोग भी थोड़ा सा समय अपने देश के लिये निकालो न ?
हां ,अगर मैं आपसे कुछ ग़लत मांग रहा हूं तो जरूर बोलिये ।
तो विचार करिये , सोचिये कि हमारा देशप्रेम कम क्यों हो रहा है ?इसका निदान भी बूझिये । हमें सुझाइये , क्या कदम उठायें कि देशप्रेम का वही पुरातन जज्बा देश में जाग उठे जब योद्धा अपना शीश हथेली पर धर युद्धभूमि की ओर हंसते हंसते कूच कर जाते थे ?
आइये ,हम सब मिलकर इस देश को फिर से वही महान देश बनायें ।
‘शीश हथेली ‘ की बात पर खास आदमियों ने डटकर तालियां पीटीं , आपस में इशारे भी किये कि , कैसी शानदार बात कह डाली हमारे बादशाह सलामत ने ! सभी जानते हैं कि बादशाह अपने कैमरों की रिकॉर्डिंग के जरिये बाद में हर सभासद का एक एक रिएक्शन रिव्यू करेगा । बादशाह की नजर अभी भी सब पर घूम रही थी । झुके सर , भयभीत चेहरे; चापलूस इशारे – तानाशाह खुश हुआ कि स्थिति नियंत्रण में है।
एक अर्थपूर्ण विराम के बाद तानाशाह गरजा।
‘तुम लोग करते क्या रहते हो ? ‘
अनुयायियों के सर अब इतने झुक गये हैं कि लगभग धूल चाट रहे थे।
‘बोलिये ? बताइये ? ‘ तानाशाह ने पूछा ।
खास लोग जानते थे कि इस बात का उत्तर क्या है ।
’बादशाह सलामत अमर रहें !’ यह नारा ऐसे हर प्रश्न का जवाब था।
पहले एक ने यह नारा उठाया , फिर शेष विशिष्ट जनों ने ,फिर तो मानों बांध के फाटक ही खुल गये । …मालिक तुम संघर्ष करो ,हम तुम्हारे साथ हैं ,जो हमसे टकरायेगा चूर चूर हो जायेगा , देश का नेता कैसा हो बादशाह जैसा हो – नारे ही नारे । लगातार । लगातार । लगातार । बादशाह ने इशारे से मना किया कि यह सब बंद करो पर कोई नहीं माना । नारे चलते रहे। यही एक अवसर होता था जब आप तानाशाह की हुक्मउदूली करने की हिम्मत और हिमाकत कर सकते थे और वो नाराज भी नहीं होने वाला था ; उल्टे वह खुश होता था और आश्वस्त भी कि सब ठीक चल रहा है ।
धीरे धीरे नारे शांत हुये ।
इसी बीच बादशाह गंभीर हो गया था ।
सभासद उसका मुंह देखते रहे ।
‘अच्छा ये बताइये कि ऐसा क्या करेंगे आप कि प्रजा परम राष्टभक्त हो जाये ? है कोई योजना आपके पास ? ऐसे देशप्रेम कैसे पैदा करेंगे? कैसे ?
चलिये , हम बताते हैं ।… सबसे पहले तो उन लोगों की पहिचान करो जो देशप्रेम की हमारी परिभाषा से सहमत नहीं हैं। ये लोग ही असली बाधा हैं । इनको पकड़ो ।
और पकड़कर क्या करोगे इनका , इन जैसे लोगों का ? ‘
बादशाह ने गरज कर पूछा।
महफ़िल में सन्नाटा छा गया । थोड़ी देर तक सुई-पटक सन्नाटा रहा । फिर किसी ने बुलंद आवाज में चिल्लाकर कहा, ,”हाथ पांव तोड़ देंगे स्सालों के ! .. बादशाह सलामत , जिंदाबाद !! … जिंदाबाद , ज़िंदाबाद !”..
फिर से ‘ज़िंदाबाद, ‘जय हो’ ,’अमर रहें’ की लहरें उठने लगीं ।
तानाशाह मुस्कुराया ।
तानाशाह के मुस्कुराने का अर्थ ये न लें कि वो खुश हुआ ; सफल बादशाहत की एक महत्वपूर्ण शर्त ही ये है कि वह मुस्कान को अपने हृदय में महसूस किये बिना भी मुस्कुरा सकता है ; अंदर गुस्से और नफ़रत की खदबदाहट भरी पड़ी हो तब भी खुलकर मुस्कुरा सकता था बादशाह ; आपकी मौत के फरमान पर दस्तखत करने से ठीक पूर्व वो आपकी तरफ देखकर उतना ही सहज होकर मुस्कुरा सकता था ।
बादशाह आज तीसरी बार मुस्कुराया है जो अच्छा शगुन नहीं था ।
क्या निहितार्थ हैं बादशाह की उस मुस्कान के जिसके साथ वह उस सभासद को घूर रहा है जिसने देशद्रोहियों के हाथ पांव तोड़ डालने की बात की थी ? तानाशाह को वह मौका मिल गया था जिसके जरिये वह अपने हिंसक व्यक्तित्व को अहिंसक इमेज दे सकता था ।
बादशाह बेहद संयत आवाज में बोला :
‘यह बापू का देश है ।
हिंसा के लिये यहां कोई जगह नहीं। हिंसक बोली तक बर्दाश्त नहीं मुझे ।
असहमत नागरिक भी हमारे सम्मानित साथी हैं । असहमति हर नागरिक का अधिकार है । यही हमारे लोकतंत्र की ताकत है , परंपरा है । लोकतांत्रिक परंपराओं का बहुत सम्मान करता हूं मैं । हैरान हूं मैं और शर्मसार भी कि यहां मेरी उपस्थिति में किसी ने हाथ पांव तोड़ने जैसी हिंसक बात कही ! आप एक असहमत नागरिक के हाथ पांव तोड़ देंगे ? यह तो हद है ।
मैं ऐसी बात कभी बर्दाश्त नही कर सकता , कभी नहीं । ‘
हाथ पांव तोड़ने की बात करने वाला शख्स घुटनों पर आ गया था ।
उसका दांव उल्टा पड़ गया था ।
वह घिघियाने लगा ।बादशाह के हाथ जोड़ने लगा ।
तानाशाह की मुस्कान और फैल गई :
‘ मैं अभी ,तत्काल प्रभाव से इस शख्स को अपने अनुयायियों की जमात से निष्कासित करता हूं । ‘
वो हाथ पांव जोड़ता रहा पर सैनिक आये और उस खास सभासद की डंडाडोली करके, घसीटते हुये सभा से बाहर फेंक आये । बाहर से उसके रोने गिड़गिड़ाने की आवाजें आती रहीं ।
सभी फुसफुसा कर चर्चा करने लगे :
…. कैसा नासमझ है ये भानु प्रताप भी ! अरे , ऐसी बातें बादशाह के सामने कही जाती हैं कभी ? उनकी पोजीशन समझो यार । यहां दरबार में मीडिया मौजूद है ,दस छोटे बड़े कर्मचारी घूमते हैं , सुरक्षाकर्मी हैं , इनसे दुनिया भर में बातें फैलती हैं । हाथ पांव तोड़ने की बातें कहने की नहीं , करने की होती हैं भैया । अरे , एक दिन जाते , असहमत शख्स के हाथ पांव तोड़ते और बादशाह सलामत के पास पहुंच जाते कि मालिक हम ऐसा कर आये हैं ; साहब खुश होते , तुमको हर कानून से बचाते और आगे भी ख्याल रखते तुम्हारा ।
हिंसा की बात पर अपने खास अनुयायी को भरी सभा से कैसा निष्कासित किया बादशाह ने , अभी यह खबर अखबारों और टीवी पर दिन भर चर्चा में रहने वाली थी , जानता है तानाशाह । उसकी छवि का जूता अपनी जीभ से चमकाने को आतुर मीडियानवीस यहीं बैठे हैं , खास बंदे की डंडाडोली करके बाहर फेंके जाने के हर पल की सतत फोटुयें खीचीं हैं उन्होंने । तानाशाह उनको ऐसा करते देखकर खुलकर मुस्कुराया भी ।
आज का दिन दुर्लभ था ।
तानाशाह चौथी बार मुस्कुरा रहा था !
तानाशाह ने अब एक प्रश्न पूछा सभा से :
‘मैं जानना चाहूंगा , और आप खूब सोचकर मुझे बतायें कि प्रजा में देशभक्ति के इस तरह कम होने के कारण आखिर हैं क्या ? क्या लगता है आप लोगों को ? कभी इस बारे में सोचते भी हैं ? मेरा निवेदन है कि सभी माननीय सभासद इस बारे में सोचें ,मनन करें , अपने सुझाव हमें दें । हर गणमान्य सोचकर राय दे । ‘
तानाशाह ने सभा में सांप छोड़ दिया था मानो ।दरबार में हलचल मच गई ।सब एक दूसरे का मुंह ताकने लगे । तानाशाह का आदेश हुआ है , बोलना तो पड़ेगा ; पर बोलें क्या ? सब चाहते हैं कि पहले कोई और बोल ले ताकि बादशाह का मूड भांपा जा सके कि वह क्या सुनना चाहता है ? वे प्रतीक्षारत हैं कि बादशाह ही कुछ हिंट दे दे (जो वह अक्सर दे दिया करता है) तो चिंतन को दिशा मिल जाये ; फिर सब वैसा ही बोलें ।
अनुयाई बनने में यही सुभीता रहता है कि खुद को सोचना नहीं पड़ता ; सहमत होना होता है बस । हां , सहमति की भाषा ,मुहावरा और कहन गढ़ने की स्वतंत्रता आपको दी जाती है । तानाशाह इतना लोकतांत्रिक है कि भक्तों को भजन के बोल और धुन खुद तय करने देता है ।
सभी मौन थे ।
।
अब इन लोगों को अपना आयडिया बताने का समय आ गया था।
आयडिया लंबे समय से उसके दिमाग में है। और अब तो ईश्वर का आशीर्वाद भी उसके साथ था । इन दो दिनों में खूब सोचा है उसने ।और जितना सोचा उतना अपने आयडिया पर फिदा हुआ है ; वाह , कैसी नायाब सोच है उसकी कि ईश्वर भी सहमत है उससे !
निर्णय लेने का समय आ पहुंचा था ।
हां , यह जरूर है कि देशप्रेम बढ़ाने वाले इस क्रांतिकारी आयडिया को मूर्त रूप देने में बड़ी सतर्कता और कारगुजारी लगेगी। काम आसान न होगा । फूंक फूंक कर कदम रखने होंगे । खास लोगों की सभा से बात करना इस सिलसिले में पहला कदम है क्योंकि इन सबको अपने साथ लेकर चलना होगा । ये अंधे अनुयायी उसके साथ न होते तो वह आज यहां सिंहासन पर न होता । इस्तेमाल करना हो तो हथियार साथ रखना होता है । वह इनको साथ रखेगा । आज अपने आयडिया की एक झलक भर दिखलायेगा ; पूरा प्लान उजागर नहीं करेगा अभी ; बस हल्का सा इशारा करके छोड़ देगा । इससे देश भर में एक शिगूफा छूटेगा , लोग बातें करेंगे कि बादशाह कुछ बड़ा सोच रहा है ।
भाषण आगे बढ़ाते हुये तानाशाह ने अब अपने आयडिया की एक झलक दिखाने की सोची :
‘ मैं बताऊं कि देशप्रेम क्यों छीज रहा है ?
इस बारे में बहुत सोचा है मैंने । मैं बताता हूं आपको । आप मेरे कहे पर गहन विचार करिये । सभी माननीय अपने सर्कल्स में मेरी बात पर खुलकर विमर्श करें और बतायें कि हम क्या फायनल स्टेप्स लें ? क्या उपाय करें ?
कारण है ,हमारे नौजवानों का स्त्री प्रेम में सतत डूबा रहना ।
स्वयं सोचिये , देश का नौजवान यदि सतत लड़कियों के चक्कर में ही रहेगा तो वो देश की कब सोचेगा ? प्रतिभाशाली नौजवान अपनी समस्त ऊर्जा यदि युवतियों का पीछा करने , उनको ऊल-जुलूल प्रेम-पत्र लिखने ,प्रेम के सपने देखने ,रातों में जागकर तारे गिनने और प्रेमिका की फरमाइशों को पूरा करने में लगाते रहेंगे तो देश की चिंता कब करेंगे ?
और अभी तो यही हो रहा है । नौजवान लड़के लड़कियां ; सब खुद में ही मग्न हैं , देश की कोई परवाह नहीं उनको।
और हम उनको ही दोष क्यों दें ? आप लोग भी तो स्त्री में ही व्यस्त हैं । सभी नागरिक औरतों के पीछे लगे हैं , सभी स्त्री में व्यस्त हैं , पूरा देश स्त्री में व्यस्त है , बताइये कि क्या होगा इस देश का ? ऐसे में देशप्रेम के लिये टाइम किसके पास होगा ? अरे , जब औरत से फ्री हों तब तो देश की तरफ देखें !
तो यह है असली कारण इस देश के पतन का ।
अब आपको सोचना है कि इस प्राब्लम का हम क्या करें ?
…याद रहे कि बड़ी कूबत है प्रजा में ; बस, हमें उनके प्रेम की दिशा बदलवानी है , उसे स्त्री से हटाकर देश की तरफ मोड़ने की जरूरत है ,बस ।
तानाशाह ने अपनी बात एक सूत्र में कह दी थी ।
वह पुनः मौन हो गया था पर अनुयाइयों को दिशा मिल गई थी । हलचल मच गई । बोलने वालों के बीच होड़ लग गई ।
टिप्पणियां ,सुझाव ,प्रशस्तियां ,भजन , बादशाह के प्रति गदगद कृतज्ञता कि हमारी आंखें खोल दीं आपने , सभी सहमत , सभी की वाॅह वाॅह , शब्द ऐसे कि शकरपारे ; घुमा -फिरा कर एक ही बात कि जैसा आप कहें ,हम सहमत हैं । सारे खास लोग किसी बौखलाये जानवर की भांति सहमति के बिंदु के चारों तरफ गोल-गोल घूमते रहे । सब सहमत थे , सभी भयाकुल कि सही ठुमका न लगा तो बादशाह इसे उनकी असहमति मान सकता है ! सभी बढ़ चढ़कर सहमत होने लगे ।सभी उस बात से सहमत हो रहे थे जो अभी बताई ही नहीं गई थी ! अभी किसी को पता नहीं था कि बादशाह क्या कह रहा है पर सभी उससे सहमत थे । तानाशाह केवल इशारा करता है , साफ कभी कुछ नहीं बताता । फायदा ये होता है कि बादशाह का आयडिया कभी फेल हो जाये तो ये उसकी गलती नहीं मानी जायेगी ; किसी और की बलि चढ़ाकर सिद्ध कर दिया जायेगा कि तानाशाह ने तो रास्ता सही दिखाया था ,ये लोग सहमत होकर भी इसे ठीक से नहीं समझे।
तानाशाह मजे लेकर सबको देखता सुनता रहा ।
तभी उसे लगा कि उसके सुझाव को स्त्री विरोधी न मान लिया जाये । वो जानता है कि जमाना स्त्री विमर्श का है ।क्यों न स्त्री विमर्श भी निबटा दिया जाये ?
बादशाह ने मुस्कुराते हुये स्पष्ट किया कि उसकी अभी की बात न तो स्त्री के विरुद्ध है ,न प्रेम के । प्रेम को बेहद पवित्र मानता है वह और स्त्री के लिये बहुत सम्मान है उसके मन में । स्त्री तो जीवन की श्रृष्टिकर्ता देवी है ,मां है ,जननी है ,गंगा मां सी पवित्र है, पूजनीय है , अर्द्धांगिनी है ,बेटी है ,बहिन है ; इसके अलावा जो छूट रहा हो वह भी है ; और ऐसा ही प्रेम का भी मानिये । मेरे मन में भी प्रेम ही प्रेम है ,हां , मैंने उस प्रेम को देश से जोड़ दिया है ,आपसे जोड़ दिया है। मैं प्रेम के महत्त्व को जानता, स्वीकारता हूं वरना मैं ऐसा देशप्रेमी भला कैसे हो पाता ,बताइये ?
अब वो प्रतीक्षा करेगा कि देश में इस पर बहस चले ,पहले देश के मूड को समझा जाये, और फिर वह बड़ा कदम उठाया जाये जो कब से उसके मन में है और जिसके लिये ईश्वर अब तथास्तु भी कह चुका ।
__________________________________________________________________
ज्ञान चतुर्वेदी-
परसाई और शरद जोशी के बाद , हिंदी व्यंग्य-लेखन को , कई अर्थों में नई ऊंचाइयां , नई दिशा और नई पहिचान देने वाले ज्ञान चतुर्वेदी ने इतना विपुल और बहुआयामी लेखन किया है कि कुछ आलोचक पिछले तीन दशक के हिंदी व्यंग्य लेखन के वर्तमान समय को ‘ज्ञान चतुर्वेदी युग’ का नाम दे चुके हैं ।
छह बेहद चर्चित और लोकप्रिय उपन्यास , बारह व्यंग्य-संग्रह , हजार से ज्यादा फुटकर व्यंग्य-लेख और व्यंग्य कथायें ,सालों तक हिंदी के महत्वपूर्ण अखबारों पत्रिकाओं में नियमित व्यंग्य स्तंभ ,और बेहद अलग से चर्चित संस्मरण रचकर ज्ञान चतुर्वेदी ने हिंदी साहित्य में न केवल अपना अप्रतिम स्थान बनाया है , वर्तमान में सक्रिय युवा पीढ़ी और समकालीन व्यंग्य लेखन को एक नई परंपरा भी सौंपी है । उनका सातवां उपन्यास (एक तानाशाह की प्रेमकथा ) प्रकाशित होने को है और आठ नये व्यंग्य संग्रह आने को हैं ।
प्राॅलिफिक लेखन के साथ निरंतर कुछ नया , अलग और बेहतरीन लिखना , हर नई रचना में स्वयं के रचनाकर्म को अतिक्रमित करना ही ज्ञान चतुर्वेदी को न केवल हिंदी वरन विश्व की अन्य भाषाओं के बड़े लेखकों की पंक्ति में महत्वपूर्ण स्थान देता है । परसाई के बाद के हिंदी व्यंग्य को नये तेवर , भाषा ,कहन , विषय , प्रयोग और क्राफ्ट से समृद्ध करने वाले ज्ञान चतुर्वेदी ने अपने निरंतर उत्कृष्ट व्यंग्य लेखन (विशेषतौर पर अपने उपन्यासों ) द्वारा सिद्ध किया है कि व्यंग्य केवल राजनीतिक विषयों के आसपास मंडराते रहने का ही नाम नहीं है , इसमें पारिवारिक जीवन , मानवीय संबंधों , गहरी आत्मिक संवेदनाओं , बाजार की दुरभिसंधियां , सामाजिक बुनावट के गहरे अंतर्विरोध भी उतनी ही शिद्दत से आ सकते हैं जैसे वे कविता और कथा लेखन में आते रहे हैं ; ज्ञान चतुर्वेदी ने व्यंग्य लेखन के दायरे को वहां तक बढ़ाया है जहां जीवन अपने सतरंगी अंदाज में मौजूद हैं ,और मौजूद हैं उसकी विडंबनापूर्ण विसंगतियां भी । पिछले लगभग पचास वर्षों से उनका अटूट, और मनुष्य के लिये प्रतिबद्ध लेखन अपने पाठकों , आलोचकों और साहित्य के गंभीर अध्येताओं को चमत्कृत करता रहा है ; हिंदी विश्व में उनकी हर नई किताब की बड़ी आतुरता से प्रतीक्षा की जाती है ,उनकी हर नई छोटी-बड़ी रचना पर बाद में वर्षों तक नये नये कोंण से सार्थक चर्चा होती रहती है ।
उनके तीन उपन्यासों का अंग्रेजी अनुवाद हुआ है ।
बारामासी का अनुवाद ‘अलीपुरा‘ (Alipura) नाम से जगरनाट पब्लिकेशन ने हाल ही में छापा है जिसको इंडियन एक्सप्रेस , हिंदुस्तान टाइम्स आदि में अपने समय के महत्वपूर्ण बुद्धिजीवी लेखकों द्वारा तहेदिल बेहद सराहा गया है । सोशल मीडिया पर इस उपन्यास (Alipura ) की निरंतर चर्चा है ।
पागलखाना का अंग्रेजी अनुवाद भी नियोगी बुक्स ‘द मैड हाउस‘ (the mad house) नाम से छापने वाले हैं ।
इसके बाद दो और उपन्यासों(हम न मरब और नरकयात्रा ) के अंग्रेजी अनुवाद भी आयेंगे ।
नरकयात्रा का अंग्रेजी अनुवाद वेस्टलैंड पब्लिशर्स से प्रकाशनाधीन है और हम न मरब का अनुवाद जगरनाॅट पब्लिकेशन द्वारा प्रस्तावित है ।
पागलखाना का जर्मन अनुवाद भी होने को है ।
ज्ञान चतुर्वेदी के फुटकर व्यंग्य-लेखों का सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद होता रहा हैं । कन्नड़ में अनूदित उनका एक व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुआ है । दो और किताबों का कन्नड़ अनुवाद आने को हैं ।
ज्ञान चतुर्वेदी ने कुछ फिल्म स्क्रिप्ट्स भी लिखी हैं जिन पर फिल्में निर्माण के प्राॅसेस में हैं ।
दो अगस्त ,1952 को मऊरानीपुर(झांसी ) में पैदा हुये ज्ञान चतुर्वेदी के पिता डा सत्य प्रकाश चतुर्वेदी मध्यप्रदेश में सरकारी डाक्टर रहे सो उनकी स्कूली शिक्षा मध्यप्रदेश के विभिन्न गांवों में हुई जहां उन्हें बचपन में ही भारतीय ग्रामीण जीवन को गहराई से आत्मसात करने का अवसर मिला ; यही ग्रामीण अनुभव बाद में लौट लौटकर उनकी रचनाओं में बार बार आता रहा है । बुंदेलखंड के ग्रामीण जीवन की गहन पड़ताल करते उनके तीन उपन्यासों की बुंदेलखंड-त्रयी (बारामासी , हम न मरब , स्वांग ) के कई संस्करण पाठकों को निरंतर इसी कारण इतना सम्मोहित करते रहे हैं और हिंदी कथा संसार की अनमोल निधियां माने जाते हैं ।
वैश्विक बाजारवाद की चपेट में आई दुनिया पर उनका लिखा फैंटेसी उपन्यास ‘पागलखाना‘ हिंदी ही नहीं , समस्त भारतीय भाषाओं में इस विषय पर अन्यत्र अनुपलब्ध अपनी ही तरह का अनोखा फैंटेसी उपन्यास है जिसे हिंदी के कई बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया है ।इसे बाजारवाद पर लिखी ऐसी बड़ी फैंटेसी माना गया है जो विश्व साहित्य में भी अन्यत्र अन्य भाषाओं में दुर्लभ है । व्यास सम्मान भी इसी कृति को दिया जा रहा है ।
‘नरकयात्रा‘ ज्ञान चतुर्वेदी का पहला उपन्यास है जो छत्तीस साल पहले छपा था और आज तक (इसके दसों संस्करण निकलकर) चर्चित है । इस पर एक फिल्म प्रस्तावित है ( ‘सब रास्ता गाॅड की तरफ जाता है’ नाम की इस फिल्म की ) स्क्रिप्ट स्वयं ज्ञान चतुर्वेदी ने लिखी है । नरक-यात्रा का अंग्रेजी अनुवाद भी आने को है ।
मृत्यु जैसे जटिल और रहस्यमय विषय पर ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास ‘हम न मरब‘ वैश्विक स्तर पर किसी भी भाषा में मृत्यु को केंद्र में रखकर लिखा शायद पहला ऐसा वृहद उपन्यास है जहां मृत्यु की विडंबना , त्रासदी , वास्तविकता और फिलाॅसफी को लगातार हास्य-व्यंग्य के तेवर में इस तरह रचा गया है कि लगभग चार सौ पन्नों को हंसते मुस्कुराते पढ़ता हुआ पाठक जब किताब बंद करता है तो वह पात्रों और स्थितियों से एकाकार होकर देर तक गहन विषाद में बना रहता है ।इसका भी अंग्रेजी में अनुवाद हो रहा है ।
2021 में उनका बुंदेलखंड त्रयी का तीसरा उपन्यास ‘स्वांग‘ आया जो कोटरा नामक गांव के बदलाव के बहाने हिंदुस्तान के विडंबनापूर्ण बदलाव की ऐसी व्यंग्य कथा कहता है जिसने हिन्दी पाठकों के बीच बहुत कम समय में अपार लोकप्रियता हासिल की है ।यह देश में राजनीतिक , प्रशासनिक , सामाजिक , शैक्षणिक , कानूनी तंत्र के एक विराट स्वांग में तब्दील हो जाने की कथा है ; हर महत्वपूर्ण तंत्र अपनी जगह पर पूरी शिद्दत से मौजूद जरूर है पर इतना भ्रष्ट और जनविरोधी हो गया है कि वह एक स्वांग बन कर रह गया है , बस ।
फरबरी 2024 मे प्रकाशित उनका बहुप्रतीक्षित उपन्यास ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा ‘ प्रेम को एकदम अलग तरह से समझने की कोशिश है । इसमें प्रेम है , प्रेम के बहाने स्त्री पुरुष के बीच चल रहा पावर गेम है , देशप्रेम भी है , देशप्रेम को तानाशाही कायम करने के लिये चालाकी से इस्तेमाल करने की कथा भी है ; एक तानाशाह की प्रेमकथा में प्रेम और देशप्रेम की बारीक पड़ताल की गई है ।प्रेम के बहाने तानाशाही , और तानाशाही के बहाने से प्रेम को व्याख्यायित करने का यह अनूठा प्रयास है । यह ज्ञान चतुर्वेदी का सातवां उपन्यास है ।
ज्ञान चतुर्वेदी ने श्याम शाह मेडिकल कॉलेज , रीवा से लगभग समस्त विषयों में गोल्ड मेडल के साथ एमबीबीएस और एमडी की परीक्षा पास की है । इंटरनल मेडिसिन और कार्डियोलॉजी के विशेषज्ञ के तौर पर भेल भोपाल में तैंतीस साल कार्यरत रहकर वे अगस्त 2012 में वहां चीफ आफ मेडिकल सर्विसेज पद से सेवानिवृत्त हुये , और तबसे भोपाल के ही मशहूर नोबल मल्टीस्पेशलिटी हास्पीटल में मेडिसिन विभाग के प्रमुख हैं। वे प्रदेश के एक ख्यातिप्राप्त चिकित्सा विशेषज्ञ तो हैं ही , अपने अनगिनत डीएनबी मेडिकल छात्रों के बीच वे अत्यंत लोकप्रिय पोस्ट-ग्रेजुएट टीचर भी हैं। ज्ञान चतुर्वेदी ने अपने डाक्टरी पेशे और लेखन के बीच अद्भुत सामंजस्य बिठाकर दोनों ही क्षेत्रों में श्लाघनीय उपलब्धियां हासिल की हैं जो प्रेरणादायक है ।
वे एक बेहद प्रभावशाली वक्ता भी हैं जो श्रोताओं को बांध लेते हैं ; मंच से व्यंग्य रचना पाठ करने में भी वे सिद्धहस्त हैं ।
उनको अनेकों सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा गया है ।
ज्ञान चतुर्वेदी को वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया ।
संक्षेप में उनका रचनाकर्म यह है :
सात उपन्यास 🙁सारे उपन्यास राजकमल प्रकाशन ,नई दिल्ली से )
नरक-यात्रा (1994) , बारामासी (1999) , मरीचिका (2004) ,
हम न मरब(2014) , पागलखाना (2018) , स्वांग (2021) एक तानाशाह की प्रेमकथा (2024)
व्यंग्य संग्रह:
प्रेतकथा(समांतर प्रकाशन भोपाल),(1985)
दंगे में मुर्गा (किताब घर, दिल्ली), (1998)वे
मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं (अभिरूचि प्रकाशन ,नई दिल्ली ),(1999)
बिसात बिछी है (दुष्यंत संग्रहालय ,भोपाल, (2001)
प्रत्यंचा (भारतीय ज्ञानपीठ , दिल्ली ),(2010)
जो घर फूंके (भारतीय ज्ञानपीठ , नई दिल्ली ),
अलग ( राजकमल प्रकाशन , दिल्ली ) ,(2010)
खामोश नंगे हमाम में हैं (2015) (राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली)
संकलित व्यंग्य (नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली ),(2015)
रंदा (किताब घर प्रकाशन , दिल्ली ),(2016)
गौरतलब व्यंग्य (भारत पुस्तक भंडार , दिल्ली ), (2018) ।
नेपथ्य लीला ( राजपाल एंड संस , दिल्ली )(2021),
विषम कोण ( राजपाल एंड संस , दिल्ली,2024)
कुछ महत्वपूर्ण व्यंग्य स्तंभ जो ज्ञान चतुर्वेदी ने लिखे :
इंडिया टुडे में लगभग छह साल तक पाक्षिक काॅलम ।
शुक्रवार में लगभग दो साल तक ‘विषमकोंण’ नाम से काॅलम लिखा ।वे
सहारा टाइम्स में लगभग नौ माह तक पाक्षिक व्यंग्य काॅलम ‘रंदा’ लिखा ।
नागपुर से लोकमत समाचार में चार साल से भी ज्यादा समय तक साप्ताहिक व्यंग्य काॅलम लिखा ।
वागर्थ में ‘बाराखड़ी’ नाम से दो साल से भी ज्यादा समय तक व्यंग्य काॅलम ।
नया ज्ञानोदय में लगभग दस साल तक मासिक(बारामासी ,प्रत्यंचा ) काॅलम लिखा ।
राजस्थान पत्रिका में लगभग सात साल तक साप्ताहिक काॅलम ‘कनकही’ लिखा ।
दैनिक भास्कर में छह माह तक पाक्षिक व्यंग्य काॅलम लिखा ।
फिलहाल कथादेश में ‘बारहमासी’ नाम से मासिक व्यंग्य काॅलम।
तहलका में ‘ज्ञान है तो जहान है’ नाम के पाक्षिक काॅलम में स्वास्थ्य-शिक्षा वाले लेख ,लगभग चार साल तक ।
बाद में सत्याग्रह नामक वेब पत्रिका में यही हेल्थ काॅलम एक साल तक लिखा ।
कथेतर गद्य:
साक्षी है संवाद (राहुल देव द्वारा ज्ञान चतुर्वेदी से लंबा साक्षात्कार )(रश्मि प्रकाशन,लखनऊ),(2018)
ज्ञान है तो जहान है ( राजकमल प्रकाशन ,भोपाल )(स्वास्थ्य विषयक लेखों का संग्रह )
अन्य भाषाओं में अनुवाद :
बारामासी का अंग्रेजी अनुवाद ‘Alipura’ ,जगरनाॅट पब्लिकेशन , नई दिल्ली(2021)
कन्नड़ भाषा में एक व्यंग्य-संग्रह
शीघ्र प्रकाश्य
एक थे असु और एक थे वसु उर्फ दास्तान ए अंजनी चौहान (संस्मरणात्मक उपन्यास
पागलखाना का अंग्रेजी अनुवाद the mad house नियोगी बुक्स से
(हम न मरब और नरकयात्रा के अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशनपथ पर ।)
एक व्यंग्य संग्रह ज्ञान चतुर्वेदी की प्रेमकथाओं का (राजपाल एण्ड सन्स)
संस्मरणों की एक किताब
सात और व्यंग्य संग्रह
ज्ञान चतुर्वेदी को मिले कुछ उल्लेखनीय सम्मान और पुरस्कार :
राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान (मध्यप्रदेश सरकार)(2004-5),
गोयनका व्यंग्य भूषण पुरस्कार (2006)
दिल्ली सरकार की हिंदी अकादमी का राष्ट्रीय हास्य– व्यंग्य–सम्मान(2009-10)
हिंदी भवन दिल्ली का व्यंग्य श्री सम्मान , .
उत्तर प्रदेश सरकार का पदुमलाल पन्नालाल बख्शी अवार्ड(1995)
चक्कलस अवार्ड (1985)
अट्टहास शीर्ष सम्मान(2015)
उत्तर प्रदेश सरकार का यश भारती सम्मान (2015)
लंदन का अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान
ढींगरा फाउंडेशन ,नार्थ कैरोलिना ,अमेरिका का का ढींगरा अंतरराष्ट्रीय कथा सम्मान(2015)
भारत सरकार का पद्मश्री सम्मान(2015)
लमही सम्मान (2017)
अमर उजाला का (शब्द) छाप सम्मान(2019)
वैली आफ वर्डस लिटफेस्ट , देहरादून का का कथा सम्मान(2019)
बैंगलोर लिटररी फेस्टिवल का 2021का ‘बेस्ट इंडियन फिक्शन आफ द इयर‘ का ‘अट्टा- गलट्टा अवार्ड’, अलीपुरा को ।
रवीन्द्र नाथ त्यागी शिखर सम्मान , 2022
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय का मैथिली शरण गुप्त सम्मान 2023
और व्यास सम्मान (2022)
Discover more from रचना समय
Subscribe to get the latest posts sent to your email.