चित्रा सिंह की प्रस्तुत कविताएं प्रेम के विविध शेड्स को अभिव्यक्ति देती हैं। प्रेम में जहां गहरी आसक्ति है,लगाव है , वहीं विछोह है और उसकी पीड़ा। लेकिन पीड़ा को चित्रा सिंह मुक्ति की संज्ञा देती हैं जिसमें वे टूटती नहीं, हारती नहीं वरन् फिर से प्रेम- राग को जीना चाहती हैं।
प्रेम – राग को गहरी संलग्नता से जीने वाली चित्रा सिंह की प्रस्तुत कविताएं विश्वास है ,आपको पसंद आएंगी और आप दो शब्द ज़रूर हमें लिखेंगे। – हरि भटनागर
कविताएं :
1.
पानी पर खींच दे
जैसे कोई लकीर
ऐसे आए तुम जीवन में
मैं स्तब्ध सी
खड़ी हूँ किनारे पर
लहरों में ढूँढ रही हूँ
तुम्हारा चेहरा।
2.
चॉंद से
पूछ लिया करती हूँ
रोज तुम्हारा हाल
पूछ लूँगी
किसी दिन उसी से
तुम्हारा पता भी।
3.
आँसुओं से भीगी
मन की गीली मिट्टी पर
अभी-अभी उग आया है
उम्मीद का पौधा
उम्मीद का पौधा
ऑंसुओं का दर्द समझता है।
4.
अच्छा वक़्त
बारिश सा बरसा,
बह गया जाने कहाँ?
बचा हुआ शेष जीवन
रिस रहा है बूंद-बूंद
उन दिनों की
याद बनकर।
5.
मौसम का अपना वक़्त है
आने-जाने का
धरती का क्या है?
धरती का क्या है?
वो तो बिछी है उसके इंतज़ार में
उसके बस का कुछ नहीं
न धूप, न कोहरा, न बारिश
मौसम के हवाले हो चुकी है
धरती पूरी की पूरी।
6.
उम्मीद के दरवाज़े
बंद हो गए हैं
ताले पड़ गए हैं दूरियों के
इंतज़ार की एक खिड़की
खुली है अब तक
जहां से आती है
धूप हवा बारिश और
तुम्हारी याद।
7.
तुम प्लेटफार्म के उस ओर
भीड़ के बीचों-बींच
और मैं इस ओर
अकेले खड़ी हूँ,
भरोसा एक लालटेन है
दोनो सिरों के बीचों-बीच
जिसकी रोशन उमीद के सहारे
हमारी आँखें एक दूसरे पर थिर हैं
विपरीत दिशाओं को जाने वाली
दो रेलगाड़ियों ने एक साथ आगे
सरकना शुरू किया
अंधेरा इतना घुप और चुप था
कि हमारा अलविदा कहना
टिमटिमाते तारों ने भी सुना।
8.
रात जब सो रही हो?
गहरी नींद की गोद में
तारों से छुप-छुपाकर
चॉंद की आत्मा
कर जाती है प्रवेश
नदी की देह में
सतह पर बैठा जल
पहरा देता है
मिलन के क्षणों का
सूर्य देता है अर्ध्य किरणों से
पवित्र नदी का ध्यान भंग करने
उनके द्वारा की गयी
सामूहिक प्रार्थनाओं का सच,
केवल सुबह को पता होता है।
9.
एक चिड़िया
जिसके पास पंख हैं हॅंसी के
बैठी है एक डाल पर
खुली खिड़कियॉं
जिसका स्वागत
करने को हैं आतुर
चिड़िया अपनी चोंच में
दबाए है जाने कितनी
अच्छी-अच्छी प्यारी बातें
जो नहीं मिलेंगी
तुम्हें किसी किताब में।
10.
दरख़्त से मजबूत कॉंधों पर
हर आती-जाती सॉंस के
साथ पड़ती सलवटें
चेहरे की हँसी के
फीके पीले पड़ते रंग
आसमान-सी सफेद ऑंखों का
सूखता हुआ पानी
क़दमों के नीचे की सिकुड़़ती,
छोटी होती ज़मीन
उँगलियों के बीच से
फिसलता हरेक दिन-रात
कितना मुश्किल है
पिता को बूढ़े होते देखना।
11.
लड़की
कलाई पर
बॉंधती है घड़़ी
घड़ी में बॉंधती है
अपने समय को
लड़की अकेले नहीं
समय के साथ-साथ चल रही है।
12.
सुनो बुद्ध !
तुम बताकर भी तो जा सकते थे
इतना संकोच क्यों किया तुमने?
थोड़ा वक़्त ज़रूर लगता
तुम्हें कहने में, मुझे सुनने में
फिर हमें उसे गुनने में
लेकिन हम मिलकर
तुम्हारे जाने का उत्सव मनाते
मैं करती श्रृंगार हम रात भर गीत गाते
तो क्या हुआ? जो तुम अल-सुबह चले जाते
ये तुम्हारी मुक्ति का प्रश्न था?
जो तुम्हें हाथ छुड़ाकर ही मिलती
पर मैंने तो उसी जगह रहकर किया
खुद को तुमसे मुक्त
तुम्हारे यूं अचानक चले जाने से
हमारे बीच की वो जो जगह रिक्त हुई
मैं नये ज़माने की यशोधरा
उगूँगी फिर उसी रिक्त जगह से
फलूँगी-फलूँगी भी
प्रेम से कभी ना मुक्त होने वाले
जीवन की कामना के लिये।
13.
स्त्रियॉं
जब चलती हैं
तो उड़ती है धूल
किसी के दम्भ की
किसी के अभिमान की
उसी धूल पर रखकर अपने पॉंव
वे चुनती हैं आगे की राह
पीछे छूटते उनके क़दमों के निशां
मुस्कुरा कर उन्हें शुभकामनाऍं देते हैं।
14.
पहले पहल
वे छीनेंगे तुमसे
तुम्हारी हँसी
फिर छीनेंगे बेहद धीमे से
तुम्हारे हिस्से का वह सुख
जिसके बल पर तुमने
दोबारा खड़ा किया था खुद को
किसी को यह जान पाने दिए बगैर
कि इस सब में कितनी बार लड़खड़ाते हुए
औंधे मुँह गिरी थीं तुम
और रिसता रहा हर ज़ख्म महीनों-दिनों तक
आखिर में तुम पाओगी
कि तुम्हारे जीने का हक और हुनर
दोनों छिन गये हैं
कहकर बड़े अदब और अदायगी से
कि प्यार तो देने का नाम है, ना।
चित्रा सिंह
जन्म: 1974, विदिशा (मध्य प्रदेश)
शिक्षा: बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से रसायनशास्त्र में स्नातकोत्तर, कार्बनिक रसायन (मेटेलिक सोप्स) पर शोधकार्य।
• दैनिक भास्कर, नई दुनिया, दैनिक जागरण / हंस, वागर्थ, साक्षात्कार समकालीन कविता, वसुधा, वस्तुत:, आदि पत्र/पत्रिकाओं में कविताऍं एवं लेख प्रकाशित।
• विज्ञान, रसायनशास्त्र, शिक्षा आदि विषयों पर महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर के जरनल (Journal) द्वारा शोध पत्र प्रकाशित।
• आकाशवाणी तथा दूरदर्शन, भोपाल द्वारा शैक्षिक कार्यक्रमों में विषय विशेषज्ञ के रूप में निरंतर भागीदारी।
• दो कविता संग्रह प्रकाशित
• रेत में उगाये हैं फूल प्रकाशन वर्ष-2012 प्रकाशक भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता।
• धूप के नन्हें पांव प्रकाशन वर्ष-2022 प्रकाशक प्रज्ञा भारती, नई दिल्ली।
• वर्ष- 2012 में साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान हेतु राष्ट्रीय साहित्य सुरभि अलंकरण से सम्मानित ।
प्राध्यापक (रसायनशास्त्र) विभागाध्यक्ष, विस्तार विभाग, क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान (एन.सी.ई.आर.टी.), भोपाल।
संपर्क: एम-27, निराला नगर, दुष्यंत कुमार त्यागी मार्ग, भोपाल।
ई- मेल: chitrasingh75@gmail.com
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सुनो बुद्ध , तुम कहके भी जा सकते थे ,
लड़की अकेले नहीं समय को साथ साथ बाँधकर चल रही है ,मौसम का अपना आने जाने का समय है ।
बहुत गहनता से चित्रा सिंह ने प्रेम के भावों को उकेरा है ।
बहुत आभार आपका
सभी कविताओं में उदास धुन है किंतु पराजय बोध नहीं।पुरुष के छद्म को भली भांति समझते हुए स्त्री नई यशोधरा के आत्मविश्वास से लबालब भारी हुई है
चित्रा सिंह जी की कविताएं वास्तव में दिल को छूने वाली हैं! उनकी प्रेम पर आधारित कविताएं पढ़कर मन भावुक हो जाता है। उनकी कविताओं में प्रेम की गहराई और सच्चाई को दर्शाया गया है,
उनकी कविताएं न केवल प्रेम की भावना को व्यक्त करती हैं, बल्कि जीवन की वास्तविकता और सुंदरता को भी दर्शाती हैं।
प्रेम की सादा गहराई की जलराशि की मानिंद।
हमारी प्रिय कवि साथी चित्रा जी की कविताओं का रचना समय के मंच पर स्वागत है. प्रेम और करुणा में आकंठ डूबा कवि का मन प्रतीक्षा में है, आशा में है. कोई कटुता कोई विषाद उस मन को घेर नहीं पाया. वियोग भाव के बावजूद ये संपूर्ण प्रेम की कविताएं हैं.
क्या बात है! कम शब्दों में बहुत कुछ कह देती हैं ये कविताएँ। सब की सब भा गईं।