कविताएँ:
नदी समुद्र
मुझे समुद्र इसलिए अच्छे लगते हैं कि
उसमें अपनी जानी पहचानी अनेक छोटी नदियों के
घुलें मिले होने का आभास होता है!
उसमें गंगा भी हो सकती है
और नील भी और टेम्स भी
जमुना भी कावेरी भी
थोड़ा जल गोमती का होगा
थोड़ा सई का थोड़ा सरजू और दजला का!
जिन नदियों का नाम नहीं जानता
जो मर गईं मार दी गईं निराजल
उनका जल भी समुद्र पर उधार है!
क्या समुद्रों के पास
नदियों के पानी का कोई हिसाब होगा!
जैसे यदि बूढ़ी गंडक, बेतवा, मोरवा या कावेरी या चंबल या कमला बलान कोयिल
अपना पानी वापस माँगे तो कैसे लौटाएगा समुद्र?
क्या नदियों के पास
अपनी प्रत्येक बूँद का हिसाब होगा?
कितना पानी गौरैया ने पिया
कितना सीपी में सूख गया?
क्या नदी को याद होगा?
संसार के सभी समुद्र नदियों के कर्जदार हैं
अपने बकायेदार समुद्र से
नदियाँ अपना अर्पित जल वापस माँगते संकोच से
नके नक भरी हैं!
जो भी जल है शेष उसकी अंतिम बूँद भी
समुद्र को देने पर अड़ी हैं
इसीलिए नदियाँ छोटी होकर भी
संसार के सभी समुद्रों से बड़ी हैं!
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पुराने जैसा
अक्सर मैं भूल जाता हूँ कि
बैंक में मेरी कैसी तस्वीर लगी है
कैसा दस्तखत किया है।
कैशियर मेरे चेहरे से
मेरी उस पुरानी तस्वीर को मिलाता है
मिलाता है
पुराने दस्तखत से ताजे दस्तखत को
और कहता है बनाऊँ वैसा ही दस्तखत
जैसा होना चाहिए।
पर मैं बार-बार भूल जाता हूँ
अपना ही पुराना दस्तखत,
मेरा चेहरा है कि अजब बदल जाता है रोज-रोज
और मुझसे माँग की जाती है कि यदि
पाना हो भुगतान तो
भले ही न दिखूं अपनी पुरानी तस्वीर जैसा पर दस्तखत बनाऊँ ठीक पुराने दस्तखत की ही तरह।
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अंत समय में
माँ ने कहा वह उस चिड़िया की तरह है
जिसने दिये बहुत सारे अंडे-बच्चे पर
अब उसके पास कोई नहीं।
माँ ने एक किस्सा सुनाया
जिसमें एक बाँझिन स्त्री ने
अपने बच्चे के लिए जुटा रखा था ढेर सारा शहद
खरीद रखा था, एक कजरौटा, एक मौर
एक पूरा ग्रह और पता नहीं क्या-क्या!
अंत समय में बाँझिन स्त्री
अपनी कोख और सुहाग को कोसती मरी।
किस्सा खतम कर माँ कुछ गाने लगी
और मैं
मुँह फेर सोने लगा।
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यदा यदा!
जब जब वचन तोड़ने वाले
नीच दुर्योधन से युद्ध होगा
तो जाँघ तोड़ने जैसा नियम भंग
करना ही होगा!
यह उचित है यह है अनुचित
इस द्वंद्व दुविधा से
उबरना ही होगा!
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होना!
अंधेरे में खड़ा
एक बहुत बड़ा पहाड़ नहीं दिखता!
लेकिन उसी अंधेरे में रखा
एक बहुत छोटा दीया
दिखता है!
जो जलता है वह अपना होना
लिखता है!
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गंध
कल रात कुछ जलने की
गंध आ रही थी।
जल्दी-जल्दी हमने अपने घर का
कोना-कोना छान मारा
कहीं कुछ अपने घर में तो नहीं
सुलग रहा जल रहा।
चूल्हा बुझा था देर से
कहीं कुछ भी सुलग नहीं रहा था घर में
सब कुछ सही-सलामत था
हमें राहत हुई
हमारे यहाँ कुछ भी जल नहीं रहा था
राख नहीं हो रहा था हमारे भीतर।
पर कुछ जलने की गंध आती रही
जब हमें आ रही थी नींद तब भी
हमारे घर में, मौजूद थी कुछ जलने की गंध।
पर खुशी थी हमें,
हमारे यहाँ आग नहीं लगी थी।
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सच्चाई और ताकत!
किसी को खुश देखता हूँ तो
लगता है वह अभिनय कर रहा है
यही स्थिति रोते हुए व्यक्ति को देखने
पर लगती है!
सम्मान स्नेह प्रेम करुणा और आदर
सबने खो दी है चमक
केवल घृणा और हिंसा में बची है
सच्चाई और ताकत!
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पुल नदी के शत्रु नहीं!
पुलों ने कब कहा उनको नदी पर खड़ा किया जाये
उन्होंने इतना ही किया कि इंकार नहीं किया
और दिन रात काल गति
को भुलाकर अपनी जगह खड़े रहे!
अडिग साथ देना ही
पुल होना होता है
ऐसा पुलों के संविधान में लिखा है!
पुल से गुजरो तो वे मुनादी करते हैं हाँय हाँय
हम पुल हैं कोई बाँध नहीं
हम नदी को रोकने नहीं
उसे कुचले जाने से बचाने के लिए खड़े हैं!
पुल नदी के शत्रु नहीं
वे तो नदियों की प्रतीक्षा में वहाँ भी खड़े हैं
जहाँ नदियाँ बहना भूल कर चली गयीं कहीं और!
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लौटना बीच से
एक ऐसे रास्ते पर छूट गया हूँ
जिससे कोई रास्ता नहीं
जुड़ता
कोई घर
कोई प्रकाश स्तंभ
कोई कोलाहल नहीं दूर दूर तक
रास्ता कुछ बोलता नहीं मुझसे
मैं बीच यात्रा में उसे छोड़ कर लौटना
ठीक नहीं समझता!
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संभावना
जब तुम कहती हो
‘अब तुम
मुझसे कभी भी बात नहीं करना’
तुम्हारी इस मनाही में ही
यह संभावना छिपी है
कि मैं कभी भी तुमसे बात कर लूँगा!
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स्वागत नहीं!
एक पेड़ के नीचे बैठा तो पत्ते गिरे
मेरे सामने
तभी
एक चिड़िया दिखी अनेक वर्षों बाद
न वह नीलकंठ न गरुड़ न गौरैया!
मैं उसके लुप्त हो जाने को लेकर कभी चिंतित नहीं रहा
उसके न दिखने का दुःख भी किसी से नहीं कहा!
मुझे वहाँ देख कर
चकित हुए बिना वह अपने पेड़ की ऊँची टेरी
पर बैठ गई
मैं कहाँ रहता हूँ और उसके पेड़ तक क्यों आया हूँ
यह जानने में उसकी कोई उत्सुकता नहीं दिखी मुझे!
उसने मुझे न आया हुआ माना!
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बोधिसत्व
11 दिसम्बर, 1968 में उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद के भिखारीरामपुर गाँव में जन्मे बोधिसत्व का मूल नाम अखिलेश कुमार मिश्र है। वे यूजीसी के फेलो रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से किया गया शोध प्रबन्ध ‘तार सप्तक कवियों की कविता और काव्य-सिद्धान्त’ पुस्तक के रूप में प्रकाशित है। उनके अब तक पाँच कविता-संग्रह प्रकाशित हैं, जिनके नाम हैं- ‘सिर्फ़ कवि नहीं’, ‘हम जो नदियों का संगम हैं’, ‘दुःखतंत्र’ ‘ख़त्म नहीं होती बात’ और ‘अयोध्या में कालपुरुष’ ‘महाभारत यथार्थ कथा’ नामक एक किताब पिछले दिनों चर्चित रही, जिसमें महाभारत की कथाओं के आन्तरिक सूत्रों का एक नवीन अध्ययन किया गया है। उनका छठवाँ कविता संकलन ‘संदिग्ध समय में कवि’ प्रकाशित होने वाला है।
गोरखनाथ की सौ सबदिओं का कवितांतर भी शीघ्र प्रकाशित होने वाला है!
उनकी कविताओं के भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हैं। कुछ कविताएँ मास्को विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। बोधिसत्व साहित्य और सिनेमा दोनों में बराबर दखल रखते हैं। लगभग दो वर्ष ‘स्टार न्यूज़’ के सम्पादकीय सलाहकार रहे। दो दर्जन से अधिक टीवी धारावाहिकों और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म के शोज़ की स्क्रिप्ट्स का प्रमुख हिस्सा रहे बोधिसत्व के क्रेडिट में ‘शिखर’ और ‘धर्म’ जैसी फ़िल्में भी शामिल हैं। पिछले दिनों स्टार प्लस पर प्रसारित हुए धारावाहिक ‘विद्रोही’ का निर्माण उन्होंने अपने प्रोडक्शन हाउस ‘गाथा प्रोडक्शंस’ से किया है। विख्यात टीवी धारावाहिक ‘देवों के देव महादेव’ के लिए शोधकार्य कर चुके हैं। उन्हें ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’, ‘संस्कृति अवार्ड’, ‘गिरिजाकुमार माथुर सम्मान’, ‘फ़िराक़ गोरखपुरी सम्मान’ समेत कई पुरस्कार प्राप्त हैं।
सम्प्रति साहित्य और सिनेमा के साथ टीवी धारावाहिक के लिए लेखन और निर्माण में व्यस्त हैं।
मुंबई में रहते हैं
ई-मेल : abodham@gmail.com
मो. 9820212573
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